मक्का जाने के लिए ईश्वर की ओर से लोगों को हज के आम निमंत्रण की घोषणा, जिसे व्यवहारिक बनाने के लिए लोग पैदल और सवारी से, दूर और निकट के मार्गों से, हर प्रकार की कठिनाइयों को सहन करने के साथ ईश्वर के घर पहुंचते हैं। इस विषय ने इस्लामी राष्ट्रों तथा मुसलमान जातियों को छोटी और बड़ी नदियों की भांति एक दूसरे से मिला दिया है जो ईश्वर के घर में मानव रूपी महान समुद्र के रूप में दिखाई देते हैं। मानव रूपी इस महासागर में समान आस्था और व्यवहार में एकेश्वरवाद जैसी बातों से इस बड़ी भीड़ से अजेय तथा शक्तिशाली अस्तित्व सामने आता है जो मुसलमानों के वैश्विक सम्मान का कारण बनता है।
यही कारण है कि हज, जिस समय एकता तथा समरस्ता स्थापित करने का कारण बने, दूरियां समाप्त करे, हृदयों को एक दूसरे के निकट लाए, और लोगों को निरभर्ता तथा अपमान से मुक्ति दिलाए उस समय यह एक महान एवं प्रभावी उपासना हो जाती है। दूसरे शब्दों में वास्तविक हज, न केवल लोगों के व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक जीवन में भी गहरे परिवर्तन लाती है। हज़ एक सामूहिक उपासना है। ईश्वर ने भी हज को इसी रूप में चाहा है ताकि इसके माध्यम से समस्त मुसलमानों के हित व्यवहारिक हो सकें अन्यथा इस बात की भी संभावना पाई जाती थी कि लोग, किसी निर्धारित समय पर नहीं बल्कि वर्ष के किसी भी दिन और किसी भी महीने मक्के आएं तथा व्यक्तिगत रूप से हज अंजाम दें। खेद की बात है कि विगत में हज व्यक्तिगत विषयों तक ही सीमित थी और हाजी, हज करने के बाद उसके सामाजिक और राजनैतिक आयामों की ओर ध्यान दिये बिना तथा इस्लामी जगत की समस्याओं पर सामूहिक विचरण के बिना ही अपने-अपने घरों को वापस चले जाते थे।
सन १९७९ में ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के पश्चात इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खु़मैनी ने उन लोगों से जो, विश्व के विभिन्न एवं दूरस्थ क्षेत्रों से ईश्वर के घर अर्थात एकेश्वरवाद के केन्द्र में उपस्थित होने के लिए आना चाहते हैं उनसे आत्माविहीन हज को सार्थक और एकता प्रदान करने वाली हज में परिवर्तित करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि इन महान संसकारों को पहचानो। उन्होंने कहा कि इन शैतानी शक्तियों से भयभीत न हो। इस महान अवसर पर ईश्वर पर भरोसा करते हुए अनेकेश्वरवाद तथा शैतान की सेना में मुक़ाबले में एकता व एकजुटता का समझौता करो और मतभेदों तथा झगड़ों से बचो।
उसी समय से हज, जागरूक बनाने और मुसलमानों की एकता में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया। इसी दिशा में मुसलमानों की एकता का आयोजन और अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता की घोषणा जैसे समारोह, इस्लामी राष्ट्रों के बीच इस्लामी जागरूका की दो निशानियां एवं नारे हैं। यह समारोह प्रतिवर्ष हज के अवसर पर ईरान की ओर से तथा विभिन्न देशों के हाजियों की सम्मिलिति से, आयोजित होते हैं। हाजियों के बीच यह आयोजन इतने अधिक प्रभावी रहे हैं कि वर्ष १९८७ में इन्हें सऊदी अरब के सुरक्षा बलों की हिंसक कार्यवाही का सामना करना पड़ा था जिसके परिणाम स्वरूप हज़ारों की संख्या में ईरानी तथा विदेशी हाजी शहीद और घायल हुए।
इस समय हज के लिए १८० से अधिक देशों के लगभग दो करोड़ हाजी ऐसी स्थिति में सऊदी अरब में एकत्रित हुए हैं कि जब क्षेत्र में इस्लामी जागरूकता और स्वतंत्रता प्राप्ति की इच्छा की लहर बहुत तेज़ी से फैल चुकी है। इस विषय ने हज जैसे महासम्मेलन के लिए विगत की तुलना में इस वर्ष बिल्कुल ही अलग वातावरण उत्पन्न कर दिया है। ट्यूनीशिया, मिस्र, बहरैन, लीबिया और यमन आदि देशों में जनान्दोलन, इन देशों के निर्भर एवं अत्याचारी शासकों की नीतियों के विरोध में हैं जो अब महाआन्दोलन में परिवर्तित हो चुके हैं।
