पैग़म्बरे इस्लाम, धरती का सबसे प्राणदायक बसंत

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27 रजब की तारीख़ सृष्टि के पटल पर ईश्वर की महाशक्ति के जगमगा उठने का दिन है।

इस दिन पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा की गई। यह वह दिन है जब पैग़म्बरी की कली फूल बन गई और अध्यात्म के उपवन महक उठे। इसी दिन पैग़म्बरे इस्लाम का हृदय और मस्तिष्क ईश्वर के धर्म इस्लाम के नियमों का दर्पण बन गया। क़ुरआने मजीद इस घटना को पूरी मानवता पर ईश्वर के उपकार की संज्ञा देता है। क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या 164 कहती है कि ईमान वालों पर ईश्वर ने उस समय उपकार किया जब उनके बीच से पैग़म्बर का चयन किया जो निशानियों का उच्चारण करे और उन्हें हर प्रकार की त्रुटि और प्रदूषण से पवित्र बनाए और उन्हें किताब तथा अंतरज्ञान की शिक्षा दी। हालांकि वह लोग इससे पहले तक भ्रांति में थे। हम ईश्वर के इस महा उपकार पर उसका आभार व्यक्त करते हैं और ज्ञान व ज्योति के वातावरण में इंसान के प्रवेश के इस दिन के प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं।
जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम की आयु 40 साल हो गई ईश्वर ने उनके हृदय को सबसे अच्छा, सबसे बड़ा आज्ञापालक और विनम्र हृदय देखा तो उन्हें मानवता के मार्गदर्शन के लिए चुन लिया। इस अवसर पर ईश्वरीय कृपा उतरी। पैग़म्बरे इस्लाम ने दिव्य ज्योति में डूबे हुए ईश्वर के फ़रिश्ते जिबरईल को देखा कि वह विशालकाय आकाश से ज़मीन पर उतरे। जिबरईल नीचे उतरे और उन्होंने हज़रत मुहम्मद के कंधों को पकड़ा और दबाते हुए कहा कि हे मुहम्मद! पढ़ो! हज़रत मुहम्मद ने पूछा कि क्या पढूं? जिबरईल ने कहा पढ़ो अपने पालनहार के नाम से जिसने पैदा किया। जिबरईल को ईश्वर से जो संदेश मिला था वह उन्होंने हज़रत मुहम्मद को पहुंचा दिया और आसमान की ओर लौट गए। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इस घटना को विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद हिरा नामक गुफा से नीचे आए तो ईश्वर का वैभव देखकर उनकी यह हालत थी कि अपने ऊपर क़ाबू नहीं था। जिबरईल और ईश्वरीय वैभव को देखना इतनी बड़ी घटना थी कि वह इस तरह कांप रहे थे जैसे तेज़ बुख़ार में इंसान का शरीर कांपने लगता है। हज़रत मुहम्मद को यह आशंका थी कि उन्हें झुठलाया जाएगा या उन्हें पागल कह दिया जाएगा  हालांकि उनके बड़ा विवेकपूर्ण इंसान कोई नहीं था। इस स्थिति में ईश्वर ने उनसे सीने को चौड़ा और को शांत कर दिया। यही कारण था कि जब वह नीचे आ रहे थे तो रास्ते के सारे पत्थर और कंकरियां उन्हें सलाम कर रही थीं। वह सब कह रही थीं सलाम हो आप पर हे ईश्वर के  रसूल। मुबारक हो कि ईश्वर ने आपको महानता और आकर्षण दिया और पिछले तथा अगले सभी इंसानों से आपको श्रेष्ठ बनाया।
इस्लाम के इतिहास का बहुत महान अध्याय जिसने इंसानों की क़िसमत संवारने में निर्णायक भूमिका निभाई हज़रत मुहम्मद की पैग़म्बरी की घोषणा थी। इस घटना में यह हुआ कि ईश्वर ने अपनी ओर से इंसानों के मार्गदर्शन के लिए अपने विशेष दूत को भेजा। पैग़म्बर इस्लाम की पैग़म्बरी को किसी जाति या क़बीले तक सीमित नहीं किया जा सकता। इसलिए कि वह समूची मानवता के लिए और सभी युगों के लिए पैग़म्बर बनाए गए। अपने पैग़म्बरे को भेज कर ईश्वर ने अपनी कृपा से पूरी मानवता को जाग जाने का संदेश दिया। ईश्वर का यह संदेश जिबरईल के मुबारक परों पर नीचे आया और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र गले व ज़बान के माध्यम से पूरी धरती पर फैल गया।
