हम यहाँ पर अपने प्रियः अध्ययन कर्ताओं के लिए हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम के चालीस मार्ग दर्शक कथन प्रस्तुत कर रहे हैं।
1- मोमिन के तीन लक्षण
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि कोई भी उस समय तक वास्तविक मोमिन नही बन सकता जब तक वह अल्लाह रसूल व इमामों की सुन्नत को न अपना ले। और अल्लाह की सुन्नत अपने मर्म को छुपाना, रसूल की सुन्नत लोगों का सत्कार व उनके साथ विनम्रता पूर्वक व्यवहार करना, तथा इमामों की सुन्नत विपत्तियो व कठिनाईयों पर सब्र ( संतोष) करना है।
2- छुपकर पुण्य करना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि छुपकर पुण्य करने वाले को एक पुण्य के बदले सत्तर पुण्यों का फल मिलेगा।तथा बुराईयों को छुपाने वाला मुक्ति पाता है और बुराईयों को प्रकट करने वाला अपमानित होता है
3- सफ़ाई
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि सफ़ाई व पवित्रता पैगम्बरों के सदाचार का भाग है।
4- बड़ा भाई
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि बड़ा भई पिता के समान होता है।
5- मित्र व शत्रु
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि हर व्यक्ति की बुद्धि उसकी मित्र व अज्ञानता उसकी शत्रु है।
6- आदर के साथ नाम लेना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर व्यक्ति आपके सम्मुख हो तो आदर के लिए उसकी कुन्नियत के साथ बोलो व अगर वह अनुपस्थित हो तो उसका नाम लो।
7- शोर मचाना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह शोर मचाने, सम्पत्ति को नष्ट करने व अधिक प्रश्न करने को पसंद नही करता है।
8- बुद्धि के दस लक्षण
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि एक मुसलमान मे जब तक दस गुण न पायें जायें उसकी बुद्धि पूर्ण नही होती। यह दस गुण इस प्रकार हैं।
1-लोग उससे भलाई की उम्मीद रखते हों।
2-उसके दुष्कृत्यों से सुरक्षित हों।
3-वह दूसरों की थोड़ी भलाई को भी अधिक समझता हो।
4-अपनी अधिक भलाई को भी कम समझता हो।
5-दरिद्रों के अधिक प्रश्न करने से क्रोधित न होता हो।
6-अपनी पूरी आयु मे ज्ञान प्राप्ती से न थके।
7-अल्लाह के मार्ग मे दरिद्रता को समृद्धता से अधिक प्रियः रखता हो।
8-उसको अल्लाह के मार्ग मे तिरस्कार, अल्लाह के शत्रु के मार्ग मे आदर से अधिक प्रियः हो।
9- उसको गुमनामी प्रसिद्धि से अधिक प्रियः हो।
10- इसके बाद इमाम ने कहा कि दसवा गुण भी क्या गुण है। एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि वह दसवा गुण क्या है आपने उत्तर दिया कि दसवा गुण यह है कि जिसको भी देखे कहे कि यह मुझ से अधिक अच्छा व मुझ से अधिक अल्लाह से डरने वाला है।
9- इमान तक़वा व यक़ीन
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि इमान इस्लाम से एक श्रेणी ऊपर है। तथा तक़वा इमान से एक श्रेणी ऊपर है। व मनुष्य को कोई भी वस्तु विश्वास से अधिक उच्च प्रदान नही की गयी है।
10- विवाह भोज
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि विवाह के अवसर पर भोज देना सुन्नत कार्यों मे से एक है।
11- सिलहे रहम (रक्त सम्बन्धियों से सम्बन्ध रखना)
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि सिलहे रहम को स्थापित रखो चाहे वह एक घूँट पानी पिलाने के द्वारा ही हो। और सर्व श्रेष्ठ सिलहे रहम यह है कि अपने नातीयों से कष्टों को दूर करो।
12- पैगम्बरो का असलाह( हथियार)
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप को चाहिए कि पैगम्बरों का असलहा अपने पास रखो किसी ने प्रश्न किया कि पैगम्बरों का असलहा क्या है? तो आपने उत्तर दिया कि अल्लाह से दुआ।
