क़ासिम इमाम हसन बिन अली (अ) के बेटे थे और आप की माता का नाम “नरगिस” था मक़तल की पुस्तकों ने लिखा है कि आप एक सुंदर और ख़ूबसरत चेहरे वाले नौजवान थे और आपका चेहरा चंद्रमा की भाति चमकता था। क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अपने चचा की तरफ़ से लड़ने वाले थे आपने 13 या 14 साल की आयु में यज़ीद की हज़ारों के सेना के साथ युद्ध किया और शहीद
हज़रते क़ासिम बिन इमाम हसन अ स
क़ासिम इमाम हसन बिन अली (अ) के बेटे थे और आप की माता का नाम “नरगिस” था मक़तल की पुस्तकों ने लिखा है कि आप एक सुंदर और ख़ूबसरत चेहरे वाले नौजवान थे और आपका चेहरा चंद्रमा की भाति चमकता था।
क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अपने चचा की तरफ़ से लड़ने वाले थे आपने 13 या 14 साल की आयु में यज़ीद की हज़ारों के सेना के साथ युद्ध किया और शहीद हुए।
अबू मख़नफ़ हमीद बिन मुसलिम के माध्यम से कहता है कि हमीद ने रिवायत कीः हुसैन के साथियों में से एक लड़का जो ऐसा लगता था कि जैसे चाँद का टुकड़ा हो बाहर आया उसके हाथ में तलवार थी एक कुर्ता पहन रखा था और उसने जूता पहन रखा था जिसकी एक डोरी काटी गई थी और मैं कभी भी यह नही भूल सकता कि वह उसके बाएं पैरा का जूता था।
हज़रत क़ासिम की शादी
क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अभी 15 साल के नहीं हुए थे, मक़तले अबी मख़नफ़ में आया हैः क़ासिम कर्बला में 14 साल के थे, अल्लामा मजलिसी का मानना है कि हज़रत क़ासिम की शादी के बारे में कोई ठोस दस्तावेज़ मौजूद नहीं है।
हज़रत क़ासिम की शादी को सबसे पहले इन दो किताबों मे बयान किया गया है, शेख़ फ़ख़्रुद्दीन तुरैही की पुस्तक “मुंतख़बुल मरासी”, और दूसरी मुल्ला हुसैन काशेफ़ी की पुस्तक “रौज़तुल शोहदा”। और यह दोनों पहली मक़तल की पुस्तकें है जो फ़ारसी भाषा में लिखी गई हैं।
इस बारे में रिवायत बयान की जाती है कि मदीने से कर्बला की यात्रा के बीच हसन बिन हसन ने अपने चचा से आपकी दो बेटियों में से एक से शादी का प्रस्ताव रखा।
इमाम हुसैन ने कहाः जो तुमको अधिक पसंद हो उसको चुन लो, हसन शर्मा गये और कोई उत्तर नहीं दिया।
इमाम हुसैन ने फ़रमायाः मैंने तुम्हारे लिये फ़ातेमा का चुनाव किया है जो मेरी माँ और पैग़म्बर की बेटी के जैसी है।
इससे पता चलता है कि कर्बला में फ़ातेमा अवश्य मौजूद थी। अब अगर हम यह मान लें कि क़ासिम की शादी हुई है , तो हमको यह कहना होगा कि इमाम हुसैन की दो बेटिया थी जिनका नाम फ़ातेमा था जिनमें से एक की शादी हसन के साथ की गई और दूसरी की क़ासिम के साथ, या हम यह कहें कि वह बेटी जिसकी शादी क़ासिम के साथ हुई है उसका नाम फ़ातेमा नहीं था, और इतिहास की पुस्तकों ने उसका नाम लिखने में ग़ल्ती की है, और अगर हम क़ासिम की शादी को सही न मानें तो हम यह कह सकते हैं कि रावियों और मक़तल के लिखने वालों ने गल्ती से हसन के स्थान पर क़ासिम का नाम लिख दिया है और यहीं से क़ासिम की शादी की बात सामने आई है।
बहर हाल कारण कोई भी हो लेकिन आशूरा की घटनाओं के अधिकतर शोधकर्ताओं ने क़ासिम की शादी को ग़लत माना है, मोहद्दिस क़ुम्मी मुनतहल आमाल और नफ़सुल महमूल में क़ासिम की शादी का इन्कार करते हैं और लिखते हैं: इतिहास लिखने वालों ने हसन के स्थान पर ग़ल्ती से क़ासिम का नाम लिख दिया है।
शहीद मुतह्हरी भी क़ासिम की शादी को सही नहीं मानते हैं और कहते हैं कि किसी भी मोतबर पुस्तक में इस चीज़ के बारे में बयान नहीं किया गया है और हाजी नूरी का भी यह मानना है कि मुल्लाह हुसैन काशेफ़ी वह पहले इंसान है जिन्होंने अपनी पुस्तक रौज़तुश शोहदा में इस बात को लिखा है और यह ग़लत है।
शबे आशूर
आशूर की रात को क़ासिम की आयु 13 (1) या 16 साल थी। (2)
मक़तल की किताबों में है कि आशूर की रात इमाम हुसैन ने चिराग़ को बुझा दिया और फ़रमायाः जो भी जाना चाहता है चला जाए, लेकिन कोई न गया हर तरफ़ से रोने की आवाज़े बुलंद हो गई, उसके बाद इमाम हुसैन ने आशूर के दिन शहीद होने वालों के नाम बताने शुरू किये, कभी का अब्बास तुम्हारे शाने काटे जाएंगे, तो कभी कहा अकबर तुम्हारे सीने में बरछी लगेगी, कभी हबीब का नाम लिया को तभी जौन का, कभी औन व मोहम्मद को शहादत की सूचना दी तो कभी मुसलिम बिन औसजा को इस बीच क़ासिम हैं जो एक कोने में खड़े हुए हैं और अपने नाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन चूँकि क़ासिम की आयु अभी बहुत कम है इसलिये उनसे धैर्य नहीं रखा जाता है और इमाम हुसैन से कहते हैं, हे चचा क्या कल मैं भी शहीद होऊँगा?