जिस समय हज़रत मुहम्मद को पैगम़्बर बनाया गया उस समय दुनिया पतन और संकट का शिकार थी। अज्ञानता, लूट खसोट, अत्याचार, भ्रष्टाचार, निरंकुशता, भेदभाव, मानवता और नैतिकता से दूरी पूरे मानव समाज में फैली हुई थी। इन हालात में अरब प्रायद्वीप विशेष रूप से हेजाज़ की धरती पर सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से हालात और भी दयनीय थे। वहां महिलाओं को कोई अधिकार नहीं था बल्कि महिलाएं तो सामान की तरह ख़रीदी और बेची जाती थीं। लड़कियों को ज़िंदा दफ़ना दिया जाता था। सूरए नह्ल की आयत संख्या 58 और 59 में कहा गया है कि वह हालत थी कि जब किसी को बताया जाता था कि उसके यहां बेटी का जन्म हुआ है तो पीड़ा से उसका चेहरा काला हो जाता था और वह आक्रोश में आ जाता था। यह बुरी सूचना पाकर वह अपनी जाति और क़बीले के लोगों से छिपने लगता था। उसकी समझ में नहीं आता थ कि इस शर्मिंदगी को इसी तरह सहन करे या मिट्टी में दफ़ना दे। वह लोग कितना बुरा सोचते थे।
क़ुरआने मजीद ने कई आयतों में पैग़म्बर इस्लाम को भेजे जाने का उद्देश्य बयान किया है। सबसे मूल उद्देश्य एकेश्वरवाद की दावत देना और अनेकेश्वरवाद को ख़ारिज करना था। क़ुरआन कहता है कि हमने हर जाति में रसूल भेजा है कि केवल अनन्य ईश्वर की उपासना करो और दुष्ट ताक़तों से परहेज़ करो। वास्तव में पैग़म्बरों का सबसे महत्वपूर्ण काम अज्ञानता के मापदंडों और झूठे व ग़लत मानकों को ख़त्म करके उनके स्थान पर ईश्वरीय मानकों और मूल्यों को स्थापित करना था। पैग़म्बरों को भेजने का एक और महत्वपूर्ण लक्ष्य समाज में न्याय की स्थापना करना था। पैग़म्बरों को इसलिए भेजा गया कि वह ईश्वरीय नियमों को लागू करें, न्याय के प्यासों की प्यास बुझाएं और इंसानी ज़िदंगी को ईश्वरीय रंग में रंग दें। क़ुरआने मजीद के सूरए हदीद की आयत संख्या 25 में कहा गया है कि हमने अपने रूसलों को खुली हुई निशनियों के साथ भेजा और उनके साथ आसमानी किताब तथा सत्य व असत्य का अंतर करने वाली तुला भेजी ताकि लोग न्याय की स्थापना कर सकें।
पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि उन्हें भेजने का प्रमुख उद्देश्य विवेक को परिपूर्ण बनाना था। क्योंकि समाज में एकेश्वरवाद की स्थापना विवेक का स्तर ऊंचा करने से ही संभव है। जो इंसान अपने भीतर छिपे हुए रत्न को नहीं पहचानता वही पत्थर या मिट्टी के सामने सिर झुकाता है लेकिन जो इंसान महान हैं और बुद्धि से काम लेते हैं वह इन तमाम चीज़ों के रचयिता की उपासना और उसका आभार व्यक्त करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने एक कथन में कहा कि ईश्वर ने किसी भी पैग़म्बरे या रसूल को केवल इसलिए ही भेजा कि विवेक को सपूर्ण बनाए। अक़्ल को संपूर्णता के चरण पर पहुंचाए। इसलिए यह ज़रूरी है कि उसका विवेक और उसकी अक़्ल समाज के अन्य लोगों से अधिक हो।
