वार्नर ब्रदर्स कंपनी में टीवी सीरियल के रूप में "300" नामक ईरान विरोधी फ़िल्म बनाने पर काम शुरु किया जो अभी अपने पहले चरण में है।
वैरायटी की रिपोर्ट के अनुसार, हॉलीवुड एक बार फिर नस्लभेदी फ़िल्म "300" से लिए गए ग़ैर-ईरानी विषयों पर काम कर रहा है और वेब सीरीज़ के रूप में इसे पेश करने का इरादा रखता है।
इस बेबसीरीज़ की कहानी किस के इर्दगिर्द घूमती है इस बारे में अभी तक सटीक ब्योरा हासिल नहीं हो सका है लेकिन कहा जाता है कि यह वेबसीरिज़ 2006 की नफ़रती फ़िल्म "300" का प्रीक्वल है।
इस परियोजना के लिए अभी तक कोई लेखक या मंच तय नहीं किया गया है और बातचीत चल रही है। "300" के निर्देशक और लेखक ज़ैक स्नाइडर हैं जबकि वह वेबसीरिज़ के डायरेक्टर और प्रोड्युसर के लिए बातचीत कर रहे हैं।
डेबोरा स्नाइडर जो "300" के एग्ज़क्टिव प्रोड्युसर थे, एग्ज़क्टिव प्रोड्युसर के रूप में वापसी करेंगे जबकि वेबसीरिज बनाने के लिए अन्य फ़िल्म निर्माताओं से भी बातचीत चल रही है।
"300" को इसी नाम के ग्राफ़िक उपन्यास से लिया गया और "फ्रैंक मिलर" और "लिन वर्ली" ने इसको फ़िल्मी रूप दिया। यह फ़िल्म 1962 की फ़िल्म "300 स्पार्टन्स" से भी प्रेरित है।
फ़िल्म की कहानी इस तरह से है कि स्पार्टा के राजा लियोनिदास, ईरान के राजा ज़ेरक्स प्रथम की बहुत बड़ी सेना के खिलाफ चुनिंदा सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी का नेतृत्व करता है।
इस फ़िल्म में जेरार्ड बटलर ने लियोनिदास का किरदार अदा किया है जबकि रोड्रिगो सेंटोरो ने ज़ेरक्स की भूमिका निभाई है।
2014 में बनी 300: राइज़ ऑफ़ एन एम्पायर, असली फ़िल्म की अगली कड़ी थी जो मिलर के ग्राफ़िक उपन्यास ज़ेरक्से पर आधारित थी। स्नाइडर ने फिर से इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखी लेकिन इसे निर्देशित नहीं किया।
फिल्मों को सीरियल्स में बदलना हालिया वर्षों में हॉलीवुड के मुख्य विचारों में रहा है।
फ़िल्म "300" को इसकी निर्माण तकनीकों के लिए काफ़ी सराहा गया था लेकिन इसे आइटम के लेहाज़ से बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा। फिल्म समीक्षक रोजर एबर्ट ने इस फ़िल्म की आलोचना करते हुए कहा कहा: फिल्म में किरदार एक-आयामी हैं और कैरिकेचर से बहुत ज़्यादा मिलते जुलते हैं।
"रोजर एबर्ट" उन आलोचकों थे जिन्होंने इस फ़िल्म को फांसीवादी उमंगों का जश्न क़रार दिया था।
फ़िल्म मैगज़ीन "आर्ट शॉक" के ज्यूरी थॉमस विलमैन ने भी कहा: यह फ़िल्म "इराक़ युद्ध में अमेरिकी सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रोपेगैंडा फिल्म की तरह हास्यास्पद, अनाड़ी और कभी-कभी बचकानी लगती है और ऐसा लगता है यह फ़िल्म एक अपवित्र गठबंधन और एक शर्मनाक फांसीवादी मानसिकता पैदा हुई है जबकि स्पार्टन्स के ख़िलाफ ईरानियों द्वारा चलाए जाने वाले तीरों के निशानों को ग़लत होता दिखाया गया, यह सिर्फ़ स्क्रिप्ट लेखक की निर्लज्जता पर हंसी आने जैसा है।