हुसैन क़ासिम से पूछते हैं कि मौत तुम्हारी नज़र में कैसी है?
आपने कहाः शहद से अधिक मीठी
इमाम ने कहाः हां ऐ क़ासिम कल तुम भी शहीद होगे।
युद्ध की अनुमति मांगना
क़ासिम औन और मोहम्मद के बाद इमाम हुसैन के पास आते हैं और कहते हैं चचा जान अब मुझे में मरने की अनुमति दे दीजिये। लेकिन हुसैन ने आपको अनुमति नहीं दी आपने बहुत इसरार किया और आख़िरकार इमाम ने उनको अनुमति दे दी, एक रिवायत में है कि इमाम सज्जाद (अ) से एक हदीस में आया है कि क़ासिम अली अकबर के बाद मैदाने जंग में गये हैं। (3)
आप मैदान में आते हैं और परंपरा के अनुसार सिंहनाद पढ़ते हैं
إن تُنكِرونی فَأَنَا فَرعُ الحَسَن سِبطُ النَّبِیِّ المُصطَفى وَالمُؤتَمَن
هذا حُسَینٌ كَالأَسیرِ المُرتَهَن (4) بَینَ اُناسٍ لا سُقوا صَوبَ المُزَن
उसके बाद आपने युद्ध करना शुरू किया और 35 यज़ीदियों को मार गिराया। (5)
उमरो बिन सईद बिन नफ़ैल अज़्ज़ी ने जब आपको जंग करते हुए देखा तो क़सम खाईः अबी उस पर हमला करूँगा और उसको मार दूँगा।
उससे लोगों ने कहाः सुब्हान अल्लाह यह तुम क्या कार्य करोगे?
तुम देख रहे हो कि उसको चारों तरफ़ से घेरा चा चुका है और यही लोग उसको मार देंगे।
उसने कहाः ईश्वर की सौगंध मैं स्वंय उसकी हत्या करूँगा, उसने यह कहा और क़ासिम पर हमला कर दिया, और क़ासिम के सर पर तलवार मारी, क़ासिम घोड़े से गिर गये।
आवाज़ दी चचा जान सहायता कीजिये, इमाम हुसैन ने नफ़ैल पर हमला किया और उसका हाथ काट दिया, घुड़सवार नफ़ैल को बचाने के लिये दौड़े लेकिन इस दौड़ में क़ासिम का नाज़ुक बदन घोड़ों की टापों के बीट माला हो गया, और क़ामिस इस दुनिया से चले गये। (6)
ज़ियारते नाहिया में हज़रत क़ासिम पर यूँ मरसिया पढ़ा गया हैः
السَّلامُ عَلَى القاسِمِ بنِ الحَسَنِ بنِ عَلِیٍّ، المَضروبِ عَلى هامَتِهِ، المَسلوبِ لامَتُهُ، حینَ نادَى الحُسَینَ عَمَّهُ، فَجَلا عَلَیهِ عَمُّهُ كَالصَّقرِ، وهُوَ یَفحَصُ بِرِجلَیهِ التُّرابَ وَ الحُسَینُ یَقولُ : «بُعداً لِقَومٍ قَتَلوكَ ! و مَن خَصمُهُم یَومَ القِیامَةِ جَدُّكَ و أبوكَ
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(1) मक़तले ख़्वारज़मी
(2) लेबाबुल अंसाब
(3) अमाली शेख़ सदूक़, पेज 226
(4) मक़तले ख़्वारज़मी
(5) मक़तले ख़्वारज़मी
(6) तरीख़े तबरी और प्रसिद्ध स्रोत