बंदगी की बहार- 24

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बंदगी की बहार- 24

हम रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दशक में हैं।

अध्यात्म व नैतिकता से परिपूर्ण यह महीना तीव्र गति से गुज़र जाता है। विशेष कर इसके अंतिम दस दिन, जिनमें शबे क़द्र भी है, इस प्रकार से गुज़र जाते हैं कि आभास तक नहीं होता। रमज़ान के महीने में हम अपने पूरे अस्तित्व से ईमान की मिठास को महसूस कर सकते हैं। यह महीना ईश्वर के गुणगान और रातों को जाग कर उसकी उपासना और दुआ का महीना है। इस पवित्र महीने के हर क्षण से कृपालु ईश्वर से प्रार्थना और अपने पापों के प्रायश्चित के लिए लाभ उठाना चाहिए। यह महीना ईश्वर की अनंत विभूतियों और अनुकंपाओं के साथ आता है और पापियों की तौबा व प्रायश्चित के साथ चला जाता है। यही कारण है कि रोज़ेदार व्यक्ति, ईश्वर के साथ अपने आध्यात्मिक जुड़ाव के चलते अपनी आत्मा और अंतरात्मा में गहरे परिवर्तनों का आभास करता है।

मनुष्य अच्छे व सकारात्मक व्यवहार और उचित परिस्थितियों के माध्यम से सफलता का मार्ग समतल कर सकता है। ईश्वर के सच्चे दास, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं जिसमें से एक, दूसरों के साथ विनम्रता है। वे बहुत विनम्र स्वभाव के होते हैं और अगर कोई उनकी बुराई करता भी है तो उसके उत्तर में वैसा ही व्यवहार नहीं करते बल्कि विनम्र रहते हैं। इस तरह उनके अच्छे व्यक्तित्व और नैतिक विशेषताओं का प्रदर्शन होता है। क़ुरआन मजीद के सूरए फ़ुरक़ान की कुछ आयतों में ईश्वर के अच्छे दासों की विशेषताओं का इस प्रकार उल्लेख किया गया है। ईश्वर के दास वे हैं जो बिना इतराए हुए सम्मानजनक ढंग से ज़मीन पर चलते हैं। और जब अज्ञानी लोग उन्हें संबोधित करते हैं तो वे उनसे अच्छी बात करते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अपने ईश्वर के सज्दों और उपासना में पूरी पूरी रात बिता देते हैं।

अगर मनुष्य सृष्टि और उसमें पाई जाने वाली वस्तुओं को ईश्वर की रचनाएं और उसकी शक्ति का प्रदर्शन माने तो फिर वह दूसरों के समक्ष घमंड नहीं करेगा बल्कि वह उनके साथ प्रेम से पेश आएगा। विनम्र व्यक्ति इस सोच के साथ दूसरों से मिलता है कि अगर उसमें कोई गुण है भी तो वह ईश्वर की कृपा है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि तीन बातें प्रेम का कारण हैं। क्षमा याचना, विनम्रता और धर्म का अनुसरण।

कभी कभी ऐसा भी होता है कि विनम्रता या अच्छे व्यवहार से अपराधी या पथभ्रष्ठ लोग सही मार्ग पर आ जाते हैं और उन्हें अपनी ग़लतियों का आभास हो जाता है। इसके बाद वे अच्छे कामों और सच्चाई की ओर उन्मुख हो जाते हैं। यहीं यह बात भी उल्लेखनीय है कि विनम्रता और अपने आपको नीचा दिखाने में बहुत अंतर है। इस्लामी शिक्षाओं और मनोविज्ञान के अनुसार अपने आपको नीचा दिखाना मनुष्य के व्यक्तित्व की कमज़ोरी का परिचायक है कि जो प्रशंसनीय नहीं है जबकि विनम्रता का अर्थात दूसरों के समक्ष अपनी बड़ाई न करना है जो सराहनीय है। उदाहरण स्वरूप अगर कोई धनवान व्यक्ति निर्धन लोगों के बीच जाए तो यह प्रकट न करे कि वह धनवान है। या अगर कोई ज्ञानी, आम लोगों के बीच हो तो उन पर अपने ज्ञान का रौब झाड़ने की कोशिश न करे।

