इस्लामी जगत और महिला अधिकार

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इस्लामी जगत और महिला अधिकार

मानव समाज की आधी जनसंख्या के रूप में महिला को यद्यपि विदित रूप से दृष्टिगत रखा गया है तथा उनके अधिकारों और स्थान के बारे में बातें की जाती हैं.....

 

मानव समाज की आधी जनसंख्या के रूप में महिला को यद्यपि विदित रूप से दृष्टिगत रखा गया है तथा उनके अधिकारों और स्थान के बारे में बातें की जाती हैं किंतु महिलाओं को अभी भी बहुत सी चुनौतियों का सामना है। वर्तमान समय में बहुत से पश्चिमी देश महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के बहाने विश्व के सभी राष्ट्रों विशेषकर इस्लामी देशों पर महिलाओं के अधिकारों के हनन का आरोप लगाते रहते हैं।

एक शताब्दी से भी कम समय से पहले तक पश्चिम में महिलाएं अपने बहुत से व्यक्तिगत और समाजिक अधिकारों से वंचित थीं। यह भी एक विडंबना है कि महिला अपनी मेहनत से कमाए हुए धन, संपत्ति की भी स्वामी नहीं होती थीं। वास्तव में महिलाओं द्वारा मेहतन से कमाया गया धन या फिर उनकी समपत्ति उनके पतियों से संबन्धित होती थी। बहुत से पश्चिमी देशों में महिलाएं मतदान जैसे आंशिक अधिकार से भी वंचित थीं। पश्चिम में १९वीं शताब्दी के अंत में महिलाओं की ओर से अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रदर्शन किये गए जिनसे महिलाओं के भौतिक अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता की प्राप्ति की भूमिका प्रशस्त हुई। इस वातावरण में ह्यूमनिज़्म, लिबरलिज़्म और सैक्यूलरिज़्म के आधार पर फैमिनिज़्म आन्दोलन ने अपना रूप धारण किया और फ़ैमिनिज़्म आन्दोलन का उद्देश्य, महिलाओं के छिने हुए अधिकारों की प्राप्ति बताया गया।

इस बीच पूंजीवादी समाज ने महिलाओं के अधिकारों के समर्थन का दावा करने के बावजूद अधिक से अधिक लाभ उठाने के उद्देश्य से महिलाओं को बहुत ही निम्न स्तर की विशिष्टताएं देने को ही पर्याप्त समझा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इतिहास में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की ओर संकेत करते हुए कहा, पश्चिम में महिला, एक इंसान होने से अधिक एक महिला है। पश्चिम ने महिला के अधिकारों के समर्थन के दावों के बावजूद उसे पुरूषों के हाथों की कठपुतली की सीमा तक गिरा दिया, महिलाओं के यौन आकर्षण को ही उजागर किया है। पश्चिमी संस्कृति महिला के नाम पर पुरूषों के हितों के लिए कार्यरत है और स्वतंत्रता के बहाने महिला की सुन्दरता को बड़ी ही सरलता से पुरूष के अधिकार में देती है। इस प्रकार से कि समाज में महिला की उपस्थिति़ को लैंगिक दृष्टि के समावेश से ही देखा जाता है और महिला होने के कारण उसके कुछ समाजिक अधिकार भी उससे छिन जाते हैं। हम पश्चिमी जगत से, जिसने महिला को पिछले कालों से लेकर अबतक अपमानित किया है, इस बारे में जवाब चाहते हैं।

पश्चिमी समाज ने महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के बहाने महिला के मानवीय सम्मान को उससे छीन लिया है और उसे कृत्रिम पुरूष में परिवर्तित कर दिया। अमरीका के हार्वड विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर Harvy C. Mansfield अपने एक लेख, "न्यू फ़ेमेनिज़्म" में लिखते हैं कि फ़ैमिनिज़्म ने महिलाओं को पुरूषों की विशेषता देने के उत्साह में उसके स्त्रीत्व को ही नष्ट कर दिया। धीरे-धीरे हम एसी गैंग्सटर फ़िल्मों के साक्षी बनें जिनमें सुन्दर महिलाएं, दक्ष हत्यारों की भूमिका निभाती थीं किंतु साठ के दशक और उसके बाद के काल में हम पुरूषों के पेशों में महिलाओं की उपस्थिति के आदी हो गए हैं। विदित रूप से संसार का महिलाकरण हो गया है किंतु अभी भी संसार पुरूष प्रधान है यहां तक कि एक विचित्र सी शैली पर अधिक पुरूष प्रधान हुआ है। अभी भी महिला और पुरूष दोनों ही एसे पेशं में व्यस्त हैं जिनका मूल लड़ाई-झगड़े और ढिठाई जैसी पुरूष विशेषताएं हैं।

