सलाम हो ईश्वर का संदेश लाने वालों पर, सलाम हो उन पर जो ईश्वरीय दया की वर्ष की तरह प्यासी आत्माओं पर बरसते हैं और इंसान की मुरझाई हुई आत्मा को, उच्चतम ईश्वरीय शिक्षाओं की बारिश से प्रफुल्लित करते हैं।
ईश्वर का सलाम हो ईसा मसीह पर जिन्होंने मरे हुए लोगों को जीवित और सोए हुए लोगों को जागृत किया। सलाम हो उनकी महान माता पर जिन्होंने न्याय व शांति की प्यासी मानवता को इस प्रकार के इंसान का तोहफ़ा दिया और सलाम हो हज़रत ईसा के सच्चे अनुयाइयों पर जो उनकी और अन्य ईश्वरीय दूतों की उच्च शिक्षाओं व विचारों का प्रचार करते हैं।
25 दिसम्बर ईश्वरीय पैग़म्बर हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस है, वे ऐसे पैग़म्बर थे जो संसार के सभी लोगों को प्रेम और ईश्वरीय खोज की शुभ सूचना देने वाले थे। उन्होंने ईश्वर के आदेश पर झूले से ही बात करना शुरू कर दी और निश्चेत लोगों को इस प्रकार संबोधित कियाः मैं ईश्वर का बंदा हूं, उसने मुझे (आसमानी) किताब दी है और मुझे पैग़म्बर बनाया है। मैं जहां भी रहूं मुझे बरकत वाला बनाया है और जब तक मैं जीवित हूं मुझे नमाज़ और ज़कात की सिफ़ारिश की है। (ईश्वर का) सलाम हो मुझ पर जिस दिन मैंने जन्म लिया, जिस दिन मैं मरूंगा और जिस दिन पुनः उठाया जाऊंगा।
हज़रत ईसा मसीह उस काल में दुनिया में आए जब विभिन्न यहूदी गुटों के बीच अपने धर्म के बारे में अत्यधिक मतभेद फैला हुआ था। सेडूसीज़ और फ़ैरीसीज़ जैसे दो मुख्य गुटों का लोगों की आस्थाओं पर गहरा प्रभाव था। सेडूसीज़ गुट में अधिकतर धन संपन्न लोग और धर्मगुरू थे जो अपनी धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए रोम साम्राज्य से सहयोग करते थे और यूनानी संस्कृति से उनका कोई टकराव नहीं था क्योंकि उनका मानना था कि ईश्वर ने अपनी पवित्र किताब के आचरण और शिष्टाचार ग़ैर यहूदियों में भी प्रसारित किए हैं।
इसके मुक़ाबले में फ़ैरीसीज़ गुट था जिसमें अधिकतर साधारण लोग थे जो धर्मगुरू तो न थे लेकिन उनका प्रभाव सेडूसीज़ से अधिक था। उनका मानना था कि यहूदी जाति को अन्य लोगों से अलग होना चाहिए, उन्हें दूसरों का अनुसरण नहीं करना चाहिए और उनके साथ घुल मिल कर नहीं रहना चाहिए। उनका कहना था कि यहूदियों को अपने धर्म व संस्कृति के मूल्य पर धन व सत्ता हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। फ़ैरीसीज़ गुट फ़िलिस्तीन में हर जगह मौजूद था और उन्होंने उन उपासना स्थलों पर भी अपना नियंत्रण जमा लिया था जो यहूदियों ने बैतुल मुक़द्दस के बाहर बनाए थे और जहां वे अध्ययन और उपासना के लिए एकत्रित होते थे।
इन दो गुटों के अलावा यहूदियों में सामेरी और ज़िलोट्स जैसे कुछ अन्य गुट भी मौजूद थे। सामेरियों को अन्य मत के लोग काफ़िर मानते थे जबकि ज़िलोट्स युद्धक गुट था जो रोमियों के हाथों फ़िलिस्तीन के अतिग्रहण के ख़िलाफ़ आतंकवाद का सहारा लेता था। यह गुट न केवल रोम वालों को बल्कि अपने विचार में पर्याप्त धर्म परायणता न रखने वाले अपने हमवतन यहूदियों को हमलों का निशाना बनाता था।
हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम इस प्रकार के वातावरण में पैदा हुए। यहूदी जाति के विद्वानों को, अपनी प्राचीन किताबों और भविष्यवाणियों के माध्यम से उनकी विशेषताओं का ज्ञान था लेकिन उन्होंने आरंभ में ही उन सभी बातों की अनदेखी कर दी और इस ईश्वरीय पैग़म्बर के मुक़ाबले में उठ खड़े हुए। उन्होंने पहले क़दम के तौर पर हज़रत ईसा मसीह की माता पर व्यभिचार का आरोप लगाया ताकि मां और बेटे दोनों को लोगों की नज़रों से गिरा दें। लेकिन हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने झूले में ही यह कह कर उनके सभी षड्यंत्रों को विफल बना दिया कि मैं ईश्वर का बंदा हूं, उसने मुझे किताब अर्थात इंजील दी है और मुझे पैग़म्बर बनाया है। इस प्रकार मां और बेटा दोनों शत्रुओं के षड्यंत्रों से सुरक्षित रहे।
हज़रत ईसा मसीह सन तीस ईसवी के आस-पास पैग़म्बरी के पद पर नियुक्त हुए। जैसा कि इंजील से पता चलता है उन्होंने लोगों के बीच अपनी पैग़म्बरी की घोषणा की। उन्होंने लोगों को अपने अनुसरण का निमंत्रण दिया और कोशिश की कि यहूदियों के बीच प्रचलित हो जाने वाली पथभ्रष्टताओं का मुक़ाबल करें। उन्होंने यहूदियों के बीच वर्जित व वैध बातों को लेकर जो मतभेद थे उन्हें स्पष्ट किया और कुछ चीज़ें जो उनके लिए वर्जित हो गई थीं, उन्हें वैध घोषित किया। मत्ता की इंजील में लोगों को संबोधित करते हुए उनका जो पहला वाक्य लिखा हुआ है वह यह है कि हे लोगो! तौबा व प्रायश्चित करो कि आकाश का राज्य निकट है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम लोगों के मार्गदर्शन के साथ ही रोगियों को भी स्वस्थ कर देते थे। वह जन्मजात अंधे को आंखें प्रदान कर देते थे, कोढ़ियों को ठीक कर देते थे और मर जाने वालों को जीवित कर देते थे। वे मिट्टी से पक्षी बनाते और उसमें फूंक मारते थे तो ईश्वर की आज्ञा से उसमें जान पड़ जाती थी। हज़रत ईसा मसीह वंचितों और कमज़ोरों के सहायक थे और बच्चों व महिलाओं के साथ अत्यधिक भलाई करते थे लेकिन इसी के साथ वे कुछ फ़ैरीसीज़ की कड़ाइयों और कट्टरपंथी ज़िलोट्स के अतिवाद के विरोधी थे।
हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन और यहूदियों को सही मार्ग पर लाने में अत्यधिक कठिनाइयां सहन कीं। इन कठिनाइयों और दुखों के दौरान उन्हें यह समझ में आया कि बनी इस्राईल के कुछ लोग, जो उनके विरोध और पाप पर आग्रह कर रहे हैं, अपनी पथभ्रष्टता नहीं छोड़ेंगे। इस लिए वे लोगों के बीच गए और उनसे पूछा कि ईश्वर के मार्ग में कौन मेरी मदद करेगा? कुछ ही लोगों ने उनकी बात का सकारात्मक जवाब दिया। ये वे पवित्र लोग थे जिन्हें ईश्वर ने क़ुरआने मजीद में "हवारी" कहा है। हवारियों ने हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की हर तरह की मदद करने के लिए अपनी तैयारी की घोषणा की और कहा कि हम ईश्वर के (धर्म) के सहायक हैं। हम ईश्वर पर ईमान लाए हैं और हे ईसा! आप भी गवाह रहिए कि हम ईश्वर के प्रति समर्पित हैं। प्रभुवर! जो कुछ तूने उतारा है हम उस पर ईमान लाए और हमने तेरे पैग़म्बर का अनुसरण किया अतः हमें उन लोगों की पंक्ति में रख जिन्होंने (हज़रत ईसा की पैग़म्बरी की) गवाही दी।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हवारियों के साथ फ़िलिस्तीन के उत्तरी क्षेत्रों में पहुंचे और उन्होंने लोगों को ईश्वर के वास्तविक धर्म से परिचित कराया। हज़रत ईसा लोगों को जो ईश्वरीय शिक्षाएं देते थे उनसे लोग आश्चर्यचकित जबकि समाज पर राज करने वाले क्रोधित हो जाते थे क्योंकि हज़रत ईसा यहूदी धर्म के प्रतिष्ठित लोगों के ऐश्वर्य में डूबने और भोग विलास का कड़ा विरोध करते थे। हज़रत ईसा के लिए किसी भी प्रकार के अपराध का कोई औचित्य नहीं है, इसी लिए अधिकतर