हज़रत पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की ज़िंदगी के अख़लाक़ी पहलू और आप की सीरत के अनेक पहलू के बारे में बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है, लेकिन आपकी ज़िंदगी का वह पहलू जिसके बारे में बहुत कम किताबों या आर्टिकल्स में मिलता है वह आप की ज़िंदगी के आख़िरी समय के हालात हैं और शायद उस समय के हालात पर कम ध्यान देने के कारण उस समय की बहुत सारी हक़ीक़तों में फेर बदल किया गया और उसके बाद इतिहास के उन हालात का सामना होता है जो पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की वफ़ात के बाद पेश आए, इस लेख में उन्हीं कुछ अहम हक़ीक़तों की तरफ़ इशारा किया गया है।
हज़रत पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की ज़िंदगी के अख़लाक़ी पहलू और आप की सीरत के अनेक पहलू के बारे में बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है, लेकिन आपकी ज़िंदगी का वह पहलू जिसके बारे में बहुत कम किताबों या आर्टिकल्स में मिलता है वह आप की ज़िंदगी के आख़िरी समय के हालात हैं और शायद उस समय के हालात पर कम ध्यान देने के कारण उस समय की बहुत सारी हक़ीक़तों में फेर बदल किया गया और उसके बाद इतिहास के उन हालात का सामना होता है जो पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की वफ़ात के बाद पेश आए, इस लेख में उन्हीं कुछ अहम हक़ीक़तों की तरफ़ इशारा किया गया है।
हज़रत पैग़म्बर ए अकरम (स) की ज़िंदगी के आख़िरी दिन थे और आप (स) हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथ को पकड़ कर क़ब्रिस्तान की तरफ़ गए और क़ब्र में लेटे हुए लोगों के लिए आप (स) ने मग़फ़ेरत की दुआ की और फिर इमाम अली अलैहिस्सलाम से फ़रमाया कि जिब्रईल साल में एक बार मेरे सामने क़ुरआन लेकर आते थे लेकिन इस साल दो बार लेकर आए हैं और इसके पीछे मेरी मौत के क़रीब होने के अलावा कोई और राज़ नहीं है, फिर आप ने इमाम अली (अ) से फ़रमाया: अगर मैं इस दुनिया से चला गया तो तुम ही मुझे ग़ुस्ल देना।
एक रिवायत में यह भी है कि आप (स) ने साथ में मौजूद लोगों से यह भी फ़रमाया कि अगर मैंने किसी से कोई वादा किया है तो उसे बता दे ताकि मैं पूरा कर सकूं और अगर किसी का कोई क़र्ज़ मेरे ज़िम्मे है तो बता दे ताकि अदा कर सकूं।
जैसा कि कुछ रिवायतों से ज़ाहिर होता है कि पैग़म्बर ए अकरम (स) अपनी कुछ बीवियों, अपने असहाब और कुछ साथियों से नाराज़ थे, इसीलिए आप ने बिदअत को फैलाने वालों का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया: ऐ लोगों! फ़ित्ने और फ़साद की आग भड़क चुकी है, फ़ित्ने अंधेरी रात की तरह तुम तक पहुंच चुके हैं और तुम लोगों के पास मेरे ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है इसलिए कि मैंने न किसी हलाल को हराम क़रार दिया और ना ही हराम को हलाल क़रार दिया, मैंने केवल क़ुरआन द्वारा हराम की गई चीज़ों को ही हराम कहा है।
