ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने ईरानी कैलेंडर के हिजरी शम्सी साल के 1392 के आंरभ पर अपने भाषण में बीते वर्ष की समीक्षा की और नए साल से संबंधित देश की चुनौतियों और लक्ष्यों को रेखांकित किया। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के भाषण का हिंदी अनुवाद पेश किया जा रहा है।
بسماللهالرّحمنالرّحیم الحمد لله ربّ العالمین و الصّلاة و السّلام علی سیّدنا و نبیّنا و حبیب قلوبنا ابیالقاسم المصطفی محمّد و علی ءاله الطّیبین الطّاهرین المنتجبین المعصومین سیّما بقیّةالله فی الأرضین. السّلام علی الصّدّیقة الطّاهرة فاطمة بنت رسول الله صلّی الله علیها و علی ابیها و بعلها و بنیها.
इस सदभावनापूर्ण बैठक में उपस्थित सभी भाईयों और बहनों की सेवा में सलाम और बधाई पेश करता हूं और ईश्वर का ह्रदय की गहराइयों से इस बात पर आभार प्रकट करता हूं कि उसने मुझे इस बात का एक बार पुनः अवसर दिया कि मैं एक अन्य वर्ष और एक अन्य नौरोज़ में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले तीर्थयात्रियों से भेंट करूं और आप लोगों के साथ देश के महत्वपूर्ण व वर्तमान विषयों पर चर्चा करूं। ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि हमारे ह्रदय और हमारी ज़बान का मार्गदशन करे और जो कुछ उसकी इच्छा के अनुसार हो उसे हमारे ह्रदय व हमारी ज़बान पर ले आए। यह भी एक बहुत बड़ी ईश्वरीय कृपा है कि ईदे नौरोज़ के अवसर पर, प्रकृति की सुन्दरता व वसन्त ऋतु की ताज़गी के साथ हर वर्ष हमें यह अवसर मिलता है कि एसे दिन में हम आप लोगों के मध्य देश के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा और अपनी वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हैं तथा अपने अतीत व भविष्य पर नज़र डालते हैं सामूहिक रूप से हम राष्ट्रीय स्तर पर अपने लाभ व हानि की समीक्षा और हिसाब किताब करते हैं जैसा कि हर मनुष्य को अपना हिसाब करना चाहिए और जैसा कि कहा गया है कि स्वयं अपना हिसाब लो इस से पूर्व कि तुम्हारा हिसाब लिया जाए। हमें अपने कामों, अपने कर्मों और अपनी व्यक्तिगत गतिविधियों का हिसाब अपने पास रखना चाहिए ठीक इसी प्रकार राष्ट्रीय हिसाब भी एक महत्वपूर्ण व मूल्यवान काम है। हमें अपना हिसाब करना चाहिए, अपने आप को देखना चाहिए, जो कुछ हम पर बीती है उस पर पुनः नज़र डालनी चाहिए, उस से पाठ व शिक्षा लेनी चाहिए और उसे भविष्य निर्माण के लिए प्रयोग करना चाहिए। हमारी राष्ट्रीय स्थिति का मूल्यांकन करने वाले विश्व में दूसरे लोग भी हैं जिनमं से कुछ एसे लोग हैं जो हमारी प्रगति से प्रसन्न होते हैं और हमारी प्रगति को अपनी प्रगति समझते हैं और यदि हमे कोई समस्या होती है तो उसे अपनी समस्या समझते हैं। विश्व में कुछ एसे लोग भी हैं जो हमारी गतिविधियों पर गहरी नज़र रखे हैं और हमारी गलतियों पर प्रसन्न होते हैं और हमारी प्रगति पर दुखी होते हैं। यह प्रायः वही लोग हैं जो वर्षों तक ईरान के हर क्षेत्र में वर्चस्व रखते थे किंतु क्रांति सफल हुई और उन्हें खदेड़ दिया गया इस लिए वे क्रांति के शत्रु हैं, क्रांतिकारी जनता के शत्रु हैं, क्रांतिकारी सरकार के शत्रु हैं।
