एक हज़ार चौरानवे ई0 में फ़ातेमी बादशाह अल मुस्तन्सिर की मौत के बाद उन के युवराज के लिये इस्माईलिया सम्प्रदाय में मतभैद पैदा हो गये, मुस्तन्सिर ने अपने बड़े बेटे अबू मंसूर नज़ार के अपना युवराज बनाया था
लेकिन उन के वज़ीर (मंत्री) अफ़्ज़ल ने उन की म्रत्यु के बाद विद्रोह कर दिया और उन के छोटे बेटे अलक़ासिम अहमद जो कि अल मुस्तअली के नाम से प्रसिद्ध था को राज गद्दी पर बिठा दिया।
बोहरे
दाऊदी बोहरो की आबादी के बारे में सही जानकारी नही है लेकिन फिर भी हिन्दुस्तान में लगभग दो लाख दस हज़ार बोहरे रहते हैं प्राप्त सूचना के अनुसार पूरे विश्व में बोहरो की पांच लाख आबादी है। दाऊदी बोहरे हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, यमन, श्री लंका, सुदूर पूर्वी क्षेत्र (मशरिक़े बईद) और ईरान की खाड़ी के दक्षिण में पाए जाते हैं, इन देशों में दाऊदी बोहरों की तादाद में कमी आ रही है।
श्रद्धा और विश्वास (अक़ाइद)
बोहरो का इमाम और उन के युवराज सब ग़ायब हैं ये बोहरो के विश्वास का महत्पूर्ण अंग है। और जो निमंत्रण कर्ता (दाई) हैं वह इमाम की आज्ञा से उस के युवराज बनते हैं। उनकी पहली धार्मिक किताब क़ुरआन है और सिर्फ़ निमंत्रण कर्ता ही क़ुरआन के असली अर्थ को समझ सकता है। हदीस और रसूल (स0) की सुन्नत (वह तरीक़ा जिस पर मोहम्मद साहब और उन के सहाबा चले) भी उन के धार्मिक स्रोत मे से है। बोहरे एकेश्वरवाद पर विश्वास रखते हैं और ख़ुदा का अस्तित्व एकाकी और समझ से परे है, बोहरे रसूले अकरम (स0) को आख़री नबी और अपने निमंत्रण कार्ता को रसूल की योग्यता वाला मानते हैं।
धार्मिक कार्य
बोहरे रसूल अकरम (स0) के घर वालो (अहले बैत) की मोहब्बत को इस्लाम का स्तम्भ मानते हैं ये लोग क़सम मीसाक़ में जिस पर तमाम बोहरे एक मत हैं कहते हैं कि “सच्चे दिल से इमाम अबुल क़ासिम अमीरुल मोमिनीन जो तुम्हारे इमाम हैं की आज्ञा का पालन करें” उनके पांच धार्मिक कार्य (फ़राएज़ पंजगाना)इस तरह है, आज़ान, इन की आज़ान शिया इस्ना अशरी की तरह है लेकिन वज़ू अहले सुन्नत की तरह करते हैं, बोहरे नमाज़ में हाथ खुले रखते हैं नमाज़ के लिए एक ख़ास कपड़ा होता है। ये लोग तीन टाइम नमाज़ पठ़ते हैं और हर नमाज़ के बाद रसूल अकरम (स0) हज़रत अली (अ0) फ़ातिमा ज़हरा (स0) और अपने इक्कीस इमामों का नाम लेते हैं।
बोहरे नमाज़े जुमा को नही मानते हैं, उन की दुआ (ईश्वर से प्रार्थना) की किताब का नाम सहीफ़तुस सलात है बोहरे के यहा शिफ़ाअत (अभिस्तवात) को विष्शिट स्थान प्राप्त है।
ज़कात (धार्मिक कर) बोहरों पर ज़कात आवश्यक है, उन पर छे तरह की ज़कात आवश्यक है जो निम्न हैं
1. नमाज़ की ज़कात: ये चार आने है और हर एक के लिये ज़रूरी है
2. ज़काते फ़ितरा: ये भी चार आने है।
3. ज़काते हक़्क़ुन नफ़्स: ये मृतको की आत्मा के उत्थान के लिये है और ये एक सौ उन्नीस रुपये है।
