वर्ष 1979 में ईरान की कामयाब होने वाली इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह (1989-1902) अपनी युवावस्था से ही शेर व शायरी का शौक़ रखते थे और उन्होंने एक ऐसी कविता या शेर कहा है जिसमें कवियों की प्रशंसा की गयी है।
इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के शेरों की किताब यानी दीवान में 6 अध्याय हैं जिनमें ग़ज़लें, रोबाइयां, क़सीदे, आज़ाद शायरी, क़ाफ़िए वाली शायरी, खंड वाली शायरी और अलग अलग शेरों की ओर इशारा किया जा सकता है।
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के 438 पृष्ठों पर आधारित इस दीवान को इसे पहली बार इमाम खुमैनी वर्क्स एडिटिंग एंड पब्लिशिंग इंस्टीट्यूट ने प्रकाशित किया।
उनकी पहली प्रकाशित कविता या शेर 14 छंदों वाली ग़ज़ल थी जिसका शीर्षक था "हे दोस्त मैं तेरे होंटों की बनावट पर फ़िदा हो गया"
इमाम खुमैनी की कविता या शेर उनकी भावनाओं, एहसासों और विचारों का प्रतिबिंब हैं और ईश्वर के साथ एकांत और उससे दिल लगाने के लम्हों से जुड़े हुए हैं।
इमाम के शेरों दर्पण में, कोई भी इंसान सच्चे इरफ़ानी व्यक्ति की आंतरिक पवित्रता, मोमिनों के दिलों की शांति, भविष्य के प्रति आशावान और क्रूरता और अन्याय से मुक्ति जैसे जज़्बों को महसूस कर सकता है।
साहित्यिक शैलीविज्ञान की दृष्टि से इमाम ख़ुमैनी की शायरी में उत्साह और आशा की स्थिति उत्पन्न करने वाले शब्दों का प्रयोग बहुत अधिक हुआ है।
हालाकि मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी की गुप्त पुलिस सावाक जिसे इस्राईल और अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित किया गया था, के एजेंटों के उनके घर और निजी पुस्तकालय पर हमलों के बाद उनकी कुछ युवा कविताएं खो गईं लेकिन इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, इमाम ख़ुमैनी ने अपनी बहु और अपने बेटे सैयद अहमद खुमैनी की पत्नी श्रीमती फ़ातेमा तबताबाई के बहुत अधिक अह्वान के बाद, विभिन्न प्रारूपों में और रहस्यमय विषयों पर शेर कहे और सौभाग्य से यह शेर अब तक सुरक्षित हैं।
इस दीवान के शेरों का दुनिया की दूसरी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और दुनिया के विभिन्न देशों में यह दीवान छप भी चुका है।
अनेक समकालीन शायरों ने इस दीवान का विश्लेषण किया और बहुत ज़्यादा तारीफ़ें की हैं। इस दीवान को कुछ यूरोपीय देशों के राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों पर भी दिखाया गया है।