15 शाबान 255 हिजरी कमरी उस महान हस्ती के जन्म दिवस का शुभ अवसर है जो पूरी दुनिया को न्याय और शांति से भर देगा।
15 शाबान का दिन मानवता को मुक्ति दिलाने वाले का जन्मदिन है। 15 शाबान को बहुत से गैर शिया भी खुशी और जश्न मनाते हैं। 15 शाबान उस महान हस्ती के जन्मदिवस की पावन बेला है जो किसी एक जाति या धर्म के लोगों का कल्याण नहीं बल्कि वह पूरी मानवता का कल्याण करेगा और उसे परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचायेगा।
हज़रत इमाम मेहदी धरती पर ईश्वर के अंतिम दूत पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स) के अंतिम उत्तराधिकारी हैं। उनका जन्म 15 शाबान, शुक्रवार के दिन, सुबह के समय, 255 हिजरी क़मरी को इराक के सामर्रा शहर में हुआ था। हज़रत इमाम मेहदी (अ) के पिता का नाम इमाम हसन अस्करी और माता का नाम नरजिस ख़ातून है। जब उनका जन्म हुआ तो उस समय का शासक मोतमिद अब्बासी था। हज़रत इमाम महदी (अ) का जीवन तीन कालों में बंटा हुआ है।
पहला काल जन्म से 260 हिजरी क़मरी तक है जिसमें उनके पिता हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई, दूसरा काल 260 से 329 हिजरी क़मरी तक है जिसमें वे दूसरों की नज़रों से ओझल रहे और केवल कुछ विशेष लोगों के माध्यम से ही जनता के संपर्क में थे, इस काल को ग़ैबते स़ुग़रा कहा जाता है। तीसरा काल वह है जिसमें वे पूरी तरह लोगों की नज़रों से ओझल हो गए और इसे ग़ैबते कुबरा कहा जाता है और यह काल 329 हिजरी क़मरी से आरंभ हुआ और अब तक जारी है और महान ईश्वर जब तक चाहेगा तब तक इस काल को जारी रखेगा।
महामुक्तिदाता का जन्म किस प्रकार हुआ इस बारे में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की फुफ़ी हज़रत हकीमा खातून कहती हैं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने किसी को मुझे बुलाने के लिए भेजा और कहा कि आज शाम को मेरे साथ इफ्तार करें। जब मैं उनके पास आ गयी तो इमाम हसन अस्करी ने मुझसे फरमाया कि आज रात को महान ईश्वर के प्रतिनिधि का जन्म होगा। इस पर मैंने पूछा कि यह प्रतिनिधि किससे पैदा होगा तो इमाम ने फरमाया कि नरजिस से। मैंने कहा कि मैं नरजिस के अंदर गर्भ की कोई अलामत नहीं देख रही हूं इस पर इमाम ने फरमाया कि विषय यही है जो मैंने कहा।
इसके बाद इमाम फरमाते हैं कि नरजिस आयीं और मैंने उनका हालचाल पूछा और कहा कि आप मेरी धर्मपत्नी हैं। मेरी बात पर नरजिस को आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि यह कौन सी बात है जो आप कह रहे हैं? इस पर मैंने कहा कि आज रात को महान ईश्वर तुम्हें एक बेटा प्रदान करेगा जो लोक- परलोक का आक़ा व मौला होगा। मेरी इस बात से नरजिस शर्मा गयीं।
बहरहाल हज़रत हकीमा खातून कहती हैं कि रोज़ा खोलने के बाद मैंने एशां की नमाज़ पढ़ी और उसके बाद सोने के लिए बिस्तर पर चली गयी। जब आधी रात गुज़र गयी तो मैं उठी और मैंने नमाज़े शब पढ़ा। उसके बाद दोबारा मैं सो गयी। उसके कुछ समय के बाद मैं दोबारा उठी। उस वक्त नरजिस भी उठ गयी थीं और वह भी नमाज़े शब पढ़ीं। उसके बाद मैं कमरे से बाहर गयीं ताकि देखूं कि सुबह हुई या नहीं। मैंने देखा कि बिल्कुल भोर का समय है और नरजिस नमाज़े शब के बाद दोबारा सो गयीं। मेरे दिमाग में यह सवाल पैदा हुआ कि अभी तक महान ईश्वर के प्रतिनिधि का जन्म क्यों नहीं हुआ? करीब था कि मेरे दिल में संदेह उत्पन्न हो जाता।
