भारत के एक पूर्व राजनयिक भद्र कुमार का ख़याल है कि ईरान अपनी स्मार्ट शक्ति का इस्तेमाल करके, इजराइली शासन की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रभावी हमला करेगा और इस्राईल के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन कम कर देगा।
"ईरान के स्मार्ट पॉवर से इज़राइल को बड़ा झटका" शीर्षक के अंतर्गत एक लेख में भारत के पूर्व राजनयिक एम. के. भद्र कुमार पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रमों पर रोशनी डालते हुए इस क्षेत्र में ईरान की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।
उनका मानना है कि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में हालिया बदलाव, ईरान की बढ़ती शक्ति और अमेरिका की ईरान विरोधी नीतियों के लिए क्षेत्रीय समर्थन में कमी के संकेत देते हैं।
लेखक यह इशारा करते हुए कि ईरान की नई सरकार, दुनिया के साथ रचनात्मक बातचीत की कोशिश में है, इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ईरान की विदेश नीति में इन परिवर्तनों के इज़राइल और अमेरिका के के लिए महत्वपूर्ण परिणाम होंगे।
उनका कहना था कि श्री मसऊद पिज़िश्कियान की चुनाव में जीत, ईरान में एक धड़े की शक्ति को ज़ाहिर करती है, एक ऐसा धड़ा जो उन पुरानी नीतियों को अप्रभावी बना सकता है जिनका इस्तेमाल देश के दुश्मनों द्वारा ईरान में सामाजिक अस्थिरता भड़काने के लिए किया जाता रहा है।
श्री कुमार ने इन घटनाक्रमों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर भी रोशनी डाली और डॉक्टर पिज़िश्कियान से तत्काल बैठक के लिए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी के अनुरोध की तरफ़ इशारा किया।
श्री भद्र कुमार ग्रॉसी के इस क़दम को ईरान और आईएईए के बीच बातचीत के महत्व का संकेत मानते हैं जिससे परमाणु सहयोग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हो सकता है।
लेख के दूसरे हिस्से में भारत के पूर्व राजनयिक एम. के. भद्र कुमार ईरान के प्रति फ़ार्स की खाड़ी के देशों के दृष्टिकोण में बदलाव की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि ये देश, विशेष रूप से सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात, वाशिंगटन के ईरान विरोधी रुख से ख़ुद को दूर कर रहे हैं।
वह अरब लीग की आतंकवादी संगठनों की सूची से हिजबुल्लाह का नाम हटाने को, जिसे अमेरिकी दबाव के कारण शामिल किया गया था, दृष्टिकोण के इस बदलाव के इशारों में एक मानते हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इन बदलावों को ख़ासकर इस्राईल के लिए एक गंभीर ख़तरा माना जाता है।
वह कहते हैं:
आम तौर पर, फ़ार्स की खाड़ी के रजवाड़े, जो ईरान के घटनाक्रमों पर क़रीब से नज़र रखते हैं, पैराडाइम में बदलाव महसूस कर रहे हैं। अहम बात यह है कि श्री पिज़िश्कियान, कट्टरपंथ के परिणामों से निपटने के लिए एक क्षेत्रीय गठबंधन पर ज़ोर देते हैं।
श्री कुमार डॉक्टर पिज़िश्कियान के शब्दों का भी हवाला देते हैं कि: कट्टरपंथियों की आवाज़ से लगभग दो अरब शांतिप्रिय मुसलमानों की आवाज़ दबनी नहीं चाहिए, इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है।
लेखक लिखते हैं कि 1979 की इस्लामी क्रांति के पैंतालीस साल बाद, इस्लामी गणतंत्र को संयम और तर्कसंगतता की आवाज़ के रूप में पेश किया गया! वह कहते हैं:
अलबत्ता, इसका मतलब यह नहीं है कि ईरान और प्रतिरोध के मोर्चे के अन्य सदस्य, इज़राइल की हालिया कार्रवाइयों पर अपने जवाबी हमले को नरम कर देंगे। हनिया की हत्या का ईरान का प्रतिशोध, निश्चित रूप से उससे भी अधिक गंभीर और दर्दनाक होगा जिसका तेल अवीव ने अब तक अनुभव किया है।
भारत के पूर्व राजनयिक श्री कुमार का मानना है कि ईरान के साथ युद्ध, अरब देशों के साथ इजराइली शासन के पिछले युद्धों से बहुत अलग होगा। उनके अनुसार, यह युद्ध तब तक अंतहीन रहेगा जब तक इज़राइल फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना की अनुमति नहीं दे देता।
वह लिखते हैं: इजराइल की जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाएगी, जैसा कि हिज़्बुल्लाह के साथ हुआ था। ईरान के मध्यावधि और दीर्घकालिक फ़ायदे, इज़राइल की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं और इसके साथ ही, युद्ध कई मोर्चों पर और ग़ैर-सरकारी खिलाड़ियों के साथ होगा।
आर्टिकल में आगे आया है:
अमेरिका की ओर से किसी प्रकार की हरी झंडी के बिना, इस बात पर विश्वास करना कठिन है कि इज़राइल ने अपने दम पर ईरान की संप्रभुता पर हमला किया होगा जो कि युद्ध के समान होता है। यह "ज्ञात अज्ञात" वजह स्थिति को बहुत ही खतरनाक बना देती है।
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला ख़ामेनेई पहले ही इजराइली क्षेत्र पर सीधे हमले का आदेश दे चुके हैं। श्री कुमार ने क्षेत्र में अमेरिकी नौसैनिक बलों की तैनाती की ओर भी इशारा किया और इसे स्थिति के बिगड़ने और ईरान और इजराइल के बीच तनाव बढ़ने की संभावना का संकेत क़रार दिया है।
इस संबंध में वह पेंटागन द्वारा जारी रिपोर्टों का हवाला देते हैं जो फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र और पूर्वी भूमध्य सागर में 12 अमेरिकी युद्धपोतों की तैनाती के बारे में जानकारी देती हैं।
भारत के पूर्व राजनयिक श्री कुमार के अनुसार, इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू, पश्चिम एशिया में एक नई वास्तविकता बनाने की कोशिश कर रहे हैं और इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका के समर्थन का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कुमार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि नेतन्याहू इन प्रयासों में न केवल निर्देशक बल्कि स्क्रिप्ट राइटर की भूमिका भी निभाते हैं और अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को उनके साथ समन्वय करने पर मजबूर करना चाहते हैं।
आख़िर में, भद्र कुमार ने यह नतीजा दिया कि पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रम, क्षेत्र में शक्ति संतुलन में बड़े बदलाव का संकेत देते हैं जिसका क्षेत्र की भविष्य की नीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
उनके अनुसार, ईरान एक अहम खिलाड़ी के रूप में, इजराइल की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रभावी हमला करने और इस शासन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को कम करने के लिए अपनी स्मार्ट शक्ति का इस्तेमाल करने में कामयाब रहा है।
सोत्र:
M.K. Bhadrakumar. 2024. Iran To Hit Israel Hard With Smart Power. Eurasiareview