तौहीद क्या है?

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तौहीद क्या है?

तौहीद का मतलब अल्लाह को एक मानना है। दर्शन और तर्क शास्त्र में इस के कई मतलब हैं लेकिन सब का अंत में मतलब यही होता है कि अल्लाह को एक माना जाए। इस संदर्भ में बहुस ती विस्तृत चर्चाओं का बयान हुआ है लेकिन यहाँ पर सब का बयान उचित नहीं होगा।

इस लिए यहाँ पर हम तौहीद के केवल उन्हीं अर्थों और परिभाषाओं का बयान करेगें जो ज़्यादा विख्यात हैं।

1. संख्या को नकारना

तौहीद की सर्वाधिक विख्यात परिभाषा, अल्लाह के एक होने पर यक़ीन और उसके कई होने को नकारना है। अल्लाह के लिए ऐसी विधिता को नकारना है जो उसके वुजूद से बाहर हो । यह यक़ीन दो या कई अल्लाह में ईमान रखने के विपरीत है।

2. मिश्रण को नकारना

तौहीद की दूसरी परिभाषा अल्लाह के अनन्य होने की है यानी वह ऐसा एक है कि जो कई वस्तओं से मिल कर एक नहीं बना है।

इस मतलब को प्रायः उसके अवगुणों को नकार कर साबित किया जाता है जैसा कि हम ने दसवें पाठ में इस ओर इशारा किया है।

3. उसके वुजूद से अतिरिक्त गुणों को नकारना

तौहीद की एक दूसरे परिभाषा उसके गुणों और उसके वुजूद में अंखडता होना है इस अल्लाह के गुणों को एकल मानना कहा जाता है। इस विपरीत कुछ लोग अल्लाह गुणों को उसके वुजूद से अलग और बाद में उससे जुड़ जाने वाली चीज़ मानते हैं।

अल्लाह के गुण और वुजूद के एक होने का तर्क यह है कि अगर अल्लाह के प्रत्येक गुण, अलग अलग रूप से यर्थात होते हों तो इस की कुछ दशाएं होंगीः वह गुण जिसके लिए होंगे वह चीज़ अल्लाह के वुजूद के भीतर होगी और ऐसी दशा में यह ज़रूरी होगा अल्लाह का वुजूद कई हिस्सों से बनने वाली चीज़ हो जाए और यह हम पहले ही साबित कर चुके हैं कि ऐसा होना संभव नहीं है या दूसरी दशा यह हो सकती है कि यह गुण जिस चीज़ पर यर्थात होते हैं वह अल्लाह के वुजूद से बाहर की चीज़ होगी तो फिर अगर वह अल्लाह के वुजूद से बाहर होगी तो या तो आत्मभू होगी या फिर स्वयंभू नहीं होगी। अगर स्वयंभू होगी तो तो अल्लाह के अतिरिक्त दूसरी वस्तु, चाहे वह गुण ही क्यों न हो, स्वंभू हो जाएगी और हम साबित कर चुके हैं कि स्वंभू ही अल्लाह होता है त इस तरह से सीधे रूप से अनेकश्वरवाद को मानना पड़ेगा जो निश्चित रूप से गलत है और तौहीद में ईमान रखने वाला कोई इंसान यह दशा स्वीकार नहीं करेगा।

लेकिन अगर गुणों के लिए यह माना जाए कि वह स्वंभ नहीं हैं तो फिर इस का मतलब होगा कि अल्लाह ने, जो ख़ुद ख़ुदभू नहीं हैं तो फिर इस का मतलब यह होगी कि अल्लाह ने, जो ख़ुद ख़ुदभू है, अपने भीतर इन गुणों के न होते हुए उन्हें पैदा किया है और फिर उन गुणों को ग्रहक किया है। उदाहरम स्वरूप अल्लाह जीवित होने का गुण नहीं रखता था पिर उस ने जीवंत होने का गुण पैदा किया और फिर उस ग्रहक किया और इस तरह से वह जीवित हुआ और इसी तरह इल्म व ताक़त जैसे उसके गुण। जब कि यह संभव नहीं है कि रचयता कारक, ख़ुद ही अपनी रचनाओं के गुणों का मालिक न हों और इस से ज़्यादा बुरी बात यह होगी कि इस दशा में वह अपनी पैदा की हुई चीज़ की सहायता से जीवन इल्म व ताक़त जैसे गुण हासिल करेगा।

