मस्जिदुल अक़सा की सही पहचान

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मस्जिदुल अक़सा की सही पहचान

मस्जिदुल अक़सा हरे रंग के गुंबद वाली वह मस्जिद है जो क़ुद्स नगर में बैतुल मुक़द्दस के परिसर में स्थित है।

मस्जिदुल अक़सा की सही पहचान

इसी परिसर में सुनहरे गुंबद वाली एक मस्जिद है जिसका चित्र बहुत अधिक दिखाई देता है और इसे बड़ी ख्याति प्राप्त है। यह मस्जिद क़ुब्बतुस्सख़रह है। मस्जिदुल अक़सा से इसकी दूरी लगभग 400 मीटर है। इसे यहूदी धर्म के लोग इस मस्जिद के स्थान को ओरशलीम कहते हैं। बहुत से लोगों को इन मस्जिदों के बारे में ग़लतफ़हमी जो जाती है। बहुत से पोस्टरों में, पुस्तकों के भीतर तथा अन्य स्थानों पर हम मस्जिदुल अक़सा लिखा हुआ देखते हैं किंतु उसके साथ जो चित्र होता है वह क़ुब्बतुस्सख़रह का होता है। वैसे क़ुब्बतुस्सख़रह मस्जिद भी मुसलमानों के लिए विशेष महत्व रखती है किंतु यह एक सामान्य मस्जिद है, मस्जिदुल अक़सा का स्थान बहुत ऊंचा है।

मस्जिदुल अक़सा की सही पहचान

इस बारे में मीडिया को दोष नहीं दिया जा सकता जो मस्जिदुल अक़सा के नाम पर इसी सुनहरे गुंबद वाली मस्जिद को दिखाते हैं क्योंकि बैतुल मुक़द्दस नगर पर क़ब्ज़ा जमाए बैठा ज़ायोनी शासन टीवी चैनलों और समाचार पत्रों को मस्जिदुल अक़सा के चित्रा लेने अथवा वीडियो फ़िल्म बनाने की अनुमति नहीं देता बल्कि इस मस्जिद के नाम पर क़ुब्बतुस्सख़रह मस्जिद के चित्र लेने को कहा जाता है। यही कारण है कि मस्जिदुल अक़सा का चित्र यदाकदा ही देखने में आता है।

क़ुरआन में मस्जिदुल अक़साः

क़ुरआन के सूरए इसरा की पहली आयत में कहा गया है कि पवित्र है वह हस्ती जो अपने बंदे को रात के समय मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़सा ले गई जिसके परिसर को हमने विभूतियों से सुसज्जित किया है। ईश्वर ने इस आयत में मस्जिदुल अक़सा की महानता और सम्मान का उल्लेख किया है।

इस्लामी दृष्टिकोण के अनुसार मस्जिदुल अक़सा का निर्माण हज़रत आदम के हाथों हुआ। इसके बाद ईश्वरीय दूत हज़रत इब्राहीम और फिर हज़रत सुलैमान ने इस मस्जिद का पुनर्निर्माण किया। बैतुल मुक़द्दस में जिस मस्जिद की मरम्मत हज़रत सुलैमान ने की वह यही मस्जिदुल अक़सा थी न कि वह उपास्थना स्थल जिसे यहूदियों ने हज़रत सुलैमान से जोड़ दिया है।

जब बैतुल मुक़द्दस नगर पर मुसलमानों का नियंत्रण हो गया तो इस मस्जिद की कई बार मरम्मत की गई और मस्जिदुस्सख़रह का भी इसी परिसर में निर्माण किया गया। इस समय बैतुल मुक़द्दस नगर में स्थित परिसर में दोनों मस्जिदों थोड़ी सी दूरी पर हैं।

फ्रीमैसेन और ज़ायोनिज़्मः

फ्रीमैसेन संस्था के योजनाकारों की एक चाल यह है कि बैतुल मुक़द्दस की एतिहासिक पहचान को समाप्त करे। इसी संदर्भ में इस संस्था का प्रयास है कि क़ुब्बत्तुस्सख़रह मस्जिद को मस्जिदुल अक़सा के रूप में प्रसिद्ध करवा दे। प्रश्न यह उठता है कि इससे इस ज़ायोनी संस्था को क्या लाभ पहुंचेगा? हज़रत सुलैमान जैसा कि क़ुरआन में भी आया है ईश्वरीय दूत थे उन्होंने मस्जिदुल अक़सा की मरम्मत की जो पहले के ईश्वरीय दूत ने बनाई थी। ज़ायोनियों का इस बारे में मत मुसलमानों से पूर्णतः भिन्न है। उनका मानना है कि हज़रत सुलैमन ने एक उपासना स्थल बनाया उन्होंने मस्जिदुल अक़सा की मरम्मत नहीं की।

शैतान की पुजारी, फ्रीमैसेन और ज़ायोनी

हज़रत सुलैमान के बारे में मुसलमानों के दृष्टिकोण के बिल्कुल विपरीत ज़ायोनियों और फ़्रीमैसेन संस्था का जो हज़रत सुलैमान को जादूगर और नास्तिक कहते हैं यह दावा है कि उन्होंने बैतुल मुक़द्दस में एक उपासना स्थल बनाया था। यही कारण है कि शैतान के पुजारियों, फ्रीमैसेनरियों और ज़ायोनियों का कहना है कि जब मुक्तिदाता के प्रकट होने का समय आएगा तो उसकी एक निशानी यही होगी कि मस्जिदुल अक़सा ध्वस्त कर दी जाएगी।

जो लोग सैटेनिज़्म और पैगेनिज़्म जैसी विवेकहीन आस्था रखते हैं उनका प्रयास है कि मस्जिदुल अक़सा को ध्वस्त करके हज़रत सुलैमान के जाली उपासना स्थल को अधर्मिता और नास्तिकता के प्रतीक के रूप में पहचनवाएं ताकि इस प्रकार ईश्वरीय धर्मों के अंत का जश्न मनाएं। हज़रत सुलैमान के उपासना स्थल के बारे में ज़ायोनियों का विचार बड़ा ही विनाशकारी है। उनका दावा है कि हज़रत ईसा मसीह की वापसी से पहले मस्जिदुल अक़सा को ध्वस्त करके हज़रत सुलैमान के उपासना स्थल का निर्माण करना होगा। उनका दावा है कि यही जाली उपासना स्थल ईश्वर को बहुत प्रिय है। उनके इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि क्योंकि बहुत से ज़ायोनी हज़रत सुलैमान को अधर्मी बताते हैं उन्हें जादूगर और मूर्तियों का पुजारी कहते हैं। इसकी पुष्टि फेरबदल का शिकार होने वाले ईश्वरीय ग्रंथ तौरैत में उल्लेखित बातों से होता है। ज़ायोनी बहुत पहले से यह प्रयास कर रहे हैं कि क़ुब्बतुस्सख़रह मस्जिद को मस्जिदुल अक़सा बताकर मुसलमानों का ध्यान वास्तविक मस्जिदुल अक़सा से विचलित कर दें ताकि मस्जिदुल अक़स को ध्वस्त करने हज़रत सुलैमान के तीसरे उपासना स्थल के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो जाए। ज़ायोनियों ने कई बार धमकी दी है कि वे मस्जिदुल अक़सा को गिरा देना चाहते हैं।

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