इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस

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इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस

ज़ीक़ादह की बारह तारीख़ हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस है। यही अवसर जब आकाश के समस्त तारे नज़रे बिछाए ईश्वरीय तर्क के संसार में क़दम रखने की प्रतीक्षा कर रहे थे, फिर ईश्वरीय तर्क ने संसार में आंखे खोली, धरती और आकाश का वातावरण ईश्वरीय सुगंध से महक उठा। पैग़म्बरे इस्लाम का पवित्र वंश आगे बढ़ा और पिता ने पुत्र का नाम अली रखा।

ईश्वर की ओर से नियुक्त इमाम ईश्वरीय दया, शक्ति व कृपा के दर्पण होते हैं और समस्त ईश्वरीय गुणों को बेहतरीन ढंग से इमामों में देखा जा सकता है। विभिन्न कथनों और हदीसों में इमामों की उपाधियों और उनकी विशेषताओं के बारे में जो कुछ बयान किया गया है, वह इमामों की विशेषताओं व सदगुणों का एक छोटा सा उदाहरण है और यही छोटा सा पहलू सत्य के खोजियों और परिज्ञानियों के लिए मार्ग की मशअल है। आइये इस कार्यक्रम में हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के कुछ गुणों और विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं।

इस्लाम धर्म के प्रसिद्ध विद्वान व बुद्धिजीवी शैख़ सदूक़ उयूने- अख़बारुर्रज़ा नामक पुस्तक में लिखते हैं कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की विभिन्न उपाधियां थीं जो उनके व्यवहार और उनके सदगुणों को दर्शाती थीं उनकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि आलिमे आले मुहम्मद अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के ज्ञानी।

हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के हवाले से एक कथन बयान हुआ कि उनके पिता हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्लाम ने कई स्थानों पर कहा है कि तुम्हारी पीढ़ी में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का ज्ञानी होगा, काश मैं उसको देख सकता और उसका नाम हज़रत अली के नाम की भांति है।

हज़रत इमाम रज़ा की इमामत के काल में इस्लामी समाज में दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र और वादशास्त्र की चर्चाएं बहुत अधिक प्रचलित थीं और इस्लामी जगत पर अब्बासी शासक मामून का राज था। अब्बासी शासकों में मामून सबसे अधिक ज्ञानी व चतुर था और अपने काल के कई ज्ञानों पर उसे दक्षता प्राप्त थी। उस समय इस्लामी जगत में विभिन्न गुटों की ओर से विभिन्न दृष्टिकोण और विचार फैले हुए थे। मामून ने इमाम रज़ा को अपनी राजधानी मर्व में बुलाकर इमाम और विभिन्न बुद्धिजीवियों के मध्य कई शास्त्रार्थ कराए। मामून जिसके बारे में भी यह समझता था कि अमुक बुद्धिजीवी इमाम रज़ा से शास्त्रार्थ में बाज़ी मार ले जाएगा उसे इमाम रज़ा से शास्त्रार्थ का निमंत्रण देता था परंतु इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी धर्म का कोई भी विद्वान विजयी होकर सभा से नहीं निकला। शास्त्रार्थ सभा में भाग लेने वाले बड़े बड़े विद्वान और दिग्गज बुद्धिजीवी अंत में इमाम रज़ा के सदगुणों और तर्कों के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे और यही कहते हुए सभा से निकलते थे कि आज तक ऐसा तर्क हमने किसी की ज़बान से नहीं सुना।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में साएब समुदाय का जो ईश्वरीय दूत हज़रत यहिया का अनुयायी है, एक दक्ष व निपुण विद्वान था जिसका नाम था इमरान साएबी। अब्बासी शासक ने सभा का आयोजन किया और इस सभा में यहूदी, नसरानी, साएबी और आग के पुजारी मजूसी लोग के बड़े बड़े विद्वान और दिग्गज उपस्थित थे। हज़रत इमाम रज़ा ने यहूदी और नसरानी बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि तुम्हारे बीच कोई इस्लाम धर्म का विरोधी है और कुछ पूछना चाहता है या उसे कोई शंका है तो पूछे। अभी इमाम रज़ा की बात समाप्त ही नहीं हुई थी कि इमरान साएबी खड़ा हुआ और उसने कहा कि हे विद्वान, यदि आपने स्वयं न कहा होता तो मैं आपसे न पूछता। मैंने कूफ़ा, बसरा, सीरिया और अरब के विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं की हैं और वहां के दक्ष व निपुण वादशास्त्रियों से चर्चाएं भी कीं किन्तु उनमें से कोई भी यह सिद्ध न कर सका कि ईश्वर एक है और अपनी अनन्यता पर बाक़ी है। क्या मुझे प्रश्न करने की अनुमति है? इमाम ने कहा कि तुम्हारे मन में जो भी प्रश्न हो पूछो। भरी सभा में इमारान साएबी ने शंकाओं और प्रश्नो की झड़ी लगा दी किन्तु इमाम ने भी समस्त प्रश्नों का एक एक करके ठोस तर्कों से ऐसा उत्तर दिया कि इमरान साएबी को भागने का रास्ता न मिल सका और उसी सभा में उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने शास्त्रार्थ में विभिन्न पंथों और धर्मों के बुद्धिजीवियों की शंकाओं के उत्तर उन्हीं के धर्मों और पंथों के तर्कों के आधार पर दिए। यही कारण था कि जब अब्बासी शासक मामून ने ईसाई धर्म के प्रसिद्ध विद्वान जासलीक़ को शास्त्रार्थ का निमंत्रण दिया तो उसने मामून से दो टूक शब्दों में कहा कि मैं उस व्यक्ति से कैसे शास्त्रार्थ करूं जो उस पुस्तक अर्थात क़ुरआने मजीद से तर्क पेश करता है जिसे मैं स्वीकार ही नहीं करता और ऐसे पैग़म्बर के कथनों को तर्क के रूप में पेश करता है जिस पर मैं आस्था ही नहीं रखता। इमाम रज़ा ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा कि हे विद्वान यदि मैं इन्जील से तुम्हारे लिए तर्क पेश करूं तो तुम स्वीकार करोगो। जासलीक़ ने तुरंत उत्तर दिया हां क्यों नहीं। वास्तव में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने ईसाई धर्म के इस विद्वान से दोनों ओर की स्वीकार्य समानताओं के आधार पर शास्त्रार्थ किया और उसे परास्त कर दिया। शास्त्रार्थ के अंत में जासलीक़ इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को संबोधित करते हुए कहता है कि मैंने सोचा भी नहीं था कि मुसलमानों के मध्य आप जैसा भी कोई होगा।