इस तरह की धारणाओं के गलत साबित होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अल्लाह के गुण एक दूसरे औस ख़ुद उसके वुजूद से भिन्न नहीं हैं बल्कि सब क सब ऐसे मतलब हैं जो एकल वुजूद यानी अल्लाह से निकले हुए हैं।

4. कार्यों में तौहीद

तौहीद की चौथी परिभाषा, कार्यों में होती है और इस का मतलब यह होता है कि अल्लाह को अपने काम करने के लिए किसी भी इंसान या चीज़ की ज़रूरत नहीं होती और कोई भी उसकी किसी भी तरह से सहायता नहीं कर सकता।

यह बात मूल रचयता कारक की विशेषता यानी सारी रचनाओं के उस पर निर्भर होने के मतलब के मद्देनज़र साबित होती है क्योंकि इस तरह के कारक की रचना, अपने पूरे वुजूद के साथ अपने कारक पर निर्भर होती है और किसी भी तरह से स्वाधीन नहीं होती।

दूसरे शब्दों मेः जिस के पास जो कुछ भी है वह उसी की दी हुई ताक़त व सामर्थ के बल पर है और किसी भी चीज़ पर स्वामित्व और हर तरह की क्षमता व ताक़त का स्रोत अल्लाह है। ठीक उसी तरह से जैसे दास के स्वामित्व में रहने वाली चीज़ें उसके मालिक की होती हैं और दास को उसे इस्तेमाल करने की अनुमति होती हैं तो फिर ऐसी दशा में यह कैसे संभव है कि अल्लाह को उन लोगों की सहायता की ज़रूरत हो जिन का वुजूद और जनि के पास मौजूद हर चीज़ ख़ुद उसकी न होकर अल्लाह की ही हो।

5. स्वाधीन प्रभाव

यह तौहीद की पाँचवी विशेषता है और इस का मतलब यह होता है कि अल्लाह की रचनाएं अपने कामों में भी स्वाधीन नहीं है बल्कि उन्हें अल्लाह की ज़रूरत होती है वह एक दूसरे पर जो प्रभाव डालती हैं उसके लिए भी उन्हें अल्लाह की ज़रूरत होती है और उसी की अनुमति से यह संभव होता है।

वास्तव में जो स्वाधीन रूप से और बिना किसी दूसरे की सहायता और ज़रूरत के हर स्थान पर हर चीज़ को प्रभावित करता है वह वही अल्लाह है और दूसरों के प्रभाव और उन का कारक होना उसी की दी हुई ताक़त के बल पर संभव होता है।

इसी आधार पर क़ुर्आने मजीद, प्रकृतिक कारकों के प्रभावों को अल्लाह से संबंधित बताता है मिसाल के तौर पर क़ुर्आने मजीद ने वर्षा, पेड़ पौधों का उगना, पेड़ों में फल आदि जैसे कामों को भी उसी से संबंधित बताया है और इस बात पर आग्रह करता है कि लोग, इस संबंध को, कि जो प्रकृतिक कारकों और अल्लाह के बीच होता है, समझें और उसे स्वीकार करें और हमेशा ही उस पर ध्यान दें।

इस बात को और ज़्यादा स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण पेश किया जा सकता हैः मिसाल के तौर पर अगर किसी कंपनी का मालिक किसी कर्मचारी को कोई काम करने का आदेश देता है या कोई काम, किसी कर्मचारी द्वारा किया जाता है तो वास्तव में उसं कंपनी और उसके मालिक का काम समझा जाता है बल्कि बौद्धिक रूप से उस काम का आदेश देने वाला करने वाले से ज़्यादा ज़िम्मेदारी होता है।

 

