हजरत निज़ामुद्दीन चिश्ती घराने के चौथे संत थे। इस सूफी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की, कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुगल सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हजरत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा। दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है।
•
जीवनी
हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया का जन्म १२३८ में उत्तरप्रदेश के बदायूँ जिले में हुआ था। ये पाँच वर्ष की उम्र में अपने पिता, अहमद बदायनी, की मॄत्यु के बाद अपनी माता[1], बीबी ज़ुलेखा के साथ दिल्ली में आए। इनकी जीवनी का उल्लेख आइन-इ-अकबरी, एक १६वीं शताब्दी के लिखित प्रमाण में अंकित है, जो कि मुगल सम्राट अकबर के एक नवरत्न मंत्री ने लिखा था.
१२६९ में जब निज़ामुद्दीन २० वर्ष के थे, वह अजोधर(जिसे आजकल पाकपट्ट्न शरीफ,जो कि पाकिस्तान में स्थित है) पहुँचे और सूफी संत फरीद्दुद्दीन गंज-इ-शक्कर के शिष्य बन गये, जिन्हें सामान्यतः बाबा फरीद के नाम से जाना जाता था। निज़ामुद्दीन ने अजोधन को अपना निवास स्थान तो नहीं बनाया पर वहाँ पर अपनी आध्यात्मिक पढाई जारी रखी, साथ ही साथ उन्होंने दिल्ली में सूफी अभ्यास जारी रखा। वह हर वर्ष रमज़ान के महीने में बाबा फरीद के साथ अजोधन में अपना समय बिताते थे। इनके अजोधन के तीसरे दौरे में बाबा फरीद ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, वहाँ से वापसी के साथ ही उन्हें बाबा फरीद के देहान्त की खबर मिली।
निज़ामुद्दीन, दिल्ली के पास, घयासपुर में बसने से पहले दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रहे। घयासपुर, दिल्ली के पास, शहर के शोर शराबे और भीड-भड्डके से दूर स्थित था। उन्होंने यहाँ अपना एक “खंकाह” बनाया, जहाँ पर विभिन्न समुदाय के लोगों को खाना खिलाया जाता था, “खंकाह” एक ऐसी जगह बन गयी थी जहाँ सभी तरह के लोग चाहे अमीर हों या गरीब , की भीड जमा रहती थी।
इनके बहुत से शिष्यों को आध्यात्मिक ऊँचाई की प्राप्त हुई, जिनमें ’ शेख नसीरुद्दीन मोहम्मद चिराग-ए-दिल्ली”, “अमीर खुसरो” [2],जो कि विख्यात विद्या ख्याल/संगीतकार, और दिल्ली सलतनत के शाही कवि के नाम से प्रसिद्ध थे।
इनकी मृत्यु ३ अप्रेल १३२५ को हुई। इनकी दरगाह, निज़ामुद्दीन दरगाह दिल्ली में स्थित है।,
वंशावली
1. हज़रत मोहम्म्द
2. हज़रत अली
3. हज़रत सईदना इमाम हुसैन इब्न अली
4. हज़रत सईदना इमाम अली इब्न हुसैन ज़ैन-उल-आबेदीन
5. हज़रत सईदना इमाम मोहम्म्द अल-बकीर
6. हज़रत सईदना इमाम ज़ाफ़र अल-सदीक
7. हज़रत सईदना इमाम मूसा अल-काज़िम
8. हज़रत सईदना इमाम अली अल-रिदा (असल में,अली मूसी रज़ा)
9. हज़रत सईदना इमाम मोहम्म्द अल-ताकी
10. हज़रत सईदना इमाम अली अल-नाकी
11. हज़रत जाफ़र बोकारी
12. हज़रत अली अज़गर बोकारी
13. हज़रत अबी अब्दुल्लाह बोकारी
14. हज़रत अहमद बोकारी
15. हज़रत अली बोकारी
16. हज़रत हुसैन बोकारी
17. हज़रत अब्दुल्लाह बोकारी
18. हज़रत अली उर्फ़ दानियल
19. हज़रत अहमद बदायनी
20. हज़रत सईद शाह ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया
उर्स
इनका उर्स (परिवाण दिवस) दरगाह पर मनाया जाता है। यह रबी-उल-आखिर की सत्रहवीं तारीख को (हिजरी अनुसार) वार्षिक मनाया जाता है। साथ ही हज़रत अमीर खुसरो का उर्स शव्वाल की अट्ठारहवीं तिथि को होता है।
दरगाह
दरगाह में संगमरमर पत्थर से बना एक छोटा वर्गाकार कक्ष है, इसके संगमरमरी गुंबद पर काले रंग की लकीरें हैं। मकबरा चारों ओर से मदर ऑफ पर्ल केनॉपी और मेहराबों से घिरा है, जो झिलमिलाती चादरों से ढकी रहती हैं। यह इस्लामिक वास्तुकला का एक विशुद्ध उदाहरण है। दरगाह में प्रवेश करते समय सिर और कंधे ढके रखना अनिवार्य है। धार्मिक गात और संगीत इबादत की सूफी परंपरा का अटूट हिस्सा हैं। दरगाह में जाने के लिए सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच का समय सर्वश्रेष्ठ है, विशेषकर वीरवार को, मुस्लिम अवकाशों और त्यौहार के दिनों में यहां भीड़ रहती है। इन अवसरों पर कव्वाल अपने गायन से श्रद्धालुओं को धार्मिक उन्माद से भर देते हैं। यह दरगाह निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक मथुरा रोड से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यहां दुकानों पर फूल, लोहबान, टोपियां आदि मिल जाती हैं।
अमीर खुसरो
अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनका प्रथम उर्दू शायर में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। इसलिए हजरत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उर्स (मेले) आयोजित किए जाते हैं।