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने यहूदी धर्म के प्रमुख रास जालूत से शास्त्रार्थ के दौरान हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की पैग़म्बरी के बारे में साक्ष्य पेश करने को कहा। उसने उत्तर में कहा कि वे ऐसे चमत्कार लेकर आए थे कि जो उनसे पहले के ईश्वरीय दूतों के पास नहीं थे। इमाम ने कहाः उदहारण स्वरूप कौन से चमत्कार? उसने कहा उदाहरण स्वरूप समुद्र को फाड़ देना, लाठी को सांप में परिवर्तित करना, पत्थर पर लाठी मारकर सोता जारी करना, यदे बैज़ा और बहुत सी निशानियां जो अन्य लोगों के बस की बात नहीं है। इमाम ने कहा तुम्हारी दृष्टि में हज़रत मूसा ने अपनी सत्यता सिद्ध करने के लिए ऐसे कार्य व चमत्कार पेश किए जो अन्य लोगों की बस की बात नहीं थे, तुम यही कहना चाहते हो ना। इस आधार पर जो कोई भी पैग़म्बरी का दावा करे और उसके बाद ऐसे कार्य करे जो दूसरों के बस में न हो तो क्या उसकी पुष्टि करना तुम्हारे ऊपर अनिवार्य नहीं है? यहूदी विद्वान ने तुरंत कहा कि नहीं, क्योंकि हज़रत मूसा ईश्वरीय सामिप्य के कारण अद्वितीय थे और जो भी ईश्वरीय पैग़म्बर होने का दावा करे हम पर अनिवार्य नहीं है कि उस पर ईमान लाएं किन्तु यह कि जैसे हज़रत मूसा ने चमत्कार पेश किए वैसा ही चमत्कार पेश करे। इमाम रज़ा ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो तुम उन ईश्वरीय दूतों पर कैसे ईमान रखते हो जो हज़रत मूसा से पहले थे जबकि उनके पास हज़रत मूसा के जैसा चमत्कार भी नहीं था। यहूदी ने कहा कि मैंने कहा था कि जो भी अपनी पैग़म्बरी की पुष्टि के लिए चमत्कार पेश करे, यद्यपि उसके चमत्कार हज़रत मूसा से भिन्न ही क्यों न हो उसकी पुष्टि करना अनिवार्य है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि तो फिर तुम हज़रत ईसा पर ईमान क्यों नहीं लाते। जबकि उनके पास अनेक चमत्कार थे, वह मुर्दों को जीवित करते थे, जन्मजात अंधों को आंखें प्रदान करते थे और मिट्टी से पक्षी बनाते और उसके बाद उसमें ईश्वर की अनुमति से आत्मा फूंक देते थे और वह जीवित होकर उड़ जाता था। रास जालूत ने ठंडे स्वर में कहा कि कहते हैं कि उन्होंने यह काम किया किन्तु हमने तो देखा नहीं। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या तुमने मूसा का चमत्कार देखा है। क्या इन चमत्कारों की सूचना तुम तक किसी विश्वस्त के हवाले से नहीं पहुंची है? उसने कहाः हां, ऐसा ही है। इमाम रज़ा ने कहा कि जिस तरह से हज़रत मूसा के चमत्कारों के बारे में विश्वस्त सूत्रों के हवाले से तुम तक सूचनाएं पहुंची हैं ठीक उसी तरह हज़रत ईसा मसीह के चमत्कारों के बारे में भी तुम्हारे पास सूचनाएं पहुंची हैं, तो तुम क्यों हज़रत मूसा पर ईमान रखते हो और हज़रत ईसा पर ईमान नहीं रखते? इमाम अलैहिस्सलाम ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इसी तरह अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम और दूसरे पैग़म्बरों के बारे में जो ईश्वर की ओर से भेजे गये हैं। हमारे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के चमत्कारों में यह है कि निर्धन अनाथ थे, दूसरों की भेड़ बकरियों को चराते थे और इसका मेहनताना लेते थे, किसी से ज्ञान प्राप्त नहीं किया, इन सबके बावजूद वह ऐसा पवित्र क़ुरआन लेकर आए जिसमें समस्त ईश्वरीय दूतों की कहानियां बयान की गयी हैं और उनके जीवन के समस्त आयामों को एक एक शब्द करके बयान किया गया है। पवित्र क़ुरआन में प्रलय तक के पूर्वजों व वंशजों की सूचनाएं समाई हुई हैं और उन्होंने बहुत सी निशानियां और चमत्कार पेश किए हैं। हज़रत इमाम रज़ा का शास्त्रार्थ रास जालूत से जारी रहा कि उसने इमाम रज़ा को संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर की सौगंध, हे मुहम्मद के पुत्र, मेरे क़दम इस चीज़ ने रोक दिए कि मैं यहूदी धर्म का मुखिया हूं , नहीं तो मैं आपका अनुसरण करता। उस ईश्वर की सौगंध जिसने मूसा को तौरैत दी और दाऊद को ज़बूर दी, मैंने दुनिया में आपसे बेहतर किसी को नहीं देखा जो तौरैत और इन्जील की आपसे बेहतर तिलावत करे और आपसे बेहतर व अच्छी व्याख्या करे।