दो महत्वपूर्ण नतीजा

अल्लाह के कामों में तौहीद के यक़ीन का नतीजा यह है कि इंसान, अल्लाह के अतिरिक्त किसी चीज़ या किसी इंसान को इबादत योग्य न समझे क्योंकि जैसा कि पहले बताया जा चुका है, इबादत योग्य वही होता है जो पैदा करने वाला और परवरदिगार हो दूसरे शब्दों में अल्लाह होने का मतलब परवरदिगार व पैदा करने वाला होना है।

दूसरी ओर तौहीद के वर्णित मतलब का नतीजा यह है कि इंसान का पूरा भरोसा अल्लाह पर रहे और हर काम में केवल उसी पर भरोसा करे और केवल उसी से सहायता माँगे और उसके अतिरिक्त न तो किसी से डरे और न ही किसी से कोई उम्मीद रखे यहाँ तक कि अगर यह उसकी इच्छा पुर्ति के भौतिक कारक व हालात मौजूद न हों तब भी वह निराश न हो क्योंकि अल्लाह आसाधारण रास्तों से भी उसकी इच्छा पूरी कर सकता है।

इस तरह का इंसान अल्लाह की विशेष कृपा का पात्र बनता है और उसके मन को अभूतपूर्ण शांति मिलती है जैसा कि क़ुर्आने मजीद में है कि जान लो अल्लाह के मित्रों को न डर है और न ही वह दुखी होते हैं।

यह दो नतीजा क़ुर्आने मजीद के पहले सूरे की इस आयत में कि जिसे हर मुसलमान दिन में कम से कम पाँच बार दोहराता है, मौजूद हैः

हम तेरी इबादत करते हैं और तुझ से ही सहायता चाहते हैं।

एक शंका का निवारण

यहाँ पर संभव है कि मन में यह शंका पैदा हो कि अगर तौहीद का मतलब यह है कि इंसान अल्लाह के अतिरिक्त किसी से भी सहायता न माँगे तो फिर अल्लाह के विशेष दासों से भी सहायता नहीं माँगी जा सकती।

इस शंका का जवाब यह है कि अल्लाह के विशेष दासों से सहायता माँगना, अगर इस विचार के साथ हो कि वह लोग अल्लाह की अनुमति के बिना स्वाधीन रूप से माँगने वाले की इच्छापूर्ति कर सकते हैं तो इस तरह की सहायता माँगना, तौहीद के विपरीत होगा लेकिन अगर मन में यह विचार हो कि अल्लाह ने इन विशेष दासों को अपनी कृपा तक पहुँचने का साधन बनाया है तो फिर यह काम न केवल यह कि तौहीद के विपरीत नहीं है बल्कि तौहीद, इबादत और आज्ञापालन ही होगा क्योंकि यह काम वह अल्लाह के आदेश के अनुसार करेगा।

लेकिन जहाँ तक इस बात का सवाल है कि अल्लाह ने क्यों इस तरह के साधन बनाए हैं ? और लोगों को इन का हवाला देने और इन्हें बीचस्थ बनाने का क्यों आदेश दिया है ? तो इस के जवाब में कहा जा सकता है कि इस के कई कारण हैं जिन में से कुछ इस तरह हैं:

योग्य व अल्लाह के प्रिय लोगों का परिचय, दूसरे लोगों को ऐसी इबादत के लिए प्रोत्साहित करना जिस के बाद वह इस तरह के स्थान तक पहुँच सकते हैं। अपनी इबादत और दीन प्रतिबद्धता के नतीजा में इंसान के भीतर अंह व घमंड की भावना को रोकना। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की प्रेम परिधि से बाहर रहने वालों के साथ हुआ है।

प्रश्नः

1. तौहीद का क्या मतलब है ?

2. गुणों में तौहीद का क्या तर्क है ?

3. कार्यों में तौहीद को किस तरह साबित किया जा सकता है ?

4. स्वाधीन रूप से प्रभाव की ताक़त में तौहीद का क्या मतलब है ?

5. अंत में तौहीद के दो परिणामों से क्या नतीजा निकतला है ?

6. क्या अल्लाह के विशेष दासों को साधन बनाना एकेश्वरवादी आईडियॉलोजी के विपरीत है ? क्यों ?

7. अल्लाह ने कुछ विशेष लोगों को अपने तक पहुँचने का साधन बनाया है इस के कारण बताएं।

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