हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की जीवनी (1)

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हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की जीवनी (1)

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स. अ.) के चोथे जां नशीन, हमारे चौथे इमाम और चाहरदा मासूमीन (अ.स.) की छटे मोहतरम फ़र्द हैं। आपके वालिदे माजिद शहीदे करबला हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) थे और वालेदा माजेदा जनाबे शाहे ज़नान उर्फ़ शहर बानो थीं। आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमामे मन्सूस, मासूम, आलमे ज़माना और अफ़ज़ले कायनात थे। उलेमा का बयान है कि आप इल्म, ज़ोहद, इबादत में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की जीती जागती तस्वीर थे। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 119)

इमाम ज़हरी इब्ने अयनिया और इब्ने मुसय्यब का बयान है कि हम ने आपसे ज़्यादा किसी को अफ़ज़ले इबादत ग़ुज़ार और फ़क़ीह नहीं देखा। (नूरूल अबसार सफ़ा 126)

एक शख़्स ने सईद बिन मुसय्यब से किसी का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह बड़ा मुत्तक़ी है। इब्ने मुसय्यब ने पूछा, तुम ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को देखा है? उसने कहा नहीं। उन्होंने जवाब दिया ‘‘ मा रायता अहदन अवरा मिनहा ’’ मैंने उनसे ज़्यादा मुत्तक़ी और परहेज़गार किसी को नहीं देखा। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 267)

 

इब्ने अबी शेबा का कहना है कि ‘‘ असहा इलासा नीद ’’ वह रवायत है जो ज़हरी इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मन्सूब करे। (तबक़ात अल हफ़्फ़ाज़ ज़हबी अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 435) अल्लामा दमीरी फ़रमाते हैं कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) हदीस बयान करने में निहायत मोतमिद इलैहे और सादिक़ुल रवायत थे। आप बहुत बड़े आलिम और फ़िक़हे अहलेबैत में बे मिस्ल व बे नजी़र थे। (हैवातुल हैवान जिल्द 1 सफ़ा 121 तारीख़ इब्ने ख़ल्कान जिल्द 1 सफ़ा 320) आप ऐसे पुर जलाल व जमाल थे कि जो भी आपको देखता था ताज़ीम करने पर मजबूर हो जाता था। (वसीलतुन नजात सफ़ा 319)

   आपकी विलादत बा सआदत

आप बतारीख़ 15 जमादिउस सानी 38 हिजरी यौमे जुमा बक़ौले 15 जमादिल अव्वल 38 हिजरी यौमे पन्चशम्बा बा मक़ाम मदीनाए मुनव्वरा पैदा हुए। (आलाम अल वरा सफ़ा 141 व मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 131)

 अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि जब जनाबे शहर बानो ईरान से मदीने के लिये रवाना हो रही थीं तो जनाबे रिसालत मआब (स. अ.) ने आलमे ख़्वाब में उनका अक़्द हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ में पढ़ दिया था। (जिलाउल उयून सफ़ा 256) और जबा आप वारिदे मदीना हुईं तो हज़रत अली (अ.स.) ने इमाम हुसैन (अ.स.) के सिपुर्द कर के फ़रमाया कि वह असमत परवर बीवी है कि जिसके बतन से तुम्हारे बाद अफ़ज़ले अवसिया और अफ़ज़ले कायनात होने वाला बच्चा पैदा होगा। चुनान्चे हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पैदा हुए लेकिन अफ़सोस यह है कि आप अपनी मां की आग़ोश में परवरिश पाने का लुत्फ़ उठा न सके। ‘‘ मातत फ़ी नफ़ासहा बेही ’’ आपके पैदा होते ही ‘‘ मुद्दते नेफ़ास ’’ में जनाबे शहर बानो की वफ़ात हो गई। (क़मक़ाम जलाल अल अयून, अयून अख़्बारे रज़ा, दमए साकेबा जिल्द 1 सफ़ा 426)

 कामिल मुबरद में है कि जनाबे शहर बानो, मारूफ़तुल नसब और बेहतरीन औरतों में थीं।

 शेख़ मुफी़द तहरीर फ़रमाते हैं कि जनाबे शहर बानो, बादशाहे ईरान यज़द जरद बिन शहरयार बिन शेरविया इब्ने परवेज़ बिन हरमज़ बिन नौशेरवाने आदिल ‘‘ किसरा ’’ की बेटी थीं। (इरशाद सफ़ा 391 व फ़ज़लुल ख़त्ताब)

