आशूरा महाआंदोलन, अमवियों की ग़ुमराही से अक़्ल और धर्म को बचाने के लिए इमाम हुसैन अलै. का प्रयास

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आशूरा महाआंदोलन, अमवियों की ग़ुमराही से अक़्ल और धर्म को बचाने के लिए इमाम हुसैन अलै. का प्रयास

ईरान के एक महान विद्वान और धर्मगुरू आयतुल्लाह जवादी आमूली का कहना है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इंसानों को जागरुक व बेदार होकर उपासना करने के लिए आमंत्रित किया ताकि इंसान अपनी ज़िन्दगी के समस्त मामलों में विशुद्ध धार्मिक शिक्षाओं का पालन कर सके।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के समय से लेकर आज तक दुनिया के बहुत से बुद्धिजिवी, विद्वान यहां तक कि सामान्य लोग यह सवाल करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और शिया मुसलमानों के तीसरे इमाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो महाआंदोलन किया उसका अस्ली कारण क्या था?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए ईरान के महान विद्वान, धर्मगुरू, धर्मशास्त्री, दार्शनिक, रहस्यवादी, पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकर्ता और शिया मुसलमानों के मरजये तक़लीद आयतुल्लाह अब्दुल्लाह जवादी आमूली के विचारों और भाषणों पर एक नज़र डालेंगे।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बुनियादी क़दम

आयतुल्लाह जवादी आमूली इस संबंध में कहते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अमवियों की ग़ुमराही और बंधन से ईश्वरीय धर्म को मुक्ति दिलाने के लिए प्रयास किया ताकि धर्म और वास्तविकता के संबंध में लोगों की जानकारी को विस्तृत कर सकें। इस आधार पर उन्होंने एकेश्वरवाद की शिक्षाओं के विस्तार व प्रचार प्रसार की दिशा में प्रयास किया ताकि लोग बेदार व जागरुक होकर महान ईश्वर की उपासना करें।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इंसान के पैदा होने के उद्देश्य के बारे में इस प्रकार फ़रमाते हैं महान ईश्वर ने इंसानों को इसलिए पैदा किया ताकि वे उसे पहचानें और जब उसके बंदे उसे पहचान जायेंगे तो उसकी उपासना व इबादत करेंगे और जब इंसान उसकी इबादत करेंगे तो अल्लाह के सिवा की इबादत करने से आवश्यकता मुक्त व बेनियाज़ हो जायेंगे।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथन का यह मतलब नहीं है कि इंसान महान ईश्वर को पहचाने और नमाज़ पढ़े, रोज़ा रखे और कुछ न करे। यह अर्थ वास्तविक इबादत का एक भाग है। इंसान की ज़िन्दगी का हर गोशा व आयाम इबादत है। दूसरे शब्दों में इंसान चाहे तो अपनी ज़िन्दगी के हर पहलु को या कुछ पहलु को इबादत बना सकता है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार की बातों से इंसानों को बेदार व जागरुक करके महान ईश्वर की उपासना के लिए आमंत्रित किया ताकि अपने जीवन के समस्त आयामों में धर्म का अनुसरण करे और यह धर्म है जो इंसान को लोक- परलोक में सफ़ल बनाता है।

महाआंदोलन का आ पहुंचना

मोआविया के मरने के बाद उसका बेटा यज़ीद राजगद्दी पर बैठा। वह एक भ्रष्ठ और अपराधी जवान था। वह खुल्लम- खुल्लाह न केवल इस्लामी आदेशों की उपेक्षा व अवहेलना करता था बल्कि उनका मज़ाक़ भी उड़ाता था। आंदोलन के लिए बेहतरीन समय आ गया था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भ्रष्टाचारी यज़ीद से मुक़ाबला करने का फ़ैसला किया। बहुत से लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के फ़ैसले का विरोध किया परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद के मुक़ाबले में उठ खड़े होने पर बल देते थे।

इस आधार पर जब एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को उस समय की विषम व अनुचित स्थिति से अवगत किया तो इमाम ने उसके जवाब में फ़रमाया ईश्वर की सौगंद जब हमारे लिए कोई आश्रयस्थल नहीं है और कोई पनाहगाह नहीं है तो मैं कदापि यज़ीब बिन मोआविया की बैअत नहीं करूंगा।

इसी प्रकार जब वलीद ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से यज़ीद की बैअत करने के लिए कहा था तो इमाम ने फ़रमाया था कि यज़ीद एक भ्रष्ट आदमी, शराब पीने वाला, नफ़्से मोहरतमा की हत्या करने वाला, खुल्लम -खुल्ला बुराई करने वाला और मेरे जैसा उस जैसे की बैअत नहीं करेगा।

