25 शव्वाल सन 148 हिजरी क़मरी को इस्लामी जगत पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन की एक अहम हस्ती की शहादत पर शोक में डूब गया।
जी हां इस दिन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम शहीद हुए। वह इमाम जिन्होंने जनता के मार्गदर्शन के ईश्वरीय दायित्व के 34 साल में लोगों के विचार में सांस्कृतिक क्रान्ति पैदा की और शुद्ध इस्लाम का प्रचार व प्रसार किया।
आज की दुनिया में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन तरक़्क़ी से मानव जीवन में बहुत बड़ा बदलाव पैदा हो गया है। इस बदलाव का धर्म व नैतिकता के प्रचार के क्षेत्र पर भी इतना बड़ा असर पड़ा है कि कुछ लोग यह समझने लगे हैं कि पुरानी शैलियों की अब उपयोगिता नहीं रह गयी है। लेकिन सच्चाई यह है कि मौजूदा दौर के इंसान की आदतें, नैतिकता और मूल ज़रूरतें शताब्दियों पूर्व के लोगों की तरह एक जैसी हैं। यही वजह है कि इंटरनेट, कंप्यूटर और दूसरे आधुनिक उपकरणों से न सिर्फ़ यह कि संबोधक तक संदेश पहुंचाना आसान हो गया है, बल्कि इनसे इंसान के मूल्य व प्रवृत्ति में भी बदलाव आ गया है।
शोध के अनुसार, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम धर्म के प्रचार में जिन बिन्दुओं को अहमियत देते थे वह इस प्रकार हैः संबोधक की पहचान, उनका सम्मान, मुहावरे की ज़बान का इस्तेमाल, अपने व्यवहार से लोगों को धर्म की ओर आमंत्रित करना और समय की पहचान। ये वे बिन्दु हैं जिनसे आज भी इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए मदद ली जा सकती है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम समाज के हर वर्ग से चाहे वह बच्चा, बूढ़ा, जवान, सेवक, दुश्मन, अनेकेश्वरवादी आदि जो भी हो, उसकी वैचारिक व सांस्कृतिक क्षमता के अनुसार व्यवहार करते थे।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के वैज्ञानिक आंदोलन से इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार हुआ और पूरे इस्लामी जगत में उनका चर्चा होने लगा। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का ऐसा दौर था जब बनू उमय्या का शासन कमज़ोर पड़ रहा था और बनी अब्बास की शक्ति बढ़ रही थी। इसलिए कोई एक भी इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम और उनके अनुयाइयों पर दबाव डालने की हालत में न था। इसी चीज़ ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए उचित अवसर मुहैया किया। इस तरह उन्होंने शुद्ध इस्लाम के प्रचार से ऐसे विशाल मत को वजूद दिया कि उससे ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के 4000 शिष्यों ने इस तरह ज्ञान हासिल किया कि उनमें से हर एक कई शाखाओं में दक्ष था और वे पूरे इस्लामी जगत में धर्म प्रचारकों के रूप में फैल गए।
ईश्वर के संदेश को जनता के मन में बिठाने के लिए सबसे अच्छी शैली मोहब्बत है। ईश्वरीय संदेश के लिए ज़रूरी है कि वह सिर्फ़ विचार की हद तक असर न करे बल्कि उनके मन में बैठ जाए तब बदलाव आता है और समाज मानवता के उच्च मूल्यों व आदर्श एकेश्वरवाद के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हरकत में आता है। इस बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः ईश्वर कहता हैं "लोग मेरे परिवार के सदस्य हैं तो मै उसे सबसे ज़्यादा दोस्त रखता हूं जो लोगों के साथ ज़्यादा मेहरबानी का व्यवहार करता और उनकी ज़रूरतों को पूरी करने के लिए अधिक कोशिश करता है।" यही वजह है कि ईश्वरीय दूतों ने धर्म के प्रचार में सबसे ज़्यादा मोहब्बत से काम लिया और अपने अनुयाइयों से अनुशंसा करते थे कि ईश्वर की निकटता पाने के लिए मोहब्बत का मार्ग अपनाओ।