 अल्लामा तरयिही तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत अली (अ.स.) ने शहर बानो से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है तो उन्होंने कहा ‘‘ शाहे जहां ’’ हज़रत ने फ़रमाया नहीं अब ‘‘ शहर बानो ’’ है। (मजमउल बहरैन सफ़ा 570)

 नाम, कुन्नियत, अल्क़ाब

आपका इस्मे गेरामी ‘‘ अली ’’ कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ ‘‘ अबुल हसन ’’ और ‘‘ अबुल क़ासिब ’’ था।

 आपके अल्का़ब बेशुमार थे जिनमें ज़ैनुल आबेदीन, सय्यदुस साजेदीन, जुल शफ़नात, सज्जाद व आबिद ज़्यादा मशहूर हैं। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 261, शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 176, नूरूल अबसार सफ़ा 126, अल फ़रा अल नामी, नवाब सिद्दीक़ हसन सफ़ा 158)

 

लक़ब ज़ैनुल आबेदीन की तौज़ीह

अल्लामा शिब्लन्जी का बयान है कि इमाम मालिक का कहना है कि आपको ज़ैनुल आबेदीन कसरते इबादत की वजह से कहा जाता है। नूरूल अबसार सफ़ा 126 उलेमाए फ़रीक़ैन का इरशाद है कि हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) एक शब नमाज़े तहज्जुद में मशग़ूल थे कि शैतान अज़दहे की शक्ल में आपके क़रीब आ गया और आपके पाए मुबारक के अंगूठे को मुंह में ले कर काटना शुरू किया, इमाम जो अमातन मशग़ूले इबादत थे और आपका रूजहाने कामिल बारगाहे ईज़दी की तरफ़ था। वह ज़रा भी उसके अमल से मुताअस्सिर न हुए और बदस्तूर नमाज़ में मुन्हमिक व मसरूफ़ व मशग़ूल रहे बिल आखि़र वह आजिज़ आ गया और इमाम ने अपनी नमाज़ भी तमाम कर ली। उसके बाद आपने शैतान मलऊन को तमाचा मार कर दूर हटा दिया। उस वक़्त हातिफ़े गै़बी ने अनतः ज़ैनुल आबेदीन की तीन बार आवाज़ दी और कहा बे शक तुम इबादत गुज़रों की जी़नत हो। उसी वक़्त से आपका यह लक़ब हो गया। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 262 शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 177)

 

अल्लामा शहरे आशोब लिखते हैं कि इस अजदहे के दस सर थे और उसके दांत बहुत तेज़ और उसकी आंखें सुखऱ् थीं और वह मुसल्ले के क़रीब से ज़मीन फाड़ के निकला था। (मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 108)

 एक रवायत में इसकी वजह यह भी बयान कि गई है कि क़यामत में आपको इसी नाम से पुकारा जायेगा। (दएम साकेबा सफ़ा 426)

  लक़ब सज्जाद की तौजीह

ज़हबी ने तबक़ात उल हफ़ाज़ में इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के हवाले से लिखा है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को सज्जाद इस लिये कहा जाता है कि आप तक़रीबन हर कारे ख़ैर पर सजदा फ़रमाया करते थे। जब आप ख़ुदा की किसी नेमत का ज़िक्र करते थे तो सजदा करते। जब कलामे खुदा की आयते ‘‘ सजदा ’’ पढ़ते तो सजदा करते। जब दो शख़्सों में सुलह कराते तो सजदा करते इसी का नतीजा था आपके मवाज़े सुजूद पर ऊंट के घट्टों की तरह घट्टे पड़ जाते थे फिर उन्हें कटवाना पड़ता था। इसी लिये आपका लक़ब ‘‘ ज़ुल शफ़नास ’’ यानी घट्टे वाले भी था। (अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 434)

 इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की नसब बलन्दी

नसब और नस्ल बाप और मां की तरफ़ से देखे जाते हैं। इमाम (अ.स.) के वालिदे माजिद हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और दादा हज़रत अली (अ.स.) और दादी फ़ात्मातुज़ ज़हरा बिन्ते रसूले ख़ुदा (स. अ.) हैं और आपकी वालेदा जनाबे शहर बानो बिन्ते यज़द जर्द इब्ने शहरयार इब्ने किसरा हैं। आप पैग़म्बरे इस्लाम (स. अ.) के पोते और नौशेरवाने आदिल के नवासे हैं। यह वह बादशाह है जिसके अहद में पैदा होने पर सरवरे कायनात (स. अ.) ने इज़हारे मसर्रत फ़रमाया है। इस सिलसिलाए नसब के मुताअल्लिक़ अबुल असवद दवाएली ने अपने अशआर में उसकी वज़ाहत की है कि इस से बेहतर और सिलसिला नामुम्किन है। उसका एक शेर यह है वा अन ग़ुलामन , बैन क़िसरा व हाशिम

