इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के बचपन का एक वाके़या (2)

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इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के बचपन का एक वाके़या (2)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के बचपन का एक वाके़या (2)

अल्लामा मजलिसी रक़मतराज़ है कि एक दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) जब कि आपका बचपन था बीमार हुये। हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया, बेटा ! अब तुम्हारी तबीयत कैसी है और तुम कोई चीज़ चाहते हो तो बयान करो ताकि मैं तुम्हारी ख़्वाहिश के मुताबिक़ उसे फ़राहम करने की कोशिश करूँ। आप ने अर्ज़ कि बाबा जान अब ख़ुदा के फ़ज़ल से अच्छा हूँ। मेरी ख़्वाहिश सिर्फ़ यह है कि ख़ुदा वन्दे आलम मेरा शुमार उन लोगों में करे जो परवरदिगारे आलम के क़ज़ा व क़दर के खि़लाफ़ कोई ख़्वाहिश नहीं रखते। यह सुन कर इमाम हुसैन (अ.स.) खु़श व मसरूर हो गये और फ़रमाने लगे बेटा तुम ने बड़ा मसर्रत अफ़ज़ा और मारेफ़त ख़ेज़ जवाब दिया है। तुम्हारा जवाब बिल्कुल हज़रत इब्राहीम (अ.स.) के जवाब से मिलता जुलता है। हज़रत इब्राहीम (अ.स.) को जब मिनजनीक़ में रख कर आग की तरफ़ फेंका गया था और आप फ़ज़ां में होते हुए आग की तरफ़ जा रहे थे तो हज़रत जिब्राईल (अ.स.) ने आप से पूछा था ‘‘ हल्लक हाजतः ’’ आपकी कोई हाजत व ख़्वाहिश है? उस वक़्त उन्होंने जवाब दिया था, ‘‘ नाअम इमा इलैका फ़ला ’’ बेशक मुझे हाजत है लेकिन तुम से नहीं, अपने पालने वाले से है। (बेहारूल अनवार जिल्द 11 सफ़ा 21 तबा ईरान)

 

 

 

आपके अहदे हयात के बादशाहाने वक़्त

आपकी विलादत बादशाहे दीनो ईमान हज़रत अली (अ.स.) के अहदे असमत में हुई। फिर इमाम हसन (अ.स.) का ज़माना रहा, फिर बनी उमय्या की ख़ालिस दुनियावी हुकूमत हो गई। सुलेह इमाम हसन (अ.स.) के बाद फिर 60 हिजरी तक माविया बिन अबी सुफ़ियान बादशाह रहा। उसके बाद उसका फ़ासिक़ व फ़ाजिर बेटा यज़ीद 64 हिजरी तक हुक्मरां रहा। 64 हिजरी में माविया बिन यज़ीद बिन माविया और मरवान बिन हकम हाकिम रहे। 64 हिजरी में वलीद बिन अब्दुल मलिक ने हुक्मरानी की और उसी ने 94 हिजरी में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को ज़हरे दग़ा से शहीद कर दिया। (तारीखे़ आइम्मा सफ़ा 392 व सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 12 व नूरूल अबसार सफ़ा 128)

 

 

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का अहदे तफ़ूलियत और हज्जे बैतुल्लाह

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि इब्राहीम बिन अदहम का बयान है कि मैं एक मरतबा हज के लिये जाता हुआ क़ज़ाए हाजत की ख़ातिर क़ाफ़िले से पीछे रह गया। अभी थोड़ी ही देर गुज़री थी कि मैंने एक नौ उम्र लड़के को इस जंगल में सफ़रे पामा देखा। उसे देख कर फिर ऐसी हालत में कि वह पैदल चल रहा था और उसके साथ कोई सामान न था और न उसका कोई साथी था। मैं हैरान हो गया फ़ौरन उसकी खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ। ‘‘ साहब ज़ादे ’’ यह लक़ो दक़ सहरा और तुम बिल्कुल तने तन्हा, यह मामेला क्या है ज़रा मुझे बताओ? तो सही कि तुम्हारा ज़ादे राह और तुम्हारा राहेला कहां है और तुम कहां जा रहे हो?  इस नौ ख़ेज़ ने जवाब दिया।

