दुआ से क्या मिलता है ?
अल्लाह तआला क़ुरआने करीम में फ़रमाता है-
’’وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ فَلْيَسْتَجِيبُواْ لِي وَلْيُؤْمِنُواْ بِي لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُونَ‘‘
जब मेरे बंदे आप से मेरे बारे में पूछें तो उनसे कह दें- मैं उनसे बहुत क़रीब हूँ। जब वह मुझे पुकारते हैं तो मैं जवाब देता हूँ। इसलिये वह मुझे पुकारें, मुझसे दुआ करें और मुझ पर ईमान रखें ताकि उन्हें हिदायत मिल सके।
दुआ में तीन फ़ायदे हैं और कोई भी दुआ इन दो फ़ायदों से ख़ाली नहीं है। चाहे मासूम इमामों की दुआएं हों या वह दुआएं जो इन्सान ख़ुद से अपनी ज़बान में करता है। दो चीज़ें सब दुआओं में हैं लेकिन कुछ ऐसी होती हैं जिनमें तीन चीज़ें हैं।
पहली चीज़- ख़ुदा से मांगना और पाना
इन तीन चीज़ों में से एक ख़ुदा से मांगना है और उससे पाना है। हम इन्सानों की बहुत सी ज़रूरतें हैं जो हम ख़ुदा से कहते हैं। हम इन्सानों को हमेशा ख़ुदा की ज़रूरत है। छोटे से छोटा काम करने के लिये भी हमें इसकी ज़रूरत है। हम अगर चलते हैं, खाते पीते हैं, काम काज करते हैं, देखते और सुनते हैं यहाँ तक कि साँस भी लेते हैं उसकी दी हुई ताक़त से। उसनें हमें ताक़त दी, क्षमता दी तो हम हर काम कर पाते हैं वरना अगर वह हमसे ताक़त ले ले तो हम कुछ भी नहीं कर सकते। अगर हमारे बदन के किसी एक हिस्से की ताक़त कम हो जाए या उसमें कोई समस्या हो जाए तो पूरे बदन का सिस्टम बिगड़ जाता है। इसलिये हम अपने हर काम में ख़ुदा के ज़रूरत मंद हैं। इसके अलावा जीवन की जो दूसरी ज़रूरतें हैं वह कौन पूरी करेगा? घर, पैसा, नौकरी, शादी। जीवन की जो समस्याएं हैं उनको कौन दूर करेगा?
’’وَاسْأَلُواْ اللّهَ مِن فَضْلِهِ إِنَّ اللّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا‘‘(سورہ نساء32- (
अल्लाह से मांगो क्योंकि वह अच्छी तरह जानता है कि तुम्हे किन चीज़ों की
ज़रूरत है। दूसरी जगह फ़रमाता है-
’’اُدْعُونِي أَسْتَجِبْ لَكُمْ‘‘(سورہ غافر60-(
मुझसे मांगो मैं तुम्हे दूँगा। अलबत्ता यह ज़रूरी नहीं है कि इन्सान जब, जिस समय जो चीज़ मांगे वह उसी समय उसे मिल जाए। हो सकता है ख़ुदा की नज़र में जो चीज़ इन्सान मांग रहा हो वह उसके लिये सही न हो या हो सकता है उस समय न दे बल्कि सही अवसर आने पर दे जब इन्सान को बहुत ज़्यादा ज़रूरत हो।
इस मांगने को बहुत ज़्यादा महत्व दिया गया है। हदीस में इसे सबसे बड़ी इबादत बताया गया है।
’’اَفضَلُ العِبَادَة الدُّعاءُ ‘‘
यह इन्सान को दुश्मनों से बचाती है और इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन उसका नफ़्स और शैतान है। रसूलुल्लाह नें फ़रमाया- क्या मैं तुम्हे एक ऐसे हथियार के बारे में बताऊँ जो तुम्हे दुश्मन से हमेशा बचाए? सबने कहा- हाँ ऐ अल्लाह के नबी बताइये। आपने फ़रमाया-
’’تدعون ربّكمباللّیل و النّهارفإنّ سلاح المؤمن الدّعا ‘‘
