पवित्र क़ुरआन हमसे कहता है कि इब्लीस ने घमंड किया और हज़रत आदम का सज्दा करने में अल्लाह के आदेश की नाफ़रमानी की और अल्लाह की बारगाह से उसे निकाल दिया गया परंतु उसने बहुत सालों तक अल्लाह की इबादत की थी इसलिए अल्लाह की अदालत का तक़ाज़ा यह था कि वह बाक़ी रहने हेतु शैतान की मांग को स्वीकार करता इसलिए उसने शैतान की दरख़ास्त मान ली।
पवित्र क़ुरआन के अनुसार शैतान एक जिन है। दूसरों को कष्ट पहुंचाने वाले, गुमराह करने वाले और उद्दंडी मौजूद व मख़लूक़ को शैतान कहा जाता है चाहे वह इंसान हो या ग़ैर इंसान। शैतान का नाम इब्लीस है जिसने हज़रत आदम और हव्वा को गुमराह किया और इस वक्त वह अपनी पूरी सेना के साथ इंसानों को गुमराह करने में व्यस्त है।
सवाल यह है कि इब्लीस को क्यों पैदा किया गया और क्या वह अल्लाह की हिकमत और अदालत से मेल खाता है कि इस प्रकार की मख़लूक़ को पैदा किया जाये और वह इंसानों को गुमराह करे? यह सवाल करने का मक़सद इसका उत्तर देना है।
अल्लाह से शैतान की बहस
अल्लाह ने इब्लीस को शैतान नहीं पैदा किया था बल्कि पवित्र क़ुरआन के अनुसार वह जिनों में से था और इंसानों की भांति वह अपने आमाल व कर्मों में पूर्णतः मुख्तार था। अल्लाह पवित्र क़ुरआन में कहता है «كانَ مِنَ الْجِنِّ فَفَسَقَ عَنْ أَمْرِ رَبِّه».
अतः अल्लाह ने शैतान को दूसरों को गुमराह करने के लिए नहीं पैदा किया था बल्कि जैसे पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी और शियों के पहले इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम प्रसिद्ध किताब नहजुल बलाग़ा के ख़ुत्बा नंबर 192 में इरशाद फ़रमाते हैं कि इब्लीस ने 6 हज़ार सालों तक इबादत की थी" पर यह ज्ञात नहीं है कि दुनिया के साल थे या आख़ेरत के मगर शैतान ने इतने सालों की इबादत को अपने घमंड से तबाह कर दिया।
उसे अल्लाह ने जो आज़ादी थी उसने उसका दुरुपयोग किया और बातिल तर्कों के आधार पर उसने कहा कि अल्लाह तूने मुझे आग से पैदा किया है और आदम को मिट्टी से और आग मिट्टी से अफ़ज़ल होती है «أَنَا خَيْرٌ مِنْهُ خَلَقْتَنِى مِنْ نارٍ وَ خَلَقْتَهُ مِنْ طِينٍ». इसलिए मैं आदम का सज्दा नहीं करूंगा। इस आधार पर शैतान ने अल्लाह का सज्दा करने से इंकार कर दिया और उसे अल्लाह की बारगाह से निकाल दिया गया मगर चूंकि शैतान ने बहुत सालों तक इबादत की थी इसलिए अल्लाह की हिकमत और अदालत का तक़ाजा था कि वह उसे बाक़ी रहने पर सहमति जताये। इब्लीस ने भी इस अवसर को ग़नीमत समझा और उसने क़सम खाई की कि तेरे विशेष बंदों के अलावा सबको गुमराह करूंगा।
विकास के लिए विरोधाभास का महत्व
दुनिया को पैदा करने की दृष्टि से ईमानदार लोगों और उन लोगों के लिए शैतान का होना हानिकारक नहीं है जो सत्य व हक़ के रास्ते पर चलना चाहते हैं बल्कि उनके विकास और परिपूर्णता का साधन है। क्योंकि विकास, प्रगति, उन्नति और परिपूर्णता हमेशा विरोधाभास चीज़ों के अंदर होती है। दूसरे शब्दों में जब तक इंसान का सामना शक्तिशाली दुश्मन से नहीं पड़ता तब तक वह अपनी क्षमता और ताक़त का सही से इस्तेमाल नहीं करता है। यही शक्तिशाली और ख़तरनाक दुश्मन शैतान की मौजूदगी इंसान की गतिशीलता व प्रयास का कारण बनती है और यही गतिशीलता उसकी परिपूर्णता का कारण बनती है।