 

ज़ादी तक़वा व राहलती रजाली व क़सादी मौलाया

 

मेरा ज़ादे राह तक़वा और परहेज़गारी है मेरी सवारी मेरे दोनों पैर हैं और मेरा मक़सूद मेरा पालने वाला है और मैं हज के लिये जा रहा हूँ। मैंने कहा कि आप तो बिल्कुल कमसिन हैं, हज आप पर वाजिब नहीं है। उस नौ ख़ेज़ ने जवाब दिया। बेशक तुम्हारा कहना दुरूस्त है लेकिन ऐ शेख़ मैं देखता हूँ कि मुझसे छोटे छोटे बच्चे भी मर जाते हैं इस लिये हज को ज़रूरी समझता हूँ कि कहीं ऐसा न हो कि इस फ़रीज़े की अदाएगी से पहले मर जाऊँ। मैंने पूछा ऐ साहब ज़ादे तुम ने खाने का क्या इंतेज़ाम किया है देख रहा हूँ कि तुम्हारे साथ खाने का कोई इन्तेज़ाम नहीं है। उसने जवाब दिया। ऐ शेख़ जब तुम किसी के यहां मेहमान जाते हो तो खाना अपने हमराह ले जाते हो? मैंने कहा नहीं। फिर उसने फ़रमाया सुनो, मैं तो ख़ुदा का मेहमान हो कर जा रहा हूँ खाने का इन्तेज़ाम उसके ज़िम्मे है। मैंने कहा इतने लम्बे सफ़र को पैदल क्यो कर तय करोगे। उसने जवाब दिया कि मेरा काम कोशिश करना है और ख़ुदा का काम मंज़िले मक़सूद तक पहुँचाना है।

 

हम अभी बाहमी गुफ़्तुगू में ही मसरूफ़ थे कि नागाह एक ख़ूब सूरत जवान सफ़ैद लिबास पहने हुये आ पहुँचा और उसने इस नौ ख़ेज़ को गले से लगा लिया। यह देख कर मैंने उस जवाने राना से दरयाफ़्त किया यह नौ उम्र फ़रज़न्द कौन है? उस नौजवान ने कहा कि यह हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बिन इमाम हुसैन (अ.स.) बिन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) हैं। यह सुन कर मैं उस जवाने राना के पास से इमाम की खि़दमत में हाज़िर हुआ और माज़ेरत ख़्वाही के बाद उनसे पूछा कि यह खूब सूरत जवान जिन्होंने आपको गले से लगाया यह कौन हैं? उन्होंने फ़रमाया यह हज़रते खि़ज्र नबी (अ.स.) हैं। उनका फ़र्ज़ है कि रोज़ाना हमारी ज़्यारत के लिये आया करें। उसके बाद मैंने फिर सवाल किया और कहा कि आखि़र आप इस अज़ीम और तवील सफ़र को बिला ज़ाद और राहेला क्यों कर तय करेंगे। तो आपने फ़रमाया कि मैं ज़ाद और राहेला सब कुछ रखता हूँ और वह यह चार चीज़े हैं। 1. दुनिया अपनी तमाम मौजूदात समेत खुदा की ममलेकत है। 2. सारी मख़्लूक़ अल्लाह के बन्दे हैं। 3. असबाब और अरज़ाक़ ख़ुदा के हाथ में हैं। 4. क़ज़ाए खुदा हर ज़मीन में नाफ़िज़ है। यह सुन कर मैंने कहा ख़ुदा की क़सम आप ही का ज़ाद व राहेला सही तौर पर मुक़द्दस हस्तियों का सामाने सफ़र है। (दमए साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 437)

 

उलेमा का बयान है कि आपने सारी उम्र में 25 (पच्चीस) हज पा पियादा किये हैं। आपने सवारी पर जब भी सफ़र किया है अपने जानवर को एक कोड़ा भी नहीं मारा।

 

 

 

आपका हुलिया ए मुबारक

इमाम शिब्लंजी लिखते हैं कि आपका रंग गन्दुम गूँ (सांवला) और क़द मियाना था। आप दुबले पतले क़िस्म के इंसान थे। (नूरूल अबसार सफ़ा 126 व अख़बारूल अव्वल सफ़ा 109)