13- सुरक्षा
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मानव पर एक ऐसा समय आयेगा कि उसमे सुरक्षा दस भागो पर आधारित होगी। जिनमे से नौ भाग लोगों से बच कर रहने मे व एक भाग चुप रहने मे है।
14- तवक्कुल
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम से प्रश्न पूछा गया कि अल्लाह पर तवक्कुल की वास्तविकता क्या है? इमाम ने उत्तर दिया कि अल्लाह के अतिरिक्त किसी से न डरना।
15- सबसे बुरा व्यक्ति
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि सबसे बुरा व्यक्ति वह है जो दूसरों की सहायता करने से रोके , अकेला खाये व अपने आश्रितो की पिटाई करे।
16- कँजूस
इमाम रिज़ा ने कहा कि कँजूस को आराम व ईर्शालु को मज़ा नही मिलता। तथा शासक वफ़ादार और झूटा संकोच शील नही होता।
17- हाथ चूमना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि किसी व्यक्ति को किसी व्यक्ति के हाथ नही चूमने चाहिए । क्योकि उसके हाथ चूमना उसके लिए नमाज़ पढ़ने के समान है।
18- इमान के भाग
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि इमान के चार भाग हैँ 1- अल्लाह पर भरोसा 2- अल्लाह के फ़ैसलों पर प्रसन्न रहना। 3- अल्लाह के आदेशों के सम्मुख समर्पित हो जाना। 4- अपने समस्त कार्यों को अल्लाह के हवाले करना।
19- श्रेष्ठ व्यक्ति
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम से प्रश्न पूछा गया कि श्रेष्ठ व्यक्ति कौन हैँ ? आपने उत्तर दिया कि वह व्यक्ति जो अच्छे कार्य करने से प्रसन्न होते हों।और जब पाप करते हों उसके लिए अल्लाह से क्षमा माँगते हों। अल्ला से सम्पत्ति मिलने पर उसका धन्यवाद करते हों। विपत्ति पड़ने पर सब्र (संतोष) करते हों तथा जब क्रोधित होते हों तो क्षमा कर देते हो।
20- भिखारी का तिरस्कार
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई मुसलमान भिखारी से मिले और उसको इस प्रकार सलाम न करे जिस प्रकार धनी लोगों को करता है तो अल्लाह क़ियामत के दिन ऐसे व्यक्ति पर क्रोधित होगा।
21- संसारिक प्रसन्नता
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम से प्रश्वन किया गया कि संसारिक प्रसन्नता क्या है ? आपने उत्तर दिया कि बड़े भवन व मित्रों की अधिकता।
22- अत्याचारी शासक
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब शासक झूट बोलने लगते हैं तो वर्षा नही होती। और जब शासक अत्याचार करने लगते हैं तो शासन अपमानित हो जाता है। और जब ज़कात नही दी जाती तो पालतु पशु मरने लगते हैं।
23- मोमिन के दुख को दूर करना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो कोई मोमिन के दुखों को दूर करेगा अल्लाह क़ियामत के दिन उसके हृदय से समस्त दुखों को दूर करेगा।
24- मोमिन को प्रसन्न करना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि वाजिब (अनिवार्य) कार्यों के बाद अल्लाह की दृष्टि मे इससे महान कोई कार्य नही कि मोमिन को प्रसन्न किया जाये।
25- सदक़ा (दान )
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि सदक़ा अवश्य दो चाहे थोड़ा ही क्यों न हो। इस लिए कि अगर सच्ची नियत से थोड़ी भी वस्तु दी जाये तो वह अल्लाह की दृष्टि मे महान है।
26- भेंट करना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि आपस मे एक दूसरे से भेंट किया करो व हाथ मिलाया करो तथा एक दूसरे से प्रेम करो व आपस मे एक दूसरे पर क्रोधित न हुआ करो।