हमारी कुछ कमज़ोरियां हैं हमारे देश में कुछ समस्याएं हैं किंतु इस भौतिक विश्व में कुछ एसे लोग भी हैं जिन्होंने ईरानी राष्ट्र को निष्क्रिय बनाने का भरसक प्रयास किया और इस बारे में खुल कर बात भी की। अमरीका की विदेशमंत्री बनने वाली एक अयोग्य महिला ने सीना तान कर कहा था कि हम इस्लामी गणतंत्र ईरान पर एसे प्रतिबंध लगाना चाहते हं जो ईरान को अपाहिज बना दे। हमारे देश में समस्याओं के साथ उपलब्धियां भी हैं जो हमारी आंखों के सामने है इस लिए केवल समस्याओं पर ध्यान देना और उन्ही को देखना गलत है। बल्कि सामूहिक रूप से देखना चाहिए कि देश में क्या हो रहा है।
हमने कहा कि कुछ लोग ईरानी राष्ट्र की प्रगति से दुखी होते हैं? यह लोग कौन हैं? इस बारे में बाद में बात करें। जो शत्रु ईरान की सर्वव्यापी प्रगति नहीं देखना चाहते उनके कार्यक्रमों में दो चीज़ें मुख्य रूप से नज़र आती हैं। एक यह कि वह इस बात का भरसक प्रयास करते हैं कि ईरानी राष्ट्र प्रगति तक न पहुंच सके। वे धमकी व प्रतिबंधों द्वारा और देश के अधिकारियों को दूसरे और तीसरे श्रेणी के कामों में व्यस्त करके प्रगति की राह में रोड़े अटकाने का प्रयास करते हैं। दूसरा काम वह करते हैं कि संचार माध्यमों में ईरान की इन प्रगतियों का इन्कार करते हैं। आज पूरे विश्व में हज़ारों संचार माध्यम यह सिद्ध करने में व्यस्त हैं कि ईरान में किसी प्रकार की प्रगति नहीं हुई है और यदि उन्हें देश में कोई कमज़ोरी नज़र आ जाती है तो उसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति अपने सरकारी भाषण में ईरान की आर्थिक समस्याओं का इस प्रकार से उल्लेख करते हैं मानो वह अपनी सफलताओं का वर्णन कर रहे हैं किंतु इस राष्ट्र की प्रगति व उपलब्धियों का उल्लेख नहीं करते और न ही कभी करेंगे। हम तीस वर्षों से इस प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं किंतु ईरानी राष्ट्र को प्रगति से रोकने का जो प्रयास हो रहा है वह इस समय कई गुना बढ़ चुका है।
मैने कहा कि हमारे कुछ शत्रु हैं यह लोग कौन हैं ? ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध षडयंत्रों का मुख्य केन्द्र कहां है? इस प्रश्न का उत्तर कठिन नहीं है। ३४ वर्षों से जब भी शत्रु की बात की जाती है ईरानी राष्ट्र के मन मस्तिष्क में अमरीकी सरकार का नाम गूंजने लगता है। उचित होगा कि अमरीकी अधिकारी इस विषय पर ध्यान दें और यह समझें कि ईरानी राष्ट्र ने इन ३४ वर्षों में कुछ चीज़े देखी हैं और वह कुछ एसे चरणों से गुज़रा है जिसके कारण जब भी शत्रु की बात की जाती है अमरीका का नाम आता है। यही ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध षडयंत्रों का केन्द्र है। निश्चित रूप से हमारे अन्य शत्रु भी हैं किंतु हम उन्हें पहली या दूसरी श्रेणी में नहीं रखते, ज़ायोनी भी हमारे शत्रु हैं किंतु ज़ायोनी शासन की इतनी औक़ात ही नहीं है कि वह ईरानी राष्ट्र के शत्रुओं की पंक्ति में नज़र आए। कभी कभी ज़ायोनी शासन के अधिकारी, हमें धमकियां देते हैं, सैन्य आक्रमण की धमकी देते हैं किंतु मेरे विचार में स्वंय उन्हें भी ज्ञात है और यदि नहीं मालूम तो जान लें कि यदि उन्होंने मूर्खता की तो इस्लामी गणतंत्र ईरान तेलअबीब और हैफा को मिट्टी में मिला देगा। ब्रिटेन की दुष्ट सरकार भी ईरानी राष्ट्र से शत्रुता रखती है, यह भी ईरानी राष्ट्र की प्राचीन व पारंपारिक शत्रु है किंतु ब्रिटिश सरकार इस क्षेत्र में अमरीका के पूरक की भूमिका निभाती है। ब्रिटिश सरकार स्वाधीनता ही नहीं रखती कि जो उसे एक अलग शत्रु समझा जाए वह तो अमरीका की पिछलग्गू है।
