इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्म पांच शाबान सन 38 हिजरी में हुआ था।
उन्होंने पवित्र नगर मदीना में आंखें खोली थीं। उन्के पिता का नाम इमाम हुसैन और माता का नाम शहरबानो था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन या इमाम सज्जाद का नाम अली था किंतु अधिक उपासना और तपस्या के कारण उन्हें ज़ैनुल आबेदीन के नाम से ख्याति मिली जिसका अर्थ होता है उपासना की शोभा। उनके बारे में कहा जाता था कि जब वे ईश्वर की उपासना में लीन हो जाते थे तो उनका सारा ध्यान ईश्वर की ही ओर होता था। कहते हैं कि जिस समय नमाज़ पढ़ने के उद्देश्य से इमाम सज्जाद वुज़ू के लिए जाते थे तो उनके चेहरे का रंग पीला पड़ जाता था। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि क्या तुमको नहीं पता है कि वुज़ू करके इन्सान, किसकी सेवा में उपस्थित होने जाता है।
अपने पिता इमाम सज्जाद के बारे में इमाम मुहम्मद बाक़र कहते हैं कि मेरे पिता जब भी ईश्वर की किसी विभूति का उल्लेख करते थे तो पहले ईश्वर के सामने नतमस्तक होते थे। आपके तेजस्वी मुख पर सजदे का निशान साफ दिखाई देता था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि उनके काल में आसमान के नीचे उन जैसा कोई था ही नहीं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी हराम नहीं खाया। इमाम सज्जाद ने हराम की तरफ़ कोई क़दम नहीं उठाया। उन्होंने जो कुछ भी किया वह ईश्वर की प्रशंसा के लिए किया।
बचपन में ही इमाम ज़ैनुल आबेदीन की माता का स्वर्गवास हो गया था। उन्होंने अपने जीवन के दो वर्षा अपने दादा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सत्ताकाल का समय देखा था। वे अपने चाचा इमाम हसन से बहुत प्यार करते थे। वे अपने चाचा इमाम हसन की सेवा में उपस्थित होकर आध्यात्म की शिक्षा लेते थे। जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन की आयु 12 वर्ष की थी उस समय उनके पिता इमाम हुसैन की इमामत का काल आरंभ हुआ था। सन 61 हिजरी क़मरी से इमाम सज्जाद की इमामत या ईश्वरीय मार्गदर्शन का काल आरंभ हुआ।
कहते हैं कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन, अपने दादा हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बहुत मिलते-जुलते थे। वे अपने दादा की ही भांति रात के समय अधिक से अधिक उपासना करते और क़ुरआन पढ़ा करते थे। उनके घर पर निर्धनों को खाना खिलाने के लिए दस्तरख़ान बिछता था जिसपर भूखे आकर खाना खाया करते थे। इसके अतिरिक्त वे छिपकर भी लोगों की सहायता करते थे। उनके समय में 300 से अधिक एसे ग़रीब परिवार थे जिनकी सहायता इमाम सज्जाद छिपकर किया करते थे और उन लोगों को यह पता नहीं था कि उन्हें खाने का सामान कौन देता है। वे मश्क में पानी भरकर रात के अंधरे में लोगों के घर पानी पहुंचाते थे। स्वयं वे बहुत ही सादा खाना खाते थे।
ईश्वरीय संदेश को लोगों तक पहुंचाने का दायित्व, प्रत्येक ईश्वरीय दूत का है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के कांधे पर वही दायित्व था जिसका निर्वाह हज़रत अली ने किया था। यह एक वास्तविकता है कि ईश्वरीय दूतों या ईश्वरीय प्रतिनिधियों की ज़िम्मेदारियां एक ही हैं किंतु काल के हिसाब से इनमें परिवर्तन होता रहता है। यही वजह है कि परिस्थितियों के कारण मूल सिद्धात में परिवर्तन नहीं किया जा सकता हां, शैलियों या तरीक़ों को बदला जा सकता है। सभी ईश्वरीय दूतों का यह दायित्व रहा है कि वे अत्याचार और पथभ्रष्टता के विरुद्ध आवाज़ उठाएं। इसी दायित्व का निर्वाह इमाम हसन और इमाम हुसैन ने भी किया। इतिहास बताता है कि इमाम हसन और इमाम हुसैन ने शैलियां अलग अलग अपनाई थीं किंतु दोनों का लक्ष्य एक ही था।
इतिहास बताता है कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के काल में इस बात का मौक़ा नहीं था कि लोगों को एकत्रित करके कुछ किया जाए। उमवी शासकों ने घुटन का ऐसा वातावरण बना दिया था जिसके कारण लोगों में भय व्याप्त हो चुका था। यह ऐसा ज़माना था कि जब न तो इमाम मुहम्मद बाक़र और इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल जैसा वातावरण था जहां लोगों को सरलता से ज्ञान दिया जा सके और न ही इमाम अली अलैहिस्सलाम के ज़माने जैसा काल था जब दुश्मन के विरुद्ध सेना बनाकर उसका मुक़ाबला किया जा सकता था। यही कारण है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने एक तीसरा रास्ता निकाला। वे जानते थे कि समाज में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। अनैतिक बातों को प्रचलित किया जा रहा है। शासन के विरुद्ध राजनीतिक दृष्टि से किसी भी प्रकार का काम करने का अवसर नहीं था।
इन सभी बातों के दृष्टिगत इमाम ने दुआओं के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन आरंभ किया। उन्होंने दुआओं के माध्यम से लोगों को संदेश देने का काम आरंभ किया। संघर्ष और प्रचार की इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की एक शैली दुआ थी। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने दुआ के परिप्रेक्ष्य में बहुत से इस्लामी ज्ञानों व विषयों को बयान किया और उन सबको सहीफये सज्जादिया नाम की किताब में एकत्रित किया गया है। इस किताब को अहले बैत की इंजील और आले मोहम्मद की तौरात कहा जाता है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम अपनी दुआओं के माध्यम से लोगों के मन में इस्लामी जीवन शैली के कारणों को उत्पन्न करते हैं। इमाम ने दुआ को महान व सर्वसमर्थ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का सबसे उत्तम साधन बताया वह भी उस काल में जब लोग दुनिया के पीछे भाग रहे थे। रोचक बात यह है कि इमाम जगह-जगह पर इमामत और अहलेबैत की सत्यता को बयान करते थे।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन की दुआएं उनके काल की घटनाओं की व्याख्या करती हैं। सहीफ़ए सज्जादिया की दुआओं ने बड़े-बड़े धर्मगुरूओं और साहित्यकारों को बहुत प्रभावित किया है। इमाम की दुआएं आने वाले समय में लोगों के लिए पाठ हैं। वास्तव में इमाम सज्जाद ने दुआओं के माध्यम से लोगों का प्रशिक्षण किया है। एक अमरीकी विद्धान और सहीफ़ए सज्जादिया के अंग्रेज़ी भाषा के अनुवादक "विलयम चिटिक" कहते हैं कि यह किताब विभिन्न चरणों में लोगों को ईश्वर के बारे में बताती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम या इमाम सज्जाद ने दुआओं का चयन करके न केवल अपने काल के लोगों को इस्लाम की शिक्षा दी बल्कि अपने बाद के लोगों के लिए भी ऐसा ख़ज़ाना छोड़ा जो हमेशा मानवता का मार्गदर्शन करता रहेगा।