एक दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने देखा किएक औरत अपने कंधे पर पानी की मश्क उठाए हुएले जा रही है आपने इस औरत से मश्क ले ली और मश्क उसके घर पहुंचा दी. पानी की मश्क उसके घर तक पहुंचाने के बाद आपने उसका हाल चाल भी पूछा.
महिला ने कहा: अली इब्ने अबी् तालिब ने मेरे पतिको कहीं काम से भेजा गया था जहां वह मार डालेगए अब में यतीम बच्चों की पालन पोषण कर रहीहूँ हालांकि उनकी सरपरस्ती और पालन पोषण मेरेबस से बाहर है हालात से मजबूर होक्रर लोगों केघरों में जाकर सेवा करती हूँ .
अली अलैहिस्सलाम यह सुन कर अपने घर वापस आ गए और पूरी रात आप नहीं सोए अगली सुबह आपनेएक टोकरी में खाने पीने का सामान रखा और औरत के घर की ओर चल पडे,, रास्ते में कुछ लोगों ने हज़रतअली अलैहिस्सलाम से अनुरोध किया कि खाने की चीजों से भरी हुई टोकरी उन्हें दे दें वह पहुँचा देंगें मगरहज़रत अली यह कहते जाते थेः
क़यामत के दिन मेरे कार्यों का बोझ कौन उठाएगा?
उस स्त्री के घर के दरवाजे पर पहुँचने के बाद आपने दरवाजा खटखटाया. महिला ने पूछा कौन है?
हज़रत ने जवाब दिया:
जिसने कल तुम्हारी मदद की थी और पानी की मश्क तुम्हारे घर तक पहुँचाई थी, तुम्हारे बच्चों के लिए खानालाया हूं, दरवाज़ा खोलो!
महिला ने दरवाजा खोला और कहा:
ईश्वर आपको ِइस काम का अच्छा बदला दे और मेरे और अली के बीच खुद फैसला करे.
हज़रत अली अलैहिस्सलाम उसके घर में दाखिल हुए और उस से कहा:
रोटी पकाओगी या बच्चों की देखभाल करोगी?
महिला ने कहा: मैं रोटी पकाने में अधिक प्रवीण हों आप मेरे बच्चों को दीख लीजिए!
महिला ने आटा गूंधा. अली अलैहिस्सलाम जो गोश्त लेकर आये थे उसको भून रहे थे और साथ साथ ख़ुरमे भीबच्चों को खिलाते जा रहे थे
आप पिदराना स्नेह के साथ कझूर, बच्चों के मुंह में रखते जा रहे थे और हर बार यही कहते जा रहे थे:
मीरे बच्चों: अगर अली ने तुम्हारे पक्ष में कोई कोताही की है तो उसे क्षमा कर दो.
जब आटा तैयार हो गया तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने तनूर जलाया, तनूर जला रहे थे और अपना चेहरातनूर की आग के पास बार बार ले जाकर फरमाते थे:
ऐ अली! आग का मजा चखो! यह व्यक्ति की सज़ा है जो यतीमों की ओर ध्यान ना दे. अचानक एक और औरत जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पहचानती थी घर में दाखिल हुई.
उसने जैसे ही आप को देखा तेजी के साथ घर की औरत के पास दौड़ती हुई गयी और कहा
यह तुम क्या कर रही हो! यह व्यक्ति मुसलमानों का अगुवा तथा देश का शासक अर्थात अली अलैहिस्सलामहैं.
विधवा औरत जो अपने कहे पर लज्जित थी कहने लगी:
ऐ अमीरुल मोमिनीन! मैं आपसे बहुत शर्मिंदा हूँ, मुझे माफ कर दीजीए!
हज़रत ने फ़रमाया: नहीं मैं तुमसे शर्मिंदा हूँ कि मैंने तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के पक्ष में कोताही की है.