हज़रत अब्बास अलैहिस्लाम की कर्बला में शहादत

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हज़रत अब्बास अलैहिस्लाम की कर्बला में शहादत

हज़रत अबूल फ़ज़'लिल अब्बास अ.स. की बेहतरीन वफ़ादारी के लिए यही काफ़ी है कि आप फ़ुरात तक गए और पानी नहीं पिया।

यह जो ज़ियादातर कहा जाता है कि इमाम हुसैन (अ) ने हज़रत अब्बास (अ) को पानी लेने भेजा था और जो कुछ मैंने मोतबर किताबों में मसलन "अल इरशाद" और किताब "लुहुफ़ इब्ने ताऊस" में पढ़ा है थोड़ा मुख़्तलिफ़ है [इन रिवायत के मुताबिक़: जो शायद कि इस वाक़िये की अहमियत को और ज़ियादा वाज़ेहतर कर दे।

इन किताबों में यह रिवायत कुछ इस तरह है कि जब आख़िरी लम्हों में अहले हरम के बच्चों, नौमौलूद और छोटी बच्चियों पर प्यास की शिद्दत इस हद तक ज़ियादा हो चुकी थी कि ख़ुद इमाम हुसैन (अ) और अबूल फ़ज़'लिल अब्बास (अ) एक साथ पानी लेने गए हैं।

हज़रत अब्बास (अ) अकेले नहीं गए। ख़ुद इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) एक साथ पानी लेने गए हैं। आप दोनों हज़रात नहरे फ़ुरात के उस किनारे की जानिब गए जो ख़ैमों से नज़दीक था ताकि पानी ला सकें।

आप दोनों भाइयों के जंग के हवाले से बड़ी हैरानकुन बातें लिखीं गईं हैं।

इन दोनों भाइयों ने बेहद शुजाआना तरीक़े से जंग की।

इमाम हुसैन (अ) तक़रीबन 57 साल की उम्र के हैं लेकिन अपनी शुजाअत और ताक़त के लिहाज़ से बेहतरीन और बेनज़ीर हैं और हज़रत अब्बास (अ) जो 34 साल के हैं अपनी तमामतर ख़ुसूसियात के साथ यह दोनों भाई एक दूसरे के साथ शाना ब शाना दुश्मनों के समंदर के दरमियान दुश्मनों को चीरते हुए नहरे फ़ुरात की तरफ़ रवा हैं ताकि पानी तक पहुंच सकें।

इसी सख़्ततरीन जंग के दौरान अचानक इमाम हुसैन (अ) को महसूस हुआ कि इनके भाई अब्बास (अ) और इनके दरमियान फ़ासला बहुत ज़ियादा हो गया है। इसी दौरान हज़रत अब्बास (अ) पानी पर पहुंच गए।

जिस तरह से नक़्ल हुआ है कि आपने पानी की मश्क को भरा ताकि ख़ैमों तक ले जाएं।

यहां पर हर इंसान अपने को यह इजाज़त ज़रूर देगा कि एक चुल्लू पानी से अपने खुश्क हलक़ को भी तर करे लेकिन यहां वफ़ादारी की इंतिहा थी। जब अबूल फ़ज़'लिल अब्बास (अ) ने पानी की मश्क उठाई और आपकी निग़ाह पानी पर पड़ी तो आपको इमाम हुसैन (अ) के तश्ना लब याद आ गए। शायद बच्चे और बच्चियों की अल अतश की फ़रियादें याद आ गईं। शायद अली असग़र (अ) का रोना और प्यास याद आ गई।

आपने पानी नहीं पिया और नहर से बाहर आ गए। बस यहीं पर मसाएब का पहाड़ टूटा, अचानक इमाम हुसैन (अ) ने भाई की सदा सुनी जो लश्करियों के हुजूम से मैदान से आ रही थी।

ऐ भाई! अपने भाई की मदद को आओ!

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