ईरान के भूतपूर्व विदेशमंत्री की नज़र से फ़ार्स की खाड़ी की तटवर्ती सरकारों की रणनीतिक ग़लतियां

Rate this item
(0 votes)
ईरान के भूतपूर्व विदेशमंत्री की नज़र से फ़ार्स की खाड़ी की तटवर्ती सरकारों की रणनीतिक ग़लतियां

 जवाद ज़रीफ़ कहते हैं कि सुरक्षा कोई ख़रीदने वाली चीज़ नहीं है।

ज़रीफ़ कहते हैं कि अरब देशों के मन में अभी भी यह बेहूदा ख़याल बाक़ी है कि वे अवैध ज़ायोनी शासन के साथ संबन्ध सामान्य करके मध्यपूर्व में उनसे अपनी सुरक्षा ख़रीद सकते हैं।

ईरान के भूतपूर्व विदेशमंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने फ़ार्स की खाड़ी से संबन्धित भू-राजनैतिक सम्मेलन में बोलते हुए फ़िलिस्तीन के युद्ध से संबन्धित कुछ घटनाओं की समीक्षा की।

ज़रीफ़ ने इस ओर संकेत किया कि सुरक्षा कोई ख़रीदने वाली चीज़ नहीं है।  फ़ार्स की खाड़ी की तटवर्ती सरकारों के दिमाग़ में लंबे समय से यह बेहूदा विचार पनप रहा है कि सुरक्षा को ख़रीदा जा सकता है।  इसी आधार पर उन्होंने थोपे गए युद्ध के दौरान सद्दाम का समर्थन किया था।  जबकि सद्दाम उनका विश्वसनीय नहीं रहा और उसने कुवैत तथा सऊदी अरब पर हमला किया।

उन्होंने बल देकर कहा कि परमाणु समझौते का सऊदी अरब और ज़ायोनी शासन की ओर से विरोध करने का मुख्य कारण यही था कि वे चाहते थे कि अमरीका, मध्यपूर्व में अपनी उपस्थति को सुरक्षित करे।

ईरान के भूतपूर्व विदेशमंत्री ने इस ओर भी संकेत किया कि सद्दाम के बाद अरब शासक इस चक्कर में थे कि वे अमरीका से अपनी सुरक्षा ख़रीदें।  उन्होंने कहा कि हक़ीक़त यह है कि विश्व में चीन के बढ़ते प्रभाव के दृष्टिगत अमरीका, अब मध्यपूर्व में अपना प्रभाव फैलाने के चक्कर में नहीं है।  अब वह एक प्रकार से यह चाहता है कि इसको वह इस्राईल के हवाले कर दे।  यही कारण है कि अरब सरकारें यह सोच रही हैं कि अवैध ज़ायोनी शासन के साथ अपने संबन्धों को विस्तृत करके मध्यपूर्व में अपनी सुरक्षा को ज़ायोनियों से ख़रीदें।  हालांकि पूरे इतिहास मे कहीं भी एक स्थान पर यह नहीं मिलता कि इस्राईलियों ने किसी का समर्थन किया हो।

सऊदी अरब के एक पूर्व शासक के साथ अमरीका के एक युद्धप्रेमी भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश

ज़ायोनी शासन के साथ छह दिवसीय युद्ध में अरब सरकारों की पराजय की ओर संकेत करते हुए ज़रीफ़ ने स्पष्ट किया कि ज़ायोनी और उनके समर्थक, सात महीने से प्रतिरोध के मुक़ाबले में ग़ज़्ज़ा में कुछ भी नहीं कर पाए हैं।

अब हालत यह हो गई है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी हमास के विनाश और ग़ज़्ज़ावासियों को किसी अन्य देश में भेजने के बारे में बात नहीं कर रहा है।  इस समय तो यह स्थति है कि न केवल विश्व जनमत में इस्राईल की निंदा की जा रही है बल्कि और अब तो ग़ज़्ज़ा युद्ध, प्रतिरोध के पक्ष में पलटता जा रहा है।

Read 73 times