इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और मुख़्तार आले मोहम्मद (11)

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इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और मुख़्तार आले मोहम्मद  (11)

अब्दुल मलिक बिन मरवान के अहदे खि़लाफ़त में हज़रते मुख़्तार बिन अबू उबैदा सक़फी क़ातेलाने हुसैन से बदला लेने के लिये मैदान में निकल आये।

अल्लामा मसूदी लिखते हैं कि इस मक़सद में कामयाबी हासिल करने के लिये उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की बैअत करनी चाही मगर आपने बैअत लेने से इन्कार कर दिया। (मरूजुल ज़हब जिल्द 3 सफ़ा 155) अल्लामा नुरूल्लाह शूस्तरी शहीदे सालिस तहरीर फ़रमाते हैं कि अल्लामा हिल्ली ने मुख़्तार को मक़बूल लोगों में शुमार किया है। इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ने उन पर नुक़ता चीनी करने से रोका है और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने उनके लिये रहमत की दुआ की है। (मजालेसुल मोमेनीन जिल्द 346)

 अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने उनकी कार गुज़ारी के लिससिले में ख़ुदा का शुक्र अदा किया है।

(जिलाउल उयून)

आप कूफ़े के रहने वाले थे। जनाबे मुस्लिम इब्ने अक़ील को आप ही ने सब से पहले मेहमान रखा था। आपको इब्ने ज़ियाद ने आले मोहम्मद (अ.स.) से मोहब्बत के जुर्म में कै़द कर दिया था। वहां से छूटने के बाद आप ने ख़ूने हुसैन (अ.स.) का बदला लेने का अज़मे बिल जज़म कर लिया था। चुनान्चे 26 हिजरी में एक बड़ी जमाअत के साथ बरामद हो कर कूफ़े के हाकिम बन बैठे और आपने किताब, सुन्नत और इन्तेक़ामे ख़ूने हुसैन (अ.स.) पर बैअत ले कर बड़ी मुस्तैदी से इन्तेक़ाम लेना शुरू कर दिया। शिम्र को क़त्ल कर दिया, ख़ूली को क़त्ल कर के आग में जला दिया, उमर बिन सअद और उसके बेटे हफ़स को क़त्ल किया। (तारीख़ अबुल फ़िदा)

मुल्ला मुबीन लिखते हैं कि शिम्र को क़त्ल कर के उसकी लाश को उसी तरह घोड़ों की टापों से पामाल कर दिया जिस तरह उसने इमाम हुसैन (अ.स.) की लाशे मुबारक को पामाल किया था। (वसीलतुन नजात) 67 हिजरी मंे इब्ने ज़ियाद को गिरफ़्तार करने के लिये इब्राहीम इब्ने मालिके अशतर की सरकरदगी में एक बड़ा लशकर मूसल भेजा जहां का वह उस वक़्त गर्वनर था। शदीद जंग के बाद इब्राहीम ने उसे क़त्ल किया और उसका सर मुख़्तार के पास भेज कर बाक़ी बदन नज़रे आतश कर दिया। (अबुल फ़िदा) फिर मुख़्तार के हुक्म से कै़स इब्ने अशअस की गरदन मारी गई। बजदल इब्ने सलीम (जिसने इमाम हुसैन (अ.स.) की उंगली एक अंगूठी के लिये काटी थी) के हाथ पाओं काटे गये। फिर हकीम इब्ने तुफ़ैल पर तीर बारानी की गई। उसने अलमदारे करबला हज़रत अब्बास (अ.स.) को शहीद किया था। इसी के साथ यज़ीद इब्ने सालिक, इमरान बिन ख़ालिद, अब्दुल्लाह बिजली, अब्दुल्लाह इब्ने क़ैस ज़रआ इब्ने शरीक, सबीह शामी और सनान बिन अनस तलवार के घाट उतारे गये। (हबीब उल सैर) उमर बिन हज्जाज भी गिरफ़्तार हो कर क़त्ल हुआ। (रौज़तुल सफ़ा)

