नमाज़ के आदाब

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नमाज़ के आदाब

नमाज़ और लिबास

रिवायात मे मिलता है कि आइम्मा-ए-मासूमीन अलैहिमुस्सलाम नमाज़ का लिबास अलग रखते थे। और अल्लाह की खिदमत मे शरफ़याब होने के लिए खास तौर पर ईद व जुमे की नमाज़ के वक़्त खास लिबास पहनते थे। बारिश के लिए पढ़ी जाने वाली नमाज़ (नमाज़े इस्तसक़ा) के लिए ताकीद की गयी है कि इमामे जमाअत को चाहिए कि वह अपने लिबास को उलट कर पहने और एक कपड़ा अपने काँधे पर डाले ताकि खकसारी व बेकसी ज़ाहिर हो। इन ताकीदों से मालूम होता है कि नमाज़ के कुछ मखसूस आदाब हैं। और सिर्फ़ नमाज़ के लिए ही नही बल्कि तमाम मुक़द्दस अहकाम के लिए अपने खास अहकाम हैं।

 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को भी तौरात की आयात हासिल करने के लिए चालीस दिन तक कोहे तूर पर मुनाजात के साथ मखसूस आमाल अंजाम देने पड़े।

नमाज़ इंसान की मानवी मेराज़ है। और इस के लिए इंसान का हर पहलू से तैयार होना ज़रूरी है। नमाज़ की अहमियत का अंदाज़ा नमाज़ के आदाब, शराइत और अहकाम से लगाया जासकता है।

इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने अपना वह लिबास जिसमे आपने दस लाख रकत नमाज़े पढ़ी थी देबल नाम के शाइर को तोहफ़े मे दिया। क़ुम शहर के रहने वाले कुछ लोगों ने देबल से यह लिबास खरीदना चाहा मगर उन्होने बेंचने से मना कर दिया। देबल वह इंक़िलाबी शाइर है जिन्होनें बनी अब्बास के दौरे हुकुमत मे 20 साल तक पौशीदा तौर पर जिंदगी बसर की। और आखिर मे 90 साल की उम्र मे एक रोज़ नमाज़े सुबह के बाद शहीद कर दिये गये।

- नमाज़ और दुआ

क़ुनूत मे पढ़ी जाने वाली दुआओं के अलावा हर नमाज़ी अपनी नमाज़ के दौरान एहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम कह कर अल्लाह से बेहतरीन नेअमत “हिदायत” के लिए दुआ करता है। रिवायात मे नमाज़ से पहले और बाद मे पढ़ी जाने वाली दुआऐं मौजूद हैं जिनका पढ़ना मुस्तहब है। बहर हाल जो नमाज़ पढ़ता वह दुआऐं भी करता है।

अलबत्ता दुआ करने के भी कुछ आदाब हैं। जैसे पहले अल्लाह की तारीफ़ करे फिर उसकी मखसूस नेअमतों जैसे माअरिफ़त, इस्लाम, अक़्ल, इल्म, विलायत, क़ुरआन, आज़ादी व फ़हम वगैरह का शुक्र करते हुए मुहम्मद वा आलि मुहम्मद पर सलवात पढ़े। इसके बाद किसी पर ज़ाहिर किये बग़ैर अपने गुनाहों की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर अल्लाह से उनके लिए माफ़ी माँगे और फिर सलवात पढ़कर दुआ करे। मगर ध्यान रहे कि पहले तमाम लोगों के लिए अपने वालदैन के लिए और उन लोगों के लिए जिनका हक़ हमारी गर्दनों पर है दुआ करे और बाद मे अपने लिए दुआ माँगे।

क्योंकि नमाज़ मे अल्लाह की हम्दो तारीफ़ और उसकी नेअमतों का ब्यान करते हुए उससे हिदाय और रहमत की भीख माँगी जाती है। इससे मालूम होता है कि नमाज़ और दुआ मे गहरा राबिता पाया जाता है।

- नमाज़ के लिए क़ुरआन का अदबी अंदाज़े ब्यान

सूरए निसा की 161 वी आयत मे अल्लाह ने दानिशमंदो, मोमिनों, नमाज़ियों और ज़कात देने वालोंकी जज़ा(बदला) का ज़िक्र किया है। लेकिन नमाज़ियों की जज़ा का ऐलान करते हुए एक मखसूस अंदाज़ को इख्तियार किया है।

दानिशमंदों के लिए कहा कि “अर्रासिखूना फ़िल इल्म”

मोमेनीन के लिए कहा कि “अलमोमेनूना बिल्लाह”

ज़कात देने वालों के लिए कहा कि “अलमोतूना अज़्ज़कात”

नमाज़ियों के बारे मे कहा कि “अलमुक़ीमीना अस्सलात”