इस समय हज का मौसम इस्लामी राष्ट्र की न्याय एवं सम्मान प्राप्ति की आकांक्षाओं को सुदृढ़ करने, सूचनाओं के आदान-प्रदान और बाईमान लोगों के अनुभवों से लाभ उठाने साथ ही इस्लामी जागरूकता की लहर को आगे बढ़ाने एवं निर्भर शासकों के वर्चस्व से मुक्ति के लिए बहुत ही उचित अवसर एवं स्थान है।
यह बात स्पष्ट है कि क्रांतियों को अपनी सफलता की प्रक्रिया में बहुत सी धमकियों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अरबी-इस्लामी बसंत तथा उत्तरी अफ़्रीक़ा और मध्यपूर्व के देशों के नए जनान्दोलनों को भी इस समय बहुत सी सामाजिक, आर्थिक एवं रानजैतिक समस्याओं का सामना है। इसीलिए पश्चिमी सरकारें, जो सदा ही क्षेत्र के तानाशाहों की समर्थक रही हैं, एक ओर तो मुसलमानों के मध्य मतभेद के बीज बो रही हैं और दूसरी ओर स्वयं को मानवप्रेमी और क्रांतियों का समर्थक दर्शाते हुए मुसलमानों के स्रोतों का दोहन जारी रखना चाहती हैं। एक विद्वान के अनुसार हालिया इस्लामी जागरूकता अग्नि और प्रकाश के समान है। यह इस अर्थ में है कि इस्लामी जागरूकता के कारण तानाशाहों और वर्चस्ववादी शक्तियों के हृदयों में चिंता की अग्नि एवं भय पाया जाता है और चमकते प्रकाश ने हृदयों को प्रजवलित कर रखा है। ऐसी स्थिति में हाजियों की होशियारी एवं जागरूकता और उनका एक दसूरे के साथ विचार-विमर्श शत्रुओं के प्रयासों को विफल बना सकता है। धार्मिक समानताओं पर बल और उनके बीच एकता एवं समरस्ता तथा लोगों को इस्लाम की वास्तविकता से अवगत करवाना आदि जैसी बातें, लोगों की योग्यताओं और उनकी क्षमताओं से लाभ उठाने तथा एक दूसरे के अनुभवों को स्थानांतरित करने की भूमिका उपलब्ध करती हैं।
हज वह अवसर है जिसे ईश्वर ने समस्याओं के समाधान के लिए मुसलमानों के बीच विचारों के आदान-प्रदान और एक दूसरे की स्थिति से अवगत होने के लिए उपलब्ध करवाया है। पिछले ३३ वर्षों के दौरान ईरानी हाजी अन्य देशों के हाजियों को अपनी इस्लामी क्रांति की वास्तविकताओं से अवगत करवाकर जो, ईश्वर पर भरोसे तथा एकता व एकजुटता के माध्यम से भीतरी तानाशाही और विदेशी वर्चस्व पर विजय प्राप्ति से संभव हुई, हाजियों में आशा की किरण जगा रहे हैं।
क्रांति के पश्चात की विभिन्न चुनौतियों और ख़तरों के बारे में उनके अनुभव तथा उनसे मुक़ाबले के मार्ग अब अन्य क्रांतिकारी भाइयों के लिए सहायक एवं मार्गदर्शक सिद्व हो सकते हैं। इसी प्रकार हज के अवसर पर मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया के हाजियों के लिए इस हज में यह अवसर उपलब्ध हो चुका है कि वे अपने अनुभवों को बहरैन, यमन, जार्डन तथा अन्य देशों के अपने मुसलमान भाइयों को बताएं ताकि ईश्वर पर भरोसा करके इस्लामी जगत की दो मूल समस्याओं अर्थात विदेशियों पर निर्भर तानाशाह शासकों और पश्चिमी वर्चस्ववादियों से मुक्ति प्राप्त की जा सके।
फ़िलिस्तीन का विषय जो सदैव ही विद्वानों के बीच विचार-विमर्श का मुद्दा रहा है, इस वर्ष हज के दौरान "फ़िलिस्तीन अज़ बहर ता नहर" के रूप में चर्चा में सर्वोपरि रहेगा। हज में होने वाले सम्मेलन भी विद्वानों के विचारों से लाभ उठाते हुए क्षेत्रीय विषयों के संबन्ध में नए उपाय प्रस्तुत करते हैं। वास्तव में इस वर्ष हज वर्चस्ववादियों पर निर्भर तानाशाहों से मुक्ति प्राप्त करने वाले लोगों की उपस्थिति में उस नए अर्थ के साक्षी होगी जो अंततः इस्लामी राष्ट्र की गरिमा, एकता और सम्मान का कारण बनेगी।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)