27- कार्यों का छिपाना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने संसारिक व परलोकीय कार्यों को गुप्त रखो। क्योंकि उल्लेख हुआ है कि ऱहस्योदघाटन कुफ्र है। व उल्लेख मिलता है कि आप जिस बात को अपने शत्रु से छिपाना चाहते हो वह आपका मित्र भी न जानने पाये।
28- वचन से फिरना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मानव वचन तोड़ कर विपत्तियों से मुक्ति नही पासकता।
29- प्रसन्न चित्त
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि जनता के साथ हंसी खुशी, मित्रों के साथ आदर पूर्वक, शत्रु के साथ सावधानी पूर्वक तथा शासक के साथ भय व सावधानी पूर्वक भेंट करो।
30- कम जीविका पर प्रसन्न होना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति कम सम्पत्ति पर अल्लाह से प्रसन्न हो जाता है अल्लाह भी उसके कम पुण्यों से प्रसन्न हो जाता है।
31- बुद्धि व सदाचार
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि बुद्धि अल्लाह की ओर से एक विशेष उपहार है। और सदाचारिता बनाऐ रखना कठिनाईयों को झेलना है वह हर व्यक्ति जो कटिनाईयों के साथ सदाचार की रक्षा करता है वह सदाचारी बन जाता है। परन्तु अगर कोई परिश्रम करके बुद्धिमान बनना चाहे तो मूर्खता के अतिरिक्त किसी वस्तु मे वृद्धि न होगी।
32- जीविका के लिए प्रयास
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अपने परिवार के निर्वाह हेतू जीविका मे वृद्धि करने के लिए परिश्रम करता है, उसका फल अल्लाह के मार्ग मे युद्ध करने वाले से अधिक है।
33- क्षमा दान
इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब दो समुदाय आपस मे उलझते है तो सफलता उस समुदाय को मिलती है जो अधिक क्षमा शील होता है।
34- मुहब्बते आले मुहम्मद
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि आलि मुहम्मद(स.) की मुहब्बत पर विशवास करके अच्छे कार्यों व इबादत को न छोड़ो। और अच्छे कार्यों व इबादत पर विश्वास करके आले मुहम्मद की मुहब्बत को न छोड़ो। क्योंकि इन दोनों मे से कोई भी एक दूसरे के बिना स्वीकार नही होंगे।
35- चुप रहना
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि चुप रहना बुद्धिमत्ता के द्वारों मे से एक द्वार है। चुप रहना प्रेम को आकृषित करता है। तथा यह समस्त अच्छाईयों के लिए तर्क है।
36- कँजूसी
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि कँजूसी व्यक्ति को अपमानित करा देती है। और संसारिक वस्तुओं का प्रेम दुख दरदों का कारण बनता है। सबसे अच्छी आदत अच्छे कार्य करना, विपत्ति मे घिरे लोगों की सहायता करना, व उम्मीदवारों की उम्मीद को पूरा करना है।
37- सर्व श्रेष्ठ बुद्धि मत्ता
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि सर्व श्रेष्ठ बुद्धिमत्ता व्यक्ति का अपनी आत्मा से परिचित होना है।
38- ज्ञान
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह उस व्यक्ति पर दया करे जो हमारे अमूर को जीवित करे। प्रश्न पूछा गया कि आपके अमूर को किस प्रकार जीवित किया जाये ? आपने उत्तर दिया कि हमारे ज्ञान को सीख कर दूसरों को सिखाया जाये।
39- इमान
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि इमान वाजिब कार्यों (अवश्यक)के पालन व हराम(निष्द्ध) कार्यों से बचने को कहते हैं। दूसरे शब्दों मे इमान मुख से स्वीकार करने, हृदय मे विश्वास रखने और शारीरिक अंगों से कार्य करने का नाम है।
40- अज्ञा पालन
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर अल्लाह मानव जाति को नरक व स्वर्ग से न डराता तब भी उसने जो मानव पर अनुकम्पा व उपकार किये हैं और बिना किसी अधिकार के उनको जो सम्पत्तियाँ प्रदान की हैं इन का तक़ाज़ा यही था कि मानव उसकी अज्ञा का पालन करे व अवज्ञा न करे।