अचानक इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मुझे पास वाले कमरे से आवाज़ दी और कहा कि फूफी जल्दी मत कीजिये कि वादे का समय निकट है। मैं भी बैठा हूं। मैंने पवित्र कुरआन के सूरे यासिन की तिलावत की है। जब मैं पवित्र कुरआन की तिलावत कर रहा था तो नरजिस नींद से जाग गयीं। कुछ रिवायतों के आधार पर हज़रत हकीमा खातून कहती हैं कि जब नरजिस ख़ातून जाग गयीं तो इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मुझसे फरमाया कि उनके लिए सूरे क़द्र की तिलावत करूं। जब मैं सूरे क़द्र की तिलावत कर चुकी तो नरजिस से पूछा कि कैसी तबीयत है तो उन्होंने कहा कि जो मौला ने कहा है वह होने वाला है। मैंने सूरे कद्र की दोबारा तिलावत की। मैंने सुना कि जो बच्चा नरजिस के पेट में है वह भी मेरे साथ सूरे क़द्र की तिलावत कर रहा है मैं डर गयी। मैंने नरजिस से पूछा कि किसी चीज़ का आभास कर रही हो तो उन्होंने कहा हां।
इसके कुछ क्षणों के बाद महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ। यह वह मौका था जब इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मुझे आवाज़ दी और कहा कि फूफी मेरे बेटे को मेरे पास लाइये। जब मैं शिशु को इमाम के पास ले गयी तो उन्होंने उसे अपनी आगोश में लिया और शिशु के हाथ और आंख पर हाथ फेरा और दाहिने कान में अजान और बायें कान में इक़ामत कही। इसके बाद इमाम ने शिशु से कहा मेरे बेटे बोलो उसके बाद उस शिशु ने कहा «اشهد ان لا اله الا الله، و اشهد ان محمدا رسول الله
उसके बाद शिशु ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम और दसरे इमामों की इमामत की गवाही दी और जब खुद के नाम की गवाही का समय आया तो कहा मेरे पालनहार! मेरे वादे को पूरा फरमा और हमारे अम्र को पूरा कर और हमें साबित कदम रख और हमारे ज़रिये ज़मीन को न्याय से भर दे।हजरत हकीमा खातून कहती हैं कि जब मैं सातवें दिन इमाम की सेवा में थी तो उन्होंने मुझसे अपने बेटे को मांगा तो मैं नन्हें शिशु को कपड़े में लपेट कर इमाम के पास ले गयी। उस वक्त इमाम ने शिशु से कहा मेरे बेटे मुझसे बोलो। यह वह वक्त था जब उसने पवित्र कुरआन की वह आयत पढ़ी जिसमें महान ईश्वर कहता है कि हम उन लोगों पर एहसाना करना चाहते हैं जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गये हैं।
एक दूसरी रिवायत में है कि जब महामुक्तिदाता इमाम ज़मान अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ तो उनके पावन अस्तित्व से एक प्रकाश निकला जो आसमान में फैल गया और आसमान से सफेद पक्षी ज़मीन पर आ रहे हैं और वे अपने परों को महामुक्तिदाता के पावन शरीर से मस करके दोबारा उड़ रहे हैं। उसके बाद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मुझे आवाज़ दी और मुझसे कहा कि हे फूफी शिशु को मेरे पास लाइये। जब मैंने शिशु को लिया तो उसकी दाहिनी भुजा पर पवित्र कुरआन की «جاء الحق و زهق الباطل ان الباطل کان زهوقا.» " आयत लिखी हुई थी। इस आयत का अर्थ है कि हक आ गया और बातिल जाने वाला है और बेशक बातिल जाने वाला है।