कुछ अन्य सरकारें भी शत्रुता करती हैं। मैं यहां पर यह कहना उचित समझता हूं कि फ्रांस के अधिकारियों ने भी हालिया कुछ वर्षों के दौरान ईरानी राष्ट्र के विरूद्ध खुली शत्रुता की है जो फ्रांसीसी अधिकारियों की नादानी है। बुद्धिमान मनुष्य विशेषकर राजनेता में एसी भावना नहीं होनी चाहिए कि एसे किसी को अपना शत्रु बनाए जो उसका शत्रु न हो। हमारी फ्रांस की सरकार और इस देश से कोई समस्या नहीं रही, न अतीत में कभी समस्या रही और न वर्तमान में किंतु सार्कोज़ी के सत्ताकाल की गलत नीतियां ईरानी राष्ट्र के प्रति शत्रुता पर आधारित थीं और खेद की बात है कि वर्तमान सरकार भी उसी मार्ग पर चल रही है।
अमरीकी जब भी बात करते हैं विश्व समुदाय का नाम लेते हैं। उन्होंने कुछ देशों का नाम विश्व समुदाय रखा है जिनका अगुवा स्वंय अमरीका है। और उन के पीछे ज़ायोनी, ब्रिटिश सरकार और कुछ छोटी मोटी सरकारे हैं। विश्व समुदाय किसी भी दशा में ईरान या ईरानी राष्ट्र का शत्रु नहीं है।
अब यदि हम पिछले वर्ष पर नज़र डालें तो हम यह कहेंगे कि पिछले वर्ष के आरंभ से अमरीकियों ने अपनी नयी योजना पर काम आरंभ कर दिया था, ज़बान से मित्रता का संदेश दिया, पत्र आदि भेज कर, कभी संचार माध्यमों के माध्यम से ईरानी राष्ट्र के प्रति प्रेम का प्रदर्शन किया किंतु इन झूठे बयानों के विपरीत व्यवहारिक रूप में उन्होंने ईरान और ईरानी राष्ट्र पर दबाव डालने का प्रयास किया, पिछले वर्ष के आरंभ से ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए, तेल पर प्रतिबंध, बैंकों पर प्रतिबंध। इस संदर्भ में उन्होंने बहुत से काम किए।
यह भी एक रोचक तथ्य है कि अमरीकी हम से शत्रुता करते हैं किंतु कहते हैं आप यह समझें कि हम आप के शत्रु हैं उन्हें आशा है कि ईरानी जनता यह न समझे कि वह उनके शत्रु हैं और उनके प्रति द्वेष रखते है! ईरान के प्रति अमरीका की यह नीति, बुश के काल के अंतिम दिनों से आरंभ हुई और खेद की बात है कि अमरीकी अधिकारी आज भी वही नीति जारी रखे हुए हैं।
अमरीकियों ने ईरान के तेल की बिक्री और ईरान से पैसे के लेन-देन को रोकने के लिए विशेष दूत भेजे। अमरीका से विशेष और प्रभावी लोगों को यह दायित्व दिया गया कि वह अन्य देशों से संपर्क करें, अन्य देशों की यात्रा करें यहां तक कि कंपनियों के स्वामियों से बात करें ताकि वह तेल के क्षेत्र में ईरान से संपर्क ख़त्म कर दें, उन कंपनियों को दंडित किया जाए क्योंकि वह ईरान के साथ आर्थिक संबंध रखती हैं। अमरीकियों ने यह काम पिछले वर्ष के आरंभ से किया और उन्हें आशा थी कि ईरान उनके इन प्रयासों के कारण अपने वैज्ञानिक विकास के मार्ग से हट जाएगा और अमरीका की ज़ोर ज़बरदस्ती के सामने झुक जाएगा।
