इस्लामी समाज में कुरआन की भूमिका।

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इस्लामी समाज में कुरआन की भूमिका।

कुराने मजीद इल्म का सबसे बड़ा खजाना और समाज में फैली गुमराहियों को सुधारने के लिये बेहतरीन बयान है। कमाल और व्यापकता कुरआने करीम की ऐसी ख़ास विशेषता है जो इंसानी समाजों की सभी जरूरतों का जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है और दुनिया और आख़ेरत के सौभाग्य अपने दामन में समेटे हुए है। वास्तव में मानव इतिहास के सभी दौर और ज़माने में इस्लाम की यह व्यापकता व विशेषता कुरआन से व्युत्पन्न है।

समाज के विभिन्न निजी, सामूहिक और सामाजिक विषयों से लेकर व्यक्ति और समाज के आपसी प्रभाव, सामूहिक भिन्नताओं, आदर्श समाज, समाजिक गुट बंदियों व....का संपूर्ण जवाब क़ुरआन में निहित है। इसलिए सभी अवसरों ख़ास कर सामूहिक गुमराहियों के उपचार में सबसे गहन और सबसे सही विचारधारा को कुरान से निकाला जा सकता है।

इंसान की पहुंच में केवल कुरान आसमानी किताब है। कुरान के बारे में जो कुछ नहजुल बलाग़ा में बयान हुआ है, उसे इच छोटे से आर्टिकिल में बयान नहीं किया जा सकता है क्योंकि इमाम अली (अ) ने नहजुल बलाग़ा के बीस से अधिक ख़ुत्बों में कुरान और उसके स्थान का परिचय कराया है और कभी कभी आधे ख़ुत्बे से अधिक को कुरान और उसके स्थान व महत्व, मुसलमानों की ज़िन्दगी में उसके प्रभाव और आसमानी किताब के बारे में मुसलमानों की ज़िम्मेदारियों से विशेष क्या है। हम यहाँ पर कुरआन से संबंधित नहजुल बलाग़ा की केवल कुछ परिभाषाओं की व्याख्या कर रहे हैं।

अमीरूल मोमेनीन हज़रत अली 133 वें ख़ुत्बे में इरशाद फ़रमाते हैं:

 

''وَ کِتَابُ اللّٰہِ بَينَ اَظْہُرِکُمْ نَاطِق لايَعْييٰ لِسَانُہ''

 

यानी कुरान तुम्हारे सामने और तुम्हारी पहुँच में है, दूसरे धर्मों की आसमानी किताबें जैसे हज़रत मूसा और हज़रत ईसा की किताबों के विपरीत, कुरान तुम्हारी पहुंच में है उल्लेखनीय है कि पिछली पीढ़ियों में ख़ासकर बनी इस्राईल के यहूदियों में पवित्र किताब आम लोगों की पहुंच में नहीं थी, बल्कि तौरैत की केवल कुछ कॉपियां यहूदी उल्मा के पास थीं और आम लोगों के लिए तौरैत से सम्पर्क स्थापित करने की संभावना नहीं पाई जाता थी।

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