अगर आप ऊपर के चारों जुमलों पर नज़र करेंगे तो देखेंगे कि नमाज़ियों के लिए एक खास अंदाज़ अपनाया गया है। जो मोमेनीन, दानिशमंदो और ज़कात देने वालो के ज़िक्र मे नही मिलता। क्योंकि अर्रासिखूना, अलमोमेनूना, अल मोतूना के वज़न पर नमाज़ी लोगों का ज़िक्र करते हुए अल मुक़ीमूना भी कहा जा सकता था। मगर अल्लाह ने इस अंदाज़ को इख्तियार नही किया। जो अंदाज़ नमज़ियों के लिए अपनाया गया है अर्बी ज़बान मे इस अंदाज़ को अपनाने से यह मअना हासिल होते हैं कि मैं नमाज़ पर खास तवज्जुह रखता हूँ।

सूरए अनआम की 162वी आयत मे इरशाद होता है कि “अन्ना सलाती व नुसुकी” यहाँ पर सलात और नुसुक दो लफ़ज़ों को इस्तेमाल किया गया है। जबकि लफ़ज़े नुसक के मअना इबादत है और नमाज़ भी इबादत है। लिहाज़ा नुसुक कह देना काफ़ी था। मगर यहाँ पर नुसुक से पहले सलाती कहा गया ताकि नमाज़ की अहमियत रोशन हो जाये।

सूरए अनआम की 73 वी आयत मे इरशाद होता है कि “हमने अंबिया पर वही नाज़िल की कि अच्छे काम करें और नमाज़ क़ाइम करें।” नमाज़ खुद एक अच्छा काम है मगर कहा गया कि अच्छे काम करो और नमाज़ क़ाइम करो। यहाँ पर नमाज़ का ज़िक्र जुदा करके नमाज़ की अहमियत को बताया गया है।

- खुशुअ के साथ नमाज़ पढ़ना ईमान की पहली शर्त

सूरए मोमेनून की पहली और दूसरी आयत मे इरशाद होता है कि बेशक मोमेनीन कामयाब हैँ (और मोमेनीन वह लोग हैं) जो अपनी नमाज़ों को खुशुअ के साथ पढ़ते हैं।

याद रहे कि अंबिया अलैहिमस्सलाम मानना यह हैं कि हक़ीक़ी कामयाबी मानवियत से हासिल होती है। और ज़ालिम और सरकश इंसान मानते हैं कि कामयाबी ताक़त मे है।

फिरौन ने कहा था कि “ आज जिसको जीत हासिल हो गयी वही कामयाब होगा।” बहर हाल चाहे कोई किसी भी तरह लोगों की खिदमत अंजाम दे अगर वह नमाज़ मे ढील करता है तो कामयाब नही हो सकता ।

- नमाज़ और खुशी

सूरए निसा की 142वी आयत मे मुनाफ़ेक़ीन की नमाज़ के बारे मे इरशाद होता है कि वह सुस्ती के साथ नमाज़ पढ़ते हैं। यानी वह खुशी खशी नमाज़ अदा नही करते। इसी तरह सूरए तौबा की 54वी आयत मे उस खैरात की मज़म्मत की गयी है जिसमे खुलूस न पाया जाता हो। और इसकी वजह यह है कि इबादत और सखावत का असल मक़सद मानवी तरक़्क़ी है। और इसको हासिल करने के लिए मुहब्बत और खुलूस शर्त है।

- नमाज़ियों के दर्जात

(अ) कुछ लोग नमाज़ को खुशुअ (तवज्जुह) के साथ पढ़ते हैं।

जैसे कि क़ुरआने करीम ने सूरए मोमेनून की दूसरी आयत मे ज़िक्र किया है “कि वह खुशुअ के साथ नमाज़ पढ़ते हैं।” खुशुअ एक रूहानी और जिसमानी अदब है।

तफ़्सीरे साफ़ी मे है कि एक बार रसूले अकरम (स.) ने एक इंसान को देखा कि नमाज़ पढ़ते हुए अपनी दाढ़ी से खेल रहा है। आपने फ़रमाया कि अगर इसके पास खुशुअ होता तो कभी भी इस काम को अंजाम न देता।

तफ़्सीरे नमूना मे नक़ल किया गया है कि रसूले अकरम (स.) नमाज़ के वक़्त आसमान की तरफ़ निगाह करते थे और इस आयत

(मोमेनून की दूसरी आयत) के नाज़िल होने के बाद ज़मीन की तरफ़ देखने लगे।

(ब) कुछ लोग नमाज़ की हिफ़ाज़त करते हैं।

जैसे कि सूरए अनआम की आयत न.92 और सूरए मआरिज की 34वी आयत मे इरशाद हुआ है। सूरए अनआम मे नमाज़ की हिफ़ाज़त को क़ियामत पर ईमान की निशानी बताया गया है।

