हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी में वो तमाम आला इंसानी सिफ़ात नुमायां थीं जिनमें सब्र, शुजाअत, फ़साहत और बलाग़त शामिल हैं। आपने बचपन ही से अपने नाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम, अपने वालिद अली अलैहिस्सलाम, और अपनी मां फातेमा सलामुल्लाह अलैहा की सोहबत में तर्बियत पाई और इल्म ओ हिकमत का वो नूर हासिल किया जिसकी चमक कर्बला में दुश्मनों के लश्कर को लरज़ा देती थी।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की विलादत एक अज़ीम नेमत और मुबारक लम्हा है, जो तारीख़ में एक नक़ाबिले फ़रामोश और नूरानी यादगार के तौर पर हमारे दिलों में रौशन है। आपकी विलादत मदीना मुनव्वरा में 5 जमादी उल अव्वल 5 हिजरी को हुई। इमाम अली अलैहिस्सलाम और जनाबे सैयदा फातिमा सलामुल्लाह अलैहा की आग़ोश-ए-मोहब्बत में आँखें खोलते ही ये नूरानी चेहरा एक ऐसे अज़्म और हौसले की अलामत बना जो बाद में कर्बला के मारके में अहल-ए-हक़ के लिए मशअल-ए-राह साबित हुआ।
आपका नाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने ज़ैनब रखा, जो दो अज़ीम सिफ़ात "ज़ैन" यानी ज़ीनत और "अब" यानी बाप के नाम का मजमुआ है। हज़रत ज़ैनब अपने वालिद अली इब्न अबी तालिब अलैहिस्सलाम की ऐसी ज़ीनत और उनके इल्म ओ हिकमत की वारिस बन गईं कि आपको "अक़ीला बनी हाशिम" का लक़ब दिया गया।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी में वो तमाम आला इंसानी सिफ़ात नुमायां थीं जिनमें सब्र, शुजाअत, फ़साहत और बलाग़त शामिल हैं। आपने बचपन ही से अपने नाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम, अपने वालिद अली अलैहिस्सलाम, और अपनी मां फातेमा सलामुल्लाह अलैहा की सोहबत में तर्बियत पाई और इल्म ओ हिकमत का वो नूर हासिल किया जिसकी चमक कर्बला में दुश्मनों के लश्कर को लरज़ा देती थी।
कर्बला का मैदान आपके किरदार ओ ईमान का सबसे बड़ा इम्तेहान था, और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने वहां अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन को मुकम्मल कर के साबित कर दिया कि आप एक सच्ची इंक़लाबी हैं। जब कर्बला में हर तरफ शोहदा के लाशे बिखरे हुए थे और ख़ैमे जलाए जा चुके थे, तब हज़रत ज़ैनब ने अपनी क़ुव्वत-ए-ईमानी से दुश्मनों को ललकारा और यज़ीद के दरबार में हक़ ओ सदाकत की आवाज़ बुलंद की।
आपकी सीरत हमें इस बात की तालीम देती है कि ज़ुल्म के सामने कभी सर न झुकाएं और हक़ की राह में इस्तेक़ामत का मुज़ाहेरा करें। हज़रत ज़ैनब की जद्दोजहद आज के दौर के मुसलमानों के लिए एक इंक़लाबी पैग़ाम है कि अगर दुनिया के हर महाज़ पर ज़ुल्म ओ नाइंसाफी का सामना हो, तब भी हक़ की आवाज़ को बुलंद करें और ज़ालिम के मुक़ाबले में डटे रहें।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी का ये पैग़ाम हमें बताता है कि अगर इंसान सब्र ओ इस्तेक़ामत के हथियार से लैस हो तो वो दुनिया के किसी भी ज़ालिम को शिकस्त दे सकता है। आज भी ये इंक़लाबी रूह हमारे दिलों को क़ुव्वत और ईमान अता करती है और हमें हक़ के रास्ते पर डटे रहने की तरग़ीब देती है।
विलादत-ए-ज़ैनब की दिली मुबारकबाद