इमाम हुसैन अलैहिसलाम की शहादत के बाद भी क्यों हक़ का साथ लोग नहीं देते ?

Rate this item
(0 votes)
इमाम हुसैन अलैहिसलाम की शहादत के बाद भी क्यों हक़ का साथ लोग नहीं देते ?

कर्बला से हमने क्या सीखा ? क्या लोगों का किरदार इमाम हुसैन अलैहिसलाम के शहादत के बाद सुधरा ? 

असत्य पे सत्य की जीत की पूरी दुनिया में पहचान बन चुके हुसैन पैगंम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद के नाती थे और मुसलमानो के खलीफा हज़रत अली के बेटे थे | इमाम हुसैन की माँ हज़रत मुहम्मद की इकलौती बेटी फातिमा बिन्ते मुहम्मद थीं | इस घराने ने हमेशा दुनिया के हर मसले का हल शांतिपूर्वक तलाशने की कोशिश की यहां तक की लोग जब इनपे ज़ुल्म करते तो यह सब्र करते | इनका पैग़ाम था समाज में जहां रहते हो वहाँ हक़ का साथ दो , इन्साफ से काम लो और जो अपने लिए पसंद करते हो वही दूसरों के लिए पसंद करो और दुनिया के हर धर्म के इंसानो के साथ नेकी करो मानवता का त्याग कभी मत करना |

जैसा की दनिया में होता आया है सत्य का परचम जहां लहराया की असत्य की राह पे चलने वालों को तकलीफ होते लगती है क्यों की उनको उनका वजूद ख़त्म होता दिखाई देने लगता है | ऐसा  ही उस दौर के असत्य की राह पे चलने वालों लगता था और वे हज़रत मुहम्मद के इस घराने पे ज़ुल्म किया करते थे लोगों को उनके लिए अफवाहों और झूटी कहानियों से भ्रमित किया  करते थे लेकिन इस घराने ने कभी सत्य का हक़ का और सब्र का साथ नहीं छोड़ा |

पैगंम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स ) की वफ़ात के बाद से इस घराने पे ज़ुल्म बढ़ते गए | हज़रत अली के इल्म के आगे कोई नहीं था लेकिन मिम्बर ऐ रसूल पे लोगों ने साज़िश फरेब से किसी और को बिठा दिया | हज़रत अली की नमाज़ के आगे क्या किसी की नमाज़ थी लेकिन उनके खिलाफ अफवाह फैलाई और उन्हें बेनमाजी क़रार दिया गया और यह अफवाह इतनी फैली की जब मस्जिद ऐ कूफ़ा में सजदे में शहादत पायी तो लोग पूछते थे अरे अली मस्जिद में क्या कर रहे थे ?

यह ज़ुल्म का सिलसिला हज़रत अली के बाद इमाम हुसैन के साथ बढ़ता चला गया और इंतेहा यह हो गयी की  शराबी यज़ीद ज़ालिम यज़ीद खलीफा बन गया और कमाल तो यह  की  मुसलमानो ने बग़ावत भी न की जबकि सब जानते थे हक़ क़ुरआन है हक़ हुसैन के साथ है |

आज भी यह सिलसिला जारी है | हक़ का साथ देने वाला , इन्साफ करने वाला, , आलिम और जाहिल का फ़र्क़ करने वाला , सब्र करने वाला , हराम माल से परहेज़ करने वाला , अफवाहों को फैलाने से परहेज़ करने वाला , झूटी तोहमतें न लगाने वाला, औरतों की इज़्ज़त  करने वाला , दूसरों के अकेले में किये गए गुनाहों को आम न करने वाला  शिया ने अली , हुसैनी कहलाता और जो कोई भी इसके खिलाफ चले वो खुद को चाहे कुछ भी कहे हुसैनी नहीं हो सकता |

अफ़सोस का मक़ाम है की कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद आज भी मजमा ऐ आम उस दौर की तरह अपना दुनियावी फायदा देख के लोगों  का साथ देता , इज़्ज़त करता नज़र आता है जबकि देना चाहिए उसका साथ जो क़ुरआन के साथ हो जो हुसैन के नक़्शे क़दम पे चलने की कोशिश करता हो जो इंसाफ पसंद हो अब ऐसे में हमारे  वक़्त ऐ इमाम का ज़हूर हो जाय तो क्या होगा ? खुदा न करे हमारी आदत हक़ पसंदगी की न रही खौफ से लालच से हक़ का  साथ न देने की आदत रही तो कहीं फिर एक कर्बला ना हो जाय की अलअजल की दुआ कर के इमाम को बुलाने वाले कोफ़ियों की तरह साथ न छोड़ दें?

अपने किरदार को हुसैनी किरदार बनाएं और यक़ीन रखें ज़हूर ऐ इमाम ऐ वक़्त जल्द से जल्द होगा और कर्बला के शहीदों को इन्साफ मिलेगा और हमें ज़ुल्म से निजात |

 

Read 87 times