शहीद और उसकी याद को ज़िन्दा रखना क्यों ज़रूरी

Rate this item
(0 votes)
शहीद और उसकी याद को ज़िन्दा रखना क्यों ज़रूरी

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,क़ुरआन और हदीस में शहादत की बहुत अधिक फ़ज़ीलतें बयान की गई हैं जैसे शहीद ज़िन्दा होता है उसे दूसरों की शफ़ाअत का अधिकार दिया गया है और इसी प्रकार उसके गुनाहों के माफ़ करने की शुभसूचना दी गयी है ईरान में भी शहीदों पर विशेष ध्यान दिया जाता है और यह इस्लामी गणतंत्र ईरान की एक महत्वपूर्ण नीति है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया, शहादत अल्लाह की राह में और समाज की सहायत की राह में मारे जाने की ओर संकेत करती है और हदीसों में उसे बहुत बड़ी और अच्छी मौत के रूप में याद किया गया है।

क़ुरआन और हदीस में शहदत की बहुत अधिक फ़ज़ीलतें बयान की गयी हैं जैसे शहीद ज़िन्दा होता है, उसे दूसरों की शफ़ाअत का अधिकार दिया गया है और इसी प्रकार उसके गुनाहों के माफ़ करने की शुभसूचना दी गयी है। ईरान में भी शहीदों पर विशेष ध्यान दिया जाता है और यह इस्लामी गणतंत्र ईरान की एक महत्वपूर्ण नीति है।

ईरान के एक समाचार पत्र "वतन" में जाफ़र अलियान नेजादी ने शहादत के संबंध में एक लेख लिखा है। उन्होंने इस लेख में लिखा है कि शहीदों की हमेशा याद डर, दुःख और नाउम्मीदी को रोक लेती है। इस आधार पर शहीदों के सम्मान का अर्थ प्रतिरोध को मज़बूत करना है।

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पिछले बुधवार को केहकीलूये व बुवैर अहमद प्रांत के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए राष्ट्रीय कान्फ़्रेंस की आयोजक कमेटी के सदस्यों से जो मुलाक़ात की थी और उसमें दुश्मन से मुक़ाबले के बारे में जिन बिन्दुओं को बयान किया था वह बहुत महत्वपूर्ण थे।

इस समय ईरान की जो राजनीतिक और सामाजिक स्थिति है उसके दृष्टिगत उसका अर्थपूर्ण विश्लेषण किया जा सकता है।

शायद कहा जा सकता है कि दुश्मन की एक सबसे कम ख़र्च वाली चाल यह है कि सामने वाले पक्ष में यह भावना उत्पन्न कर देना कि दुश्मन बहुत ताक़तवर है और उसके मुक़ाबले में तुम बहुत कमज़ोर हो। इंसान में कमज़ोर होने की भावना उस समय पैदा होती है जब इंसान डर जाये, वह दुःखी हो जाये और उसमें निराशा की भावना पैदा हो जाये। अगर ये तीनों चीज़ें किसी भी तरीक़े से समाज में आ व्याप्त हो जायें तो निरंतर वे प्रतिरोध के कमज़ोर होने का कारण बनेंगी।

इस आधार पर हर समाज की स्वतंत्रता व स्वाधीनता बहुत अधिक सीमा तक शूरवीर व बहादुर लोगों के अस्तित्व पर निर्भर है। इस अर्थ में कि इन शूरवीरों को रणक्षेत्र का विजयी कहा जा सकता है क्योंकि वे सामने वाले पक्ष के विदित धौंस से नहीं डरे और पूरी बहादुरी के साथ उसके मुक़ाबले में डट गये। इसके बावजूद कुछ राष्ट्र हैं और उनके पास बहादुर और शूरवीर योद्धा भी हैं इसके बावजूद वे वर्चस्ववादियों के मुक़ाबले में घुटने टेक देते हैं।

सवाल यह उठता है कि क्यों ऐसा है? क्योंकि उनके शूरवीर इतिहास में ही रह गये और वे कोई परिवर्तन उत्पन्न नहीं कर सके।

इसके मुक़ाबले में अगर किसी राष्ट्र के पास बहादुर और शूरवीर हैं और वे हमेशा ज़िन्दा हैं तो वह राष्ट्र एक बहादुर संस्कृति की रचना कर लेगा और अपने अंदर से हर प्रकार के भय और नाउम्मीदी को ख़त्म कर देगा और वह राष्ट्र कभी भी अपने नायकों, शूरवीरों और बहादुरों को नहीं भुलायेगा और वे केवल इतिहास में नहीं रहेंगे बल्कि ज़िन्दा हैं और दूसरों को ज़िन्दा बना देंगे और अल्लाह के वादे के अनुसार बाद वाले शूरवीर की प्रतीक्षा में हैं।

शहीद, भय के समीकरण को इस प्रकार परिवर्तित कर देते हैं और भय उत्पन्न करने की दुश्मन की शैली को बातिल कर देते हैं क्योंकि शहादत बहादुरी व शूरवीरता की संस्कृति हो गयी है और स्वाभाविक रूप से जो राष्ट्र शहादतप्रेमी होता है उसे बंधक नहीं बनाया जा सकता। भय उसके अस्तित्व में नहीं घुसती है और दुश्मन के मानसिक युद्ध व कार्यवाहियों के मुक़ाबले में उसका प्रतिरोध ख़त्म नहीं होता है।

शहीदों की हमेशा याद डर, दुःख और नाउम्मीदों की टैक्टिक को भी रोक लेती है। इस दृष्टि से शहीदों के सम्मान का अर्थ प्रतिरोध को मज़बूत करना और वर्चस्ववाद के मुक़ाबले में राष्ट्रीय स्वाधीनता की निरंतर व सदैव रक्षा करना है।

 

 

 

 

 

Read 72 times