यहां पर मैं यह भी कह दूं, कुछ महीने पूर्व भी मैंने यह बात कही थी तो अमरीकियों ने प्रसन्नता प्रकट की और कहा कि मैंने स्वीकार किया कि प्रतिबंधों का प्रभाव पड़ा है। जी हां प्रतिबंध, प्रभावहीन नहीं रहे हैं, वह प्रसन्नता प्रकट करते हैं तो करते रहें। प्रतिबंधों का बहरहाल प्रभाव पड़ा है, किंतु यह स्वंय हमारी कमी के कारण है। हमारी अर्थ व्यवस्था में एक कमी है कि वह तेल पर निर्भर है। हमें अपनी अर्थ- व्यवस्था को तेल से अलग करना चाहिए, हमारी सरकारों को अपने मूल कार्यक्रमों में इस चीज़ पर ध्यान रखना चाहिए। मैंने १७-१८ वर्ष पूर्व तत्कालीन सरकार से कहा था कि कुछ ऐसा करें कि हम जब चाहें तेल के कुएं बंद कर दें। बहरहाल प्रतिबंधों का प्रभाव पड़ा है किंतु यह वह प्रभाव नहीं है जो शत्रु चाहते थे।
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राजनीति के क्षेत्र में भी पिछले वर्ष यही प्रयास किया गया कि ईरान को उनके शब्दों में विश्व में अलग-थलग किया जाए किंतु उन्हें पूर्ण रूप से इस काम में विफलता मिली। अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी चूंकि हम ने तेहरान में गुट निरपेक्ष आंदोलन का सम्मेलन आयोजित किया था, उनका प्रयास यह था कि इस सम्मेलन को प्रभावहीन बना दिया जाए, सब भाग न लें या फिर सक्रिय रूप से भाग न लें किंतु वे जो चाहते थे उसके विपरीत हुआ। विश्व के दो तिहाई राष्ट्र गुट निपरेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं। विभिन्न देशों के राष्ट्रध्यक्षों ने तेहरान सम्मेलन में भाग लिया, वरिष्ठ अधिकारियों ने सम्मेलन भाग लिया और सब ने ईरान की सराहना की सब ने ईज्ञान की वैज्ञानिक, तकनीकी व आर्थिक प्रगति पर आश्चर्य प्रकट किया, हम से भी कहा, साक्षात्कारों में कहा और अपने अपने देश लौट कर भी यही सब दोहराया इस प्रकार जो कुछ हुआ वह शत्रुओं की इच्छा के विपरीत था और वह इस सम्मेलन के आयोजन पर प्रभाव नहीं डाल सके।
इन शत्रुओं की ओर से लगाए गये सभी प्रतिबंधों का यह उद्देश्य था कि वह ईरानी जनता को अपनी राह पर आगे बढ़ने के मामले में असंमजस में ग्रस्त कर दें। ईरान की जनता और व्यवस्था में दरार डाल दें, लोगों में निराशा फैलाएं किंतु ईरानी जनता ने क्रांति की वर्षगांठ के अवसर पर इस्लाम और क्रांति के प्रति जिस प्रकार से अपनी भावनाओं का प्रदर्शन किया वह उनके मुंह पर एक करारा तमांचा था।
सुरक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने बहुत प्रयास किये जिसे विस्तार पूर्वक देश के अधिकारियों ने बताया है किंतु इस क्षेत्र में भी उन्हें सफलता नहीं मिली। राजनीतिक क्षेत्र में भी उन्होंने ईरान की शक्ति का पुनः अनुभव किया यहां तक कि उन्हें विवश होकर यह स्वीकार करना पड़ा कि ईरान की उपस्थिति के बिना क्षेत्र की किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं है।
ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी शासन के आक्रमण के मामले में भी रणक्षेत्र के पीछे इस्लामी गणतंत्र ईरान की शक्तिशाली उपस्थिति इस बात का कारण बनी कि स्वंय उन्होंने ने स्वीकार किया कि वे फिलिस्तीनी जियालों के सामने पराजित हो गये हैं, यह उन्होंने कहा और इस बात पर बल दिया कि यदि ईरान की शक्ति न होती तो फिलिस्तीनी संघर्षकर्ता ८ दिवसीय युद्ध में इस्राईल को घुटने टेकने पर विवश नहीं कर पाते।
उनके प्रयास प्रभावहीन नहीं रहे प्रतिबंध प्रभावहीन नहीं रहे किंतु इसके साथ ही एक बहुत बड़ी सकारात्मक घटना घटी और वह यह कि इन प्रतिबंधों से ईरानी राष्ट्र की असीम क्षमताओं व योग्यताओं का प्रदर्शन हो गया और देश की संभावनाएं उजागर हो गयीं।
