हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत

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पंद्रह रजब सन 63 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार की एक महान महिला ने इस नश्वर संसार को विदा कहा।

यह महिला पैग़म्बरे इस्लाम की नातिन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा थीं जिन्होंने इस्लामी इतिहस के उस संवेदनशील काल में एक अमिट भूमिका निभाई। हज़रत ज़ैनब का नाम कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के साथ हमेशा के लिए जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपनी माता हज़रत फ़ातेमा और पिता हज़रत अली से अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने का पाठ सीखा था और कर्बला की घटना के बाद उन्होंने अपने भाषणों से यज़ीद के अत्याचारों को स्पष्द कर दिया और सत्य के मार्ग में किसी भी प्रकार के त्याग व बलिदान से नहीं चूकीं।

जब अली और फ़ातेमा की पहली बेटी ने इस संसार में आंखें खोलीं तो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम यात्रा पर थे। माता-पिता ने प्रतीक्षा की कि पैग़म्बर वापस आ जाएं और वही उनकी बेटी का नाम रखें जिस तरह से उन्होंने ईश्वर की इच्छा से हसन और हुसैन का नाम रखा था। जब पैग़म्बरे इस्लाम यात्रा से वापस लौटे तो अपनी प्राण प्रिय सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के घर गए। हज़रत अली ने अपनी बेटी को पैग़म्बर की गोद में दे दिया। उन्होंने बच्ची को चूमा और उसका नाम ज़ैनब रखा जिसका अर्थ होता है बाप का श्रृंगार। इसके बाद उन्होंने अपना गाल, ज़ैनब के गाल पर रखा और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। उनसे पूछा गया कि हे पैग़म्बर! आपके रोने का कारण क्या है? उन्होंने कहाः ये बच्ची मुसीबतों में मेरे हुसैन के साथ होगी।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपना जीवन, उस घराने में आरंभ किया जो कल्याण व परिपूर्णता का केंद्र था। पैग़म्बरे इस्लाम का प्रेम और उनका अंतरज्ञान हर दिन उनके अस्तित्व को नई शक्ति देता था। उन्होंने धाराप्रवाह भाषण और शब्दालंकार अपने पिता से, पवित्र अपनी माता से, धैर्य व प्रतिरोध अपने भाइयों हसन और हुसैन से सीखा था। वे संयम और ईश्वर से प्रसन्नता के उच्च स्थान पर आसीन थीं। इस तरह के वातावरण में नैतिक गुणों और शिष्टाचारिक विशेषताओं से संपन्न होने का तथा ईश्वरीय ज्ञानों की प्राप्ति का उनके पास भरपूर अवसर था। उनके भतीजे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा था। हे फुफी! ईश्वर की कृपा से आप बिना गुरू की ज्ञानी हैं, आपके पास जो समझ-बूझ और ज्ञान है वह किसी से प्राप्त किया हुआ नहीं बल्कि आपका अपना है।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन की व्याख्याकर्ता थीं। जिन दिनों हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े में इस्लामी शासक के रूप में मौजूद थे उस दौरान हज़रत ज़ैनब अपने घर में महिलाओं के समक्ष क़ुरआने मजीद की व्याख्या करती थीं। उनके अथाह ज्ञान का एक अन्य प्रमाण उनके वे भाषण हैं जो उन्होंने कूफ़े और शाम में दिए थे और अनेक इस्लामी विद्वानों ने उन भाषणों का अनुवाद और व्याख्या की है। इन भाषणों से इस्लामी ज्ञानों विशेष कर क़ुरआने मजीद के संबंध में उनकी दक्षता का पता चलता है। उन्होंने अपने इन भाषणों में जो आयतें प्रयोग की हैं वे विभिन्न क्षेत्रों में अनेक शंकाओं को दूर करती हैं।

जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की आयु विवाह के योग्य हुई तो उनकी शादी उनके चाचा जाफ़र के बेटे अब्दुल्लाह से कर दी गई। अब्दुल्लाह काफ़ी धनवान थे लेकिन हज़रत ज़ैनब ने, जो उच्च व परिपूर्ण विचारों की स्वामी थीं, अपने आपको भौतिक जीवन की चकाचौंध में सीमित नहीं किया। उन्होंने सीखा था कि कभी भी और किसी भी स्थिति में सच्चाई को अत्याचारियों के हितों की भेंट नहीं चढ़ने देना चाहिए। उन्होंने शादी के समय अब्दुल्लाह के सामने यह शर्त रखी थी कि वे अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का साथ कभी नहीं छोड़ेंगी और अब्दुल्लाह ने यह शर्त मान ली थी। यही कारण था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब मदीना नगर से कर्बला के लिए निकले तो हज़रत ज़ैनब भी अपने भाई के साथ हो गईं और कर्बला की अमर घटना में वे अत्याचारी और पापी उमवी शासक यज़ीद के मुक़ाबले में उठ खड़ी हुईं।

नमाज़, एक ऐसी महान व बेजोड़ शक्ति के साथ गहरा संबंध है जिसके शासन ने पूरे संसार को अपने घेरे में ले रखा है। पूरी सृष्टि उसी की युक्ति से अस्तित्व में आई है। इंसान ऐसे ईश्वर के सामने नतमस्तक हो कर अपने अस्तित्व के भीतर प्रेम व अध्यात्म की आत्मा को मज़बूत करता है। सही अर्थ में नमाज़ पढ़ने वाला, जो ईश्वर का गुणगान करता है, महान आत्म सम्मान प्राप्त कर लेता है और ईश्वर के अलावा किसी के भी सामने नहीं झुकता। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक गुणों में ईश्वर से उनके संपर्क, दुआ, प्रार्थना और नमाज़ को विशेष स्थान प्राप्त है। उपासना के मामले में वे अपनी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की तरह थीं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मेरी फुफी ज़ैनब, कूफ़े से शाम के रास्ते में भी अनिवार्य नमाज़ों के साथ ही नाफ़ेला नमाज़ें भी पूरी तरह अदा करती थीं और कई स्थानों पर वे बैठ कर नमाज़ पढ़ती थीं। कूफ़े से शाम का रास्ता वह था जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को बंदी बना कर ले जाया जा रहा था और उन पर तरह तरह की मुसीबतें ढाई जा रही थीं।

हम इतिहास में जहां भी देखें, आशूरा का नाम जिससे भी सुनें और उसे जिस कोण से भी देखें, उस महान घटना के नेता इमाम हुसैन के साथ हज़रत ज़ैनब का नाम दिखाई देगा जो इस घटना के हर क्षण में उपस्थित रहीं और पलक झपकने जितने समय के लिए भी कर्बला की घटना से दूर नहीं होतीं। आशूरा इमाम हुसैन के नाम से जीवित और हज़रत ज़ैनब की सहायता से इतिहास में अमर है। हज़रत ज़ैनब कर्बला की घटना में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ भरपूर तरीक़े से उपस्थित थीं और उनकी शहादत के बाद उन्होंने उनके आंदोलन के संदेश को संसार तक पहुंचाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि बहादुर केवल वह नहीं है जो रणक्षेत्र में जा कर लड़े और बिल्कुल भयभीत न हो। बहादुर उसे कहते हैं जो पहाड़ की तरह डटा रहे और घटनाएं उसके ईमान को कमज़ोर न होने दें। कर्बला की घटना में हज़रत ज़ैनब का ईमान न केवल यह कि कमज़ोर नहीं हुआ बल्कि ईश्वर पर भरोसे से हर दिन उनके ईमान में वृद्धि ही होती गई। उनका साहस कर्बला की घटना के बाद अधिक खुल कर सामने आया।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को बंदी बना कर कर्बला से कूफ़े लाया गया। रास्ते में तरह तरह के दुख और मुसीबतें उठा कर यह कारवां ऐसी स्थिति में कूफ़ा पहुंचा कि पूरे शहर को यज़ीद की जीत पर सजाया गया था। जब कारवां के लोगों विशेष कर हज़रत ज़ैनब ने यह दृश्य देखा तो उनके दुख में वृद्धि हो गई क्योंकि कूफ़ा उन लोगों के लिए परिचित शहर था। कभी वे एक सम्मानीय महिला के रूप में अपने पिता और परिजनों के साथ पूरे आदर के साथ इस शहर में आई थीं। इस शहर की महिलाओं ने उनसे ज्ञान अर्जित किया था।