छोटी छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना नैतिकता मूल सिद्धांतों में है कि जिससे मनोवैज्ञानिकों व समाजशास्त्रियों के अनुसार, समाज नैतिकता टकराव से बचता और उसमें शांति आती है। नज़रअंदाज़ करने का अर्थ यह है कि एक व्यक्ति किसी बात को जानता है लेकिन इस तरह व्यवहार करता है कि सामने वाले व्यक्ति को लगता है कि वह अस्ल बात को नहीं जानता। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इस तरह नज़रअंदाज़ी से काम लेते थे कि कुछ मिथ्याचारी आपको भोला-भाला कहते। जैसा कि इस बारे में ईश्वर तौबा नामक सूरे की आयत नंबर 61 में फ़रमाता हैः "कुछ मिथ्याचारी पैग़म्बर को हमेशा सताते हैं चूंकि वह उनके झूठ को बड़ी उदारता से नज़रअंदाज़ कर देते है तो वे (मिथ्याचारी) कहते है, वह भोला-भाला व जल्दी से भरोसा करने वाला व्यक्ति है। कह दो कि उनके जल्दी से विश्वास करने में तुम्हारा फ़ायदा है।"
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम भी धर्म के प्रचार की अपनी शैली में इस शैली पर ध्यान देते थे और इस बारे में वह फ़रमाते हैः "लोगों के साथ अच्छी तरह जीवन बिताना ऐसे पैमाने की तरह है जिसका दो तिहाई भाग सतर्कता व सावधानी और एक तिहाई नज़रअंदाज़ करना है।" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की यह बात सार्थक नज़रअंदाज़ी पर ताकीद और नकारात्मक नज़रअंदाज़ी से दूरी पर बल देती है। क्योंकि आपने शुरु में सतर्कता व जागरुकता का उल्लेख करते हुए इसकी भागीदारी को दो तिहाई कहा और उसके बाद नज़रअंदाज़ करने पर बल दिया है। एक अन्य बिन्दु जिसे नहीं भूलना चाहिए यह है कि छोटी छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना, लोगों को अच्छाई की ओर बुलाने व बुराई से रोकने से विरोधाभास नहीं रखता। लोगों को भलाई की ओर बुलाने और बुराई से रोकना धर्म के अनिवार्य नियमों में है यह नज़रअंदाज़ी के दायरे में नहीं आता।
हर दौर में धर्म की मूल शिक्षाओं में ग़लत बातें शामिल होती रही हैं जिन्हें बिदअत कहा जाता है। ये अलग से शामिल बातें ईश्वरीय आदेश के लागू होने और अध्यात्मक की प्राप्ति के मार्ग में रुकावट बनती हैं। धार्मिक उपदेशकों का एक कर्तव्य यह भी है कि वे बिना किसी झिझक के पथभ्रष्ट बातों को स्पष्ट करें और लोगों से इन बातों से दूर रहने की अनुशंसा करें। जैसा कि ईश्वर अहज़ाब नामक सूरे की आयत नंबर 39 में फ़रमाता हैः "जो लोग ईश्वरीय दायित्व को अदा करते हैं वे ईश्वर के सिवा किसी से नहीं डरते।" यह बात इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। वह सत्ता वर्ग के मुक़ाबले में पूरी तरह वीर थे और सत्ता वर्ग को उद्दंडता व अत्यचार से दूर रहने की नसीहत करने से तनिक भी संकोच से काम नहीं लेते थे। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के कालके शासक मंसूर के साथ आचरण के संबंध में मिलता है कि एक दिन शासक मंसूर पर एक मक्खी बैठ गयी, जिसे उड़ा दिया गया। मक्खी दोबारा उस पर बैठी, दूसरी बार भी उसे उड़ा दिया गया। मंसूर ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछाः ईश्वर ने मक्खी क्यों पैदा की? इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "अत्याचारियों को अपमानित करने के लिए।"
