अपनी देखभाल- 2

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अपनी देखभाल- 2

अपनी देख-भाल आप के बारे में पहला क़दम स्वतः ज्ञान या अपने बारे में ज्ञान बढ़ाना है।

हमने अपनी देख-भाल आप की परिभाषा का उल्लेख किया था और बताया था कि यह वह काम है जिसमें हर व्यक्ति अपने ज्ञान, दक्षता व क्षमता को एक स्रोत के रूप में इस्तेमाल करता है ताकि अपने तौर पर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सके। इस आधार पर अपनी देख-भाल आप ऐसा व्यवहार है जो लोगों की अपने इरादे से स्वेच्छा के आधार पर सामने आता है और इसके अंतर्गत व्यक्ति आवश्यक ज्ञान व दक्षता प्राप्त करके अपने स्वास्थ्य की देख-भाल करने में सक्षम हो जाता है।

हममें से सभी के अपने जीवन में बहुत से दायित्व होते हैं जिनके कारण हम अपनी देख-भाल को भूल जाते हैं जबकि उचित व सही अर्थ में अपनी देख-भाल आप, अच्छे जीवन का एहसास दिलाती है और हम स्वयं को जो अहमियत देते हैं उससे दूसरों को भी अवगत कराती है। इस आधार पर अपनी देख-भाल आप का एक अहम तत्व, अपना ज्ञान बढ़ाना है। इसका अर्थ वह दक्षता हासिल करना है जो इस बात में हमारी मदद करती है कि हम अपने आपको, अपनी ज़रूरतों को, अपनी विशेषताओं को, अपनी कमज़ोरियों को, अपने मज़बूत बिंदुओं को, अपनी भावनाओं को और अपनी प्रवृत्ति को संपूर्ण ढंग से पहचान लें।

अधिकतर लोग केवल आयु, लिंग, काम की स्थिति इत्यादि जैसी अपनी मूल व साधारण विशेषताओं के बारे में बात करते हैं और अपने व्यक्तित्व और व्यवहार की विशेषताओं के बारे में पर्याप्त व संपूर्ण जानकारी नहीं रखते। उदाहरण स्वरूप उन्हें पता नहीं होता कि किन कामों को वे बेहतर ढंग से अंजाम दे सकते हैं? उनमें कौन सी नकारात्मक और असैद्धांतिक नैतिक विशेषताएं हैं? अपनै जीवन के बारे में उनकी क्या महत्वकांक्षाएं और लक्ष्य हैं? उनके जीवन की रुचियां और प्राथमिकताएं क्या हैं? और कौन सी चीज़ें उन्हें ख़ुश या दुखी करती हैं? ये सारी बातें अपने बारे में ज्ञान की कमी के कारण होती हैं।

जीवन की विशेषम्ताओं की प्राप्ति से पहले अपने बारे में जानकारी ज़रूरी है क्योंकि इस प्रकार की जानकारी रखने वाले लोग अपने बारे में अधिक सटीक पहचान रखते हैं जिससे उन्हें अपनी सुरक्षा, देख-भाल और प्रगति में काफ़ी मदद मिलती है। अलबत्ता यह नहीं सोचना चाहिए कि अपने बारे में सटीक जानकारी से सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा क्योंकि यह तो केवल पहला क़दम है।

अपने आपको निष्पक्ष रूप से देखना कोई सरल काम नहीं है। इसका अर्थ यह होता है कि मनुष्य इस पर ग़ौर करे कि उसके विचार क्या हैं? आस्थाएं क्या हैं? कमज़ोरियां क्या हैं? मज़बूत बिंदु क्या हैं? कौन सी चीज़ें उसे अप्रसन्न करती हैं? किन बातों से वह ख़ुश होता है? उसके जीवन में कोई लक्ष्य है भी या नहीं? और अगर है तो उस लक्ष्य का आधार क्या है?

