ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम खुमैनी की उस पुकार से आंरभ हुई जिस की ध्वनि आज विश्व के कोने कोने में सुनाई दे रही है।
ईरान के शोषित समाज में जिस पर शक्तिशाली व अत्याचारी शासकों का राज था पीड़ा से कराहती, जनता के कानों से अचानक एक धर्मगुरू की पुकार टकराई अत्याचार व शोषण की दीवारें ढह गयीं और स्वतंत्रता व स्वाधीनता के गीत कानों में रस घोलने लगे और फिर स्वतंत्रता का यह गीत ईरानी राष्ट्र के हर सदस्य की ज़बान पर आ गया और अन्ततः रूहुल्लाह मूसवी खुमैनी नामक एक महान व अद्वीतीय व्यक्तिव ने इतिहास की एक अत्यन्त आश्चर्यजनक घटना अर्थात क्रांति को अस्तित्व प्रदान कर दिया और शताब्दियों तक स्वतंत्रता व स्वाधीनता के वियोग में छटपटाते राष्ट्र में स्वाधीनता व स्वतंत्रता स्थापित कर दी। यही कारणा है कि ईरान की इस्लामी क्रांति की इमाम खुमैनी से अलग कोई कल्पना नहीं की जा सकती।
ईरान की जिस इस्लामी कांति ने वर्तमान विश्व में जो परिवर्तन किये और जिस की सफलता व शक्ति ने विश्ववासियों को दांतों तले उंगुली दबाने पर विवश कर दिया उस का नेतृत्व करने वाली हस्ती अर्थात इमाम खुमैनी का व्यक्तित्त संभवतः इस क्रांति से भी अधिक आश्चर्य जनक है।
इमाम खुमैनी के महान कार्य उन की व्यक्तिगत विशेषताओं की ही भांति अनगिनत हैं किंतु यदि देखा जाए तो इमाम खुमैनी ने जो पहला संदेश दिया वह ईश्वर पर भरोसा और विश्व साम्राज्य विशेषकर अमरीका के चंगुल से छुटकारा प्राप्त करना था ।
इमाम खुमैनी के अनुसार सरकार को जनता के लिए जनता के साथ और जनता की सेवा में होना चाहिए वे सदैव आत्मविश्वास और स्वाधीनता पर अत्याधिक बल देते थे क्योंकि पूर्वी व पश्चिमी शक्तियों के हस्तक्षेपों को समाप्त करने के लिए आत्मविश्वास के अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं है और यह भावना उसी समय उत्पन्न होती है जब मनुष्य के अस्तित्व में कोई बड़ी क्रांति आए।
इमाम खुमैनी का आशय समस्त क्षेत्रों में स्वाधीनता था किंतु इस के साथ ही वे आत्ममुग्धता को स्वाधीनता के मार्ग की बाधा समझते थे तथा आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को स्वाधीनता बल्कि मानसिक स्वाधीनता के लिए आवश्यक समझते थे। इमाम खुमैनी ने वर्ष उन्नीस सौ इक्यासी में ईरान के शिक्षा मंत्री से भेंट में कहाः
हमें वर्षों तक परिश्रम करना होगा स्वंय को खोजना होगा, अपने पैरों पर खड़ा होना और स्वाधीनता तक पहुंचना होगा इस स्थिति में हमें पूरब या पश्चिचम की आवश्यकता नहीं होगी और यदि हम ऐसा करने में सफल हो गये तो विश्वास रखें कि कोई भी शक्ति हमें अघात नहीं लगा सकता। यदि हम वैचारिक दृष्टि से स्वाधीन होंगे तो वे किस प्रकार से हमें नुकसान पहॅंचा सकते हैं।
इमाम खुमैनी ने इसी प्रकार अपने एक भाषण में कहाः आप विश्वास करें यदि चाहेंगे तो हो जाएगा यदि जाग जाए तो चाहेंगे । आप जागें यह समझें कि जर्मन जाति आर्य जाति से और पश्चिम वाले हम से श्रेष्ठ नहीं हैं। यदि कोई राष्ट्र यह विश्वास कर लें कि हम बड़ी शक्तियों के सामने डट सकते हैं तो उस का यह विश्वास उस में वह क्षमता उत्पन्न कर देगा जिस के बल पर वह बड़ी शक्तियों के सामने डट जाएगा। यह जो सफलता आप को मिली है उसका यह कारण है कि आप को विश्वास हो गया था कि आप में इस की क्षमता है।