महान ईश्वर ने महामुक्तिदाता के जन्म से पूरी मानवता पर वह एहसान किया है जिसका वह पात्र नहीं थी। यह महान ईश्वर के असीमित दया की एक झलक है। महान ईश्वर महामुक्तिदाता के ज़रिये मानवता को शिखर का मार्ग तैय करने का रास्ता दिखायेगा। महामुक्तिदाता पवित्र कुरआन की आयते बल्लिग़ की अंतिम निशानी हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम जब अपने जीवन का अंतिम हज करके वापस मदीने जा रहे थे तो रास्ते में महान ईश्वर के विशेष फरिश्ते हज़रत जिब्रईल नाज़िल हुए और उन्होंने अल्लाह का वह आदेश सुनाया जिसमें वह कह रहा है कि हे रसूल वह संदेश पहुंचा दीजिये जो अल्लाह की तरफ से उतारा जा चुका है और अगर आपने यह आदेश नहीं पहुंचाया तो पैग़म्बरी का कोई काम अंजाम ही नहीं दिया। अल्लाह लोगों से आप की रक्षा करेगा।
आयत के अंदाज़ से यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि अल्लाह ने जो आदेश पहुंचाने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम से कहा है कि वह पैग़म्बरी के सारे कार्यों से श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण है और अगर पैग़म्बरे इस्लाम उसे अंजाम नहीं देंगे तो उनकी पैग़म्बरी ही अधूरी रह जायेगी।
आयते बल्लिग़ नाज़िल होने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने हाजियों को रुकने का आदेश दिया और कहा कि जो हाजी आगे चले गये हैं उन्हें पीछे आने के लिए कहा जाये और जो हाजी पीछे रह गये हैं उनकी प्रतीक्षा की जाये। इस प्रकार सारे हाजी जमा हो गये और रिवायतों में मैदाने ग़दीर में इकट्ठा होने वाले हाजियों की संख्या एक लाख 20 तक बतायी गयी है।
जब सारे हाजी इकट्ठा हो गये तो पैग़म्बरे इस्लाम ऊंटों के कजावे से बनाये गये मिंबर पर गये और महान ईश्वर का गुणगान करने के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दोनों हाथों से उठा कर कहा कि जिस जिस का मैं मौला हूं उस उस के यह अली मौला हैं और उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने दुआ कि हे पालनहार! हक को उधर उधर मोड़ जिधर जिधर अली मुड़ें। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि जो लोग यहां मौजूद हैं वे उन लोगों को बतायें जो यहां नहीं हैं। इसके बाद समस्त हाजियों ने अमीरुल मोमिनीन कहकर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथ पर बैअत की और उन्हें मुबारकबाद दी।
महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन की आयते बल्लिग़ नाज़िल करके बता दिया कि पैग़म्बरे इस्लाम के बाद इस्लामी समाज का नेतृत्व हज़रत अली अलैहिस्सलाम करेंगे और यह सिलसिला आज तक जारी है। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी बारमबार की हदीसों में अपने अंतिम उत्तराधिकारी का नाम बताया है और इस समय पूरी दुनिया पैग़म्बरे इस्लाम के अंतिम उत्तराधिकारी महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर की प्रतीक्षा में है।
दुनिया के लगभग समस्त धर्मों में महामुक्तिदाता के आने की शूभसूचना दी गयी है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि इमाम महदी मेरे वंश से होंगे और ईश्वर उन्हें उस समय प्रकट करेगा जब दुनिया अन्याय व अत्याचार से भर चुकी होगी और वह पूरी दुनिया को न्याय से उस तरह से भर देंगे जिस तरह वह अन्याय से भरी होगी।
15 शाबान उस महान व्यक्ति का जन्म दिन है जो पूरी दुनिया में शांति, सुरक्षा और न्याय स्थापित करेगा। पूरी दुनिया में कहीं भी न कोई अत्याचारी होगा न अत्याचार, किसी के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा, पूरी दुनिया में चारों ओर न्याय और शांति की बहार होगी।