पिछले वर्ष की घटनाओं से हमें बहुत से पाठ मिलते हैं एक पाठ तो यह है कि एक जीवित राष्ट्र शत्रुओं की धमकियों और दबावों से कदापि घुटने नहीं टेकता। हमारे लिए और ईरान के मामलों पर नज़र रखने वाले सभी के लिए यह स्पष्ट हो गया कि जो चीज़ एक राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण होती है वह अपनी योग्यताओं पर भरोसा , ईश्वर पर विश्वास, आत्मविश्वास और शत्रु पर भरोसा न करना है। यह वह चीज़ें हैं जो किसी भी राष्ट्र को आगे बढ़ा सकती हैं। पिछला वर्ष हमारे लिए एक युद्धाभ्यास था। युद्धाभ्यासों में सेना, अपनी शक्ति और कमज़ोरियों दोनों को समझती और कमज़ोरियों को दूर करती है।
हमारे लिए एक अन्य पाठ यह था कि हमारे देश की नींव बहुत मज़बूत है जब आधार मज़बूत हों तो शत्रुतओं के षडयंत्रों का प्रभाव बहुत कम हो जाता है और यदि दूरदर्शिता से काम लिया जाए तो खतरे अवसरों में बदल जाते हैं। निश्चित रूप से अर्थ व्यवस्था एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और मैंने निरंतर कई वर्षों तक उस पर बल दिया है किंतु महत्वपूर्ण विषय केवल अर्थ व्यवस्था ही नहीं है, देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण है, जनता का स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है, देश की प्रगति महत्वपूर्ण है और यह हर चीज़ का आधार है यदि किसी देश में प्रगति हो रही हो तो फिर उसके बाद के सारे काम सरल हो जाते हैं। देश के लिए स्वाधीनता व राष्ट्रीय प्रतिष्ठा महत्वपूर्ण है। किसी का पिट्ठू न होना महत्वपूर्ण है।
हमारी जनता ने अपनी प्रगति से यह सिद्ध कर दिया कि अमरीका की छत्रछाया में न रहने का अर्थ पिछड़ापन नहीं होता। यह बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु है। विश्व शक्तियां, विश्ववासियों के सामने यह सिद्ध करना चाहती हैं कि यदि वे अच्छा जीवन चाहते हैं यदि वे प्रगति करना चाहते हैं तो उन्हें हमारी छत्रछाया में आना चाहिए। ईरानी राष्ट्र ने सिद्ध कर दिया है कि यह दावा झूठ है। हमारे राष्ट्र ने यह सिद्ध कर दिया कि अमरीका और विश्व शक्तियों पर निर्भर न होना न केवल यह कि पिछड़ेपन का कारण नहीं है बल्कि प्रगति का कारण है और इसका स्पष्ट प्रमाण यह है कि आप इस्लामी गणतंत्र ईरान के गत तीस वर्षों की अमरीकी छत्रछाया में रहने वाले देशों के गत तीस वर्षों से तुलना करें, इन देशों ने हर वर्ष २ -३ अरब डालर की अमरीकी सहायता पर ही संतोष कर रखा है और पूरी तरह से अमरीका के सामने झुके हुए हैं, देखें वह लोग कहां हैं? हम कहां हैं? एसे बहुत से देश हैं जिन्हों ने स्वंय को अमरीका की दुम में बांध रखा है और उसके पीछे चलते हैं।
हमने सदैव शत्रुओं से पहले सोचा है जिसका एक उदाहरण तेहरान अनुसंधान केन्द्र के लिए आवश्यक बीस प्रतिशत संवर्धित ईंधन है। दवाएं बनाने वाले इस छोटे से केन्द्र को बीस प्रतिशत संवर्धित ईंधन की आवश्यकता थी और हम बीस प्रतिशत संवर्धित ईंधन नहीं बनाते थे और सदैव आयात करते थे। हमारे शत्रुओं ने इस अवसर से लाभ उठाने की योजना बनायी और इस राष्ट्रीय आवश्यकता की पूर्ति को बाधित करना चाहा ताकि इस प्रकार से वे अपनी इच्छाएं हम पर