इस तरह देखा जाए तो पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा महान एकजुट इस्लामी समाज की स्थापना की शुरूआत साबित हुई। वास्तव में इस घटना ने समाजों में एसा बदलाव शुरू किया जो असंभव प्रतीत होता था और यह साबित कर दिया कि उस समाज को भी महानता और ईश्वरीय मूल्यों की ऊंचाई पर ले जाया जा सकता है जो नैतिकता और विवेक से बिल्कुल दूर हो। पैग़म्बरे इस्लाम की 23 साल की मेहनत और संघर्ष का यह नतीजा मिला कि देखते ही देखते मुसलमान वैभव और गरिमा के शिखर पर पहुंच गए और उन्होंने दुनिया में वैभवशाली सभ्यता की नींव रखी। ईश्वर के अंतिम दूत की हैसियत से पैग़म्बरे इस्लाम अपने साथ मानवता के लिए सबसे संपूर्ण और समावेशी सौभाग्य पथ लेकर आए। अतः जो शिक्षाएं पैग़म्बरे इस्लाम से मिली हैं इंसान को चाहिए कि उसे प्राणदायक निर्मल जल की तरह पीते रहें ताकि मानव समाज से बुराइयां और त्रुटियां दूर होती जाएं और सबको एक आकर्षक समाज देखने का मौक़ा मिले।
पैग़म्बरे इस्लाम ने इस्लाम के संदेश वाहक की हैसियत से बहुत कम समय में उस रूढ़िवादी और हिसंक समाज को पूरी तरह बदल दिया। 13 साल के बाद ज्ञान, न्याय, एकेश्वरवाद, अध्यात्म और नैतिकता के आधारों पर एक शासन की स्थापना कर दी।
जैसे ही इस्लामी शासन की स्थापना के लिए हालात अनुकूल हुए पैग़म्बरे इस्लाम ने मक्के से मदीने की ओर पलायन किया  और सबसे पहला काम यह किया कि मुसलमानों के बीच बंधुत्व के रिश्ते को मज़बूत करते हुए पुरानी दुशमनी, भेदभाव और बिखराव को ख़त्म कर दिया। उन्हें ज्ञान से सुसज्जित किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया के सामने वह धर्म पेश किया जो हर दौर में मानवता के सौभाग्य और अच्छे अंजाम को सुनिश्चित करने वाला है। उन्होंने ईश्वर की उपासना की मानवीय प्रवृत्ति को संचालित किया और इंसानों को झूठे ख़ुदाओं के सामने सिर झुकाने से रोका। पैग़म्बरे इस्लाम ने मानव समाज के भीतर मूल्यों और मापदंडों के स्तर पर क्रान्ति पैदा कर दी तथा दुनिया वालों को ईश्वर की श्रद्धा, मानवता, प्रेम और इंसाफ़ के प्रकाश से परिचित कराया।
मशहूर लेखक वेल डोरेंट लिखते हैं कि यदि लोगों पर इस महान हस्ती के प्रभाव के स्तर को हम नापें तो यह कहना पड़ेगा कि मानव इतिहास के सबसे महान पुरुष पैग़म्बरे इस्लाम हैं। वह उस समाज के विवेक और नैतिकता के स्तर को ऊंचा करने के लिए संघर्षरत थे जो मरुस्थल के तपते हुए वातावरण में दरिंदगी के अंधकार में डूब गया था। उन्हें अपने संघर्ष में जो कामयाबी मिली उसकी तुलना दुनिया के किसी भी समाज सुधारक से नहीं की जा सकती। उनके अलावा शायद ही कोई एसा मिलेगा जिसने धर्म की राह में अपनी समस्त कामनाओं को अंजाम दिया हो। मरुस्थल में बिखरे हुए क़बीलों को जो मूर्तियों की पूजा करते थे उन्होंने एकत्रि करके एकजुट समाज बना दिया।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया को भौतिक व आध्यात्मिक जीवन, सांस्कृतिक व आर्थिक जीवन, राजनैतिक व नैतिक जीवन प्रदान किया। सौभाग्यशाली वही है जो इस प्रकार के जीवन को अपनाए और उसके अनुसार व्यवहार करे। क़ुरआन भी कहता है कि हे ईमान लाने वालो ईश्वर और उसके पैग़म्बर की दावत उस समय को स्वीकार कर लो जब वह तुम्हें उस चीज़ की दावत दें जो तुम्हें जीवन प्रदान करने वाली है। 

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