 

 ला करम मन यनतत, अलैहे अल तमाएम

 इस फ़रज़न्द से बलन्द नसब कोई और नहीं हो सकता जो नौशेरवाने आदिल और फ़ख़्रे कायनात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) के दादा हाशिम की नसल से हो। (उसूले काफ़ी सफ़ा 255)

 शेख़ सुलैमान कन्दूज़ी और दीगर उलेमाए इस्लाम लिखते हैं कि नौशेरवां आदिल की बरकत तो देखो कि उसी नस्ल को आले मोहम्मद (स. अ.) के नूर की हामिल क़रार दिया और आइम्मा ए ताहेरीन (अ.स.) की एक अज़ीम फ़र्द को उस लड़की से पैदा किया जो नौशेरवां की तरफ़ मन्सूब है। फिर तहरीर करते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) की तमाम बीवीयों में यह शरफ़ सिर्फ़ जनाबे शहर बानो को नसीब हुआ जो हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की वालेदा माजेदा हैं। (नियाबुल मोअद्दता सफ़ा 315 व फ़स्ल अल ख़ताब सफ़ा 261)

  अल्लामा अबीदुल्लाह बा हवाला इब्ने ख़लक़ान लिखते हैं कि जनाब शहर बानो शाहाने फ़ारस के आख़री बादशाह ‘‘ यज़द जर्द ’’ की बेटी थीं और आप ही से इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पैदा हुए हैं । जिनको ‘‘ अल ख़ैरतैन ’’ कहा जाता है क्यों कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) फ़रमाया करते थे कि खुदा वन्दे आलम ने अपने बन्दों में से दो गिरोह अरब और अजम को बेहतरीन क़रार दिया है और मैंने अरब से क़ुरैश और आजम से फ़ारस को मुन्तख़ब कर लिया है चूंकि अरब और अजम का इज्तेमा इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) में है इसी लिये आपको इब्नल ख़ैरतैन से याद किया जाता है। (अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 434)

 अल्लामा शहरे आशोब लिखते हैं कि जनाबे शहर बानों को ‘‘ सय्यदुन निसां ’’ कहा जाता है। (मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 131)

 जनाबे शहर बानों की तशरीफ़ आवरी की बहस

कहा जाता है कि अहदे उमरी में फ़तेह मदाएन के मौक़े पर जनाबे शहर बानों लशकरे इस्लाम के हाथ लगी थीं और वहां से अपनी दीगर बहनों के साथ मदीने पहुँच कर हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ौजियत से मुशर्रफ़ हुईं। (रबीउल अबरार, ज़मख़्शरी) लेकिन मेरे नज़दीक यह बिल्कुल ग़लत है क्यों कि फ़तेह मदाएन सफ़र 16, 17 हिजरी में हुई है जैसा कि तारीख़ अबुल फ़िदा, जिल्द 1 सफ़ा 116, तारीख़े कामिल जिल्द 2 सफ़ा 197, मोअज़्ज़मुल बलदान जिल्द 7 सफ़ा 413 व फ़तहुल आज़म सफ़ा 160, तारीख़े इब्ने ख़ल्दून जिल्द 2 सफ़ा 100 मंे है और यज़द जर्द जनाबे शहर बानों का बाप था 14 हिजरी के शुरू में एनाने हुक्मरानीका मालिक हुआ। जैसा कि तारीख़े तबरी जिल्द 2 सफ़ा 169, तारीख़े कामिल जिल्द 1 सफ़ा 178 व तारीख़े अबुल फ़िदा जिल्द अव्वल सफ़ा 56 में है और तख़्त नशीनी के वक़्त उसकी उम्र 21 साल की थी। जैसा कि तारीख़े तबरी जिल्द 3 सफ़ा 81 तारीख़े कामिल जिल्द 2 सफ़ा 172 तारीख़ इब्ने ख़ल्दून जिल्द 2 सफ़ा 91, फ़तूहात इस्लामिया जिल्द 1 सफ़ा 66 में है इस हिसाब से फ़तेह मदाइन के वक़्त उसकी उम्र ज़्यादा से ज़्यादा 22 साल की हो सकती है। मेरी समझ में नहीं आता कि एक अजमी जो गरम मुल्क का बाशिन्दा न हो वह ग़रीबों की तरह इतनी थोड़ी उम्र में क्यों कर मुबाशेरत के का़बिल बन सकता है यानी यह मुम्किन है कि एक इतने कम सिन शख़्स से ऐसी लड़की पैदा हो सके जो 16 हिजरी में फ़तेह मदाईन के वक़्त शादी के क़ाबिल हो। इस लिये लामोहाला यह मानना पड़ेगा यज़द जर्द की शादी 18, 19 साल की उम्र में हुई होगी। अब ऐसी सूरत में इसकी शादी 18, 19 साल की उम्र में तसलीम की जाए और यह भी मान लिया जाए कि जनाबे शहर बानों उसकी पहली औलाद थीं मदाएन के वक़्त जनाबे शहर बानों की उम्र 5, 6 साल से ज़्यादा नहीं हो सकती। इसके अलावा हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) जो 4 हिजरी में पैदा हुए हैं उनकी शादी कम सिनी में बाहालते नाबालीग़ फिर ऐसी सूरत में जब कि इमाम हसन (अ.स.) की शादी न हुई हो जो इमाम हुसैन (अ.स.) से बडे़ थे, 16 हिजरी में फ़तेह मदाएन के बाद हज़रत अली (अ.स.) क्यों कर सकते हैं।