यहां पर यज़ीद जैसे व्यक्ति की बात नहीं है बल्कि हुसैनी सोच यज़ीद और उसके जैसे इंसानों की सोच से नहीं मिलती। जो इंसान महान ईश्वर की उपासना करता हो और उसने उसकी राह में अपनी जान व माल बेच दिया हो वह कभी भी ईश्वर के दुश्मन से समझौता नहीं करेगा।

जब मरवान ने इमाम हुसैन अलैहिस्लाम से यज़ीद की बैअत करने के लिए कहा था तो इमाम ने उसके जवाब में भी फ़रमाया जब लोगों को यज़ीद जैसे शासक का सामना है तो इस्लाम को ख़ैरबाद व अलविदा कहना चाहिये। यानी जिसकी सोच और जिसका विचार मेरे जैसा होगा वह कभी भी अत्याचारी व ज़ालिम सरकार की बैतअ नहीं करेगा।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरों के वारिस हैं

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरों के वारिस हैं और उनका मिशन वास्तव में पैग़म्बरों और ईश्वरीय दूतों का मिशन है। जिस तरह पैग़म्बरों को इंसानों की अक़्ल व बुद्धि को विकसित करने के लिए भेजा गया है उसी तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भी उसी मक़सद के लिए आंदोलन किया। इस आधार पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो आंदोलन किया उसके विभिन्न नतीजे व परिणाम सामने आये जिनमें से हम चार की ओर संकेत कर रहे हैं।

आंदोलन व शहादत ईश्वरीय प्रेम और वास्तविक ज़िन्दगी को बयान करने के लिए

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ईश्वरीय प्रेम को दिखाने व बताने के लिए पूरा प्रयास किया और लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि महान ईश्वर ने बंदों को प्रेम के आधार पर पैदा किया और वह उनके अस्तित्व को विकसित करना चाहता है और इंसानों को मुक्ति देना चाहता है।

2— इंसान और समाज की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा के लिए आंदोलन करना और शहादत देना

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज़माने में नैतिक व अख़लाक़ी सद्गुणों को अमवी परिवार ने बंधक बना लिया था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने महाआंदोलन से सद्गुणों और धर्म को अमवी परिवार के बंधन से मुक्त कराया और अपनी अमर क़ुरबानी से इस्लामी समाज और सद्गुणों में नई जान फ़ूंक दी और इंसानों को इज़्ज़त, प्रतिष्ठा और दूसरे मानवीय सद्गुणों की याद दिला दी।

 3 — पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत व परम्परा को याद दिलाने के लिए आंदोलन किया और शहादत दी

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कूफ़ा के लोगों के नाम एक पत्र लिखा

 

उस पत्र में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने लिखा था कि पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत को मिटा दिया गया और बिदअतें प्रचलित हो गयी हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन से ईश्वरीय शिक्षाओं, ईश्वरीय आदेशों की सीमाओं और पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत को दिखा व बता दिया और इन चीज़ों के भविष्य में ज़िन्दा होने का कारण बना।

4— पैग़म्बरों की राह को ज़िन्दा करने के लिए आंदोलन किया और शहादत दी

इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि महान ईश्वर ने पैग़म्बरों को इंसान की अक़्लों में विकास व निखार के लिए भेजा और पूरे इतिहास में अमवियों जैसी शक्तियां भी रही हैं जो लोगों की अक़्लों के विकास के मार्ग की बाधा थीं परंतु महान ईश्वर ने पैग़म्बरों को भेजा ताकि वे इंसानों की अक़्लों के विकास के मार्ग की रुकावट को दूर कर सकें। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन से लोगों को बताया कि बनी उमय्या हक़ पर हमल नहीं कर रही है और जो हक़ पर अमल नहीं कर रहा है और अक़्ल के शिखर पर नहीं पहुंच सकता।

जो समाज भी हक़ और हक़्क़ानियत पर अमल नहीं करता है वह भी अक़्ल के शिखर पर नहीं पहुंचेगा और वह दुनिया की चुनौतियों में फ़ंस जायेगा। क्योंकि हक़ का अनुसरण व अनुपालन करने के परिप्रेक्ष्य में ही अक़्ल परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचती है और यह कार्य अमवी जैसे अत्याचारी शासकों की हुकूमत में व्यवहारिक नहीं हो सकता।

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