इमाम खुमैनी का एक अन्य महान कार्य जिसे एक चमत्कार भी कहा जा सकता है यह था कि उन्हों ने अपने महान अभियान द्वारा सैंकड़ों वर्षों से जारी उस षडयन्त्र को एक झटके में विफल कर दिया जिसके अंतर्गत यह प्रचार किया जा रहा था कि धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है और कोई भी धर्म विशेषकर इस्लाम सरकार चलाने की क्षमता नहीं रखता ।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई इमाम खुमैनी द्वारा इस्लाम के आधार पर सरकार गठन के संदर्भ में कहते हैः
जिस विषय की मुस्लिम और गैर मुस्लिम कल्पना भी नहीं करते थे वह धर्म और वह भी इस्लाम धर्म के आधार पर एक राजनीतिक व्यवस्था का गठन था यह वह लक्ष्य था जिस की साधारण मुसलमान कल्पना भी नहीं कर सकता था और न ही उस के बारे में सोच सकता था इमाम खुमैनी ने इस कल्पना को व्यवहारिक बनाया जिसे यदि चमत्कार कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।
इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह ने राजनीति में इस्लामी शैलियों को व्यवहारिक बनाया तथा इस के साथ ही उन्हों ने शासकों के लिए जो वर्जनाए और सीमाएं निर्धारित कीं उससे इस पूरी व्यवस्था की आधार शिला को सुदृढ़ता प्राप्त हो गयी।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई इस संदर्भ में कहते हैः
विश्व में यह विषय स्वीकार किया जा चुका है कि जो लोग सरकार में होते हैं या जिन के कांधों पर समाज के नेतृत्व का बोझ होता है उन में कुछ विशेष नैतिक गुण होने चाहिएं घंमड , ऐश्वर्य प्रेम , सुखभोग ,अहंकार और स्वार्थ एसी वस्तुएं हैं जिन के बारे में विश्व वासियों ने यह सोच लिया है कि यह चीज़ें शासकों और राजनेताओं में होती ही हैं यहां तक कि उन देशों में भी जहां क्रांति के बाद सरकार बनी है जो लोग कल तक क्रांतिकारी के रूप में शिविरों में रहते थे गुफाओं में छुपे रहते थे वह लोग भी सरकार में आते ही अपनी जीवन शैली बदल लेते हैं और उन का ढब वही हो जाता है जो अन्य शासकों का होता है इसे हम ने निकट से देखा है और यह वस्तु अब जनता के लिए भी आश्चर्य जनक नहीं है किंतु इमाम खुमैनी ने इस गलत धारणा को समाप्त कर दिया उन्हों ने यह दर्शा दिया कि किसी राष्ट्र का एक अत्यन्त लोकप्रिय नेता और विश्व भर के मुसलमानों का नेता अत्यन्त साधारण जीवन शैली अपना सकता है और भव्य महलों के स्थान पर एक छोटे से इमाम बाड़े में अपने अतिथियों का स्वागत कर सकता है।
इमाम खुमैनी के बारे में पश्चिम के पत्रकार राबिन वूड्स वर्थ ने उन से उन के घर में भेंट के पश्चात लिखा। जैसे ही इमाम खुमैनी द्वार से भीतर आए मुझे लगा कि उन के अस्तित्व से आध्यात्म का पवन बह रहा है । मानो उन के कत्थई लबादे , काली पगड़ी और सफेद दाढ़ी के पीछे से आत्मा व जीवन की लहरें उठ रही हैं यहां तक कि कमरे में उपस्थित सारे लोग उन के व्यक्तित्तव में खो गये , उस समय मुझे लगा कि उन के आते ही हम सब बहुत छोटे हो गये और यह लगने लगा कि जैसे वहां उन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। उन्हों ने मेरे सारे मापदंडो और शब्दों को उलट पुलट दिया जिनके द्वार मुझे लगता था कि मैं उन के व्यक्तित्व का वर्णन कर सकता हूं। मुझे लगा मानो वह मेरे अस्तित्व पर छा गये तो क्या कोई साधारण व्यक्ति एसा हो सकता है ? मै ने तो आज तक किसी भी बड़े नेता या बड़ी हस्ती को उन से अधिक महान नहीं पाया , मैं उन की छोटी सी प्रशसां में बस यही कह सकता हूं कि वह मानो अतीत में ईश्वरीय दूतों की भांति हैं या फिर यह कि वे इस्लाम के मूसा हैं जो फिरऔन को अपनी भूमि से बाहर निकालने के लिए आए हों ।