घमंड के संबंध में एक घटना आपके सामने पेश कर रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने साथियों के साथ बैठे हुए थे और उनके साथियों ने उन्हें इस प्रकार घेरे में ले रखा था मानो अंगूठी के बीच में नग हो। इस्लामी परंपरा के अनुसार जब कोई किसी बैठक या गोष्ठी में पहुंचे तो उसे जो ख़ाली स्थान दिखाई पड़े वहीं बैठ जाए चाहे वह जिस पद पर भी आसीन हो। एक ग़रीब मुसलमान, जिसके बाल बिखरे हुए और कपड़े फटे-पुराने थे, वहां आया और उसने इधर-उधर देखा और जो जगह ख़ाली दिखाई दी, वहीं पर बैठ गया। संयोग से वहीं पर एक धनवान व्यक्ति बैठा हुआ था। उस व्यक्ति ने अपने कपड़े समेटे और अपने स्थान से थोड़ा दूर खिसक गया। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने, जो बड़े ध्यान से यह बात देख रहे थे उस धनवान व्यक्ति की ओर मुख करके कहाः क्या तुम्हें यह भय हुआ कि उसकी दरिद्रता तुम से चिपक जाएगी? उसने कहाः नहीं, हे ईश्वर के दूत! पैग़म्बर ने फिर पूछाः क्या तुम्हें इस बात का डर लगा कि तुम्हारे धन का एक भाग उसके पास चला जाएगा? उस व्यक्ति ने उत्तर दियाः नहीं हे ईश्वर के पैग़म्बर। उन्होंने पूछाः क्या तुम इस बात से डर गए कि तुम्हारे कपड़े मैले हो जाएं? उसने कहाः नहीं या रसूल्लल्लाह। पैग़म्बर ने उससे पूछाः तो फिर तुम क्यों उसके पास से हट गए? वह धनवान व्यक्ति बहुत अधिक लज्जित हुआ। उसने कहा कि मैं स्वीकार करता हूं कि मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। अब मैं इस ग़लती की भरपाई और अपने पाप के प्रायश्चित के लिए अपनी संपत्ति का आधा भाग अपने इस मुसलमान बंधु को देने के लिए तैयार हूं जिसके संबंध में मैंने यह ग़लती की है किंतु उसी समय वह दरिद्र व्यक्ति बोल पड़ा कि मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं। लोगों ने आश्चर्य से इसका कारण पूछा। उसने कहा चूंकि मुझे भय है कि किसी दिन मैं भी घमंडी हो जाऊं और अपने मुसलमान भाई के साथ वैसा ही व्यवहार करूं जैसा आज इसने मेरे साथ किया है।

रमज़ान का पवित्र महीना हमें हर प्रकार के नैतिक गुण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इन्हीं में से एक दूसरों की बुराइयों पर पर्दा डालना है। इस्लाम ने इस बात पर अत्यधिक बल दिया है कि कोई भी किसी की बुराइयों और कमियों को दूसरों से बयान न करे। हर व्यक्ति चाहता है कि उसमें जो कमियां और अवगुण हैं, उनसे दूसरे अवगत न हों। तो जब उसे भी दूसरों की कमियों का ज्ञान हो जाए तो उसे छिपाए रखना चाहिए। इस संबंध में हदीसों में कहा गया है कि ईश्वर हर किसी की हर बात से पूरी तरह अवगत है लेकिन वह उन बातों को दूसरों के सामने प्रकट करके अपमानित नहीं करता बल्कि लोगों की बुराइयों पर पर्दा डाले रखता है कि शायद वे सुधर जाएं और उन बुराइयों से तौबा करे लें।

कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के काल में बनी इस्राईल में ज़बरदस्त अकाल पड़ा। लोग उनके पास आए और कहने लगे कि आप नमाज़ पढ़ कर ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थन कीजिए कि वर्षा आ जाए। वे उठे और बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्रार्थना के लिए बाहर निकले। फिर वे एक स्थान पर पहुंचे और प्रार्थना की किंतु उन्होंने जितनी भी दुआ की, बारिश नहीं आई। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! वर्षा क्यों नहीं आ रही है, क्या तेरे निकट मेरा जो स्थान था वह अब नहीं रहा? ईश्वर की ओर से कहा गयाः नहीं मूसा! ऐसा नहीं है बल्कि तुम लोगों के बीच एक ऐसा व्यक्ति है जो चालीस वर्षों से मेरी अवज्ञा करते हुए पाप कर रहा है, उससे कहो कि भीड़ से अलग हो जाए तो मैं तुरंत वर्षा भेज दूंगा। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ऊंची आवाज़ से कहा, जो व्यक्ति चालीस वर्षों से ईश्वर की अवज्ञा कर रहा है, वह उठ कर हमारे बीच से निकल जाए क्योंकि उसी के कारण ईश्वर ने अपनी दया के द्वार बंद कर दिए हैं और वर्षा नहीं भेज रहा है। उस पापी व्यक्ति ने इधर-उधर देखा, कोई भी भीड़ में से नहीं उठा, वह समझ गया कि उसे ही लोगों के बीच से उठ कर जाना होगा। उसने अपने आपसे कहा कि क्या करूं, यदि मैं उठ कर जाता हूं तो सभी लोग मुझे देख लेंगे और मैं अपमानित हो जाऊंगा और यदि नहीं जाता हूं तो ईश्वर बारिश नहीं भेजेगा। यह सोचते सोचते उसका दिल भर आया और उसने सच्चे मन से तौबा की और अपने किए पर पछताने लगा। फिर उसने आकाश की ओर देखा और मन ही मन कहाः प्रभुवर! इतने सारे लोगों के बीच मुझे अपमानित होने से बचा ले। कुछ ही क्षणों के बाद बादल उमड़ आए और ऐसी बारिश हुई कि हर स्थान पर जल-थल हो गया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! कोई भी उठ कर हमारे बीच से नहीं गया तो फिर किस प्रकार तूने वर्षा भेज दी? ईश्वर की ओर से कहा गयाः मैंने वर्षा उस व्यक्ति के कारण भेजी है जिसे मैंने भीड़ से अलग होने के लिए कहा था किंतु उसने सच्चे मन से तौबा कर ली है। हज़रत मूसा ने कहा कि प्रभुवर! मुझे उस व्यक्ति के दर्शन करा दे। ईश्वर ने कहाः हे मूसा! जब वह पाप कर रहा था तब तो मैंने उसे अपमानित नहीं किया तो अब जब वह तौबा कर चुका है तो मैं उसे अपमानित कर दूं?

