आप अगर चे गोशा नशीनी की ज़िन्दगी बसर फ़रमा रहे थे लेकिन आप के रूहानी इक़तेदार की वजह से बादशाहे वक़्त वलीद बिन अब्दुल मलिक ने आपको ज़हर दिया और आप बतारीख़ 25 मोहर्रमुल हराम 95 हिजरी मुताबिक़ 714 ई0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हो गये। इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने नमाज़े जनाज़े पढ़ाई और आप मदीने के जन्नतुल बक़ी मंे दफ़्न कर दिये गये।
अल्लामा शिब्लन्जी, अल्लामा इब्ने सबाग़ मालेकी, अल्लामा सिब्ते इब्ने जोज़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि ‘‘ व अनल लज़ी समआ अल वलीद बिन अब्दुल मलिक ’’ जिसने आपको ज़हर दे कर शहीद किया वह वलीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा ए वक़्त है। (नूरूल अबसार सफ़ा 128, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120, फ़ुसूल अल महमा, तज़किराए सिब्ते जौज़ी, अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 444, मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 121) मुल्ला जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि आपकी शहादीन के बाद आपका नाक़ा क़ब्र पार नाला व फ़रियाद करता हुआ तीन रोज़ में मर गया। (शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 179) शहादत के वक़्त आपकी उम्र 57 साल की थी।
आपकी औलाद
उलेमा ए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपने ग्यारह लड़के और चार लड़कियां छोड़ीं। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120 व अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 444)
अल्लामा शेख़ मुफ़ीद फ़रमाते हैं कि उन 15 अवलादों के नाम यह हैं।
- हज़रत इमाम मोहम्मद (अ.स.) आपकी वालेदा हज़रत इमाम हसन (अ.स.) की बेटी अम्मे अब्दुल्लाह जनाबे फ़ात्मा थीं।
- अब्दुल्लाह,
- हसन,
- ज़ैद,
- उमर,
- हुसैन,
- अब्दुल रहमान,
- सुलैमान,
- अली,
- मोहम्मद असग़र,
- हुसैन असग़र
- ख़दीजा,
- फ़ात्मा,
- आलीया
- उम्मे कुल्सूम।
(इरशाद मुफ़ीद फ़ारसी सफ़ा 401)
जनाबे ज़ैद शहीद
आपकी औलाद में हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) के बाद सब से नुमाया हैसियत जनाबे ज़ैद शहीद की है। आप 80 हिजरी में पैदा हुये। 121 हिजरी में हश्शाम बिन अब्दुल मलिक से तंग आ कर आप अपने हम नवा तलाश करने लगे और यकुम सफ़र 122 हिजरी को चालीस हज़ार (40000) कूफ़ीयों समैत मैदान में निकल आये। ऐन मौक़ा ए जंग में कूफ़ीयों ने साथ छोड़ दिया। बाज़ मआसरीन लिखते हैं कि कूफ़ीयों के साथ छोड़ने का सबब इमाम अबू हनीफ़ा की नकस बैअत है क्यों कि उन्होंने पहले जनाबे ज़ैद की बैअत की थी फिर जब हश्शाम ने आपको दरबार में बुला कर इमामे आज़म का खि़ताब दिया तो यह हुकूमत के साथ हो गये और उन्होंने ज़ैद की बैअत तोड़ दी। इसी वजह से उनके तमाम मानने वाले उन्हें छोड़ कर अलग हो गये। उस वक़्त आपने फ़रमाया ‘‘ रफ़ज़त मूनी ’’ ऐ कूफी़यों ! तुम ने मेरा साथ छोड़ दिया। इसी फ़रमाने की वजह से कूफ़ीयों को राफ़ज़ी कहा जाता है। जहां उस वक़्त चंद अफ़राद के सिवा कोई भी शिया न था सब हज़रते उस्मान और अमीरे माविया के मानने वाले थे। ग़रज़ के दौराने जंग में आपकी पेशानी पर एक तीर लगा जिसकी वजह से आप ज़मीन पर तशरीफ़ लाये यह देख कर आपका एक ख़ादिम आगे बढ़ा और उसने आपको उठा कर एक मकान में पहुँचा दिया। ज़ख़्म कारी था, काफ़ी इलाज के बवजूद जां बर न हो सके फिर आपके ख़ादिमों ने ख़ुफ़िया तौर पर आप को दफ़्न कर दिया और क़ब्र पर से पानी गुज़ार दिया ताकि क़ब्र का पता न चल सके लेकिन दुश्मानांे ने सुराग लगा कर लाश क़ब्र से निकाल ली और सर काट कर हश्शाम के पास भेजने के बाद आपके बदन को सूली पर लटका दिया। चार साल तक यह जिस्म सूली पर लटका रहा। ख़ुदा की क़ुदरत तो देखिये उसने मकड़ी को हुक्म दिया और उसने आपके औरतैन (पोशीदा मक़ामात) पर घना जाला तान दिया। (ख़मीस जिल्द 2 सफ़ा 357 व हैवातुल हैवान) चार साल के बाद आपके जिस्म को नज़रे आतश कर के राख दरियाए फ़रात में बहा दी गई। (उमदतुल मतालिब सफ़ा 248)