निश्चित रूप से इस पश्चिमी पत्रकार ने इमाम खुमैनी को किसी सीमा तक पहचान लिया था। फिरऔन वास्तव में अत्याचारी तानाशाह और स्वंय को सब से बड़ा समझने वाले हर शासक का प्रतीक है। ईश्वरीय दूत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने प्राचीन मिस्र के अत्याचारी शासक और स्वंय को ईश्वर कहने वाले फिरऔन के विरुद्ध संघर्ष किया और उस का विनाश किया था। इमाम खुमैनी ने भी विश्व में वर्तमान फिरऔनों के विरूद्ध संघर्ष की जो लहर उत्पन्न की थी आज वह राष्ट्रों में तूफान का प्रंचड रूप धार कर शक्ति व सत्ता के बल पर मनमानी करने वाली शक्तियों की नैया डूबो रही है और साम्राज्यवाद के डगमगाते बेड़ों के बौखलाए नाविक इसी लिए ईरान और ईरान की इस्लामी क्रांति तथा इस्लामी व्यवस्था को विभिन्न षडयन्त्रों का लक्ष्य बना रहे हैं किंतु इमाम खुमैनी के मार्ग पर चलने वाला ईरानी राष्ट्र हर वर्ष इमाम खुमैनी के बरसी के अवसर पर विशेषरूप से यह प्रतिज्ञा करता है कि उन के मार्ग पर चलते हुए अत्याचारियों व साम्राज्यवादियों के विरूद्ध संघर्ष जारी रखेगा।
इस संसार में जीवन और मृत्यु का चक्र किसी से न रुका है और न ही रूकेगा जीवन व मृत्यु का यह क्रम , धूप छांव और दिन रात की भांति अनवरत जारी है मृत्यु व विनाश हर शरीर के लिए है इस बात की घोषणा कुरआने मजीद ने की है किंतु यदि यह एक अटल वास्तविकता है तो फिर कुछ लोगों को अमर क्यों कहा जाता है ? वास्तव में हमने कभी सोचा कि अमरत्व प्राप्त कैसे होता है? यदि इस विषय पर विचार किया जाए तों हमें पता चलेगा कि मृत्यु व विनाश शरीर के लिए होता है विचार मृत्यु व विनाश चक्र की परिधि से बाहर होते हैं विचारों में इतनी शक्ति होती है कि वह जीवन व मृत्यु के अनवरत चलते इस चक्र को जीवन बिन्दु पर रोक देता है।
यही कारण है कि शारीरिक रूप से नज़रों से ओझल हो जाने के बावजूद महापुरूष अपने विचारों के कारण सदैव जीवित रहते हैं। इस वास्तविकता को यदि कोई आज के युग में अपनी आंखों से देखना चाहे तो उसे ईरान और विश्व के उन क्षेत्रों की यात्रा करनी चाहिए जहां साम्राज्यवाद के विरुद आंदोलन चल रहा है या उस की आहटें सुनाई देने लगी हैं । इन स्थानों में उसे आज भी कि जब इस्लामी ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की उन्नीसवीं बरसी मनाई जा रही है इमाम खुमैनी अपने विचारों व संदेशों के कारण जीवित नज़र आएंगे।
रचना से रचनाकार की महानता का बोध होता है ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम खुमैनी के अनथक प्रयासों और निरंतर संघर्ष तथा ईश्वर के मार्ग में त्याग का परिणाम है जिसे स्वंय इमाम खुमैनी ने ईश्वरीय चमत्कार कहा है वे कहते हैः