इस्लाम में एकता पर बहुत अधिक बल दिया गया है और ईश्वर पर आस्था रखने वाले मोमिन बंदों को एक दूसरे का आपस में भाई क़रार दिया गया है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के हुजरात नामक सूरे की आयत नंबर 10 में ईश्वर कह रहा हैः "मोमिन आपस में भाई हैं।" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम मुसलमानों से हमेशा आपस में भाईचारे के साथ रहने, इस्लामी मूल्यों का पालन करने, एक दूसरे के साथ सहयोग करने और एक दूसरे की ज़रूरत को पूरा करने की अनुशंसा करते थे।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक अनुयायी इस्हाक़ बिन अम्मार, कहते हैं कि मैं एक दिन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा तो उन्होंने उदासीन रवैया अपनाया जबकि वह मेरे साथ बहुत प्रेमपूर्ण रवैया अपनाते थे। मैंने बड़ी विनम्रता से पूछाः "हे पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र! आपके इस उदासीन रवैये की वजह क्या है?" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "चूंकि तुमने अपने धार्मिक बंधुओं के साथ उदासीन रवैया अपनाया है। मुझे सूचना मिली है कि तुमने अपने घर के द्वार पर दरबान तैनात कर दिया है ताकि वह ज़रूरतमंदों को तुम्हारे द्वार से भगाए।" इस्हाक़ बिन अम्मार कहते हैं कि मैंने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से विनम्रता से कहाः "मैं मशहूर होने से डरता हूं।" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "तुम्हें ईश्वर से डर नहीं लगता? मुसीबतों से नहीं डरते?" जान लो कि लोगों से दूरी बनाने से ईश्वर की कृपा दूर होती है। याद रखो! जब दो मोमिन भाई एक दूसरे से मिलते और एक दूसरे से गर्मजोशी से हाथ मिलाते हैं, तो ईश्वर की कृपा का पात्र बनते हैं। लेकिन इस कृपा का 99 फ़ीसद भाग उसे मिलता है जो अपने मोमिन भाई की ज़रूरत को पूरा करता है। अगर इनमें से किसी को भी एक दूसरे से किसी तरह की ज़रूरत न हो उस वक़्त दोनों बराबर से ईश्वर की कृपा का पात्र बनते हैं।
धर्म के प्रचार-प्रसार की सबसे अच्छी शैली अपने व्यवहार व आचरण से प्रचार करना है। रवायत में है कि एक बार कूफ़ा शहर से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के अनुयाइयों का एक गुट ज्ञान हासिल करने आपके पास मदीना आया। यह गुट जब तक मुमकिन था मदीना में रहा और उस दौरान नियमित रूप से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से ज्ञान हासिल करने आता रहा। जब यह गुट वापस जाने लगा तो उसने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की सेवा में कहाः "हे पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र! हमें नसीहत कीजिए!" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायः "ईश्वर से डरने, उसके आदेश का पालन करने, पापों से दूर रहने, अमानतों को अदा करने, जिनके साथ उठना बैठना हो, उनके साथ अच्छा व्यवहार करो और लोगों को ख़ामोशी से हमारी ओर बुलाओ!" इस गुट ने फिर इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से सवाल कियाः "हे पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र! लोगों को किस तरह ख़ामोशी की हालत में आपकी ओर बुलाएं?" इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "जिस तरह हमने तुम्हें ईश्वर का हुक्म मानने और बुरी बातों से दूर रहने का आदेश दिया, लोगों के साथ न्याय के साथ व्यवहार करो, उनकी अमानतों को लौटाओ, उन्हें भलाई करने और बुराई से दर रहने का हुक्म दो, इस तरह से कि लोगों को तुम्हारे भीतर भलाई के सिवा कुछ दिखाई न दे। अगर तुम्हें इस हालत में देखेंगे तो कहेंगेः "ये फ़लां के अनुयायी हैं। ईश्वर फ़ला पर कृपा करे उन्होंने कितने अच्छे अनुयाइयों का प्रशिक्षण किया है! तब जाकर जो चीज़ हमारे पास है उसका मूल्य समझेंगे और हमारी ओर बढ़ेंगे।"
कार्यक्रम के अंत में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर एक बार फिर हार्दिक संवेदना के साथ उनकी वसीयत का एक भाग आपकी सेवा में पेश कर रहे है। आपने फ़रमायाः "पांच बातें जिसमें न हो, उसे ज़्यादा फ़ायदा नहीं पहुंचेगा। लोगों ने पूछा कि वे चीज़ें क्या हैं? इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "धर्म, बुद्धि, शर्म, अच्छी आदत और शिष्टाचार।"