 

मुल्ला मुबीन तहरीर फ़रमाते हैं कि आप हुसनो जमाल, सूरतो कमाल में निहायत ही मुम्ताज़ थे। आपके चेहरे मुबारक पर जब किसी की नज़र पड़ती थी तो वह आपका एहतेराम करने और आपकी ताज़ीम करने पर मजबूर हो जाता था। (वसीलतुन नजात सफ़ा 219)

 

मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई रक़मतराज़ हैं कि आप साफ़ कपड़े पहनते थे और जब रास्ता चलते थे तो निहायत ख़ुशू के साथ राह रवी में आपके हाथ ज़ानू से बाहर नहीं जाते थे। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 226 व सफ़ा 264)

 

 

 

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की शाने इबादत

जिस तरह आपकी इबादत गुज़ारी में पैरवी ना मुम्किन है इसी तरह आपकी शाने इबादत की रक़मतराजी़ भी दुश्वार है। एक वह हस्ती जिसका मक़सद माबूद की इबादत और ख़ालिक की मारेफ़त हो और जो अपनी हयात का मक़सद इताअते ख़ुदा वन्दी ही को समझता हो और इल्मो मारेफ़त में हद दरजा कमाल रखता हो उसकी शाने इबादत को सतेह क़िरतास (क़लम से नहीं लिखा जा सकता) पर क्यांे कर लाया जा सकता है और ज़बाने क़लम इसकी तरजुमानी में किस तरह कामयाबी हासिल कर सकती है। यही वजह है कि उलेमा की बे इन्तेहा काहिशो काविश के बा वजूद आपकी शाने इबादत का मुज़ाहेरा नहीं हो सका। ‘‘ क़द बलिग़ मिनल इबादतः मअलम बलीग़ः अहादो ’’ आप इबादत की उस मंज़िल पर फ़ायज़ थे जिस पर कोई भी फ़ायज़ नहीं हुआ। (दमए साकेबा सफ़ा 439)

 

इस लिससिले में अरबाबे इल्म और साहेबाने क़लम जो कुछ कह और लिख सके हैं उनमें से बाज़ वाके़यात व हालात यह हैं।

 

 

 

आपकी हालत वज़ू के वक़्त

वज़ू नमाज़ के लिये मुक़द्दमे की हैसियत रखता है और इसी पर नमाज़ का दारो मदार होता है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) जिस वक़्त वज़ू का इरादा फ़रमाते थे आपके रगो पै में ख़ौफ़े ख़ुदा के असरात नुमायां हो जाते थे। अल्लामा मोहम्मद तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि जब आप वज़ू का क़ज़्द फ़रमाते थे और वज़ू के लिये बैेठते थे तो आपके चेहरे मुबारक का रंग ज़र्द हो जाया करता था। यह हालत बार बार देखने के बाद उनके घर वालों ने पूछा कि वज़ू के वक़्त आपके चेहरे का रंग ज़र्द क्यों पड़ जाता है तो आपने फ़रमाया कि उस वक़्त मेरा तसव्वुरे कामिल अपने ख़ालिक़ व माबूद की तरफ़ होता है। इस लिये उसकी जलालत के रोब से मेरा यह हाल हो जाया करता है। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 262)

 

 

 

आलमे नमाज़ में आपकी हालत

अल्लामा तबरेसी लिखते हैं कि आपको इबादत गुज़ारी में इम्तियाज़े कामिज हासिल था। रात भर जागने की वजह से आपका सारा बदन ज़र्द रहा करता था और ख़ौफ़े ख़ुदा में रोते रोते आपकी आंखें फूल जाया करती थीं और नमाज़ मंे ख़ड़े ख़ड़े आपके पांव सूज जाया करते थे। (आलाम अल वरा सफ़ा 153) और पेशानी पर घट्टे रहा करते थे और आपकी नाक का सिरा ज़ख़्मी रहा करता था। (दमए साकेबा सफ़ा 439)

 

