शियों के छठे इमाम फ़रमाते हैं" वह ख़ुशनसीब है जो अल्लाह की नेअमतों को कुफ्र में नहीं बदलता है और ख़ुशनसीब वे लोग हैं जो अल्लाह के लिए एक दूसरे से प्रेम करते हैं।
अल्लाह की नेअमतों से सही तरह से लाभ उठाना एक बहुत महत्वपूर्ण मामला व विषय है और वह एक इंसान और समाज की ज़िन्दगी को दिशा देता है।
शियों के छठे इमाम, इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत है जिसमें आप फ़रमाते हैं" ख़ुशनसीब वह है जो अल्लाह की नेअमत को कुफ्र में नहीं बदलता है और वे ख़ुशनसीब हैं जो अल्लाह के लिए एक दूसरे से प्रेम करते हैं।"
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता सैयद इमाम ख़ामेनेई ने इस हदीस की संक्षिप्त शरह में फ़रमाया कि طُوبىٰ لِمَن لَم یُبَدِّل نِعمَةَ اللهِ کُفراً
यह बहुत महत्वपूर्ण बात है, अल्लाह की नेअमत को कुफ्र में बदलने की, अमले काफ़िराना और कुफ्र जो पवित्र क़ुरआन में और सूरे इब्राहीम की 28वीं और 29वीं आयतों में भी आया है
«اَلَم تَرَ اِلَی الَّذینَ بَدَّلوا نِعمَتَ اللهِ کُفرًا وَ اَحَلّوا قَومَهُم دارَ البَوار، جَهَنَّمَ یَصلَونَها وَ بِئسَ القَرار»
"क्या उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने अल्लाह की नेअमत को कुफ्र में बदल दिया और अपनी क़ौम को बर्बादी के घर में पहुंचा दिया? वह बर्बादी का घर जहन्नम है और उसमें दाख़िल होंगे और कितना बुरा ठिकाना है।"
कभी अल्लाह ने इंसान को कोई नेअमत दिया है मिसाल के तौर पर बयान की नेअमत, यह एक अच्छी नेअमत है। एलाही शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार और अख़लाक़ में इस नेअमत से लाभ उठाया जा सकता है और इसके विपरीत दूसरे काम में भी इस नेअमत का प्रयोग किया जा सकता है। अगर कोई इस नेअमत का प्रयोग एलाही मक़ासिद और उद्देश्यों के विपरीत करता है तो उसने कुफ्राने नेअमत किया है और नेअमत को बदला और उसका दुरुपयोग व कुफ्र किया है या मान लीजिये कि माले दुनिया का होना एक नेअमत है, माले दुनिया एक नेअमत है जिसे अल्लाह कुछ लोगों को अता करता है, इस नेअमत से बुलंद दर्जों को प्राप्त किया जा सकता है, सदक़ा व दान दिया जा सकता है, ख़र्च किया जा सकता है, किसी को मुसीबत और भूख से नजात दी जा सकती है, इसका उल्टा भी किया जा सकता है, इस पैसे को फ़साद और हराम के रास्तों में यानी ख़ुद और दूसरों को बर्दाद करने के रास्ते में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह अल्लाह की नेअमत का कुफ्राने नेअमत है।
इसी प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई फ़रमाते हैं कि किसी चीज़ के प्रबंधन की शक्ति व क्षमता और पदों को स्वीकार करना भी अल्लाह की एक नेअमत है। यह भी एक नेअमत है कि अल्लाह एक रास्ते को उत्पन्न करने या उसके बदलने की ताक़त किसी को दे। इस नेअमत का किस तरह प्रयोग करना चाहिये? अगर लोगों की सेवा और समाज के मार्गदर्शन में उसका प्रयोग किया जाये तो यह शुक्रे नेअमत है, अगर इस नेअमत का प्रयोग इस मार्ग में नहीं किया गया तो यह कुफ्रे नेअमत है।
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता फ़रमाते हैं कि इन नेअमतों का कुफ्रान कभी इस सीमा तक होता है कि उसकी भरपाई भी नहीं की जा सकती। मान लीजिये कि एक देश में एक राष्ट्र ने प्रतिरोध व आंदोलन किया है, अमेरिका, साम्राज्यवादियों और ज़ोरज़बरदस्ती करने वाले दूसरे देशों के खिलाफ़, एसे लोग सत्ता में आ गये जिनके पास देश के संचालन की क्षमता नहीं थी। इन लोगों ने इस अवसर से लाभ नहीं उठाया या देश का सही से संचालन नहीं किया और इसका प्रयोग विपरीत दिशा में किया और अपने देश के लोगों और ख़ुद को बर्बाद कर दिया। राष्ट्र को भी बर्बाद कर दिया, यह वही «اَلَم تَرَ اِلَی الُّذینَ بَدَّلوا نِعمَتَ اللهِ کُفرا»].
है।
طُوبىٰ لِلمُتَحابّین فِی الله
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से जो हदीस रिवायत की गयी है उसमें आगे कहा गया है कि ख़ुशनसीब वे लोग हैं जो अल्लाह की रज़ा के लिए एक दूसरे से प्रेम करते हैं। متحابّین بالله یا فی الله
का अर्थ है कि यानी उनके प्रेम का आधार अल्लाह की रज़ा है। अमुक व्यक्ति से अल्लाह के लिए प्रेम करते हैं और किसी से संबंध विच्छेद करते हैं तो अल्लाह के लिए। mm
स्रोतः इमाम ख़ामेनेई, 1396/02/10. हदीस (طُوبىٰ لِمَن لَم یُبَدِّل نِعمَةَ اللهِ کُفراً طُوبىٰ لِلمُتَحابّین فِی الله) की शरह, अमालिये तूसी किताब, अलमिस्बाहुल लिलकफ़अमी।