मक़सदे ख़िलक़त

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मक़सदे ख़िलक़त

हम कहाँ से आये है? हमारे आने का मक़सद क्या है? हम कहाँ जा रहे हैं? हमारा अंजाम क्या होगा? हमारी सआदत व ख़ुश बख़्ती किय चीज़ में है?

उसे किस तरह हासिल किया जा सकता है?

यह और इस तरह के दीगर अहम और बुनियादी सवालात हैं जो हमेशा से इंसान के दिल व दिमाग़ को मशग़ूल किये हुए हैं। इन सवालात का सही जवाब मालूम कर लेना इंसानी ज़िन्दगी को बेहतरीन और कामयाब ज़िन्दगी बना सकता है और उस में नाकामी उसे और उस की ज़िन्दगी को नीस्ती व नाबूदी की तरफ़ खींच सकती है। मक़सदे ख़िलक़त को जान लेना एक तरफ़ से इंसान की हक़ीक़त तलब रूह की तसकीन के सामान फ़राहम कर सकता है तो दूसरी तरफ़ से उस के हाल और मुस्तक़बिल को आपस में जोड़ सकता है।

इस्लामी नुक़्त ए नज़र से ख़िलक़ते कायनात बिला वजह और बग़ैर किसी मक़सद के नही है बल्कि कायनात की हर शय एक ख़ास ग़रज़ और मक़सद के तहत ख़ल्क़ हुई है।

बेशक ज़मीन व आसमान की ख़िलक़त, लैल न नहार की आमद व रफ़्त में साहिबाने अक़्ल के लिये क़ुदरत की निशानियां हैं। जो लोग उठते बैठते, लेटते ख़ुदा को याद करते हैं और आसमान व ज़मीन की तख़लीक़ में ग़ौर व फ़िक्र करते हैं कि ख़ुदाया, तू ने यह सब बेकार पैदा नही किया, तू पाक व बे नियाज़ है, हमे अज़ाबे जहन्नम से महफ़ूज़ फ़रमा।

(सूर ए आले इमरान आयत 190, 191)

उन्ही मख़लूक़ात में से ख़ुदा की एक बरतर और अशरफ़ मख़लूक़ जिसे इंसान कहा जाता है। परवरदिगार ने उसे अबस और बिला वजह ख़ल्क़ नही किया है बल्कि उसे अपनी ख़िलक़त का शाहकार क़रार दिया है और उस की ख़िलक़त पर अपने आप को अहसनुल ख़ालेक़ीन कहा है। इसी लिये इरशाद फ़रमाता है:

क्या तुम्हारा ख़्याल है कि हम ने तुम्हे बेकार पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलटा कर नही लाये जाओगे। (सूर ए मोमिनून आयत 115)

और एक दूसरे मक़ाम पर इरशाद होता है:

क्या इंसान का ख़्याल यह है कि उसे इसी तरह आज़ाद छोड़ दिया जायेगा।

(सूर ए क़यामत आयत 37)

यह आयात हमें चंद अहम नुकात की तरफ़ मुतवज्जेह कराती हैं:

1. इंसान की ख़िलक़त बेला वजह व अबस नही है बल्कि उस की ख़िलक़त का एक मक़सद है।

2. इंसान को ख़ल्क़ कर के उसे उस के हाल पर छोड़ नही दिया गया है।

3. ख़िलक़ते इंसानी का आख़िरी मक़सद उस का बारगाहे ख़ुदा वंदी में पलटना है।

ख़ालिक़े कायनात ने इंसानों की ख़िलक़त के कुछ दीगर असरार व रुमूज़ और अहदाफ़ व मक़ासिद को अपनी किताब क़ुरआने मजीद में बयान फ़रमाया है मिन जुमला:

1. इल्म व मारेफ़त

परवरदिगारे आलम ने इंसान की ख़िलक़त का एक मक़सद इंसानों का परवरदिगार की क़ुदरते मुतलक़ा की मारेफ़त हासिल करना क़राक दिया है इरशाद फ़रमाया:

अल्लाह वही है जिस ने सात आसमानों को पैदा किया है और ज़मीनों में भी वैसी ही ज़मीनें बनाई हैं उस के अहकाम उन के दरमियान नाज़िल होते हैं ता कि तुम्हे यह मालूम हो जाये कि वह हर शय पर क़ादिर है और उस का इल्म तमाम अशया का इहाता किये हुए हैं। (सूर ए तलाक़ आयत 12)

2. इम्तेहान आज़माइश

ख़ुदा वंदे आलम का इरशाद है:

उस ने मौत व हयात को इस लिये पैदा किया है ता कि तुम्हारी आज़माइश करे कि तुम में हुस्ने अमल के ऐतेबार से सब से बेहतर कौन है।