 मुवर्रिख़ शहरी शमसुल उलमा, शिबली नोमानी हज़रत उमर का हाल लिखते हुए तहरीर फ़रमाते हैं कि इस मौक़े पर हज़रत शहर बानो का क़िस्सा जो ग़लत तौर पर मशहूर हो गया है इसे ज़िक्र करना ज़रूरी है। आम तौर पर मशहूर है कि जब फ़ारस फ़तेह हुआ तो यज़द जर्द शहनशाहे फ़ारस की बेटियां गिरफ़्तार हो कर मदीने में आईं हज़रत उमर ने आम लौंड़ियों की तरह बाज़ार में उनके बेचने का हुक्म दिया लेकिन हज़रत अली (अ.स.) ने मना किया कि ख़ानदाने शाही के साथ ऐसा सुलूक जाइज़ नहीं। इन लड़कियों की की़मत का अन्दाज़ा कराया जाए। फिर यह लड़कियां किस के एहतिमाम और सुपुर्दगी में दी जायं और उससे उनकी की़मत आला से आला शरह पर लगवा ली जाए। चुनान्चे हज़रत अली (अ.स.) ने ख़ुद उनको अपने एहतिमाम में लिया और एक इमाम हुसैन (अ.स.) को एक मोहम्मद बिन अबू बक्र को एक अब्दुल्लाह बिन उमर को इनाएत की। इस ग़लत क़िस्से की हक़ीक़त यह है कि ज़ैहमख़शरी ने जिसको फ़ने तारीख़ से कुछ वास्ता नहीं रबीउल अबरार में इसको लिखा और इब्ने ख़ल्का़न कने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के हाल में यह रवायत उसके हवाले से नक़ल कर दी लेकिन यह महज़ ग़लत है। अव्वलन तो ज़ैहमख़शरी के सिवा तबरी इब्ने असीर, याकू़बी बिलाज़री इब्ने क़तीबा वग़ैरा किसी ने इस वाक़िया को नहीं लिखा और ज़हमख़शरी का फ़न तारीख़ी में जो पाया है वह ज़ाहिर है। इसके अलावा तारीख़ी क़रायन इसके बिल्कुल खि़लाफ़ हैं। हज़रत उमर के अहद में यज़दो जरद और ख़ानदाने शाही पर मुसलमानों को मुतलक़ क़ाबू हासिल नहीं हुआ। मदाएन के मारके में यज़दो जर्द मय तमाम अहलो अयाल के दारूल सलतनत से निकला और हवान पहुँचा। जब मुसलमान हवान पर चढ़े तो वह असफ़हान भाग गया और फिर करमान वग़ैरा से टकराता फिरा। मरू में पहुँच कर 30- 31 हिजरी में जो हज़रत उस्मान की खि़लाफ़त का ज़माना था मारा गया। मुझको शुब्हा है कि ज़ैमख़शरी को यह भी मालूम था या नहीं कि यज़दो जर्द का क़त्ल किस अहद में हुआ। इसके अलावा जिस वक़्त का यह वाक़ेया बयान किया जाता है उस वक़्त इमाम हुसैन (अ.स.) की उम्र 12 साल थी क्यों कि जनाबे मम्दुह हिजरत के पांचवे साल पैदा हुए और फ़ारस 17 हिजरी में फ़तह हुआ इस लिये यह उम्र भी किसी क़दर मुस्तबअद है कि हज़रत अली (अ.स.) ने उनके नागालगी़ में उन पर इस क़िस्म की इनायत की होगी इसके अलावा वह एक शहनशाह की अवलाद की क़ीमत निहायत गरां क़रार पाई होगी और हज़रत अली (अ.स.) निहायत ज़ाहिदाना और फ़क़ीराना ज़िन्दगी बसर करते थे। ग़रज़ कि किसी हैसीयत से इस वाक़िये की सेहत पे गुमान नहीं हो सकता। (अल फ़ारूक़ सफ़ा 172)