(स) कुछ लोग नमाज़ के लिए सब कामों को छोड़ देते हैं।

जैसे कि सूरए नूर की 37वी आयत मे इरशाद हुआ है। अल्लाह के ज़िक्र मे ना तो तिजारत रुकावट है और ना ही वक़्ती खरीदो फ़रोख्त, वह लोग माल को ग़ुलाम समझते हैं अपना आक़ा नही।

(द) कुछ लोग नमाज़ के लिए खुशी खुशी जाते हैं।

(य) कुछ लोग नमाज़ के लिए अच्छा लिबास पहनते हैं ।

जैसे कि सूरए आराफ़ की 31वी आयत मे अल्लाह ने हुक्म दिया है “कि नमाज़ के वक़्त जीनत इख्तियार करो।”

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना मस्जिद को पुररौनक़ बनाना है।

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना नमाज़ का ऐहतिराम करना है।

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना लोगों का ऐहतिराम करना है।

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना वक़्फ़ और वाक़िफ़ दोनों का ऐहतिराम है। लेकिन इस आयत के आखिर मे यह भी कहा गया है कि इसराफ़ से भी मना किया गया है।

(र) कुछ लोग नमाज़ से दायमी इश्क़ रखते हैं।

जैसे कि सूरए मआरिज की 23वी आयत मे इरशाद हुआ है कि “अल्लज़ीना हुम अला सलातिहिम दाइमून।”“वह लोग अपनी नमाज़ को पाबन्दी से पढ़ते हैं।” हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि यहाँ पर मुस्तहब नमाज़ों की पाबंदी मुराद है। लेकिन इसी सूरेह मे यह जो कहा गया है कि वह लोग अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं। यहाँ पर वाजिब नमाज़ों की हिफ़ाज़त मुराद है जो तमाम शर्तों के साथ अदा की जाती हैं।

(ल) कुछ लोग नमाज़ के लिए सहर के वक़्त बेदार हो जाते हैं।

जैसे कि सूरए इस्रा की 79वी आयत मे इरशाद होता है कि “फ़तहज्जद बिहि नाफ़िलतन लका” लफ़्ज़े जहूद के मअना सोने के है। लेकिन लफ़्ज़े तहज्जद के मअना नींद से बेदार होने के हैँ।

इस आयत मे पैग़म्बरे अकरम (स.) से ख़िताब है कि रात के एक हिस्से मे बेदार होकर क़ुरआन पढ़ा करो यह आपकी एक इज़ाफ़ी ज़िम्मेदारी है। मुफ़स्सेरीन ने लिखा है कि यह नमाज़े शब की तरफ़ इशारा है।

(व) कुछ लोग नमाज़ पढ़ते पढ़ते सुबह कर देते हैं।

जैसे कि क़ुरआने करीम मे आया है कि वह अपने रब के लिए सजदों और क़ियाम मे रात तमाम कर देते हैं।

(श) कुछ लोग सजदे की हालत मे गिरिया करते हैं।

जैसे कि क़ुरआने करीम मे इरशाद हुआ है कि सुज्जदन व बुकिय्यन।

अल्लाह मैं शर्मिंदा हूँ कि 15 शाबान सन् 1370 हिजरी शम्सी मे इन तमाम मराहिल को लिख रहा हूँ मगर अभी तक मैं ख़ुद इनमे से किसी एक पर भी सही तरह से अमल नही कर सका हूँ। इस किताब के पढ़ने वालों से दरखवास्त है कि वह मेरे ज़ाती अमल को नज़र अन्दाज़ करें। (मुसन्निफ़)

- नमाज़ हम से गुफ़्तुगु करती है

क़ुरआन और रिवायात मे मिलता है कि आलमे बरज़ख और क़ियामत मे इंसान के तमाम आमाल उसके सामने पेश कर दिये जायेंगे। नेकियोँ को खूबसूरत पैकर मे और बुराईयोँ को बुरे पैकर मे पेश किया जायेगा। खूब सूरती और बदसूरती खुद हमारे हाथ मे है। रिवायत मे मिलता है कि जो नमाज़ अच्छी तरह पढ़ी जाती है उसको फ़रिश्ते खूबसूरत पैकर मे ऊपर ले जाते हैं ।और नमाज़ कहती है कि अल्लाह तुझको इसी तरह हिफ़्ज़ करे जिस तरह तूने मुझे हिफ़्ज़ किया।

लेकिन वह नमाज़ जो नमाज़ की शर्तों और उसके अहकाम के साथ नही पढ़ी जाती उसको फ़रिश्ते सयाही की सूरत मे ऊपर ले जाते हैं और नमाज़ कहती है कि अल्लाह तुझे इसी तरह बर्बाद करे जिस तरह तूने मुझे बर्बाद किया। (किताब असरारूस्सलात इमाम खुमैनी (र)

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