पवित्र क़ुरआन के दृष्टिकोण से, सृष्टि की दुनिया में, अस्तित्व की रचना न्याय पर आधारित है, और इसमें उत्पीड़न और अन्याय के लिए कोई जगह नहीं है और क़ानून की दुनिया में न्याय को ईश्वरीय दूतों के मिशन के तीन महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक माना जाता है। न्यायपूर्ण दृष्टि से हर चीज़ अपनी सही जगह पर होनी चाहिए और हर असली मालिक को उसका अधिकार मिलना चाहिए।
न्याय उन मूलभूत कान्सेप्ट में से एक है जिसे क़ुरआन ने नज़रियों, रूपांतर और कहानियों का इस्तेमाल करके विभिन्न सूरों और आयतों में व्यक्त और समझाया है, और इसका पालन करने और इसपर अमल करने पर ज़ोर दिया है। क़ुरआन के दृष्टिकोण से, सृष्टि की दुनिया में, अस्तित्व के निर्माण न्याय पर आधारित है, और इसमें उत्पीड़न और अन्याय के लिए कोई जगह नहीं है। साथ ही क़ानून की दुनिया में न्याय को ईश्वरीय दूतों के मिशन के तीन महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक माना जाता है। ईश्वर और इस्लाम की नज़र में न्याय के महत्व को बेहतर ढंग से समझने के लिए सबसे विश्वसनीय स्रोत किताब के रूप में पवित्र क़ुरआन है।
पार्सटुडे के इस लेख में, हम पवित्र क़ुरआन की सैकड़ों आयतों में से 8 ऐसी महत्वपूर्ण आयतों पर एक नज़र डालेंगे, जिनमें न्याय के मुद्दे का स्पष्ट या परोक्ष रूप से उल्लेख किया गया है:
अल्लाह (ईश्वर) के कार्य न्याय पर आधारित हैं
"شَهِدَ اللَّهُ أَنَّهُ لا إِلهَ إِلاَّ هُوَ وَ الْمَلائِکَةُ وَ أُولُوا الْعِلْمِ قائِماً بِالْقِسْطِ لا إِلهَ إِلاَّ هُوَ الْعَزیزُ الْحَکیمُ"؛ [قرآن: آل عمران، ۱۸[
"अल्लाह ने गवाही दी है कि उसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है और फ़रिश्तों तथा ज्ञानियों ने भी गवाही दी है। वह न्याय स्थापित करने वाला है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है, वह प्रभुत्वशाली और तत्वदर्शी है।"
अल्लाह के कार्य में रत्ती भर भी अन्याय नहीं है
"إِنَّ اللَّهَ لا یَظْلِمُ مِثْقالَ ذَرَّةٍ وَ إِنْ تَکُ حَسَنَةً یُضاعِفْها وَ یُؤْتِ مِنْ لَدُنْهُ أَجْراً عَظِیما"؛ [قرآن: نساء، 40[
"निसंदेह ईश्वर कण बराबर भी अत्याचार नहीं करता और यदि अच्छा कर्म हो तो उसका बदला दो गुना कर देता है और अपनी ओर से भी बड़ा बदला देता है"
लोगों के बीच न्याय के साथ फ़ैसला करो
"إِنَّ اللَّهَ یَأْمُرُکُمْ أَنْ تُؤَدُّوا الْأَماناتِ إِلى أَهْلِها وَ إِذا حَکَمْتُمْ بَیْنَ النَّاسِ أَنْ تَحْکُمُوا بِالْعَدْلِ إِنَّ اللَّهَ نِعِمَّا یَعِظُکُمْ بِهِ إِنَّ اللَّهَ کانَ سَمیعاً بَصیرا"؛ [قرآن: نساء، 58]
नि:संदेह ईश्वर तुम्हें आदेश देता है कि अमानतों को उनके मालिकों को लौटा दो और जब कभी लोगों के बीच फ़ैसला करो तो न्याय से फ़ैसला करो, नि:संदेह ईश्वर तुम्हें अच्छे उपदेश देता है, निश्चित रूप से वह सुनने और देखने वाला भी है।
दुश्मनी की वजह से दूसरों के साथ ना इंसाफ़ी न करो
"یا أَیُّهَا الَّذینَ آمَنُوا کُونُوا قَوَّامینَ لِلَّهِ شُهَداءَ بِالْقِسْطِ وَ لا یَجْرِمَنَّکُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلى أَلاَّ تَعْدِلُوا اعْدِلُوا هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوى وَ اتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ خَبیرٌ بِما تَعْمَلُونَ"؛ [قرآن: مائده، 8[
हे ईमान वालो! सदैव ईश्वर के लिए उठ खड़े होने वाले बनो और केवल (सत्य व) न्याय की गवाही दो और कदापि ऐसा न होने पाए कि किसी जाति की शत्रुता तुम्हें न्याय के मार्ग से विचलित कर दे। न्याय (पूर्ण व्यवहार) करो कि यही ईश्वर के भय के निकट है और ईश्वर से डरते रहो कि जो कुछ तुम करते हो निसन्देह, ईश्वर उससे अवगत है।
अल्लाह (ईश्वर) अत्याचारियों पर भी अत्याचार नहीं करता
"وَ لَوْ أَنَّ لِکُلِّ نَفْسٍ ظَلَمَتْ ما فِی الْأَرْضِ لاَفْتَدَتْ بِهِ وَ أَسَرُّوا النَّدامَةَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذابَ وَ قُضِیَ بَیْنَهُمْ بِالْقِسْطِ وَ هُمْ لا یُظْلَمُونَ"؛ [قرآن: یونس، ۴۷[
और हर समुदाय के लिए एक पैग़म्बर हो तो जब उनका पैग़म्बर आ जाता है तो उनका फ़ैसला न्यायपूर्वक कर दिया जाता है और उन पर कोई अत्याचार नहीं होता।
लोगों का हक़ अदा करने में नाइंसाफी न करें
"وَ یا قَوْمِ أَوْفُوا الْمِکْیالَ وَ الْمیزانَ بِالْقِسْطِ وَ لا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْیاءَهُمْ وَ لا تَعْثَوْا فِی الْأَرْضِ مُفْسِدینَ" [قرآن، هود ۸۵[
हे मेरी क़ौम के लोगों! नाप और तुला को न्याय के साथ भरो और लोगों की वस्तुओं में से कुछ कम न करो और अपनी बुराई द्वारा धरती में बिगाड़ न फैलाओ।
लोगों को न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए
"لَقَدْ أَرْسَلْنا رُسُلَنا بِالْبَیِّناتِ وَ أَنْزَلْنا مَعَهُمُ الْکِتابَ وَ الْمیزانَ لِیَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ"؛ [قرآن: حدید، ۲۵[
हमने अपने पैग़म्बरों को स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा (लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए) और उन पर किताब और न्याय का पैमाना उतारा ताकि लोग धार्मिकता और न्याय के साथ उठ खड़े हों।
अल्लाह (ईश्वर) न्याय प्रेमियों से प्रेम करता है
"وَ أَقْسِطُوا إِنَّ اللَّهَ یُحِبُّ الْمُقْسِطین"؛ [قرآن: حجرات، ۹[
न्याय के अनुसार काम करो, वास्तव में ईश्वर उन लोगों से प्रेम करता है जो न्याय चाहते हैं।