विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़ने वाली ईरानी महिलाओं के परिचय के तहत, समीरा जन्नतदोस्त की ज़िंदगी के बारे में जानिए कि उन्होंने कब से कुकिंग का काम शुरू किया, कितनी किताबें लिखीं, कितनी क्लासें चलाती हैं और उन्हें कौन कौन से इनाम मिल चुके हैं।
समीरा जन्नतदोस्द ईरान की पहली महिला शैफ़ हैं, जिन्हें फ़ूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइज़ेशन (एफ़एओ) द्वारा ईरानी व्यंजनों की प्रथम महिला और देश के तकनीकी और व्यावसायिक संगठन द्वारा ईरान की सर्वश्रेष्ठ महिला के रूप में चुना गया है।
आज हम आपका परिचय समीरा जन्नतदोस्त से करवा रहे हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन या एफ़एओ ने ईरान की प्रथम महिला शैफ़ के तौर पर चुना है। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के प्रतिष्ठित पुरस्कारों और ख़िताबों से नवाज़ा जा चुका है। उन्होंने कुकिंग बुक की विश्व प्रतियोगिता में पहले स्थान के लिए गोरमैंड अवार्ड्स और बेस्ट ऑफ़ द बेस्ट अवार्ड जीते हैं। इसी प्रतियोगिता में 2018 में उन्हें उनकी ड्राई स्वीट्स किताब के लिए एक विशेष पुरस्कार दिया गया और उनकी हॉट एंड कोल्ड ड्रिंक्स किताब को दुनिया की शीर्ष 7 पुस्तकों में से एक के रूप में मान्यता दी गई।
समीरा जन्नतदोस्त
जन्नतदोस्त अब तक 6 किताबें लिख चुकी हैं। अध्ययन की दृष्टि से यह किताबें बहुत महत्वपूर्ण हैं और बड़ी संख्या में लोगों ने इनका स्वागत किया है। भविष्य में भी उनकी नई किताबें बाज़ार में आने वाली हैं।
वह ईरान के पश्चिमोत्तर में स्थित तबरेज़ शहर की रहने वाली हैं और उनके 3 बच्चे हैं। उन्होंने 11 साल की उम्र में खाना बनाना शुरू कर दिया था। ख़ुद उनका कहना है कि मुझे खाना बनाने से ज़्यादा किसी दूसरे काम में आनंद नहीं आता था। उन्होंने 25 साल की उम्र से खाना बनाने की शिक्षा देना शुरू किया और सन 1371 हिजरी शम्सी में तबरेज़ में खाद्य उद्योग के क्षेत्र में तकनीकी और व्यावसायिक संगठन से जुड़ी एक आधिकारिक वर्कशॉप का उद्घाटन किया।
उनका कहना हैः अगर महिलाओं को सफल जीवन जीना है तो अपने घर के किचन से शुरुआत करना चाहिए। खाना बनाना उनके लिए एक ऐसी रस्म है, जिसमें एक महिला, लज़ीज़ खाना चखने और परिवार को एक साथ लाने और परिजनों के बंधन को मज़बूत करने की भूमिका अदा करती है।
समीरा जन्नतदोस्त के लिए खाना बनाना एक पवित्र पेशे की तरह है। एक ऐसा पेशा, जिसके लिए समय देना पड़ता है, दिलसोज़ी करनी पड़ती है और उसे जीवित रखना पड़ता है। यही वजह है जब उन्होंने खाना बनाने पर अपनी पहली किताब प्रकाशित की तो उसकी प्रस्तावना में उन सभी महिलाओं का शुक्रिया अदा किया जो आज भी खाना तैयार करने को महत्व देती हैं और उसका सम्मान करती हैं।
समीरा जन्नतदोस्त अपनी एक किताब के साथ
उन्होंने अपनी इस किताबा की प्रस्तावना में लिखा हैः मेरी यह किताब उन सभी लोगों को समर्पित है, जो अभी भी अपने प्रियजनों के साथ अपने प्यार और स्नेह को खाने की टेबल पर साझा करते हैं। एक समझदार मां और पत्नी जानती है कि वह अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ अपने प्यार और स्नेह को लज़ीज़ खाने के ज़रिए ज़ाहिर कर सकती है। याद रखिए कि मां के खाने की महक हमेशा के लिए हमारे दिमाग़ में बस जाती है और हम मां के खाने की तुलना में कोई भी खाना पसंद नहीं करते हैं। दस्तरख़ान का सम्मान ही परिवार का सम्मान है।
जन्नत दोस्त क़दम ब क़दम आगे बढ़ी हैं, ताकि एक ईरानी महिला के रूप में ईरानी खानों को नया जीवन प्रदान कर सकें और उन्हें नए रंग और नई महक के साथ दस्तरख़ान पर सजा सकें। वह कहती हैः जब तक ईरानी खाना है, तो पास्ता की क्या ज़रूरत है? सही में बड़ा अफ़सोस होता है कि विविध प्रकार के ईरानी खानों के बावजूद, लोग पास्ता और पित्ज़ा जैसे विलायती खाने खाते हैं। हर देश में वर्षों बीत जाने के बाद, लोग इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वहां की जलवायु के दृष्टिगत कौन से खाने बेहतर रहेंगे, ताकि लोग स्वस्थ रह सकें। उदाहरण स्वरूप, भारत के लोग मिर्च और मसालों वाले खाने खाते हैं ताकि भारत के उमस भरे मौसम में रह सकें, या उत्तरी ईरान में लोग जो खाने खाते हैं, वह आज़रबाइजान में खाए जाने वाले खानों से अलग हैं। ऐसे में क्या यह सही है कि हम इस खाने की समृद्ध संस्कृति को पैरों तले रौंद दें और ऐसे देशों का खान-पान अपना लें, जिनका ईरान की परम्परा से कोई लेना-देना नहीं है?