थोप सकें। हमारे युवाओं ने हमारे वैज्ञानिकों ने संवेदनशील चरण आने से पूर्व ही बीस प्रतिशत संवर्धित ईंधन तैयार करने में सफलता प्राप्त कर ली। हमारे विरोधी सोच भी नहीं सकते थे कि हम यह काम कर लेंगे किंतु देश के अधिकारियों ने सही समय पर इस आवश्यकता पर ध्यान दिया, काम किया और ईरानी योग्यताएं विकसित हो गयीं और यह काम सफलता से सपंन्न हो गया जबकि हमारे शत्रु इस प्रतीक्षा में थे कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, गिड़गिड़ा कर उनसे बीस प्रतिशत संवर्धित ईंधन मांगेगा किंतु ईरान ने कहा कि हम ने बीस प्रतिशत संवर्धित ईंधन देश के भीतर ही तैयार कर लिया है और हमें तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है। यदि हमारे वैज्ञानिक यह काम न करते तो आज हमें गिड़गिड़ाकर, याचना करके, बढ़ी रक़म के साथ उन लोगों के सामने खड़े होना पड़ता जो हमारे मित्र नहीं हैं।
देश की एक आवश्यकता प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था है जिसे हम ने प्रस्तुत किया था। इस प्रकार की अर्थ व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण तत्व अर्थ व्यवस्था का मज़बूत होना है। अर्थ व्यवस्था को मज़बूत होना चाहिए और शत्रुओं के षडयंत्रों का सामना करने की क्षमता उसमें होनी चाहिए।
दूसरा महत्वपूर्ण विषय यह है कि अमरीकी निरंतरता के साथ और विभिन्न मार्गों से हमें यह संदेश देते हैं कि आएं परमाणु मामले पर वार्ता करते हैं। हमें भी संदेश भेजते हैं और अंतरराष्ट्रीय संचार माध्यमों में भी यही बात करते हैं। अमरीका के उच्च व मध्यम श्रेणी के नेताओं ने बारम्बार कहा है कि आएं गुट पांच धन एक और ईरान की परमाणु वार्ता के साथ ही अमरीका व ईरान एक दूसरे से वार्ता करें। मुझे इस प्रकार की वार्ता से कोई आशा नहीं है, क्यों? क्योंकि अतीत के अनुभवों से पता चलता है कि वार्ता अमरीकी महानुभावों की दृष्टि में यह नहीं है कि हम किसी तार्किक परिणाम तक पहुंचने के लिए एक साथ बैठें वार्ता से उनका आशय यह नहीं है, वार्ता से उनका आशय यह है कि आएं बैठें बातें करें यहां तक कि आप हमारी बात स्वीकार कर लें! इसी लिए हम ने सदैव कहा है कि इसे वार्ता नहीं कहते, यह थोपना है और ईरान किसी को अपने ऊपर कुछ भी थोपने की अनुमति नहीं देगा। मैं इस प्रकार के बयानों से आशा नहीं रखता किंतु विरोध भी नहीं करता इस संदर्भ में कुछ बातें स्पष्ट करना चाहिए।
पहली बात तो यह है कि अमरीकी निरंतरता के साथ संदेश भेजते हैं कि हम इस्लामी व्यवस्था को बदलना नहीं चाहते , हम से वह यही कहते हैं। इसका उत्तर यह है कि हमें इस बात की चिंता नहीं है कि आप इस्लामी व्यवस्था को बदलने का प्रयास करें या न करें कि जो अब आग्रह कर रहे हैं कि हम व्यवस्था नहीं बदलना चाहते। जब आप ईरान की इस्लामी व्यवस्था बदलना चाहते थे और खुल कर इसकी घोषणा भी की थी तब भी कुछ नहीं कर पाए थे और भविष्य में भी कुछ नहीं कर पाएंगे।