दिन रात अपने ख़ुदा को पुकारो इसलिये कि मोमिन का हथियार दुआ है। इमाम सज्जाद अ. एक हदीस में फ़रमाते हैं-
’’اَلدُّعَاءُ یَدفَعُ البَلَاءَ نَازلٍ وَ مَا لَم یَنزِل ‘‘
दुआ हर मुसीबत को दूर करती है चाहे वह आ चुकी हो या आने वाली हो।
यह एक महत्वपूर्ण चीज़ है कि ख़ुदा नें इन्सान को एक ऐसा रास्ता बताया है जिससे वह जिससे उसकी ज़रूरतें भी पूरी हो सकती हैं। उसके जीवन की समस्याएं भी दूर हो सकती हैं और उसे मुसीबतों से भी छुटकारा मिल सकता है। हज़रत अली अ. की एक हदीस है जिसमें आप फ़रमाते हैं- ख़ुदा नें अपने सारे ख़ज़ाने तुझे दे दिये और उनकी चाभी भी दे दी। अब तू जब चाहे उस चाभी द्वारा उन ख़ज़ानों के दरवाज़े खोल सकता है। वह चाभी क्या है? दुआ।
एक सवाल
यहाँ मन में कुछ सवाल उठते हैं। एक सवाल यह है कि जब दुआ के द्वारा इतना कुछ हो सकता है तो दुनिया में जो दूसरी चीज़ें हैं। साइंस व टेक्नालॉजी नें जो इतनी चीज़ें बनाई हैं उनकी क्या ज़रूरत है? जवाब यह है कि दुआ उनकी विरोधी नहीं है। ऐसा नहीं है कि अगर इन्सान सफ़र पर जाना चाहे तो गाड़ी से जाए या दुआ करे और पहुँच जाए। या ऐसा नहीं है कि अगर इन्सान को किसी चीज़ की ज़रूरत है तो वह बाज़ार न जाए और पैसे ख़र्च न करे, दुआ करे वह चीज़ हाज़िर हो जाए बल्कि दुआ का मतलब यह है कि आप ख़ुदा से यह चाहें कि वह आपके लिये पैसों का या गाड़ी का प्रबंध करे। जब आपको किसी चीज़ की ज़रूरत होती है और आप दुआ करते हैं या कोई समस्या होती है और आप ख़ुदा से दुआ करते हैं तो ख़ुदा इसी दुनिया की चीज़ों द्वारा आपकी ज़रूरत पूरी करता है या आपकी समस्या दूर करता है। आप पढ़े लिखे और मेहनती जवान हैं, आपको एक अच्छी जॉब की ज़रूरत है, आप ख़ुदा से दुआ करते हैं कि आपको एक अच्छी जॉब मिल जाए। आप उठते हैं, जॉब ढ़ूँढ़ते हैं, दौड़ धूप करते हैं, ख़ुदा आपके लिये प्रबंध करता है और आपको जॉब मिल जाती है। दुआ इस बात का कारण नहीं बनना चाहिये कि हम इल्म, साइंस, टेक्नालॉजी, मेहनत और दूसरी नेचुरल चीज़ों से मुँह मोड़ लें। दुआ इनकी विरोधी नहीं है बल्कि हमारे लिये इन्ही चीज़ों का प्रबंध करने वाली है। ज़्यादातर ऐसा ही होता है। हाँ हो सकता है कभी अल्लाह कोई चमत्कार भी दिखाए। कोई करिश्मा भी हो जाए लेकिन ऐसा बहुत कम और बहुत ख़ास अवसर पर होता है। इसलिये केवल दुआ काफ़ी नहीं है बल्कि उसके साथ मेहनत और कोशिश भी ज़रूरी है। कोई यह न सोचे कि अगर वह बिना कुछ किये, बिना मेहनत के, बिना इरादे के घर बैठे बैठे दुआ करेगा तो उसे सब कुछ मिल जाएगा। जी नहीं! ऐसा नहीं है। ऐसा कभी नहीं होता बल्कि कभी कभी ऐसा भी होता है कि हम कोशिश करते हैं, मेहनत करते हैं लेकिन कुछ नहीं होता लेकिन जब मेहनत और कोशिश के साथ दुआ करते हैं तो काम हो जाता है अलबत्ता इन्सान का ध्यान इस ओर नहीं जाता कि यह काम उसकी दुआ के कारण हुआ है। वह यह सोचता है कि यह उसकी अपनी मेहनत है। मेहनत भी बहुत कुछ करती है, लेकिन सब कुछ नहीं करती।
कुछ दुआएं क्यों पूरी नहीं होती?