वे आगे कहते हैं कि विदित रूप से महिलाएं अब महिला होने का आनंद से वंचित हैं। वे जानती है कि किस प्रकार से पुरूषों का अनुसरण किया जाए किंतु उनको पता नहीं है कि वे किस प्रकार से स्वय के महिला होने को सुरक्षित रखें। प्रोफ़ेसर हार्वे का मानना है कि अपनी महिला पहचान से दूरी से महिलाएं अधिक असमंजस्य में रहेंगी।

पश्चिमी समाज में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बढ़ती ही जा रही है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि पश्चिम में आर्थिक विकास और प्रगति के साथ साथ लैंगिक दृष्टि से महिला को इन समाजों में अनदेखा किया गया है। कार्यालयों में महिलाओं की उपस्थिति और भागीदारी के लिए उन्हें प्रेरित करना और अपने सहकर्मी पुरूषों के साथ उनकी उपस्थिति आदि वे बाते हैं जिन्हें सदा ही फ़ैमिनिज़्म विचारधारा की ओर से प्रसारित किया जाता है। बहुत से स्थानों पर इस निरंकुश उपस्थिति ने महिलाओं पर मानसिक दुष्प्रभाव डाले हैं। पश्चिम की विचारक महिलाओं के मतानुसार विभिन्न मिश्रित कार्यस्थलों में महिलाओं पर यौन उत्पीड़न तेज़ी से थोपा जा रहा है। एक अमरीकी लेखक श्रीमती मार्लिन फ़्रेंच कहती हैं कि समस्त पुरूष जो किसी भी कार्य में व्यस्त हों, यहां तक कि यदि उनमें से अधिकांश सक्रिय गतिविधियां न भी करते हों और केवल वे दर्शक ही बने रहें, सहकर्मी महिलाओं के यौन उत्पीड़न में वे एक दूसरे के साथ हैं। यह पश्चिमी लेखिका स्पष्ट करती हैं कि अमरीकी अग्निशमन केन्द्र में कार्यरत महिलाओं के कथनानुसार उनके विरुद्ध यौन उत्पीड़न की घटनाएं बहुत तेज़ी से बढ़ रही हैं। यह महिलाएं बजाए इसके कि दूसरों की जान की सुरक्षा करें उन्हें स्वयं अपनी सुरक्षा की आवश्यकता है।

वर्तमान समय में पश्चिम के औद्योगिक समाज ने, महिलाओं और पुरूषों के बीच पाए जाने वाले प्राकृतिक और आंतरिक अंतरों को अनदेखा करते हुए, कठिन कार्य करने हेतु उनके लिए समान अवसर उपलब्ध कराए हैं। उदाहरण स्वरूप खानों तथा कुछ औद्योगिक कारख़ानों में काम करने जैसे कार्यों को, जो इससे पूर्व पुरूषों से विशेष थे, महिलाओं पर थोप दिया गया है। एक ओर तो पूरषों के अधिक शक्तिशाली होने और उनमें पाए जाने वाले हिंसक झुकाव दूसरी ओर पुरूषों की तुलना में महिलाओं के कम शक्तिशाली होने के कारण उनको कार्यस्थल पर अधिक क्षति पहुंचती है। उल्लेखनीय बिंदु यह है कि सामान्यतः पुरूषों के समान कार्य करने के बावजूद महिलाओं को कम वेतन मिलता है। इस संदर्भ में मार्लिन फ़्रेंच कहती हैं कि अमरीका में बड़ी संख्या में महिलाएं वेतन के लिए कार्य करती हैं किंतु उन सभी को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। व्यापारिक कंपनियां और संगठन यह दावा करते हैं कि महिलाओं की प्रगति के मार्ग में उन्होंने कोई बाधा उत्पन्न नहीं की है किंतु इसके बावजूद बहुत ही कम संख्या में महिलाओं की पदोन्नति होती है और प्रबंधन तथा विशेष प्रकार के कार्यों में व्यस्त महिलाओं को अपने पुरूष समकक्षियों की तुलना में वेतन कम मिलता है।