इस प्रकार की चर्चाएं और शास्त्रार्थ इस बात के सूचक हैं कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इस्लाम धर्म और पैग़म्बरे इस्लाम व उनके परिजनों की शुद्ध आस्थाओं को बहुत ही तार्किक व सुदृढ़ ढंग से लोगों के सामने पेश किया और यही कारण था कि मित्र तो मित्र शत्रुओं ने भी उनके ज्ञान का लोहा मान लिया और यह स्वीकार किया कि आप अपने समय के सबसे अधिक बुद्धिमान व ज्ञानी व्यक्ति हैं। इसीलिए इतिहासों में मिलता है कि पैग़म्बर व इमाम अपने समय के लोगों में सबसे अधिक बुद्धिमान व ज्ञानी होते हैं।

मित्रो हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर आपकी सेवा में बधाई प्रस्तुत करते हैं और अपने इस कार्यक्रम को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शिक्षाप्रद कथन से समाप्त करते हैं। आप कहते हैं कि ज्ञान उस ख़ज़ाने की भांति है जिसकी चाभी प्रश्न है, ईश्वर तुम पर कृपा करे क्योंकि प्रश्न करने से चार लोगों को पारितोषिक मिलता है, प्रश्न करने वाले को, सीखने वाले, सुनने वाले को और उत्तर देने वाले को।

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