जन्नतदोस्त अपनी एक क्लास में
ख़ास तौर पर रमज़ान के महीने के लिए मुरब्बा या जैम और हलवा बनाने की उनकी क्लासों में सबसे ज़्यादा भीड़ रहती है। इस संदर्भ में वह ख़ुद कहती हैः शुरुआत में जब मुझे ज़्यादा अनुभव नहीं था तो मुझे अपना कोई मनपसंद मुरब्बा या हलवा तैयार करने में महीनों लग जाते थे लेकिन मैंने कभी भी किसी की कॉपी करने की कोशिश नहीं की और दूसरे स्रोतों से पढ़ाने का प्रयास नहीं किया। आपको यक़ीन नहीं होगा कि मैंने एक बोरी मूली का इस्तेमाल किया था ताकि उससे अच्छा जैम बना सकूं। संक्षेप में कहूं तो मैंने खाना बनाने में तरह तरह के नए नए नुस्खों का इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से न सिर्फ़ तबरेज़ बल्कि दूसरे शहरों की महिलाएं भी मेरी खाना बनाने की क्लासों में भाग लेने के लिए रुची लेने लगीं। इसीलिए मैंने अपनी वर्कशॉप पानीज़ की दूसरी शाख़ा की तेहरान में स्थापना की।
जन्नतदोस्त ने जब किताब लिखना शुरू किया तो कई लोगों ने सलाह दी कि विभिन्न देशों के खानों के बारे में लिखो, ताकि उसकी ज़्यादा बिक्री हो। लेकिन उन्होंने सिर्फ़ अपने दिल की बात सुनी। उनका कहना हैः मैं एक ईरानी शैफ़ हूं, इसलिए बेहतर होगा कि पहले ईरानी खानों की बात करूं और उन्हें पूरी दुनिया के सामने पेश करूं। "आशपज़िये मिलल" किताब में खाना पकाने के अपने अनुभवों के ज़रिए मैंने भोजन के स्वाद को अपने राष्ट्र के स्वाद में बदल दिया। मैंने किताब की शुरुआत में यह स्पष्टीकरण दिया है ताकि अगर कोई ग़ैर-ईरानी व्यक्ति इस किताब को पढ़े तो उसे एहसास हो कि मैं अपने राष्ट्र के स्वाद को महत्व देती हूं और मैंने खानों के स्वाद को ईरानी शैली में और अपने देश वासियों के अनुसार बदल दिया है।
उन्होंने टीवी कार्यक्रमों में भी खाना बनाना सिखाया है, और राष्ट्रीय कौशल प्रतियोगिताओं में एक विशेषज्ञ और एक महिला उद्यमी के रूप में काम किया है। इन दिनों उनका सारा ध्यान, क्लासों और किताबों पर है। इस बारे में वह कहती हैः ईरानी व्यंजन का अच्छी तरह से परिचय नहीं करवाया गया है। आप दुनिया में जहां भी जाते हैं, यहां तक कि यूरोपीय देशों में भी तो आप देखते हैं कि उनके सबसे अच्छे होटलों में एक चीनी या भारतीय रेस्तरां होता है, लेकिन आपको ईरानी रेस्तरां नहीं दिखाई देगा। इसकी वजह यह है कि हम अपने खाने की संस्कृति को अच्छी तरह से पेश नहीं कर सके हैं। ऐसी किताबों के प्रकाशन से हो सकता है कि आज ईरानियों के ख़राब पोषण की जगह, उचित संस्कृति ले ले।
जन्नतदोस्त आगे कहती हैः ईरानी खानों का एक लम्बा इतिहास और संस्कृति है। ईरानी खानों ने यह रूप हकीम अबू अली सीना के ज्ञान व अनुभवों के आधार पर और क्षेत्रीय व जलवायु के अनुसार यह रूप लिया है। प्राचीन काल से ही ईरानी यह बात जानते हैं कि किस चीज़ को किस चीज़ के साथ खाना चाहिए तो लाभ होगा और किस चीज़ को किस चीज़ के साथ खाने से नुक़सान होगा। उन्हें पता है कि किन मसालों और सब्ज़ियों को मिलाकर खाने से शरीर स्वस्थ रहेगा, इसीलिए उन्हें साथ में खाया जाना चाहिए।
उनका मानना है कि खाना बनाना, सिर्फ़ पेट भरने के लिए खाना बनाना ही नहीं है। बल्कि यह एक कला है। खाना बनाना एक सुंदर अनुभव है, जो परिवार की नींव को मज़बूत करता है, अगर सही तरीक़े से काम किया जाए तो सभी एक दस्तरख़ान पर इकट्ठा हो जाते हैं और परिवार और उसके स्वास्थ्य की अवधारणा को एक वास्तविकता प्रदान करता है।
इस ईरानी महिला ने विश्व स्तर पर साबित कर दिया कि दुनिया के सभी प्रसिद्ध शैफ़ मर्द नहीं है। इसलिए कि ईरानी महिलाएं अपने मूल खानों की वजह से दुनिया में ईरान के नाम को ऊंचा कर सकती हैं। जिस तरह से कि वे खेल या दूसरे क्षेत्रों में कर रही हैं।