पश्चिमी समाज में बहुत सी महिलाओं को पुरूषों की उपभोग वस्तु या खिलौने के रूप में देखा जाता है। एक प्रख्यात अमरीकी लेखिका श्रीमती वेंडी शेलीत लिखती हैं कि एकल लैंगिक समाज में, हम पूर्ण रूप से अपभिज्ञ विलासी लोग केवल उनको खिलौना बनाने के लिए अवसर ढूंढते रहते हैं।

हमारे एकल लैंगिक या पुरूष प्रधान समाज ने जो चीज़ प्राप्त की है वह दुराचार के लिए समान अवसर, महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, मार खाना और मृत्यु आदि के लिए समान अवसर हैं।

पश्चिमी समाजों में महिला उत्पीड़न का एक अन्य आयाम, परिवार में महिलाओं की भूमिका का फीका पड़ना या फिर समाप्त हो जाना है। पश्चिम की महिला अब मातृत्व, जीवनसाथी के संग रहने तथा परिवार के साथ रहने की भूमिका का उचित ढंग से आभास नहीं कर पाती। इसके मुक़ाबले में दिन प्रतिदिन बढ़ते तलाक़ के कारण परिवारों के विघटन और एक अभिभावक वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि के शारीरिक और मानसिक दुष्परिणाम पश्चिमी महिलाओं और उनके बच्चों को भुगतने पड़ते हैं।

पश्चिमी समाज में महिला और पुरूष के संबन्ध, परिवर्तन की कगार पर हैं और इन दोनों भिन्न प्राणियों की सदैव एक दूसरे से तुलना की जाती है। बजाए इसके कि पुरूष और महिला साथ-साथ हों एक-दूसरे के आमाने-सामने आ गए हैं और वे एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी समझे जाते हैं। जबकि महिला और पुरूष एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए पैदा नहीं किये गए हैं। पश्चिमी की तुलना मे पवित्र इस्लाम धर्म, महिला के संबन्ध में अलग किंतु वास्तविकता पर आधारित दृष्टिकोण रखता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाह हिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हंै कि इस्लाम में महिलाओं की समस्त विशेषताओं को सुरक्षित रखा गया है। उससे यह नहीं कहा गया है कि महिला होते हुए वह पुरूष जैसा सोचे या पुरूषों की भांति व्यवहार करे अर्थात महिला होने की विशेषता जो महिलाओं की प्राकृतिक व स्वभाविक विशेषता और उनके समस्त प्रयासों और भावनाओं का केन्द्र है, को इस्लामी दृष्टिकोण में सुरक्षित रखा गया है।

इस्लामी विचारधारा में पुरूषों और महिलाओं के बीच लैंगिक दृष्टि से न्याय का ध्यान रखा गया है। न्याय अर्थात मानव की क्षमताओं और योग्यताओं के आधार पर अवसर उपलब्ध करवाना। इस आधार पर न्याय का मानना है कि पुरूषों और महिलाओं को वे दायित्व ही सौंपे जाएं जो उनकी स्वभाविक एवं प्राकृतिक योग्यताओं और क्षमताओं के अनुकूल हों।

इसी इस्लामी और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण के दृष्टिगत वर्तमान समय में इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाएं, देश में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के दिशानिर्देशन, अन्य अधिकारियों के समर्थन और इसी प्रकार महिला सांसदों के प्रयासों से महिलाओं की समाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं क़ानूनी स्थिति को बेहतर करने के उद्देशय से ईरान की इस्लामी संसद शूराए इस्लामी में अब तक विभिन्न प्रस्ताव पारित किये गए हैं। इस प्रकार से महिलाओं के संबन्ध में इस्लाम के उच्च आदर्शों के आधार पर ईरान में महिलाओं की योग्यताओं के उजागर होने के लिए न्यायपूर्ण अवसर उपलब्ध हो चुके हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि महिला का सम्मान यह है कि उसे अवसर दिया जाए कि महान ईश्वर ने हर व्यक्ति के भीतर जो योग्यताएं एवं क्षमताएं उपहार स्वरूप दी हैं और जिनमें वे योग्यताएं भी हैं जो केवल महिलाओं के भीतर ही निहित हैं उन्हें परिवार, समाज, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर, ज्ञान-विज्ञान, शोध और प्रशिक्षण के स्तर पर उजागर होनी चाहिए और यह महिला के सम्मान के अर्थ में है।

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