पैग़म्बर ए अकरम (स) उम्मत को फ़ित्ने की चेतावनी देने के बाद जनाबे उम्मे सलमा के घर तशरीफ़ ले गए और दो दिन वहीं रुके और फ़रमाया: ख़ुदाया! तू गवाह रहना कि मैंने हक़ीक़तों को बयान कर दिया है, इसके बाद आप (स) अपने घर तशरीफ़ ले गए और एक गिरोह को अपने पास बुलवाया और फ़रमाया: क्या मैंने तुम लोगों से कहा नहीं था कि उसामह के लश्कर के साथ जाओ? जनाबे अबू बक्र ने कहा: मैं गया था लेकिन वापस आ गया ताकि दोबारा अहद कर सकूं, उमर बिन ख़त्ताब ने कहा कि मैं नहीं गया क्योंकि मैं आपके हाल चाल पूछने के लिए किसी क़ाफ़िले का इंतेज़ार नहीं करना चाहता था।
पैग़म्बर ए अकरम (स) बहुत नाराज़ हुए और उसी बीमारी की हालत में मस्जिद तशरीफ़ ले गए और उसामह के कमांडर बनाने पर आपत्ति जताने वालों से फ़रमाया: मैं उसामह के बारे में यह कैसी बातें सुन रहा हूं, तुम लोग इससे पहले उसामह के वालिद के कमांडर बनने पर भी आपत्ति जताते थे, ख़ुदा की क़सम वह कमांडर बनने के क़ाबिल थे और उनका बेटा उसामह भी कमांडर बनने के क़ाबिल है।
पैग़म्बर ए अकरम (स) बिस्तर पर लेटकर भी लोगों से बार बार यही कह रहे थे कि उसामह के लश्कर में शामिल हो जाओ। इसके बाद पैग़म्बर (स) की तबीयत बिगड़ गई जिसे देख आप (स) के घर की औरतें और बच्चे रोने लगे, थोड़ी देर बाद पैग़म्बर ए अकरम (स) ने आंख खोली और हुक्म दिया कि क़लम और दवात ले आओ ताकि तुम्हारे लिए ऐसा नुस्ख़ा लिख दूं जिसके बाद कभी गुमराह नहीं होंगे, पैग़म्बर ए अकरम (स) के हुक्म के बाद कुछ लोग क़लम और दवात लेने चले गए इसी बीच वहीं बैठे एक शख़्स ने कहा: पैग़म्बर (स) पर बीमारी का असर है इसलिए (मआज़ अल्लाह) वह हिज़यान बक रहे हैं,
तुम लोगों के पास क़ुरआन है और वही अल्लाह की किताब तुम लोगों के लिए काफ़ी है, इस शख़्स की घटिया बातों का कुछ लोगों ने विरोध भी किया लेकिन कुछ उसके तरफ़दार भी दिखाई दिए, उसी चीख़ पुकार के बीच वह पैग़म्बर ए आज़म (स) जिन्होंने पूरी ज़िंदगी इत्तेहाद और एकता को क़ायम करने में गुज़ार दी वह यह सब हालात देखकर काफ़ी नाराज़ हुए और उन सभी को अपने पास से भगा दिया।
फिर पैग़म्बर ए करीम (स) ने इमाम अली अलैहिस्सलाम की ओर देखा और उनसे वसीयत करना शुरू की और कहा: ऐ अली! थोड़ा क़रीब आओ और फिर पास बुलाकर आप ने अपनी ज़ेरह, तलवार, अंगूठी और मोहर हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी और फ़रमाया: ऐ अली! जाओ, अब घर चले जाओ, इसके बाद पैग़म्बर ए अकरम (स) आंख बंद कर के आराम करने लगे, कुछ देर बाद आप (स) की तबीयत फिर बिगड़ी और इस बार जब कुछ बेहतर हुई तो आप (स) ने घर की औरतों से कहा कि मेरे भाई और मेरे सबसे क़रीबी को बुलाओ, उन्होंने अबू बक्र को बुला दिया वह जब आए तो पैग़म्बर ए अकरम (स) ने फिर कहा मेरे भाई और मेरे सबसे क़रीबी को बुलाओ, उन्होंने इस बार उमर को बुला दिया उन्हें देखकर फिर पैग़म्बर (स) ने अपनी बात दोहराई,
