हज़रत ज़ैनब स.अ. का जन्म दिन।

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पांच जमादिउल अव्वल पांच हिजरी क़मरी को मदीना शहर में पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी हज़रत ज़ैनब का जन्म हुआ। उस समय पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. मदीने से बाहर गये हुए थे। इसी कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस बच्ची का नाम रखने में सब्र से काम लिया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. मदीना वापस आ जायें। पैग़म्बरे इस्लाम स.अ के मदीने वापस आ जाने के बाद उन्होंने बच्ची का नाम ज़ैनब रखा और उस बच्ची का हमेशा सम्मान किये जाने की सिफारिश की क्योंकि वह अपनी नानी खदीज़ा की तरह है यानी उन्होंने जिस तरह से पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के ऐलान के शुरू में कुर्बानी व त्याग देकर और बहुत अधिक कठिनाइयां सहन की ताकि इस्लाम का पौधा सुरक्षित और फलदार हो सके, ठीक उसी तरह हज़रत ज़ैनब ने भी बहुत ज़्यादा धैर्य, त्याग और कठिनाइयां सहन की ताकि इस्लाम को ख़तरे में पड़ने से बचाया जा सके।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने समस्त सदगुणों को अपनी मां हज़रत फातेमा और बाप हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सीखा था और सीधे इन महान हस्तियों की देखरेख एवं साये में पली बढ़ीं। हज़रत ज़ैनब एसे माहौल में परवान चढ़ीं जो सद्गुणों का स्रोत व केन्द्र था।

हज़रत ज़ैनब तहारत व पाकता में अपनी महान मां हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की तरह थीं जबकि बात करने व भाषण देने में अपने महान बाप हज़रत अली अलैहिस्सलाम के समान थीं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने सहनशीलता व विन्रमता अपने बड़े भाई इमाम हसन और बहादुरी व धैर्य अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से सीखा था। इसी कारण हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का पावन अस्तित्व सद्गुणों का दर्पण एवं प्रतीक बन गया। जब हज़रत ज़ैनब बहुत छोटी थीं तभी एक बार उनके महान पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनसे कहाः मेरी बेटी कहो एक हज़रत ज़ैनब ने कहा एक, उसके बाद हज़रत अली ने कहा कि कहो दो उस समय हज़रत ज़ैनब चुप हो गयीं। जब उनका मौन लंबा हो गया तो हज़रत अली ने कहा मेरी बेटी क्यों चुप हो गयी? उस समय हज़रत ज़ैनब ने कहा पिता जिस ज़बान से मैंने एक कहा उस जबान से दो कहने की क्षमता नहीं है।

हज़रत ज़ैनब का यह बयान महान अल्लाह के एक होने के प्रति उनके गहरे विश्वास का सूचक है वह भी उस समय जब हज़रत ज़ैनब बहुत छोटी थीं।

हज़रत ज़ैनब सद्गुणों की मालिक एक महान महिला थीं और वह मुसलमान व ग़ैर मुसलमान औरतों के लिए एक सर्वोत्तम आदर्श हैं। हज़रत ज़ैनब इल्म में अपना उदाहरण ख़ुद थीं। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने शासन के समय इराक के कूफा शहर चले गये और वहीं पर रहने लगे तो इल्म की जिज्ञासु औरतों और लड़कियों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास संदेश भेजा और कहा कि हमने सुना है कि आप की बेटी हज़रत ज़ैनब अपनी मां हज़रत फातेमा ज़हरा की तरह इल्म और दूसरे सद्गुणों की मालिक हैं। अगर आप इजाज़त दें तो हम उनकी सेवा में हाज़िर होकर इल्म के स्रोत से फ़ायदा उठायें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इजाज़त दे दी ताकि उनकी बेटी कूफे की औरतों व लड़कियों के धार्मिक व ग़ैर धार्मिक सवालों का जवाब दें और उनकी समस्याओं का समाधान करें। हज़रत ज़ैनब ने इस काम के लिए अपनी तत्परता का ऐलान किया और शुरूआती मुलाकात के बाद उन्होंने कूफे की औरतों के लिए पाक कुरआन की व्याख्या के लिए कक्षा गठित की और उनके सवालों का जवाब दिया।

अलबत्ता हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कर्बला, कूफा, शाम और अत्याचारियों के समक्ष जो भाषण दिये हैं उन सबसे आपके इल्म की महानता को अच्छी तरह देखा जा सकता है।

हज़रत ज़ैनब के बारे में एक अहेम प्वाइंट, विभिन्न अवसरों पर फैसला लेने और दृष्टिकोण अपनाने की उनकी अदभुत क्षमता है। हज़रत ज़ैनब अच्छी तरह जानती थीं कि कहां पर कौन सी बात कहनी चाहिये और कहां पर साहस का परिचय देना चाहिये। हज़रत ज़ैनब ने धर्मभ्रष्ठ और अत्याचारी शासक यज़ीद बिन मोआविया के महल में जो एतिहासिक भाषण दिया उसे सुनकर यज़ीद बौखला गया और उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे जबकि हज़रत इमाम हुसैन का कटा हुआ सिर उनकी बहन हज़रत ज़ैनब की नज़रों के सामने था।

एक रिसर्चर इस संबंध में कहता है” दुश्मनों के साथ और उनके मुकाबले में हज़रत ज़ैनब का बर्ताव बड़ा ही चकित व हतप्रभ करने वाला है। उन्होंने दुश्मनों के साथ बड़ा ही तार्किक व ठोस बर्ताव किया जबकि वे सिंहासन पर थे। हज़रत ज़ैनब बनी हाशिम परिवार की साहसी महिला थीं। उन्होंने धर्मभ्रष्ठ, निर्दयी, निष्ठुर, क्रूर एवं अत्याचारी शासक यज़ीद के महल में जो एतिहासिक भाषण दिया उससे यज़ीद और उसके समर्थक लज्जित व अपमानित हो गये और उसके महल में हज़रत ज़ैनब के भाषण से भूचाल आ गया।

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