दूसरी बात यह है कि अमरीकी निरंतर यह भी संदेश देते हैं कि हम वार्ता के अपने सुझाव में सच्चे हैं अर्थात सच्चाई के साथ आप से वार्ता करना चाहते हैं अर्थात वे हम से तार्किक वार्ता करना चाहते हैं , इसके उत्तर में हम कहेंगे कि हम ने आप से बारम्बार कहा है कि हम परमाणु शस्त्र बनाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं, आप कहते हैं कि हमें विश्वास नहीं है, तो फिर हम क्यों आप की बात स्वीकार करें? जब आप लोग हमारी तार्किक और सच्ची बात को सही मानने पर तैयार नहीं हैं तो हम क्यों आप की बात सही स्वीकार करें जबकि कई बार आप की बातों का गलत होना भी सिद्ध हो चुका है? हम यह समझते हें कि अमरीकियों की ओर से वार्ता का प्रस्ताव विश्व जनमत को धोखा देने के लिए अमरीकी रणनीति है यदि एसा नहीं है तो आप सिद्ध करें , सिद्ध कर सकते हैं? तो सिद्ध करें। यहीं पर मैं यह भी कहना चाहता हूं कि उनके प्रचारिक हथकंडों में से यह भी है कि कभी यह अफवाह उड़ाई जाती है कि वरिष्ठ नेतृत्व की ओर से कुछ लोगों ने अमरीका से वार्ता की है यह भी एक प्रचारिक हथकंडा और पूर्ण रूप से झूठ है। अभी तक वरिष्ठ नेतृत्व की ओर से किसी ने अमरीकियों से वार्ता नहीं की है।
तीसरी बात यह है कि अनुभव व परिस्थितियों से हम यह समझते हैं कि अमरीका परमाणु वार्ता के अंत का इच्छुक नहीं है। अमरीकी यह नहीं चाहते कि परमाणु वार्ताएं समाप्त हो जाएं और परमाणु समस्या का समाधान हो जाए अन्यथा यदि वे इस समस्या के समाधान के इच्छुक होते तो समाधान अत्याधिक निकट व सरल होता। ईरान परमाणु मामले में केवल यह चाहता है कि यूरेनियम के संवर्धन के उसके कानूनी अधिकार को स्वीकार किया जाए और विभिन्न प्रकार के दावे करने वाले देश यह स्वीकार करें कि ईरानी राष्ट्र को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए अपने देश में अपने हाथों यूरेनियम संवर्धन का अधिकार है क्या यह बहुत बड़ी मांग है? यह वही बात है जो हमने सदैव कही किंतु वे यही नहीं चाहते।
उनका कहना है कि हमें इस बात की चिंता है कि आप परमाणु शस्त्रों के उत्पादन की ओर न बढ़ जाएं यह कहने वाले कुछ ही देश हैं जिनका नाम मैं ले चुका हूं यह लोग स्वंय को विश्व समुदाय कहते हैं ! कहते हैं विश्व समुदाय को चिंता है। जी नहीं! विश्व समुदाय को कोई चिंता नहीं है । विश्व के अधिकांश देश, ईरान के साथ हैं और हमारी मांग का समर्थन करते हैं क्योंकि हमारी मांग कानूनी है। अमरीकी यदि समस्या का निवारण चाहते तो यह बहुत सरल मार्ग था वे यूरेनियम संवर्धन के ईरानी राष्ट्र के अधिकार को स्वीकार कर सकते थे और अपनी चिंता दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी के नियमों का कड़ाई से पालन करते हमने कभी भी उसके नियमों और निरीक्षण का विरोध नहीं किया। हम जब भी समाधान के निकट पहुंचते हैं अमरीकी कोई न कोई बाधा खड़ी कर देते हैं जिसके समाधान की प्रक्रिया रूक जाती है। मेरे विचार में उनका उद्देश्य यह है कि यह मामला बाकी रहे ताकि उसे दबाव के लिए प्रयोग किया जाए और उनके शब्दों में इसका उद्देश्य ईरानी राष्ट्र को अपाहिज बनाना है किंतु शत्रु सपने देखते रहें ईरानी राष्ट्र कभी अपाहिज नहीं होगा।
