क्या अमेरिका, जापान और दक्षिणी कोरिया को चीन के साथ संबंध विकसित करने की इजाज़त देगा?

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क्या अमेरिका, जापान और दक्षिणी कोरिया को चीन के साथ संबंध विकसित करने की इजाज़त देगा?

हालिया वर्षों में अमेरिका ने उत्तरी कोरिया को एक ख़तरनाक ड्रैगन के रूप में पेश किया है जिसका इरादा जापान और दक्षिणी कोरिया को जला देना है, इसी नैरेटिव के ज़रिए वह इन दोनों देशों की सुरक्षा और सैन्य प्रबंधन को नियंत्रित करने में कामयाब रहा है।

दक्षिणी कोरिया और जापान के नेताओं ने कई वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद हाल ही में अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन के साथ आर्थिक सहयोग बहाल करने की मांग की है लेकिन उनकी बातचीत कोरिया और जापान के लिए अमेरिकी इजाज़त की सीमा तक सीमित है।

हालिया त्रिपक्षीय बैठक साढ़े चार साल में पहली बार हुई थी जिसमें दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति, जापान के प्रधानमंत्री और चीन के दूसरे सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री केकियांग हाज़िर हुए।

वार्ता मुख्य रूप से उन मुद्दों पर केंद्रित थी जो सबके  लिए आम और संयुक्त थे जैसे आपूर्ति श्रृंखलाओं की रक्षा करना, व्यापार को बढ़ावा देना और जनसंख्या की उम्र बढ़ने और उभरती संक्रामक बीमारियों की चुनौतियों पर सहयोग करना वग़ैरह। ताइवान और उत्तरी कोरिया जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों के संबंध में भी कुछ मुद्दे उठाए गए।

जापान, चीन और दक्षिणी कोरिया व्यावहारिक सहयोग के विस्तार पर सहमत हुए ताकि तीनों देशों की जनता इसके फ़ायदे को महसूस कर सके। बेशक यह वह चीज़ें हैं जिनके लिए दक्षिणी कोरिया और जापान को अमेरिका से इजाज़त लेने की ज़रूरत पड़ेगी।

कुछ अमेरिकी मीडिया ने चीन और उत्तरी कोरिया के ख़तरे जैसे विषयों को उजागर करके या बढ़ा चढ़ाकर पेश करके जापानी और दक्षिण कोरियाई निर्णय निर्माताओं के लिए मनोवैज्ञानिक रुकावटें पैदा करने की कोशिश की है।

मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक लेख में उत्तरी कोरिया के ख़तरे का ज़िक्र किया और चीन में लोकतंत्र की समस्या, माओवादियों का फिर से सिर उठाना, चीन में पूंजी की आवश्यकता के संकट और चीन की समस्याएं जैसी सुर्ख़ियां लगाईं।

चीनी कंपनियों ने जापानी और कोरियाई कस्टमर्ज़ को यह समझाने की कोशिश की है कि जापान और दक्षिण कोरिया के चीन के साथ संबंधों का फ़ायदा चीन को है जबकि परेशानी उन दोनों देशों को होगी।

बेशक, यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि चीन, आख़िरकार उत्तरी कोरिया को अमेरिकी सेना की धमकियों के ख़िलाफ़ एक खिलाड़ी के रूप में देखता है, न कि दक्षिण कोरिया और जापान के बीच संबंधों में हस्तक्षेप करने वाले खिलाड़ी के रूप में क्योंकि आम तौर पर उत्तरी कोरिया के पास ऐसी क्षमताएं नहीं पायी जाती हैं।

हालिया वर्षों में अमेरिका ने उत्तरी कोरिया को एक ख़तरनाक ड्रैगन के रूप में दिखाया है जिसका इरादा जापान और दक्षिणी कोरिया को जला देना है और इसी नैरेटिव के साथ वह इन दोनों देशों की सुरक्षा और सैन्य प्रबंधन को नियंत्रित करने में वह कामयाब रहा है जबकि दूसरी ओर चीन का यह ख़याल ​​है कि समस्या एक राजनीतिक विवाद है और इसे राजनीतिक ज़बान या वार्ता द्वारा ही हल किया जाना चाहिए।

अमेरिका ने भी जापान और दक्षिणी कोरिया के उकसावे पर अब तक उत्तरी कोरिया और चीन के कथित ख़तरों के ख़िलाफ़ संवेदनशील सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया जबकि अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनियों को बहुत ज़्यादा फ़ायदा पहुंचा है।

जापान और दक्षिणी कोरिया मिलकर अपने इलाक़े में 80 हज़ार से अधिक अमेरिकी सैनिकों की मेजबानी कर रहे हैं और इन सैनिकों की उपस्थिति, अमरीका के निरंतर इस प्रोपेगैंडे के की वजह से है कि चीन और उत्तरी कोरिया ख़तरा पैदा कर रहे हैं। दो देश जिनका अमेरिका के विपरीत, कम से कम पिछली कुछ शताब्दियों में हमलों का कोई का इतिहास ही नहीं रहा है।

लेकिन कुछ जापानी और दक्षिणी कोरियाई राजनेताओं के अनुसार, उन्हें अमेरिका और पश्चिम द्वारा थोपी गई धारणाओं की ग़लती का एहसास हो गया है और वे अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।

पूर्वी एशियाई यह पड़ोसी देशों को जो वैश्विक आर्थिक उत्पादन के पांचवें हिस्से से अधिक के भागीदार हैं, महामारी के बाद की आर्थिक मंदी से उभरने के लिए विशेष रूप से आपूर्ति श्रृंखला में क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग की ज़रूरत होगी।

चीन अपने तीन पड़ोसियों के बीच फ़्री ट्रेड समझौते पर बातचीत फिर से शुरू करने पर सहमत हो गया है जिसमें क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के साधन के रूप में अधिक आर्थिक सहयोग पर ज़ोर दिया गया है।

इस देश ने अमेरिका को एशियाई मामलों में एक हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पेश किया है जो जापान और दक्षिणी कोरिया पर पड़ोसियों की नीति के आधार पर क्षेत्रीय संबंधों के विकास को नियंत्रित करने के लिए दबाव डालता है जबकि चीन बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था का समर्थक है।

 

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