समाज में एक समाज की मानसिकता में परिवर्तना आया जिसे मैं सिवाए इस के कि यह एक ईश्वरीय चमत्कार व ईश्वरीय सकंल्प था कोई और नाम नहीं दे सकता।
इसी प्रकार वे एक अन्य स्थान पर कहते हैः
इस में ईश्वर का हाथ है यह ईश्वरीय मामला है लोग स्वंय ही ऐसी शक्ति के स्वामी नहीं हो सकते यह ईश्वर का निर्णय था जिसने भौतिकवाद में विश्वास रखने वालों के सारे समीकरण बिगाड़ दिये ।
इस संदर्भ में केनेडा के बुद्धिजीवी राबर्ट कैलिस्टोन कहते हैः
मैं पश्चिम का नागरिक और गैर मुस्लिम हूं किंतु मेरी दृष्टि में यह एक चमत्कार है कि एक धार्मिक क्रांति वर्तमान समय में इस प्रकार से सफल हो जाए और न्याय की स्थापना की ओर अग्रसर हो इस क्रांति को निश्चित रूप से ईश्वरीय सहायता प्राप्त है।
यही कारण है कि विश्व के एक अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र में इमाम खुमैनी के नेतृत्व में आने वाली इस्लामी क्रांति ने विश्व साम्राज्य की शांत व सुरक्षित समझी जाने वाली छावनी अर्थात ईरान में पांव पसार कर बैठे अमरीकी साम्राज्य को बौखलाकर भागने पर विवश कर दिया।
ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही पहली बार एक मुस्लिम देश ने पश्चिम की महाशक्तियों को सफलता के साथ चुनौती दी, उन की अक्षमता को सिद्ध किया और उन के हितों के लिए गंभीर ख़तरे उत्पन्न कर दिये। इमाम खुमैनी ने ईश्वर व धर्म पर भरोसा करके एक ऐसा आंदोलन आरंभ किया और फिर उसे सफल बनाया जिसने धर्म व आध्यात्म के पतन की भविष्यवाणी करने वाले समस्त पश्चिमी विचारकों व बुद्धिजीवियों के भौतिकवाद पर आधारित ज्ञान के खोखलेपन को सिद्ध कर दिया।
यदि देखा जाए तो इस्लामी क्रांति सोलहवीं शताब्दी के बाद से पश्चिम के मुक़ाबले में इस्लाम की प्रथम विजय समझी जा सकती है। रोचक तथ्य तो यह है कि ईरान की क्रांति का निर्देशक इस्लाम था और नेशनलिज्म , कैप्टालिज़्म कम्यूनिज्म और सोशलिज्म जैसे किसी भी पश्चिमी इज्म या विचारधारा की इस क्रांति में कोई भूमिका नहीं थी। ईरान की इस्लामी क्रांति से पश्चिम की शत्रुता का संभवतः एक कारण यह भी है।
इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने ईश्वर की असीम शक्ति पर भरोसे के साथ ही क्रांति की सफलता में जनता की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी बहुत बल दिया है। ईरान में इस्लामी क्रांति के इतिहास का ज्ञान रखने वालों को भलीभांति ज्ञान है कि इमाम खुमैनी ने इस्लामी क्रांति की पूरी प्रक्रिया में जनता पर अत्याधिक भरोसा किया और उसे आगे ले आए।
फ्रांस के प्रसिद्ध समाजशास्त्री व विचारक मिशल फोको ने जो इस्लामी क्रांति की सफलता के समय ईरान में उपस्थित थे लिखा हैः
मैं यह बात स्वीकार करता हूं कि १८ वीं शताब्दी के बाद से समस्त समाजिक परिवर्तन आधुनिकता की दिशा में थे किंतु केवल ईरान की क्रांति एक ऐसा समाजिक आंदोलन है जो आधुनिकता के सामने खड़ी हो गयी।
इमाम खुमैनी ने वर्तमान युग में धर्म की क्षमताओं को उजागर कर दिया और ईरान में इस्लाम के आधार पर एक सरकार का गठन करके यह सिद्ध कर दिया कि जो इस्लाम पैगम्बरे इस्लाम सल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम लाए थे वह किस प्रकार सर्वकालिक है। लगभग तीन दशकों से इस्लामी गणतंत्र ईरान की सफलता इस का सब से बड़ा प्रमाण है।