भारत, सीएए के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे युवा संगठन

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भारत, सीएए के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे युवा संगठन

भारतीय संसद में अधिनियम पारित होने के चार साल बाद केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) नियम, 2024 को अधिसूचित करने के एक दिन बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया नियमों पर रोक लगाने की मांग को लेकर अपनी याचिकाओं के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने आवेदन में आईयूएमएल ने जिसकी अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है, कहा कि नियम नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2(1)(बी) द्वारा बनाई गई छूट के तहत कवर किए गए व्यक्तियों को नागरिकता देने के लिए एक अत्यधिक संक्षिप्त और फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया बनाते हैं, जो स्पष्ट रूप से मनमाना है और केवल उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों के एक वर्ग के पक्ष में अनुचित लाभ पैदा करता है, जो अनुच्छेद 14 और 15 के तहत अनुमति योग्य नहीं है।

आईयूएमएल ने कहा कि अधिकार प्राप्त समिति, जो आवेदनों की जांच कर सकती है, की संरचना परिभाषित नहीं है। इसने आगे कहा कि नियम नागरिकता नियम 2009 के तहत पंजीकरण के लिए ‘जांच के स्तर’ को खत्म करते हैं और दस्तावेजों को सत्यापित करने की शक्ति जिला स्तरीय समिति को देते हैं।

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आईयूएमएल ने इस बात का भी जिक्र किया है कि कैसे केंद्र ने लगभग पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट में विवादास्पद सीएए के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के प्रयास को यह तर्क देकर टाल दिया था कि नियम तैयार नहीं किए गए थे।

आईयूएमएल ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अधिनियम पर रोक लगाने के लिए दबाव डाला था। हालांकि, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नियम तैयार नहीं किए गए हैं और इसलिए कार्यान्वयन नहीं होगा, ये रिट याचिकाएं साढ़े चार वर्षों से लंबित हैं।

गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे।

सीएए को दिसम्बर 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई. हालांकि, मुस्लिम संगठनों और समूहों ने धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया और इसका विरोध किया।

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