इन दिनों अमेरिकी विश्वविद्यालय ग़ज़्ज़ा पट्टी में इस्राईल के नरसंहार के ख़िलाफ़ छात्रों के विरोध प्रदर्शन का केंद्र बने हुए हैं। अमेरिकी छात्रों ने निलंबन, गिरफ़्तारी और उन्हें नौकरी से वंचित किए जाने जैसी बहुत सारी धमकियों के बावजूद यह विरोध प्रदर्शन शुरू किया है।
अमेरिका में फ़िलिस्तीन के समर्थन में छात्र रैलियां न्यूयॉर्क राज्य के कोलंबिया विश्वविद्यालय से शुरू हुईं। इस विरोध-प्रदर्शन की आग अब अमेरिका के 32 अन्य बड़े और महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों तक पहुंच गई है। अमेरिका के छात्र लगातार इस बात की मांग कर रहे हैं कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों के साथ ज़ायोनियों के आर्थिक और अध्यात्मिक सभी तरह के संबंधों को समाप्त किया जाए। अमेरिकी छात्रों ने यह भी एलान किया है कि वे इन विरोध प्रदर्शनों के साथ, इतिहास के सही पक्ष पर खड़े हैं। उनका कहना है कि उन्हें ख़ुद पर और इन विरोध आंदोलनों पर गर्व है। एक ऐसा सम्मान जो केवल अमेरिकी विश्वविद्यालयों तक ही सीमित नहीं है और पूरी दुनिया को इस पर गर्व है।
विश्वविद्यालयों में होने वाले विरोध-प्रदर्शनों के कार्यक्रमों, विशेषकर कोलंबिया विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाली सभाओं में ध्यान देने योग्य एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस विश्वविद्यालय के छात्र अमेरिका के मिडिल क्लास के प्रतिनिधि नहीं हैं। यह छात्र अक्सर अमेरिकी सीनेटरों, अमीरों और अमेरिकी उच्च समाज के बच्चे होते हैं। जिनके परिवार अमेरिका में शक्तिशाली ज़ायोनी लॉबी से जुड़े हुए हैं और उन्हें अमेरिकी राजनीति में बने रहने के लिए समर्थन प्राप्त है। अमेरिकी सीनेटरों ने ज़ायोनीवादियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे छात्रों को इस्राईल विरोधी भीड़ बताया है और वे चाहते हैं कि अमेरिकी सरकार उनसे निपटे और विश्वविद्यालयों में जल्द से जल्द शांति और व्यवस्था लौटाए। यही कारण है कि विरोध-प्रदर्शन करने वाले छात्रों को निलंबित करने या गिरफ़्तार करने की धमकी दी जाती है। दूसरी ओर, पैसे वाले यहूदी व्यापारियों ने धमकी दी है कि अगर फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों का दमन नहीं किया गया तो वे विश्वविद्यालय की फंडिंग में कटौती करेंगे।
क्या कहते हैं अमेरिकी छात्र?