लोग उनके विरोधी हो गए और उनकी हत्या की साज़िशें रची जाने लगीं। उन लोगों ने अपने इस निंदनीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए रोम के शासक को उकसाया और उससे कहा कि अगर यह स्थिति जारी रही तो तुम्हारा शासन समाप्त हो जाएगा अतः तुम्हारे पास अपने शासन को बचाने के लिए ईसा की हत्या करने के अलावा कोई मार्ग नहीं है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को उनके षड्यंत्र की सूचना मिल गई और वे हवारियों के साथ एक बाग़ में चले गए और वहीं पर छिप कर रहने लगे लेकिन यहूदा नाम के एक व्यक्ति ने उनके ठिकाने के बारे में शासक को बता दिया। सरकारी कारिंदों ने रात में वहां पर हमला किया और हवारियों को घेर लिया। हवारियों ने जब अपने को ख़तरे में देखा तो हज़रत ईसा को अकेले छोड़ दिया लेकिन उन ख़तरनाक क्षणों में ईश्वर ने उन्हें अकेला नहीं छोड़ा और उनकी मदद की। उसने उनके अस्तित्व को लोगों की नज़रों से ओझल कर दिया। इसी के साथ उसने यहूदा के चेहरे को, जो हमेशा हज़रत ईसा की चुग़ली किया करता था और उनके ठिकाने के बारे में सरकारी कारिंदों को बता दिया करता था, हज़रत ईसा जैसा बना दिया। इसके बाद सरकारी कारिंदों ने उसे हज़रत ईसा की जगह गिरफ़्तार कर लिया। यहूदा क्रोध व भय के कारण कुछ बोल ही नहीं पाया और जब वह बोलने योग्य हुआ तो किसी ने भी उसकी बात स्वीकार ही नहीं की और उसे सूली पर लटका दिया गया। देखने वालों को लगा कि हज़रत ईसा मार दिए गए लेकिन क़ुरआने मजीद के शब्दों में न उन्होंने ईसा की हत्या की और न ही उन्हें सूली पर लटकाया बल्कि बात उनके लिए संदिग्ध हो गई।
हज़रत ईसा मसीह को ईश्वर ने आसमान पर पहुंचा दिया जिसके बाद हवारियों ने उनके मार्ग को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी संभाली। हवारियों में से पीटर या शमऊन को, जो हज़रत ईसा पर सबसे पहले ईमान लाए थे, लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने हवारियों को हज़रत ईसा के आदेश के अनुसार बनी इस्राईल की विभिन्न जातियों और संसार के विभिन्न स्थानों पर भेजा ताकि वे हर जगह इंजील का संदेश पहुंचा दें।
एक दिन हज़रत ईसा हवारियों के पास गए और कहा कि मेरी एक इच्छा है, अगर तुम लोग वादा करो कि उसे पूरा करोगे तो मैं तुम्हें बताऊं। उन्होंने कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर आप जो भी आदेश देंगे, हम पूरा करेंगे। हज़रत ईसा अपने स्थान से उठे और उनके पैरों की ओर झुके। फिर उन्होंने उन सबके पैर धोने शुरू किए। हवारियों को बड़ी शर्म आई लेकिन चूंकि वे वादा कर चुके थे इस लिए वे ख़ामोश रहे। जब वे सबके पैर धो चुके तो हवारियों ने पूछाः हे ईश्वरीय पैग़म्बर! आप हमारे गुरू हैं, उचित तो यह था कि हम आपके पैर धोते, आपने हमारे पैर क्यों धोए? हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने कहाः मैंने यह इस लिए किया ताकि तुम्हें यह समझा सकूं कि लोगों की सेवा के लिए सबसे उचित व्यक्ति, ज्ञानी है। मैंने यह विनम्रता दर्शाने के लिए किया ताकि तुम लोग विनम्रता सीखो और मेरे बाद, जब लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व संभालो तो विनम्रता का मार्ग अपनाओ। मूल रूप से तत्वदर्शिता घमंड और अहंकार में नहीं बल्कि विनम्रता के बिस्तर पर फलती फूलती है जिस प्रकार से कि पौधा, न रेगिस्तान में और न पथरीली ज़मीन में बल्कि नर्म मिट्टी में उगता है।