 मैंने तवारीख़ से जो इस्तेमबात किया है वह यह है कि अहदे उसमानी में अहले फ़ारस ने बग़ावत कर के अबीद उल्ला बिन उमर ‘‘ वाली फ़ारस ’’ फ़ारस को मार डाला और हुदूदे फ़ारस से लश्कर भी निकाल दिया। इस वक़्त फ़ारस की लशकरी छावनी का मुक़ाम ‘‘ अस्तख़र ’’ था। ईरान का आख़री बादशाह ‘‘यज़द जर्द ’’ अहले फ़ारस के साथ था। हज़रत उस्मान ने अब्दुल्लाह बिन आमिर को हुक्म दिया बसरा और अम्मान में लशकर को मिला कर फ़ारस पर चढ़ाई कर दो। चुनान्चे ऐसा ही किया गया। हुदूदे अस्तख़र में ज़बरदस्त और घमासान की जंग हुई और मुसलमान कामयाब हुए। अस्तख़र फ़तेह होने के बाद 31 हिजरी में यज़द जर्द ‘‘ रै ’’ वहां से ख़ुरासान और फिर ख़ुरासान से मरोजा पहुँचा। उसके हमराह चार हज़ार जर्रार सिपाही भी थे। मरोजा में वह ख़ाकान चीन की साज़िशी इमदाद की वजह से मारा गया और शहान अजम के गोरिस्तान ‘‘ अस्तख़र ’’ में दफ़्न हुआ। इसके बाद अहदे उस्मानी बदल गया और हज़रत अली (अ.स.) शेरे ख़ुदा का ज़माना आ गया।

जंगे जम के बाद ईरान ख़ुरासान के मक़ाम ‘‘ मरौ ’’ में सख़्त बग़ावत हुई। उस वक़्त ईरान में बरावायत इरशाद मुफ़ीद व रौज़ातुल सफ़ा हरीस इब्ने वजअफ़ी गर्वनर थे। हज़रत अली (अ.स.) ने मरौ के क़ज़िया नामरज़िया को ख़त्म करने के लिये इमदादी तौर पर खुलीद इब्ने क़ुर्रा यरबोई को रवाना किया, वहां जंग हुई और लशकरे इस्लाम कामयाब हुआ। हरीस इब्ने जाबिर जाअफ़ी ने यज़द जर्द इब्ने शहरयार इब्ने क़िसरा जो अहदे उस्मानी में मारा जा चुका था कि दो बेटियो शहर बानों और गीहान बानों को आम असीरों के साथ हज़रत अली (अ.स.) की खि़दमत में भेजा। शेरे ख़ुदा अली (अ.स.) ने शहर बानों को इमाम हुसैन (अ.स.) और गीहान बानों को मोहम्मद बिन अबी बक्र की ज़ौजियत में दे दिया। जैसा कि रौज़तुल सफ़ा जिल्द 3 सफ़ा 9 तबा निवल किशोर, इरशादे मुफ़ीद जिल्द 2 सफ़ा 292, आलाम अल वरा सफ़ा 101, उम्दतुल तालिब सफ़ा 171, जामेउल तवारीख़ सफ़ा 149, कशफ़ुल ग़म्मा सफ़ा 89, मतालेबुल सुवेल सफ़ा 261, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120, नूरूल अबसार सफ़ा 126, तोहफ़ाए सुलैमानिया, शरए इरशाद सफ़ा 391 में मौजूद है उस वक़्त इमाम हुसैन (अ.स.) की उम्र और जनाबे शहर बानों की उम्र काफ़ी हो चुकि थी और इमाम हसन (अ.स.) की शादी हुये अरसा गुज़र चुका था। हज़रत अली (अ.स.) की खि़लाफ़त 35 हिजरी से 40 हिजरी तक रही। जनाबे शहर बानों से 38 हिजरी में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और गिहान बानों से क़ासिम बिन मोहम्मद पैदा हुए।

 

 

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