इस पवित्र महीने की एक अहम विशेषता पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर क़ुरआने मजीद का नाज़िल होना है और इसी लिए क़ुरआने मजीद को रमज़ान के महीने की आत्मा कहा जाता है जिसने इसकी महानता में चार चांद लगा दिए हैं। यह आसमानी किताब लोक-परलोक में मनुष्य के कल्याण को सुनिश्चित बनाती है और जीवन के हर चरण में मनुष्य का मार्गदर्शन करती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस ईश्वरीय किताब के महत्व के बारे में कहते हैं। दिलों का बसंत और ज्ञान का सोता, क़ुरआन है और दिलों के लिए क़ुरआन के अलावा कोई प्रकाश नहीं है। क़ुरआने मजीद और रमज़ान के पवित्र महीने के अटूट रिश्ते के कारण ईरान में इस महीने में जगह जगह क़ुरआन की प्रदर्शनी लगाई जाती है।

इन्हीं में से एक क़ुरआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी है जो हर साल तेहरान में आयोजित होती है। इस प्रदर्शनी में संसार के अनेक देश भाग लेते हैं। इस बार की प्रदर्शनी 11 से 25 मई तक आयोजित हुई जिसमें तुर्की, यमन, भारत, इराक़, ओमान, इंडोनेशिया, ट्यूनीशिया, फ़िलिस्तीन, अफ़ग़ानिस्तान और रूस जैसे देशों ने भाग लिया। प्रदर्शनी में ईरान की 18 सरकारी संस्थाएं, 24 जन संस्थाएं, विश्वविद्यालयों से संबंधित 18 संस्थाएं, धार्मिक शिक्षा केंद्रों की 8 संस्थाएं और प्रांतों की 12 संस्थाएं शामिल थीं। यह प्रदर्शनी 38 हज़ार वर्ग मीटर के भूभाग पर लगाई गई और शाम पांच बजे से रात 12 बजे तक लोग इसका निरीक्षण कर सकते थे।

इस प्रदर्शनी में भाग लेने वाले आयरलैंड के अहमद जोन्स का, जिन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया है, कहना है कि उनका जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ। वे दस वर्ष की आयु में घूमने के लिए ट्यूनीशिया गए और संयोग से उनकी यह यात्रा रमज़ान के महीने में हुई थी। वे दो हफ़्ते वहां रहे और इस महीने की आध्यात्मिकता से बहुत प्रभावित हुए। वे कहते हैं कि इसके बाद मैं अपने एक इराक़ी मित्र के माध्यम से इस्लाम से परिचित हुआ और क़ुरआने मजीद पढ़ कर मुझे एक अभूतपूर्व अनुभव हुआ। इसने मेरे अंदर बहुत परिवर्तन पैदा किया। इसके बाद मुझे उन सवालों के जवाब भी मिलने लगे जो काफ़ी समय से मेरे मन में थे, जैसे कि जीवन का लक्ष्य क्या है? सामाजिक संबंधों का सही स्वरूप क्या है? और मनुष्य की ज़िम्मेदारियां क्या हैं? इन सवालों के क़ुरआने मजीद से मुझे जो जवाब मिले वह बहुत सरल और समझ में आने वाले थे। मैं ईश्वर का आभार प्रकट करता हूं कि उसने मुझे सही रास्ता दिखाया और इस्लाम स्वीकार करने का सामर्थ्य प्रदान किया।

 

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