वर्तमान समय के एक बड़े दार्शनिक ट्विन बी कहते हैं” दुनिया में कोई सभ्यता चमकी व उभरी ही नहीं मगर यह कि विदेशी शक्ति ने एक राष्ट्र व क़ौम पर हमला न किया हो और इसी हमले की वजह से उस कौम ने अपने अंदर नीहित क्षमताओं व योग्यताओं का प्रयोग किया और एक अच्छी सभ्यता की बुनियाद रखी।
इसी प्रकार इंसान को इस बात को भी समझना चाहिये कि वह भलाई और ख़ैर का मतलब उस वक्त समझता है जब शर और बुराई को देखता है और उससे अवगत हो। इस आधार पर दुनिया में शैतान का होना ज़रूरी है। केवल उसी वक्त शैतान को शर समझा जा सकता है जब उसका अनुसरण किया जाये मगर उसका विरोध और उसका मुक़ाबला ख़ैर व नेक है और उसका अस्तित्व इंसान की मज़बूती और परिपूर्णता का कारण है।
शैतान का स्वागत
शैतान अचानक हमारे अंदर वसवसा नहीं करने लगता है और वह एकाएक हमला नहीं कर देता है। वह हमारी अनुमति से हमारे अंदर घुसता और हमें वरगलाता है। यह हम हैं जो उसके आने का रास्ता देते हैं। जैसाकि अल्लाह पवित्र क़ुरआन के सूरे नहल की आयत नंबर 99 और 100 में «إنّهُ لَيسَ لَهُ سُلطان عَلى
الّذينَ آمَنوُا وَ عَلى رَبِّهِم يَتَوكّلُون * إنّمَا سُلطانَه عَلى الّذينَ يَتولّونَهُ وَ الّذينَ هُم بِهِ مُشرِكُون»؛ कहता है कि जो लोग ईमान लाये हैं और अपने पालनहार पर भरोसा रखते हैं उन पर उसका बस नहीं है और केवल उन्हीं लोगों पर शैतान का बस चलता है जो उसकी दोस्ती व सरपरस्ती को क़बूल करते हैं और अल्लाह के लिए शरीक करार देते हैं। यानी अल्लाह के आदेश के मुक़ाबले में शैतान की इच्छाओं पर अमल करते हैं। इसी प्रकार पवित्र क़ुरआन के सूरे हिज्र की आयत नंबर 42 में हम पढ़ते हैं «إِنَ عِبادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطانٌ إِلَّا مَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْغاوِينَ»؛
बेशक हमारे बंदों पर तुम्हारा बस नहीं चलेगा मगर यह कि उन गुमराहों पर जो तुम्हारी पैरवी और अनुसरण करेंगे।
पवित्र क़ुरआन की इन आयतों के अनुसार इब्लीस और दूसरे शैतानों को मोमिन इंसानों के अंदर प्रवेश का अधिकार नहीं है और न ही उनके अंदर इस बात की क्षमता है मगर यह कि ख़ुद इंसान उन्हें अपने अंदर दाखिल होने की अनुमति दे और उनका अनुसरण करे।
एक अन्य बिन्दु यह है कि हम शैतान और उसके सहयोगियों को नहीं देखते हैं परंतु उनकी हरकतों को देख सकते हैं, जहां भी गुनाह हो रहा होता है, जहां भी गुनाह के संसाधन उपलब्ध होते हैं, जहां भी दुनिया की चमक- दमक की बात होती है और उद्दंडता, ग़लत कार्यों और क्रोध की आग जल व भड़क रही होती है वहां पर शैतान की उपस्थिति अवश्य होती है। यानी वहां पर शैतान ज़रूर होता है। ऐसे मौक़ों पर मानो इंसान शैतान के वसवसों की आवाज़ को सुनता है और उसकी हरकतों को अपनी आंखों से देखता है।
सारांश यह कि इंसान अपने किसी भी अमल में मजबूर नहीं है। अल्लाह ने उसे आज़ाद और स्वतंत्र पैदा किया है ताकि बेहतरीन ढंग से वह विकास करके अल्लाह का सामिप्य प्राप्त करे और शैतान के शर और अपनी अज्ञानता के मुक़ाबले में अल्लाह के लुत्फ़ो व करम, उसके पैग़म्बरों, किताबों, बुद्धि और अपनी सही फ़ितरत की मदद ले सकता है।