ज़ायोनी शासन के अपराध और उसके प्रति अमेरिकी समर्थन को लेकर प्रदर्शनकारी छात्रों की माँगें हर विश्वविद्यालय से दूसरे विश्वविद्यालय में अलग हैं। यानी हर यूनिवर्सिटी के प्रदर्शनकारी छात्रों की मांग अपनी मांग है वह किसी दूसरे विश्वविद्यालय के छात्रों की मांग को दोहरा नहीं रहे हैं।
फ़िलिस्तीन के समर्थन में अमेरिकी छात्रों का इस्राईल के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन
छात्रों की सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य मांगों को संक्षेप में इस प्रकार बयान किया जा सकता है:
"सैन्य हथियार निर्माताओं के साथ व्यापार करना बंद करें जो ज़ायोनीवादियों को हथियारों की आपूर्ति करते हैं।
"उन परियोजनाओं के लिए ज़ायोनी अनुसंधान धन स्वीकार करना बंद करें जो इस शासन की सैन्य शक्ति को मज़बूत करने में मदद करती हैं।"
"ज़ायोनी कंपनियों या ठेकेदारों से लाभ कमाने वाले प्रबंधकों के साथ विश्वविद्यालय अपने सभी संबंधों को समाप्त करे।"
"ज़ायोनियों से कितना धन प्राप्त होता है और इसका उपयोग किस लिए किया जाता है, इसके बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक की जाए।"
आगे अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीन समर्थकों के प्रदर्शन के बारे में 6 बिंदुओं पर चर्चा की गई है:
पहला बिन्दूः युवा अमेरिकी वर्ग में बढ़ती जागरूकता।
युवा अमेरिकी वृद्ध अमेरिकियों की तुलना में वैश्विक संकटों और समस्याओं के बारे में अधिक जागरूक हैं। जेनरेशन Z के छात्र, जो "ब्लैक लाइव्स मैटर", "जलवायु परिवर्तन" और "बंदूक सुरक्षा" जैसे सामूहिक अभियानों के युग में बड़े हुए हैं, अब फ़िलिस्तीनी स्वतंत्रता के समर्थन में व्यापक गठबंधन बना रहे हैं, जो अमेरिकी राजनेताओं के लिए एक चुनौती बन गया है। यही कारण है कि अमेरिकी राजनेता इस प्रयास में हैं कि नए क़ानून पारित करके और छात्रों का दमन और गिरफ़्तारी करके इसकी निरंतरता और विस्तार को रोका जा सके।
दूसरा बिन्दूः भारी दमन
दशकों से ज़ायोनी बिना किसी बहाने के फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहे हैं। लेकिन ग़ज़्ज़ा युद्ध ने ज़ायोनियों की अभूतपूर्व क्रूरता और बर्बरता को खुलकर दुनिया के सामने ला दिया है। बच्चों के जले हुए शरीरों की तस्वीरें, रोती-बिलखती माताएँ, भूखे लोग जो खाना हासिल करने का इंतेज़ार करते समय ज़ायोनियों की गोलीबारी में शहीद हो जाते हैं। यह सब ऐसी दिल को झकझोर देने वाली तस्वीरें हैं कि जिसने दुनिया भर के लोगों की भावनाओं को जगा दिया है। युद्ध को रोकने की पुकार, जिसे मानवाधिकारों और क़ानूनों के जानकार कार्यकर्ता "नरसंहार" कहते हैं, ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों के छात्रों को ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ लामबंद कर दिया है, लेकिन विश्वविद्यालयों के प्रशासक अब छात्रों का गंभीर रूप से दमन कर रहे हैं। उन्होंने पुलिस से छात्रों को गिरफ़्तार करने को कहा है और ख़ुद दर्जनों को निलंबित कर दिया है।
फ़िलिस्तीन के समर्थन में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में छात्रों का धरना
तीसरा बिन्दूः 3- संकाय सदस्यों को विद्यार्थियों से जोड़ना
ऐसा प्रतीत होता है कि छात्रों को निलंबित करने का निर्णय उल्टा पड़ गया क्योंकि अमेरिकी विश्वविद्यालयों के सैकड़ों संकाय सदस्य बैनर लेकर बाहर चले गए जिन पर लिखा था, हम छात्रों को निलंबित नहीं करेंगे। पिछले हफ़्ते अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स ने एक बयान जारी करके छात्रों के निलंबन और उनकी गिरफ़्तारी की निंदा की थी। इस बयान में कहा गया है कि हमने राष्ट्रपति और सरकार पर अपना भरोसा खो दिया है और हम विश्वविद्यालय को वापस लेने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