वास्तव में अधिकांश लोग अपने जीवन में ज़्यादातर बाहरी मामलों का ज्ञान हासिल करने, उनकी वास्तविकता जानने और तकनीक प्राप्त करने की कोशिश में रहते हैं और अपने बारे में ज्ञान बढ़ाने की कोशिश नहीं करते। यह बात भी रोचक है कि कुछ लोग सोचते हैं कि आयु का एक भाग गुज़र जाने के बाद वे अपने आपको अच्छी तरह पहचान गए हैं जबकि बहुत कम ही लोग होते हैं जो अपने विचारों व आस्थाओं और अपने व्यवहार पर उनके प्रभाव के बारे में ज्ञान रखते हैं। ये लोग शायद ही कभी अपने दुखों, मान्यताओं, रुचियों और व्यवहार की समीक्षा करते हों। ये लोग अधिकतर आज वही काम करते हैं जो इन्होंने कल किए थे। चूंकि इन्हें अपने आपको पहचानने में रुचि नहीं है इस लिए ये कल भी और उसके बाद भी वही पिछले काम करते रहेंगे।

अलबत्ता इस बिंदु पर भी ध्यान रखना चाहिए कि स्वतः ज्ञान या अपने बारे में ज्ञान उसी समय हासिल होता है जब अपने बारे में व्यक्ति की सोच को सवालों के कटघरे में खड़ा किया जाए और वह व्यक्ति पूरी सच्चाई से उनका जवाब दे। “मैं कौन हूं?” इस प्रश्न का उत्तर लोग जितना सटीक और वास्तविक देंगे या दूसरे शब्दों में उनका उत्तर अपने बारे में जितना अधिक सच्चाई और ज्ञान पर आधारित होगा, उतना ही वे अपने बारे में अधिक ज्ञान के स्वामी होंगे।

अब सवाल यह उठता है कि स्वतः ज्ञान का अपनी देख-भाल आप से क्या संबंध है? और इसका इस विषय में कितना महत्व है? अपनी देख-भाल आप के लिए जो कुछ हम हैं, जो कुछ हम बनना चाहते हैं और इस उद्देश्य के लिए हमारे जो तर्क हैं उनके बारे में हमारा स्पष्ट दृष्टिकोण होना चाहिए और फिर हमें सक्षम होना चाहिए ताकि हम पूरे ज्ञान व सक्रियता के साथ, जो कुछ हम चाहते हैं, उसे वास्तविकता में बदल दें। आप सोचिए कि आप एक गलियारे में चल रहे हैं और एक कमरे की ओर जाते हैं, दरवाज़ा खोलते हैं और अचानक ही कमरे का बल्ब बुझ जाता है। आपके अस्तित्व में घबराहट भर जाती है, आप धीरे-धीरे और छोटे-छोटे क़दम उठाते हैं, सहसा ही  आपका शरीर किसी चीज़ से टकराता है और एक आवाज़ सुनाई देती है, आप और डर जाते हैं। उसी क्षण बल्ब जल उठता है और आप देखते हैं कि एक साधारण सा कमरा है और आप एक मेज़ से टकराए थे जिसके कारण एक पेन नीचे गिर गया था। वस्तुतः जब बल्ब जलता है तो आप निश्चितं व संतुष्ट हो जाते हैं और आपकी घबराहट दूर हो जाती है। ठीक इसी तरह अगर आप, अपने आपको सही ढंग से नहीं जानते और पहचानते हैं तो मानो आप एक अंधेरे कमरे में घुस गए हैं।

 

 अब एक सवाल और उठता है और वह यह कि स्वतः ज्ञान में दक्षता किस तरह हासिल की जा सकती है या उसे किस तरह बढ़ाया जा सकता है? इस सवाल का पहला जवाब ज्ञान है यानी जो व्यक्ति अपने ज्ञान में वृद्धि करता है वह बेहतर ढंग से विभिन्न अवसरों व स्थानों पर अपने व्यवहार के कारण की समीक्षा कर सकता है। यह ज्ञान, उसे उन चीज़ों को बदलने का अवसर देता है जो उसे पसंद नहीं हैं और वह अपने जीवन को अपनी इच्छाओं और परिस्थितियों के अनुकूल ढाल कर उससे आनंदित हो सकता है। अपने आपके बारे में ज्ञान रखे बिना, अपने आपको स्वीकार करना और बदलना असंभव होगा। हम क्या हैं? और क्या बनना चाहते हैं और इसी तरह इन बातों के लिए हमारा तर्क क्या है? इसके बारे में अगर हमारे विचार और हमारा दृष्टिकोण पूरी तरह से सटीक और स्पष्ट होगा तो इससे हमें अपनी इच्छाओं को पूरा करने में बहुत मदद मिलेगी और इसी तरह इससे हम अपनी बेहतर देख-भाल कर सकेंगे।

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