शहादत के वक़्त आपकी उम्र 42 साल की थी। हज़रत ज़ैद शहीदे अज़ीम मनाक़िब व फ़ज़ाएल के मालिक थे। आपको ‘‘ हलीफ़ अल क़ुरआन ’’ कहा जाता था। आप ही की औलाद को ज़ैदी कहा जाता है और चूंकि आपका क़याम बा मक़ाम वासित था इस लिये बाज़ हज़रात अपने नाम के साथ ज़ैदी अल वास्ती लिखते हैं। तारीख़ इब्नुल वरदी में है कि 38 हिजरी में हज्जाज बिन यूसुफ़ ने शहरे वासित की बुनियाद डाली थी। जनाबे ज़ैद के चार बेटे थे जिनमें जनाबे याहया बिन ज़ैद की शुजाअत के कारनामे तारीख़ के अवराख़ में सोने के हुुरूफ़ से लिखे जाने के क़ाबिल हैं। आप दादहियाल की तरफ़ से हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और नानिहाल की तरफ़ से जनाबे मोहम्मद बिन हनफ़िया की यादगार थे। आपकी वालेदा का नाम ‘‘ रेता ’’ था जो मोहम्मद बिन हनफ़िया की पोती थीं। नसले रसूल (स. अ.) में होने की वजह से आपको क़त्ल करने की कोशिश की गई। आपने जान के तहफ़्फ़ुज़ के लिये यादगार जंग की। बिल आखि़र 125 हिजरी में आप शहीद हो गये। फिर वलीद बिन यज़ीद बिन अब्दुल मलिक के हुक्म से आपका सर काटा गया और हाथ पाओं काटे गये। उसके बाद लाशे मुबारक सूली पर लटका दी गई फिर एक अरसे के बाद उसे उतार कर जलाया गया और हथौड़े से कूट कूट कर रेज़ा रेज़ा किया गया फिर एक बोरे में रख कर कशती के ज़रिये से एक एक मुठ्ठी राख दरियाए फ़रात की सतह पर छिड़क दी गई। इस तरह इस फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) के साथ ज़ुल्मे अज़ीम किया गया।
- उन्होंने सलतनते हश्शाम में दावा ए खि़लाफ़त किया था बहुत से लोगों ने बैअत कर ली थी। तदाएन, बसरा, वास्ता, मूसल, ख़ुरासान, रै, जरजान के अलावा सिर्फ़ कूफ़े ही के 15 हज़ार शख़्स थे। जब यूसुफ़ सक़फ़ी उनके मुक़ाबले में आया तो यह सब लोग उन्हें छोड़ कर भाग गये। ज़ैद शहीद ने फ़रमाया ‘‘ ज़फ़ज़र अल यौम ’’ उस दिन से राफ़ज़ी का लफ़्ज़ निकाला........... इनके चार फ़रज़न्द थे। 1. यहीया, 2. हुसैन, 3. ईसा, 4. मोहम्मद। सादाते बाराह व बिल गिराम का नसब मोहम्मद बिन ईसा तक पहुँचता है। (किताब रहमतुल आलेमीन जिल्द 2 सफ़ा 142)
ईसा बिन ज़ैद
यह भी जनाबे ज़ैद शहीद के निहायत बहादुर साहब ज़ादे थे। ख़लीफ़ा ए वक़्त आपके भी ख़ून का प्यासा था। आप अपना हसब नसब ज़ाहिर न कर सकते थे। ख़लीफ़ा ए जाबिर की वजह से रूपोशी की ज़िन्दगी गुज़ारते थे। कूफ़े में आब पाशी का काम शुरू कर दिया था और वहीं एक औरत से शादी कर ली थी और उस से भी अपना हसब नसब ज़ाहिर नहीं किया था। इस औरत से आपकी एक बेटी पैदा हुई जो बड़ी हो कर शादी के क़ाबिल हो गई। इसी दौरान में आपने एक मालदार बेहिश्ती के वहां मुलाज़ेमत कर ली जिसके एक लड़का था। मालदार बेहिश्ती ने जनाबे ईसा की बीवी से अपने लड़के का पैग़ाम दिया। जनाबे ईसा की बीवी बहुत ख़ुश हुई कि मालदार घराने से लड़की का रिश्ता आया है जब जनाबे ईसा घर तशरीफ़ लाये तो उनकी बीवी ने कहा कि मेरी लड़की की तक़दीर चमक उठी है क्यों कि मालदार घराने से पैग़ाम आया है यह सुनना था कि जनाबे ईसा सख़्त परेशान हुयें बिल आखि़र खुदा से दुआ की, बारे इलाहा सैदानी ग़ैरे सय्यद से बिहाई जा रही है मालिक मेरी लड़की को मौत दे दे। लड़की बीमार हुई और दफ़अतन उसी दिन इन्तेक़ाल कर गई। उसके इन्तेक़ाल पर आप रो रहे थे उनके एक दोस्त ने कहा कि इतने बहादुर हो कर आप रोते हैं उन्होंने फ़रमाया कि इसके मरने पर नहीं रो रहा हूँ मैं अपनी इस बे बसी पर रो रहा हूँ कि हालात ऐसे हैं कि मैं इस से यह तक नहीं बता सका कि मैं सय्यद हूँ और यह सय्यद ज़ादी है। (उमदतुल मतालिब सफ़ा 278, मिनहाज अल नदवा सफ़ा 57)
अल्लामा अबुल फ़रज़ असफ़हानी अल मतूफ़ी 356 हिजरी लिखते हैं कि जनाबे ईसा बिन ज़ैद ने अपने दोस्त से कहा था कि मैं इस हालत में नहीं हूँ कि इन लोगों को यह बता सकूं ‘‘ बाना ज़ालेका ग़ैर जाएज़ ’’ कि यह शादी जाएज़ नहीं है इस लिये कि यह लड़का हमारे कफ़ो का नहीं है। (मक़ातिल अल तालेबैन सफ़ा 271, मतबुआ नजफ़े अशरफ़ 1385 हिजरी)