चौथी और इस संदर्भ में अंतिम बात यह है कि यदि अमरीकी सच्चाई के साथ मामला ख़त्म करना चाहते हैं तो मैं समाधान पेश करता हूं। समाधान यह है कि अमरीकी, इस्लामी गणतंत्र ईरान से शत्रुता ख़त्म करें, वार्ता का प्रस्ताव, तार्किक व ठोस बात नहीं है , सही बात यह है यदि वे यह चाहते हैं कि हमारे मध्य समस्याएं न हों जैसा कि वह कहते हैं कि हम चाहते हैं कि अमरीका व ईरान के मध्य कोई समस्या न रहे, तो ईरान के प्रति शत्रुता का अंत कर दें। ३४ वर्षों से अमरीका की विभिन्न सरकारों ने हमारे विरुद्ध विभिन्न प्रकार की शत्रुताएं की। हमारे हर छोटे बड़े शत्रु का समर्थन किया , ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध हर हथकंडा प्रयोग किया और ईश्वर की कृपा से हर बार और हर क्षेत्र में उन्हें विफलता मिली इस लिए मैं अमरीकी अधिकारियों को समझाता हूं कि यदि वह तार्किक समाधान चाहते हैं तो तार्किक समाधान यह है कि वे अपनी नीति में सुधार करें, अपने काम सही करें और ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध शत्रुता समाप्त करें।
एक अन्य विषय है जिसका मैं संक्षेप में उल्लेख करना चाहता हूं और यह चुनाव का अत्यधिक महत्वपूर्ण विषय है। हमारे देश में चुनाव राजनीतिक शौर्य गाथा है। यह हमारी व्यवस्था की प्रतिष्ठा है। यह इस्लामी प्रजातंत्र का प्रदर्शन है यह जो हम ने पश्चिम के उदारवादी प्रजातंत्र के मुकाबले में इस्लामी प्रजातंत्र की विचारधारा पेश की है उसका प्रदर्शन चुनावों में जनता की भागीदारी है। शत्रुओं ने योजना बनायी है कि जनता मतदान केन्द्रों तक न पहुंचे और लोगों में निराशा फैलायी जाए। सदैव ही चुनाव के समय चाहे संसदीय चुनाव हो या कोई और विशेष कर राष्ट्रपति चुनाव के अवसर पर शत्रुओं का यही प्रयास रहा है कि चुनाव में उत्साह न हो यही कारण है कि चुनाव हमारे देश के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण है। मैं चुनाव के संदर्भ में कुछ विषयों का वर्णन करता हूं।
पहली बात यह है कि चुनाव में जनता की व्यापक भागीदारी अत्याधिक महत्वपूर्ण है और देश में चुनावी उत्साह और मतदान केन्द्रों पर जनता की भारी उपस्थिति शत्रुओं की धमकियों को प्रभावहीन बना सकती है, उन्हें निराश कर सकती है और देश की सुरक्षा को सुनिश्चित बना सकती है।
दूसरी बात यह है कि चुनाव में इस्लामी व्यवस्था में विश्वास रखने वाले विभिन्न प्रकार की विचारधारा के गुटों और लोगों को भाग लेना चाहिए यह सब का अधिकार भी है और राष्ट्रीय कर्तव्य भी।
तीसरी बात यह है कि अन्ततः जनता के मत निर्णायक हैं। जो चीज़ महत्वपूर्ण है वह आप की सूझ बूझ व मत है। आप लोग स्वंय जांच करें, जानकार व विश्वस्त लोगों से पूछे ताकि सबसे अधिक योग्य प्रत्याशी का पता चल सके। मेरा एक मत है मैं भी आम जनता की भांति एक मत रखता हूं और जब तक मैं वोट डालूंगा नहीं किसी को भी उसके बारे में पता नहीं चलेगा। यह सही नहीं होगा यदि कोई कहे कि वरिष्ठ नेता अमुक व्यक्ति को चाहते हैं, यदि ऐसा कोई कहता है तो यह सही नहीं है।
चौथी बात यह है कि चुनाव का विषय हो या कोई अन्य विषय सब को कानून का पालन करना चाहिए, कानून के आगे नतमस्तक रहना चाहिए।
अंतिम बात यह कि यह सब जान लें कि हमें आगामी राष्ट्रपति में जो विशेषताएं चाहिए वह आज के राष्ट्रपति की सभी विशेषताएं हैं और बिना वर्तमान कमज़ोरियों के। इस बात पर सभी ध्यान दें। हर राष्ट्रपति को अपने पहले वाले राष्ट्रपति के गुणों से संपन्न तथा उसकी कमज़ोरियों से दूर रहना चाहिए। हरेक में कुछ गुण होते हैं और कुछ कमज़ोरियां हम सब एसे हैं। हे ईश्वर इस देश के लिए जो भी हितकर हो उसे प्रदान कर!