दूसरों के अंदर न ऐब तलाश करो न दूसरों का मज़ाक़ उड़ाओ

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दूसरों के अंदर न ऐब तलाश करो न दूसरों का मज़ाक़ उड़ाओ

प्रसिद्ध ईरानी शायर मौलवी अपने शेरों और पैग़म्बरे इस्लाम की हदीस को बयान करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग दूसरों की कमियों व ऐबों से पर्दा उठाते और दूसरों से बयान करते हैं परंतु अपनी कमियों और ऐबों के संबंध में अंधे होते हैं।

महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे हुजरात की 11वीं आयत यानी पवित्र क़ुरआन के 49वें सूरे में कहता है हे ईमान लाने वालों! एक गुट दूसरे गुट का मज़ाक़ न उड़ायें शायद जिस गुट का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है वह मज़ाक़ उड़ाने वाले गुट से बेहतर हो और महिलाओं को दूसरी महिलाओं का मज़ाक़ नहीं उड़ाना चाहिये। शायद जिनका मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है वह मज़ाक़ उड़ानी वाली महिलाओं से बेहतर हों और एक दूसरे के ऐब और कमी की तलाश में मत रहो और एक दूसरे को बुरे नामों से मत बुलाओ यह बुरी बात है कि ईमान के बाद एक दूसरे को बुरे नामों व उपाधियों से बुलाओ जो इस बुरी चीज़ पर ध्यान नहीं देता है वह ज़ालिम व अत्याचारी है।

इंसानों और समाजों में रहने वाले कुछ लोगों की एक बुरी आदत यह है कि कुछ लोग एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ाते हैं चाहे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का या एक जाति दूसरी जाति का। इस प्रकार के लोग आमतौर से अपने ऐब व कमी पर ध्यान नहीं देते हैं और दूसरों की कमियों को देखते हैं।

जानबूझकर या अनजाने में अपनी कमियों को छिपाते और दूसरे की कमियों को बयान व उजागर करते हैं या शायद दूसरे के बारे में एसी चीज़ कहते हैं जो मूलतः कमी नहीं होती है और उसे वे अपमानजक अंदाज़ में बयान करते हैं। इस आधार पर महान ईश्वर इंसानों की प्रशिक्षा और जीवन को शांतिपूर्ण बनाने के उद्देश्य से आदेश देता है कि कभी भी न तो एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ायें और न ही एक दूसरे को गिरी हुई नज़र से देखें विशेषकर इसलिए कि शायद दूसरा बेहतर हो।

दूसरे का मज़ाक़ उड़ाना बुरा भला कहने से बदतर है। क्योंकि जब एक इंसान दूसरे को बुरा भला कहता है तो वह केवल उन सिफ़तों व विशेषताओं को बयान करता है जो अवांछित व अच्छी नहीं होती हैं मगर जब इंसान किसी का मज़ाक़ उड़ाता है तो उसके पूरे वुजूद व अस्तित्व को खिलौना बना देता है।

महान ईश्वर कहता है कि एक दूसरे की टोह में मत रहो। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है भाग्यशाली व ख़ुशनसीब वह इंसान है जिसकी कमियां उसे दूसरों की टोह में रहने से रोकती हैं।

प्रसिद्ध ईरानी शायर मौलवी अपने शेरों और पैग़म्बरे इस्लाम की हदीस को बयान करते हुए कहते हैं

कुछ लोग दूसरों की कमियों व ऐबों से पर्दा हटाते और दूसरों से बयान करते हैं परंतु अपनी कमियों और ऐबों के संबंध में अंधे होते हैं।

एक अन्य ईरानी शायर नेज़ामी भी इस संबंध में सिफ़ारिश करते हैं कि जितना हो सके दूसरों में अच्छाइयां ढ़ूंढ़ो ताकि अच्छाई हासिल हो और महान ईश्वर इस आयत में आदेश देता है कि एक दूसरे का न तो बुरा नाम रखो और न एक दूसरे को बुरे नाम से बुलाओ। क्योंकि यह कितना बुरा है कि अल्लाह का बंदा कहने या होने के बाद उसे बुरे नाम से पुकारा जाये।

आयत के अंत में महान ईश्वर अपनी रहमत व दया की ओर संकेत करता और कहता है कि हे ईमान वालों यह काम न करो और अगर यह ग़लती कर दिये तो अल्लाह ने अब तुम्हें इस काम की बुराई से अवगत कर दिया, तो तौबा करो वरना ज़ालिमों से हो जाओगे और ज़ुल्म व अत्याचार वह गुनाह है कि अगर उस पर आग्रह करोगे तो इंसान को ईमान के ज़ेवर से निर्वस्त्र कर देगा और कहा जा सकता है कि ज़ुल्म वही कुफ्र है। पवित्र कुरआन के सूरे बक़रा की आयत नंबर 254 में महान ईश्वर कहता है कि काफ़िर वही ज़ालिम हैं।

आज लोगों के मध्य जो जोक और चुटकुले प्रचलित हैं उनमें अधिकांश में एक दूसरे का मज़ाक़ उड़ाया गया होता है। इन चुटकुलों में देशी और विदेशी विभिन्न क़ौमों का मज़ाक़ उड़ाया गया होता है। विशेषकर जब किसी व्यक्ति या क़ौम को उस सिफ़त या बात से जोड़ा जाये जो अच्छी न हो और उसमें वह बात या सिफ़त पायी भी न जाती हो। यह अच्छी बात नहीं है। इस प्रकार के कार्यों से महान ईश्वर ने मना किया है। यद्यपि इस प्रकार के जोक और चुटकुले कुछ क्षणों के लिए लोगों की ख़ुशी का कारण बनते हैं परंतु साथ ही बहुत अधिक द्वेष, दुश्मनी और कीने का कारण भी बनते हैं।

इस बात को जानना और समझना चाहिये कि अगर महान ईश्वर किसी व्यक्ति या क़ौम को उसकी ग़लती की वजह से मलामत व भर्त्सना करता है तो किसी का मज़ाक नहीं उड़ा रहा है बल्कि दूसरों को सीख देने के लिए एसा कह रहा है ताकि लोग इस कमी व एब से दूर हो जायें।

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