शताब्दियों के इंतेज़ार का क्षण खत्म हुआ और मानवजाति के सबसे बड़े मार्गदर्शक ने इस दुनिया में क़दम रखा।
ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ इंसान का जन्म हुआ, पूरी सृष्टि के लिए कृपा की वर्षा हुयी, दया व मार्गदर्शन का सोता फूटा और मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का प्रकाश मलकूती नामक आध्यात्मिक जगत पर छा गया।
ज्योतिषियों ने क़सम खायी कि उन्होंने ऐसे चमकदार सितारे को देखा है जिसके उदय से दुनिया में उथल पुथल मच जाएगी। उस समय हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा प्रकाश के हल्क़े में पैदा हुए। उनकी पैदाइश से अज्ञानता व भेदभाव के मरुस्थलीय रूप ने मोहब्बत व विचार के चमन का रूप धारण कर लिया। इंसान के जीवन में ठहराव आया। ईश्वर का संदेश लाने वाली इस हस्ती ने 17 रबीउल अव्वल को पवित्र नगर मक्के में एक सज्जन परिवार में आंखे खोलीं। जिनकी पैदाइश से ईश्वर पर आस्था रखने वालों के मन में ईश्वर की पहचान का सोता फूटा। ईश्वर ने उनके वजूद से पूरी मानव जाति को कृपा का तोहफ़ा भेजा। इस शुभ अवसर पर एक बार फिर आप सबको बधाई पेश करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम की मां हज़रत आमेना कहती हैं, "उस दिन मानो ईश्वरीय आभा मुझ पर छाया किए हुए थी। एक चमकता प्रकाश मेरे सिर के ऊपर से आसमान में गया। मेरे चारों ओर ईश्वरीय फ़रिश्ते उतरे और मैं अपने भीतर शांति का आभास करने लगी। पूरा कमरा प्रकाशमान हो गया और मेरा बेटा मोहम्मद दुनिया में आया। उनका चेहरा अपने पिता अब्दुल्लाह की तरह था लेकिन मोहम्मद अधिक सुंदर और उनके चेहरा अधिक आकर्षक था। उनके माथे पर आसमानी प्रकाश था जो बहुत ही सुंदर ढंग से चमक रहा था। मोहम्मद ने एक हाथ को ज़मीन पर और दूसरे हाथ को आसमान की ओर उठाया।उन्होंने बहुत ही सुंदर अंदाज़ में ईश्वर के अनन्य होने की गवाही दी। फ़रिश्तों ने उन्हें अपनी गोद में लिया और मुझे बधाई दी और बहुत ही स्वादिष्ट शर्बत मुझे पिलाया। उनमें से एक ने ऊंची आवाज़ में कहा, हे आमिना! अपने बेटे को ईश्वर के हवाले कर दो और कहो! उसे ईर्ष्या व द्वेष रखने वाले की बुराई से अनन्य ईश्वर की शरण में देती हूं।"
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब हज़रत आमिना के पास पहुंचे और प्रकाश की तरह दमकते हुए इस नवजात को अपनी गोद में ले लिया और मस्जिदुल हराम ले गए ताकि ईश्वर का आभार प्रकट करें कि उसने उनके परिवार में ऐसे बच्चे को जन्म दिया। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब काबे के भीतर गए। जिस समय हज़रत अब्दुल मुत्तलिब काबे में दाख़िल हो रहे थे कि उसी वक़्त बच्चे ने अपना मुंह खोला और काबे के भीतर यह आवाज़ गूंजने लगी बिस्मिल्लाह व बिल्लाह। इस दौरान एक आवाज़ आयी, "हे संसार के लोगों सत्य आया और असत्य मिट गया और असत्य तो मिटने ही वाला है।"
पैग़म्बरे इस्लाम जब 12 साल के थे तो अपने चाचा हज़रत अबू तालिब के साथ सीरिया के व्यापारिक सफ़र पर गए। रास्ते में कारवां ने एक उपासनास्थल में पड़ाव डाला। उस उपासनास्थल में एक नेक पादरी रहता था जिसका नाम बुहैरा था। बुहैरा मुसाफ़िरों का आव-भगत करते थे। जब मुसाफ़िर उपासनास्थल पहुंचे तो बुहैरा ने पूछाः कोई बाक़ी तो नहीं रह गया है? हज़रत अबू तालिब ने कहा, सिर्फ़ एक किशोर बाहर है। बुहैरा ने कहा कि उस किशोर को भी बुला लाइये। जिस वक़्त हज़रत मोहम्मद दाख़िल हुए तो बुहैरा ने हैरत से पूछाः मेरा एक सवाल है। मैं आपको लात और उज़्ज़ा की मूर्तियों की क़सम देता हूं कि सच बताइयेगा! हज़रत मोहम्मद ने जवाब दिया, मेरे निकट ये दोनों सबसे ज़्यादा अप्रिय चीज़ें हैं। बुहैरा ने कहा, आपको महान ईश्वर की क़सम देता हूं कि सच कहिएगा। हज़रत मोहम्मद ने कहा, "मैं हमेशा सच बोलता हूं।" बुहैरा ने पूछा, क्या चीज़ सबसे ज़्यादा पसंद है? हज़रत मोहम्मद ने कहा, एकान्त। बुहैरा ने कहा, "विभिन्न दृष्यों में कौनसा दृष्य सबसे ज़्यादा पंसद है?" हज़रत मोहम्मद ने कहा, "आसमान और तारे।" बुहैरा ने कुछ और सवालों के बाद हज़रत मोहम्मद के शानों को देखने की इच्छा जतायी क्योंकि बुहैरा अपने ज्ञान से समझ चुके थे कि मोहम्मद वही पैग़म्बर हैं जिनके आगमन की हज़रत ईसा शुभसूचना दे चुके थे। बुहैरा ने बड़ी उत्सुकता से हज़रत अबू तालिब से पूछाः यह बच्चा कौन है? हज़रत अबू तालिब ने कहा, मेरा बेटा है। बुहैरा ने कहा, नहीं! इस किशोर के पिता को जीवित नहीं होना चाहिए। हज़रत अबू तालिब ने हैरत से पूछाः आपको यह बातें कहां से मालूम हुयीं? बुहैरा ने कहा, इस किशोर का भविष्य बहुत अहम है। जो कुछ मैने उनमें देखा है दूसरे भी उसे देख कर समझ गए तो उन्हें मार डालेंगे। उनकी रक्षा करो क्योंकि यह अंतिम ईश्वरीय दूत हैं।