4. हक़े निकाह: ये ज़कात शादी एवं विवाह के अधिकार को तौर पर दी जाती है, और ये ग्यारह रुपये है।
5. ज़काते सलामती सय्यदना: ये आम निमंत्रण कर्ता के लिये नक़दी तोहफ़े हैं।
6. ज़काते दावत: ये ज़कात दावत के ख़र्चों को पूरा करने के लिये दी जाती है और तीन तरह की है
1. आय पर टैक्स जो कि व्यापारियों से ली जाती है।
2. ख़ुम्स जो कि संभावित आय का पाँचवा हिस्सा है जिसे विरासत मे मिलने वाले माल
3. वह लोग जो बीमारी के कारण नमाज़ रोज़ा नही कर सकते उन पर भी ये ज़कात आवश्यक है।
7. नज़्र मक़ाम: ग़ायब इमाम की नज़्र के लिये जो पैसा रखा जाता है उसे कहते है
रोज़ा
बोहरो का रोज़ा तीस दिनो का रमज़ान के महीने में होता है ये लोग हर महीने की पहली और आख़िरी तारीख़ और हर ब्रहस्पतिवार को भी रोज़ा रखते हैं इस के आलावा हर महीने के बीच वाले बुधवार को भी रोज़ रखते हैं। रोज़े अह्ले सुन्नत से कुछ दिन पहले प्रारम्भ करके कुछ दिन पहले ही समाप्त कर देते है।
हज और ज़ियारत (तीर्थ यात्रा)
बोहरो इस्तेताएत (सामर्थ) रखने वालो पर हज को अनिवार्य समझते हैं और इस वाजिब के लिए आवश्यक है कि क़सम मीसाक़ खाई जाए, ये लोग मक्के के आलावा कर्बला की ज़ियारत को भी जाते हैं और कुछ लोग नजफ़ और क़ाहिरा भी जाते हैं, हिन्दुस्तान मे बोहरो के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल अहमद आबाद, सूरत, जाम नगर, मान्डी, अजीन और बुरहान पुर में है।
बोहरो के बड़े तीर्थ स्थलों में इन जगहो का नाम लिया जा सकता है, चन्दा बाई का समाधी भवन मुम्बई, नता बाई का समाधी भवन, मौलाना वहीद बाई का समाधी भवन, मौलाना नूरुद्दीन का समाधी भवन मुम्बई।
बोहरे मोहर्रम के ताबूतों और ताज़ियों के लिये नज़्र करने को अनेकेश्वर वाद मानते हैं लेकिन ईश्वरीय दूतो के समाधी स्थल पर नज़्र करना सही है, इस के अलावा वह और भी नज़्रों को मानते हैं जैसे ख़ास दिनो में नज़्र का रोज़ा रखना, कुछ दुआओं (ईश्वर से प्रार्थना) को बार बार पढ़ना, खाना खिलाना, धार्मिक स्थलों का निर्माण, और वक़्फ़ (धर्म के नाम पर छोड़ी हुई चीज़) करना।
बोहरे ईश्वरीय दूतो से वचन के कारण जिहाद (धार्मिक युद्ध) को आवश्यक मानते हैं और ये किसी भी काल में जब भी इमाम या निमन्त्रण कर्ता आवश्यक समझे अनिवार्य है और इस में नि:स्वार्थता से समिलित होना अनिवार्य है।
हश्न व नश्र (महाप्रलय)
बोहरे हश्र व नश्र के बारे में फ़ातिमियों की श्रद्धा और विश्वास को मानते हैं, सौभाग्य और कल्याण का रास्ता इमाम का अनुसरण करना है, मौत के बाद भी कल्याण का रास्ता खुला रहता है यहां तक कि आस्तिक बोहरा ख़ुदा से जा मिलता है और दोनो एक हो जाते हैं, इस कारण बोहरो की आत्मा उन की मौत के बाद उन के शरीर से जो कि अभी इस दुनिया मे है के पास होती जाती है और इस तरह जीवित व्यक्ति को अच्छाई और बुराई की आकाश वाणी होती है, और इस के साथ साथ उस से ज्ञान भी प्राप्त करती है।