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि जब आप नमाज़ के लिये मुसल्ले पर खड़े हुआ करते थे तो लरज़ा बर अन्दाम हो जाया करते थे। लोगों ने बदन में कपकपी और जिस्म में थरथरी का सबब पूछा तो इरशाद फ़रमाया कि मैं उस वक़्त ख़ुदा की बारगाह में होता हूँ और उसकी जलालत मुझ़े अज़ खुद रफ़ता कर देती और मुझ पर ऐसी हालत तारी कर देती है। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 226)

 

एक मरतबा आपके घर में आग लग गई और आप नमाज़ में मशगू़ल थे। अहले महल्ला और घर वालों ने बे हद शोर मचाया और हज़रत को पुकारा ‘‘ हुज़ूर आग लगी हुई है ’’ मगर आपने सरे नियाज़ सजदे बे नियाज़ से न उठाया। आग बुझा दी गई। नमाज़ ख़त्म होने पर लोगों ने आप से पूछा कि हुज़ूर आग का मामेला था, हम ने इतना शोर मचाया लेकिन आपने कोई तवज्जो न फ़रमाई। आपने इरशाद फ़रमाया ‘‘ हाँ ’’ मगर जहन्नम की आग के डर से नमाज़ तोड़ कर उस आग की तरफ़ मुतवज्जे न हो सका। (शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 177)

 

अल्लामा शेख़ सब्बान मालकी लिखते हैं कि जब आप वज़ू के लिये बैठते थे तब की से कांपने लगते थे और जब तेज़ हवा चलती थी तो आप ख़ौफ़े ख़ुदा से लाग़र हो जाने की वजह से गिर कर बेहोश हो जाया करते थे। (असआफ़ अल राग़ेबीन बर हाशिया ए नुरूल अबसार सफ़ा 200)

 

इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि हज़रत इमाम जै़नुल आबेदीन (अ.स.) नमाज़े शब सफ़र व हज़र दोनों में पढ़ा करते थे और कभी उसे क़ज़ा नहीं होने देते थे। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 263)

 

अल्लामा मोहम्मद बाक़र बेहारूल अनवार के हवाले से तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम जै़नुल आबेदीन (अ.स.) एक दिन नमाज़ में मसरूफ़ व मशग़ूल थे कि इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) कुएं में गिर पड़े। बच्चे के गेहरे कुएं में गिरने से उनकी मां बेचैन हो कर रोने लगीं और कुएं के गिर्द पीट पीट कर चक्कर लगाने लगीं और कहने लगीं इब्ने रसूल (अ.स.) मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ग़र्क़ हो गये हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने बच्चे के कुएं में गिरने की कोई परवाह न की और इतमीनान से नमाज़ तमाम फ़रमाई। उसके बाद आप कुएं के क़रीब आए और पानी की तरफ़ देखा फिर हाथ बढ़ा कर बिला रस्सी के गहरे कुएं से बच्चे को निकाल लिया। बच्चा हंसता हुआ बरामद हुआ। कु़दरते ख़ुदा वन्दी देखिये उस वक़्त न बच्चे के कपड़े भीगे थे और न बदन तर था। (दमए साकेबा सफ़ा 430, मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 109)

 

इमाम शिब्लन्जी तहरीर फ़रमाते हैं कि ताऊस रावी का बयान है कि मैंने एक शब हजरे असवद के क़रीब जा कर देखा कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बारगाहे ख़ालिक़ में मुसलसल सजदा रेज़ी कर रहे हैं। मैं उसी जगह ख़डा़ हो गया। मैंने देखा कि आपने एक सजदे को बे हद तूल दे दिया है, यह देख कर मैंने कान लगाया तो सुना कि आप सजदे में फ़रमा रहे हैं, ‘‘ अब्देका बे फ़सनाएक मिसकीनेका बेफ़ासनाएक़ साएलेका बेफ़नाएक फ़क़ीरेका बेफ़नाएक ’’ यह सुन कर मैंने भी इन्ही कलेमात के ज़रिए ये दुआ माँगनी शुरू कर दी, फ़वा अल्लाह। ख़ुदा की क़सम मैंने जब भी उन कलामात के ज़रिये से दुआ मांगी फ़ौरन क़ुबूल हुई। (नूरूल अबसार सफ़ा 126 तबा मिस्र इरशाद मुफ़ीद सफ़ा 296)

 

 

 

 

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