इम्तेहान और आज़माइशे इलाही से मुराद पोशीदा असरार व रुमूज़ को मालूम करना नही है बल्कि इस से मुराद इंसानों की इस्तेदाद व सलाहियत को रुश्द व तरक़्क़ी देने के मवाक़े फ़राहम करना है और इंसानों की आज़माइश व इम्तेहान यह है कि वह अच्छाई व बुराई के रास्ते को मुन्तख़ब करने के तमाम रास्तों को इंसानों के सामने रख दे का कि वह उन की मदद से अपनी इस्तेदाद व सलाहियत को रुश्द व तरक़्क़ी दे और सही रास्ते का इंतेख़ाब करे।

3. इबादत

परवरदिगारे आलम ने इस सिलसिले में इरशाद फ़रमाया:

और मैं ने जिन्नात और इंसानों को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिये पैदा किया है।

(सूर ए ज़ारियात आयत 56)

इस आयत की रौशनी में इंसान की ख़िलक़त का अस्ल मक़सद इबादत व बंदगी ए परवरदिगार है। इबादत व बंदगी ए परवर दिगार को क्यों मक़सदे ख़िलक़ते इंसान क़रार दिया गया है? इस सवाल का जवाब यह है:

1. क़ुरआनी नुक़्त ए नज़र से हर मुसबत अमल जो परवर दिगार से क़रीब होने की नीयत से अंजाम दिया जाये वह इबादत है। इबादत सिर्फ़ चंद ख़ास मनासिक व आमाल ही नही हैं बल्कि उन के साथ साथ हर इल्मी, इक़्तेसादी आमाल वग़ैरह भी जो लील्लाहियत की बुनियाद पर अंजाम दिये जायें वह सब के सब इबादत हैं और इंसान अपने तमाम अहवाल व हालात यहाँ तक कि खाने पीने, सोने जागने और ज़िन्दगी व मौत में भी ख़ुदाई हो सकता है और उस से तक़र्रुब हासिल कर सकता है।

आप कह दीजिये कि मेरा नमाज़, मेरी इबादतें, मेरी ज़िन्दगी और मेरी मौत सब अल्लाह के लिये है, जो आलमीन का पालने वाला है।

अलबत्ता इस बात को हमेशा याद रखना चाहिये कि इबादत अपने ख़ास और इस्तेलाही मअना में दीन में एक बहुत अहम और ख़ास मक़ाम व मंज़िलत की हामिल है।

2. इस सिलसिले में फ़ससफ़ ए इबादत की तरफ़ तवज्जो भी निहायत ज़रुरी और अहम चीज़ है। चुनांचे हज़रत अली अलैहिस सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि परवरदिगार ने मख़लूक़ात को ख़ल्क़ किया जब कि वह उन की इताअत से बेनियाज़ और उन की ना फ़रमानी से अम्न व अमान में था। इस लिये कि न ही गुनहगारों की ना फ़रमानी उसे कोई नुक़सान पहुचा सकता है और न ही इताअत गुज़ारों की इताअत व फ़रमा बरदारी उसे कोई फ़ायदा पहुचा सकती है।

इंसान की दुनिया और आख़िरत में इबादत के बहुत से मुसबत असरात और हिकमतें हैं मिन जुमला:

1. एक फ़ितरी ज़रुरत

2. ख़ुद शिनासी का एक रास्ता

3. माद्दियत व माद्दा परस्ती से निजात

4. यक़ीन हासिल करना

5. रुहे इंसान की बदन पर कामयाबी

6. एहसासे सलामती और इतमीनान

7. क़ुवा ए नफ़सानी पर क़ाबू

8. क़ुरबते ख़ुदा का ज़रिया

9. अख़लाक़ व ईमान का हामी

4.रहमते इलाही

ख़ालिक़े क़ायनात ने इरशाद फ़रमाया:

और अगर आप का परवरदिगार चाह लेता तो सारे इंसानों को एक क़ौम बना देता। (लेकिन वह जब्र नही करता।) लिहाज़ा यह हमेशा मुख़्तलिफ़ ही रहेगें। अलावा उन के जिन पर ख़ुदा ने रहम कर दिया और इसी लिये उन्हे पैदा किया है।

एक अहम नुक्ता

मज़कूरा बाला आयात में ग़ौर व फ़िक्र से यह बात वाज़ेह हो जाती है कि उन अहदाफ़ व मक़ासिद में कोई इख़्तिलाफ़ और तज़ाद नही है। इस लिये कि उन में से बाज़ मुकद्देमाती और इब्तेदाई अहदाफ़ है तो कुछ दरमियानी और कुछ आख़िरी हदफ़ व नतीजा हैं।

लिहाज़ इन आयात की रौशनी में ख़िलक़ते इंसान का मक़सद, तजल्ली ए रहमते परवरदिगार और इंसान को दायमी कमाल व सआदत की राह में क़रार देना है जो इख़्तेयारी तौर पर सही और बरतर रास्ते को इख़्तियार करने और राहे उबूदियते परवर दिगार को तय करने से हासिल हो सकता है।

अल्लाह हुम्मा वफ़्फ़िक़ना लिमा तुहिब्बो व तरज़ा, वजअल अवाक़िबा उमूरिना ख़ैरा।

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