दुखों के पहाड़ के बावजूद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने आपको टूटने नहीं दिया। वे पूरी दूरदर्दिशता से परिस्थितियों पर नज़र रखे हुए थीं और समस्त दुखों व कठिनाइयों के बावजूद शहीदों का संदेश लोगों तक पहुंचाना और यज़ीद की अत्याचारी सरकार की सच्चाई सामने लाना चाहती थीं। इसके अलावा उन्होंने उन अत्याचारों का वर्णन करके जो यज़ीद के सैनिकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर किए थे, लोगों का अत्याचारी शासक के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए आह्वान किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कूफ़े के लोगों से इस प्रकार दो टूक बात की कि उनकी आंखों से आंसू जारी हो गए। बनी हाशिम की इस साहसी महिला ने दिखा दिया कि यज़ीद और उसके परिवार से अधिक भ्रष्ट कोई नहीं है। उनके भाषण सुन कर कूफ़े के लोग रोने लगे कि वे क्यों सच्चाई से अवगत नहीं थे और उन्होंने क्यों इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता नहीं की।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा सत्य की रक्षा और ईश्वर की प्रसन्नता के लिए दुख सहन करने में मुसलमान महिलाओं की सबसे अच्छी आदर्श हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई हज़रत ज़ैनब को इतिहास का सर्वोत्तम आदर्श बताते हुए कहते हैं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा इतिहास का वह सर्वोत्तम आदर्श हैं जो इतिहास की एक सबसे अहम घटना में एक महिला की उपस्थिति की महानता को दर्शाता है। यह जो कहा जाता है कि आशूरा में और कर्बला की घटना में तलवार पर ख़ून विजयी हुआ, और वास्तव में भी ऐसा ही है, तो इस विजय की सूत्रधार हज़रत ज़ैनब हैं वरना ख़ून तो कर्बला में ही समाप्त हो गया था। यह घटना दर्शाती है कि महिला, इतिहास में हाशिये पर नहीं है बल्कि वह इतिहास की अहम घटनाओं के केंद्र में है। क़ुरआने मजीद ने भी अनेक स्थानों पर इस बात पर बल दिया है लेकिन यह प्राचीन समुदायों की बात नहीं बल्कि निकट के इतिहास से संबंधित है। यह एक जीवित घटना है जिसमें इंसान हज़रत ज़ैनब को देख सकता है कि वे एक बेजोड़ महानता के साथ मैदान में आती हैं और ऐसा कारनामा करती हैं कि दुश्मन जो विदित रूप से सैन्य रणक्षेत्र में विजयी हो गया था और उसने अपने विरोधियों का जनसंहार कर दिया था, अपने ही सत्ता केंद्र और अपने ही महल में अपमानित हो गया। हज़रत ज़ैनब ने उसके माथे पर हमेशा के लिए धिक्कार का निशान लगा दिया और उसकी विजय को पराजय में बदल दिया। यह है हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का कारनामा। उन्होंने दिखा दिया कि महिला की पवित्रता को एक सम्मान और बड़े जेहाद में बदला जा सकता है।

हज़रत ज़ैनब ने अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सालम से सुन रखा था कि इंसान में जब तक तीन विशेषताएं न हों वह ईमान की वास्तविकता को समझ नहीं सकता, धर्म का ज्ञान, कठिनाइयों पर धैर्य और जीवन के मामलों में अच्छा संचालन। इस महान महिला ने कठिन दायित्वों को स्वीकार किया और धैर्य ने एक रत्न की तरह उनकी आत्मा को संवारा। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की नज़र में सच के मार्ग में प्रतिरोध और ईश्वरीय लक्ष्यों के मार्ग में जान देना सुंदर है और मानवता हमेशा ही इस सुंदरता को सराहती है। यही कारण था कि जब अत्याचारी उमवी शासक यज़ीद ने हज़रत ज़ैनब का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि देखा ईश्वर ने कर्बला में हुसैन और उनके साथियों के साथ क्या किया? तो उन्होंन बड़े ठोस स्वर में जवाब दिया था। मैंने सुंदरता के अलावा कुछ नहीं देखा। प्रिय श्रोताओ हम आपकी सेवा में एक बार फिर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहात पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।

 

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