तभी वहां मौजूद जनाबे उम्मे सलमा ने कहा कि अली (अ) को बुला रहे हैं, आख़िरकार इमाम अली अलैहिस्सलाम को बुलाया गया, इमाम अली (अ) तशरीफ़ लाए उसके बाद पैग़म्बर (स) और इमाम अली (अ) ने कुछ देर एक दूसरे के कान में कुछ बातें कीं, जब इमाम अली (अ) से इस बारे में पूछा गया तो आप ने कहा: रसूले ख़ुदा (स) ने मुझे इल्म के हज़ार दरवाज़े तालीम दिए हैं और इन में से हर दरवाज़े से हज़ार दरवाज़े खुल गए और मुझसे कुछ बातें कहीं हैं जिनपर मैं अमल करूंगा।
ज़िंदगी के एकदम आख़िरी दिनों में जनाबे बिलाल हबशी को बुलाया ताकि लोगों को मस्जिद में जमा करें, उसके बाद आप ने एक ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया और लोगों से कहा अगर किसी का कोई हक़ मेरे ज़िम्मे है तो वह मांग ले, किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, पैग़म्बर ए अकरम (स) ने इसी बात को तीन बार दोहराया तभी एक ग़ुलाम खड़ा हुआ और अपने हक़ का सवाल किया और पैग़म्बर (स) से बदला लेने के लिए एक कोड़ा हाथ में उठाया लेकिन जैसे ही पैग़म्बर (स) के पास आया आप (स) से लिपटकर रोने लगा, पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: यह जन्नत में मेरा साथी होगा, फिर एक बीवी का हवाला देते हुए हज़रत अली (अ) को हुक्म दिया कि कुछ पैसा उनके पास रखा है उसे लेकर ग़रीबों और फ़क़ीरों में बांट दो।
जब आप (स) का बिल्कुल आख़िरी समय आया तो आप की बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) बहुत रो रहीं थीं, आप (स) ने उन्हें अपने पास बुलाया और कुछ कहा जिससे आप और ज़ियादा रोने लगीं, थोड़ी देर बाद फिर आप (स) ने कुछ कहा जिसे सुनकर आप मुस्कुराने लगीं, जब आप (स) से रोने और मुस्कुराने की वजह पूछी गई तो आप ने फ़रमाया कि पहली बार में आप (स) ने कहा: मेरी बेटी मैं इसी तकलीफ़ में इस दुनिया से गुज़र जाऊंगा जिसे सुनकर मैं रोने लगी थी और दोबारा में आप (स) ने कहा बेटी मेरे अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम में से सबसे पहले तुम मुझ से मुलाक़ात करोगी जिसे सुनकर मुस्कुराने लगी थी।
आप की ज़िंदगी के आख़िरी समय में आप (स) का सर इमाम अली अलैहिस्सलाम की गोद में था। पैग़म्बर ए अकरम (स) इस दुनिया से गुज़र गए, इमाम अली (अ) ने वसीयत के मुताबिक़ आप को ग़ुस्ल दिया और कफ़न पहनाया, फिर आप ने पैग़म्बर (स) के चेहरे को कफ़न से बाहर निकाला और चीख़ मारकर रोने लगे और कहा: ऐ अल्लाह के रसूल!
आप की वफ़ात से नबुव्वत और वही (क़ुरआन) का सिलसिला ख़त्म हो गया और आसमानी ख़बरों का सिलसिला भी ख़त्म हो गया, ऐ अल्लाह के नबी! अगर आप ने सब्र करने का हुक्म न दिया होता तो मैं इतना रोता कि मेरी आंखों की रौशनी चली जाती, फिर आप ने पैग़म्बर ए अकरम (स) को ख़ुद उस क़ब्र जिसे अबू उबैदा और ज़ैद इब्ने सहल ने घर के एक कमरे ही में खोदी थी उसमें दफ़्न कर दिया।