कभी इन्सान दुआ करता रहता है लेकिन पूरी नहीं होती, कारण क्या है? बहुत सी हदीसों में इसका जवाब दिया गया है। जैसे हदीसों में है कि अगर दुआ उसकी शर्तों के साथ न की जाए तो वह पूरी नहीं होती। जैसे दुआ की एक शर्त यह है ऐसे कामों की दुआ न की जाए जो हो ही नहीं सकते। जैसे एक हदीस में है कि रसूलुल्लाह का का एक सहाबी उनके सामने दुआ कर रहा था, उसने ख़ुदा से दुआ की- ख़ुदाया! मुझे ऐसा बना कि दुनिया में मुझे किसी की ज़रूरत न पड़े। रसूलुल्लाह नें सुना तो उस से कहा- यह दुआ न करो। क्या यह हो सकता है कि तुम्हे दुनिया में किसी की ज़रूरत न पड़े? हम सभी इन्सानों को एक दूसरे की ज़रूरत है। हमारे बहुत से काम एक दूसरे की सहायता के बिना हो ही नहीं सकते। उसनें पूछा- अल्लाह के रसूल! फिर किस तरह दुआ करूँ? फ़रमाया- दुआ करो कि ख़ुदाया! मुझे बुरे और नीच लोगों के सामने हाथ न फैलाना पड़े। इसलिये ख़ुदा से दुआ करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि ऐसी दुआ न करें जो दुनिया के नैचुरल क़ानून के विरुद्ध हो।
दिल से दुआ करें
दुआ की एक शर्त यह है कि केवल ज़बान से न हो। ख़ुदाया मुझे माफ़ कर दे। ख़ुदाया मेरे रिज़्क़ में बरकत दे दे। ख़ुदाया मेरा क़र्ज़ा उतर जाए। अगर इन्सान दिल से न कहे केवल ज़बान से यह शब्द दोहराता रहे तो उसकी दुआ क़ुबूल नहीं होगी। हदीस में है कि ख़ुदा ग़ाफ़िल दिल की दुआ नहीं सुनता। यानी एक इन्सान को पता ही नहीं कि क्या मांग रहा है, किस से मांग रहा है। ज़बान कुछ कह रही है, ध्यान कहीं और लगा हुआ है, ऐसे इंसान की दुआ पूरी नहीं होती। ख़ुदा से दुआ करते हुए मांगें, यह दुआ की शर्त है।
शरमाएं नहीं, हर छोटी-बड़ी चीज़ मांगें
ख़ुदा से हर चीज़ मांगें। छोटी से चोटी चीज़ और बड़ी से बड़ी चीज़। कभी यह न सोचें कि पता नहीं इतनी बड़ी चीज़ अल्लाह से मांगनी चाहिये। ख़ुदा के यहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं है। उसे तो इस बात का कोई डर नहीं है कि मेरा बंदा कितनी बड़ी चीज़ मुझसे मांगेगा, मैं उसे दे पाउँगा कि नहीं। वह जनाबे सुलैमान को पूरी दुनिया की हुकूमत भी दे सकता है। हमारी दुआ इससे बड़ी तो नहीं होगी। दूसरी ओर छोटी छोटी चीज़ों के मांगने में भी शरमाना नहीं चाहिये। ख़ुदाया मेरे पास जूता नहीं है, जूता चाहिये। ख़ुदाया एक जोड़ी कपड़ा चाहिये। क्या इस तरह की चीज़ें भी ख़ुदा से मांगी जा सकती हैं? जी हाँ, मांगी जा सकती हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अ. फ़रमाते हैं-
’’لَا تُحَقِّرُوا صغیراً مِن حَوَائِجِكُم فَإِنَّأَحَبّ المُؤمِنِینَ إِلىٰ اللَّهِ أَسئَلُهم‘‘
अपनी छोटी छोटी ज़रूरतों को छोटा न समझिये। जान लो ख़ुदा उस बंदे से सबसे ज़्यादा मोहब्बत करता है जो उससे ज़्यादा मांगता है। इसलिये सब कुछ ख़ुदा से मांगें लेकिन उसकी शर्तों को न भूलें।