ग़ज्ज़ा पट्टी में इस्राईल के अपराधों का विरोध कर रहे अमेरिकी छात्रों को हिरासत में लिया गया
चौथा बिन्दूः राजनेता ज़ायोनियों के साथ हैं
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और अन्य अमेरिकी अधिकारी ज़ायोनियों का समर्थन करते हैं। फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ क्रूर ज़ायोनी युद्ध को रोकने के लिए कोई कार्यवाही नहीं करने के लिए आलोचना का सामना करने वाले बाइडन ने एक बयान जारी किया जिसमें उन्होंने यहूदी-विरोध के उदय के बारे में चेतावनी दी। ग़ज़्ज़ा में घिरे 23 लाख फ़िलिस्तीनियों के लिए समर्थन की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी छात्रों की चिंताओं को नज़रअंदाज करते हुए, व्हाइट हाउस ने परिसरों में यहूदी विरोधी भावना का दावा किया है।
साथ ही, प्रतिनिधि सभा के कई सदस्यों, जो ज़्यादातर मुस्लिम हैं, जिनमें मिशिगन से "रशीदा तलीब" और मिनेसोटा से "इलहान उमर" शामिल हैं, ने विरोध करने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ की जाने वाली दंडात्मक कार्यवाहियों की आलोचना की है। इल्हान उमर की बेटी "एसरा हिरसी" इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान विश्वविद्यालय से निलंबित छात्रों में से एक है।
अमेरिकी सरकार और सेना इस्राईल के साथ और अमेरिकी छात्रों के ख़िलाफ़ हैं
पांचवा बिन्दूः ज़ायोनी लॉबी जारी है
जबकि सैकड़ों फ़िलिस्तीनी समर्थक प्रदर्शनकारियों को न्यायिक प्रक्रिया और सुरक्षा अधिकारियों से मिलने वाली धमकियों का सामना करना पड़ा है, यह बताया गया है कि मुट्ठी भर ज़ायोनी समर्थक प्रदर्शनकारी विश्वविद्यालय परिसरों में गए और "इज़राइल की जीत" के नारे लगाए। इस समूह ने ज़ायोनी सेना की एक इकाई, "कफ़ीर ब्रिगेड" का झंडा भी लहराया। एक अजीब घटना में, इस्राईल समर्थक संगठन शिरियन कलेक्टिव ने उन लोगों को पैसे की पेशकश की है जो फ़िलिस्तीन समर्थन शॉल पहनने और अमेरिकी परिसरों में छात्र विरोध प्रदर्शन में घुसपैठ करने के इच्छुक हैं।
सोशल मीडिया पर शेयर की गई एक पोस्ट में उन्होंने कहा कि वे विशेष रूप से अरबी नाम और पश्चिमी एशियाई लोगों की तरह दिखने वाले लोगों की तलाश कर रहे हैं, ताकि प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच उनका प्रभाव गहरा हो और वे विरोध प्रदर्शनों की रफ़्तार को धीमा कर सकें।
छठा बिन्दूः विश्वविद्यालयों से अनुरोध
ऐसी स्थिति में कि जब अमेरिकी अधिकारी प्रदर्शनकारी छात्रों को ऐसे नाराज़ युवाओं के समूह के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं कि जिनके पास स्पष्ट लक्ष्य नहीं हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रदर्शनकारियों ने अपनी स्थितियों को स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया है। छात्र अपने विश्वविद्यालय प्रशासकों से जवाबदेही की मांग कर रहे हैं, जिन्हें वे इस्राईल के युद्ध अपराधों में भागीदार मानते हैं। क्योंकि इन प्रशासकों ने युद्ध-समर्थक कंपनियों में विश्वविद्यालय के निवेश को नहीं रोका है।
कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों के पेंशन फंडों ने भी अपना पैसा ज़ायोनी कंपनियों में निवेश किया है, जो संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग़ज़्ज़ा युद्ध में शामिल हैं। छात्र यह भी चाहते हैं कि उनके विश्वविद्यालय अवैध अधिकृत क्षेत्रों में ज़ायोनी संस्थानों के साथ किए गए समझौते को रद्द कर दें।