सुप्रीम लीडर ने फरमाया, दुआ हमको हमेशा करनी चाहिए विशेषकर उन अवसरों पर जब दुआ के कबूल होने की बात कही गई है मिसाल के तौर पर शुभ रातों को, आधी रात को, रमज़ान अलमुबारक में भोर के समय कि जब अल्लाह तआला दुआ करने पर बहुत बल दिया गया है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई ने फरमाया, दुआ की विभिन्न विशेषताएं हैं दुआ की कुछ एसी विशेषताएं भी हैं जो बलाओं के दूर करने से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। दुआ के माध्यम से हमारे और ईश्वर के मध्य संपर्क स्थापित होता है।
अतः आप देखते हैं कि इमामों द्वारा दी गयी शिक्षाओं में दुआ की विशेष स्थान है यहां तक कि इमामों ने धार्मिक शिक्षाओं को दुआ के माध्यम से बयान किये हैं।
हमने बार बार कहा है कि सहीफये सज्जादिया की दुआओं में बहुत ही गूढ़ ईश्वरीय व इस्लामी शिक्षाएं नीहित हैं और इंसान कम ही दूसरी हदीसों या इमामों के बयानों में इन शिक्षाओं को पाता है। इमामों ने इन शिक्षाओं को दुआओं के माध्यम से बयान किया है।
यानी इमामों ने हमारा ध्यान दुआओं की ओर दिलाना चाहा है। अतः दुआ के माध्यम से हम ईश्वर से संपर्क स्थापित करते हैं और उन शिक्षाओं से अवगत होते हैं जो दुआओं में हैं। इसी प्रकार दुआएं बलाओं को भी टालती हैं और हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह दुआओं के माध्यम से बलाओं को टाल दे।
हमेशा दुआ करें विशेषकर उन अवसरों पर जब दुआ के कबूल होने की बात कही गयी है। मिसाल के तौर पर शुभ रातों को, आधी रात को, भोर के समय कि जब महान ईश्वर से प्रार्थना करने पर बहुत बल दिया गया है। इसी तरह उस समय ईश्वर से दुआ करने पर बल दिया गया है जब इंसान के दिल की विशेष आध्यात्मिक स्थिति हो जाती है। एसे समय में ज़रूर दुआ करना चाहिये और महान ईश्वर दुआ को कबूल करता है।
एक रवायत है जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” हर समूह का प्रमुख उस समूह का सेवक होता है।“
पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन के दो अर्थ हो सकते हैं पहला अर्थ यह हो सकता है कि जो व्यक्ति सबसे अधिक सेवा करता है वह प्रमुख बनने का अधिकार रखता है। इस आधार पर हम यह समझने के लिए कि क़ौम व समुदाय का प्रमुख कौन है वंश और नाम आदि का पता लगाने नहीं जा रहे हैं बल्कि हम यह देखना चाहते हैं कि कौम व समुदाय की सेवा कौन सबसे अधिक करता है वही कौम का प्रमुख है।
या पैग़म्बरे इस्लाम का जो यह कथन है कि हर समूह का प्रमुख उस दल का सेवक होता है” इसका अर्थ यह हो सकता है कि हम यह कहें कि जो किसी कौम का प्रमुख व नेता होता है उसे कौम का सेवक होना चाहिये चाहे जिस कारण से भी उसे प्रमुख बनाया गया हो।
कभी जो यह कहा जाता है कि अधिकारी जनता के नौकर हैं तो इस पर कुछ लोग आपत्ति जताते और कहते हैं कि श्रीमान नौकर शब्द का प्रयोग न करें। ठीक है इस शब्द का प्रयोग पैग़म्बरे इस्लाम ने किया है सेवक यानी नौकर। यह शब्द जहां जनता की सेवा के महत्व व मूल्य को दर्शाता है वहीं इस बात का सूचक है कि जनता को लाभ पहुंचाना और उसके लिए परिश्रम करना कितना महत्वपूर्ण है।
जब हम या आप अमुक विभाग या अमुक जनसंख्या के प्रमुक बन जाते हैं तो हमारे मन में एक बात आती है और वह यह कि आम लोगों से हटकर हमारी एक ज़िम्मेदारी बनती है। रवायत यह नहीं कह रही है कि जिस कारण से भी अगर आप किसी जनसंख्या व राष्ट्र के प्रमुख बन गये हैं तो फौरन आप पर एक दायित्व व ज़िम्मेदारी आ जाती है और वह उसकी सेवा है।
देखिये इसका अर्थ क्या है! और जो भौतिक दुनिया की संस्कृति में प्रचलित है उसका क्या अर्थ है! जैसे ही वह केवल अध्यक्ष व प्रमुख पद की कुर्सी पर बैठता है मानो एक प्रकार की दीवार उसके चारों ओर खिंच जाती है और किसी को इस बात का अधिकार नहीं है कि वह उस दीवार को पार करे। आप अध्यक्ष हैं बहुत अच्छा है। आपका दायित्व सेवा करना है।
कार्यक्रम के आरंभ में हमने पैग़म्बरे इस्लाम का जो कथन बयान किया था उसके अर्थ के संबंध में पहली संभावना यह है कि अगर हम यह देखना चाहें कि कौन प्रमुख है तो देखें कि कौन सबसे अधिक सेवा करता है ताकि हम यह समझें कि वही प्रमुक है।