हज़रत मोहम्मद अपने दौर के दूषित समाज से बहुत दुखी थे। जैसे जैसे हज़रत मोहम्मद के विचार में गहरायी आती थी वैसे वैसे वह अपने और आम लोगों के बीच वैचारिक खाई को बढ़ता हुआ देखते थे। वह ज़्यादातर वक़्त हेरा नामक गुफा में बिताते और दुनिया की स्थिति के बारे में सोच विचार करते और ईश्वर की उपासना में समय बिताते। जब वह 40 साल के हुए तो एक दिन हेरा नामक गुफा में उपासना में लीन थे कि ईश्वरीय संदेश वही लाने वाला फ़रिश्ता प्रकट हुआ और उसने ईश्वर की ओर से पवित्र क़ुरआन की सबसे पहले उतरने वाली कुछ आयतें पढ़ीं।
पैग़म्बरे इस्लाम नैतिक मूल्यों के बाद लोगों के बीच एकता को मानव जाति की सफलता के लिए बहुत ज़रूरी मानते थे इसलिए उन्होंने एक दूसरे की दुश्मन जातियों को आपस में एकजुट किया और उनके मन में द्वेष के स्थान पर मोहब्बत और बिखराव की जगह पर एकता व भाईचारे का बीच बोया। पैग़म्बरे इस्लाम ने मदीना पलायन करने के पहले साल जो सबसे अच्छी पहल की वह यह थी कि उन्होंने सभी मुसलमानों के बीच चाहे वे मर्द हों या औरत बंधुत्व की संधि क़ायम की। यह ऐसी संधि थी जो जातीय व क़बायली भावना से हट कर सत्य व सामाजिक सहयोग की भावना पर आधारित थी।
यूं तो हर ईश्वरीय पैग़म्बर अच्छे व्यवहार व शिष्टाचार के स्वामी होते थे लेकिन अंतिम ईश्वरीयदूत हज़रत मोहम्मद मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इस दृष्टि बहुत ही ऊंचे स्थान पर हैं। जैसा कि ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि मैं इसलिए पैग़म्बरी के लिए नियुक्त हुआ हूं कि नैतिकता को उसके चरम पर पहुंचाऊं। स्वंय ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार की तारीफ़ में पवित्र क़ुरआन में कहा है कि हे पैग़म्बर अगर आप अच्छे स्वभाव के न होते तो लोग आपसे दूर हो जाते। पैग़म्बरे इस्लाम का मेहरबान स्वभाव हर एक को सम्मोहित कर लेता था।
पैग़म्बरे इस्लाम जिस रास्ते से गुज़रते थे हर दिन एक यहूदी अपने घर की छत से उन के सिर पर मिट्टी डालता था, लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम ख़ामोशी से गुज़र जाते और उसे कुछ नहीं कहते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि जब पैग़म्बरे इस्लाम उस रास्ते से गुज़रे तो उस यहूदी ने उन पर कूड़ा नहीं फेंका। आपने बहुत ही मीठे स्वर में पूछा कि आज मेरा दोस्त नज़र नहीं आया। लोगों ने बताया कि वह बीमार है। तो आप उसे देखने के लिए गए। उसके बिस्तर के किनारे इस तरह बैठ गए मानो उस व्यक्ति से किसी तरह का कोई कष्ट न पहुंचा हो। वह यहूदी पैग़म्बरे इस्लाम के इस व्यवहार से हैरत में पड़ गया।
जिस समय मक्का फ़त्ह हुआ और पैग़म्बरे इस्लाम पूरी शान के साथ मक्के में दाख़िल हुए तो इस्लाम का ध्वज उठाने वाले एक शेर पढ़ रहे थे जिसका अर्थ है, आज लड़ाई का दिन है। आज तुम्हारी जान माल हलाल समझी जाएगी और आज क़ुरैश के अपमान का दिन है। पैग़म्बरे इस्लाम ने जब यह सुना तो नाराज़ हुए और तुरंत कहा, आज कृपा का दिन है। आज क़ुरैश के सम्मान का दिन है। आज वह दिन है कि ईश्वर ने काबे को इज़्ज़त दिलायी।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "ईश्वर का शुक्रिया कि उसने इतनी सारी जातियों में हमारे बीच हज़रत मोहम्मद को भेजा। हे ईश्वर उन पर अपनी कृपा नाज़िल कर जो तेरी वही के अमानतदार, तेरे बंदों में सबसे अच्छे बंदे हैं। वे अच्छाइयों के ध्वजवाहक और बरकत की कुन्जी हैं। हे प्रभु! उन्होंने तेरे मार्ग में जो कठिनायी सहन की उसके बदले में उन्हें स्वर्ग में ऐसा स्थान दे कि कोई भी उनके स्थान तक न पहुंच सके कोई फ़रिश्ता और पैग़म्बर उनकी बराबरी न करे।"