मिन्हाल बिन उमर का कहना है कि मैं इसी दौरान में हज के लिये गया तो हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से मुलाक़ात हुई। आपने पूछा हुरमुला बिन काहिल असदी का क्या हश्र हुआ? मैंने कहा वह तो सालिम था। आपने आसमान की तरफ़ हाथ उठा कर फ़रमाया, ख़ुदाया उसे आतशे तेग़ का मज़ा चखा। जब मैं कूफ़े वापस आया और मुख़्तार से मिला और उन से वाक़ेया बयान किया तो वह इमाम (अ.स.) की बद दुआ की तकमील पर सजदा ए शुक्र अदा करने लगे।ग़र्ज़ कि आपने बेशुमार क़ातेलाने हुसैन (अ.स.) को तलवार के घाट उतार दिया।

क़ाज़ी मेबज़ी ने शरहे दीवाने मुतर्ज़वी में लिखा है कि मुख़्तारे आले मोहम्मद (स. अ.) के हाथों से क़त्ल होने वालों की तादाद अस्सी हज़ार तीन सौ तीन (80,303) थी।

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जनाबे मुख़्तार के सामने जिस वक़्त इब्ने ज़ियाद मलऊन का सर रखा गया था तो एक सांप आ कर उसके मुंह में घुस कर नाक से निकलने लगा। इसी तरह देर तक आता जाता रहा। वह यह भी लिखते हैं कि हज़रते मुख़्तार ने इब्ने ज़ियाद का सर हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की खि़दमत में मदीना ए मुनव्वरा भेज दिया। जिस वक़्त वह सर पहुँचा तो आपने शुक्रे ख़ुदा अदा किया और मुख़्तार को दुआएं दीं। मुवर्रेखी़न का यह भी बयान है कि उसी वक़्त औरतों ने बालों में कंघी करनी और सर में तेल डालना और आंखों में सुरमा लगाना शुरू किया जो वाक़ेए करबला के बाद से इन चीज़ों को छोड़े हुये थीं । (अक़दे फ़रीद जिल्द 2 सफ़ा 251, नुरूल अबसार सफ़ा 124, मजालिसे मोमेनीन, बेहारूल अनवार) ग़र्ज़ कि जनाबे मुख़्तार ने इन्तेक़ामे ख़ूने शोहदा लेने के सिलसिले में कारहाय नुमायां किये। बिल आखि़र 14 रमज़ान 67 हिजरी को आप कूफ़े के दारूल इमाराह के बाहर शहीद कर दीये गये। ‘‘ इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन ’’ (तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हो किताब मुख़्तार आले मोहम्मद (स. अ.) मोअल्लेफ़ा हक़ीर मतबूआ लाहौर)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की निगाह में

86 हिजरी में अब्दुल मलिक इब्ने मरवान के इन्तेक़ाल के बाद उसका बेटा वलीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा बनाया गया। यह हज्जाज बिन यूसुफ़ की तरह निहायत ज़ालिमों जाबिर था। इसके अहदे ज़ुल्मत में उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ जो कि चचा ज़ाद भाई था, हिजाज़ का गर्वनर मुक़र्रर हुआ। यह बड़ा मुनसिफ़ मिजाज़ और फ़य्याज़ था। उसी के अहदे गर्वनरी का एक वाक़ेया यह है कि 87 हिजरी में सरवरे कायनात के रौज़े की एक दीवार गिर गई थी। जब उसकी मरम्मत का सवाल पैदा हुआ और उसकी ज़रूरत महसूस हुई कि किसी मुक़द्दस हस्ती के हाथ से इसकी इब्तेदा की जाय तो उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ही को सब पर तरजीह दी। (वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 1 सफ़ा 386) इसी ने फ़िदक वापस किया था और अमीरल मोमेनीन (अ.स.) पर से तबर्रा की वह बिदअत जो माविया ने जारी की थी बन्द कराई थी।

 

 

 

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