माहे रमज़ान बंदगी की बहार माहे रमज़ान के आगमन पर विशेष कार्यक्रम

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माहे रमज़ान बंदगी की बहार   माहे रमज़ान के आगमन पर विशेष कार्यक्रम

आज मस्जिदों का वातावरण कुछ बदला हुआ है।

जवान मस्जिद की सफाई कर रहे हैं। मस्जिद में बिछे फर्शों को धुल रहे हैं उसकी दीवारों आदि पर जमी धूलों की सफाई कर रहे हैं। वास्तव में दिलों की सफाई करके बड़ी मेहमानी की तैयारी की जा रही है। मानो मस्जिदों की सफाई करके स्वयं को महान ईश्वर की मेहमानी के लिए तैयार किया जा रहा है। इस नश्वर संसार में यह एक प्रकार की छोटी सी चेतावनी है और हम यह सोचें कि एक दिन हमें अपने पालनहार की ओर पलट कर जाना है उसी जगह पलट कर जाना है जब हम मिट्टी से अधिक कुछ नहीं थे और महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने हमें जीवन प्रदान किया।

इमामे जमाअत की आवाज़ सुनकर सभी नमाज के लिए खड़े हो जाते हैं और नमाज़ की पंक्ति को सही करते हैं और पूरी निष्ठा के साथ महान ईश्वर को याद करते हैं। अल्लाहो अकबर की आवाज़ सुनाई देती है जिसका अर्थ होता है ईश्वर महान है यानी ईश्वर उससे भी बड़ा व महान है जिसकी विशेषता बयान की जाये। इस वाक्य की पुनरावृत्ति दिलों को मज़बूत बनाती है और यह बताती है कि केवल उस पर भरोसा करना चाहिये और उससे मदद मांगना चाहिये। नमाज़ खत्म हो जाने के बाद मस्जिद में धोरे -धीरे शोर होने लगता है, दस्तरखान बिछने लगता है, कोई कहता है आज रमज़ान तो नहीं है क्यों इफ्तारी देना चाहते हैं? उसके जवाब में एक जवान कहता है" आज बहुत से लोगों ने पवित्र रमज़ान महीने के स्वागत में रोज़ा रखा है। आज शाबान महीने की अंतिम तारीख़ है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि शाबान मेरा महीना है और रमज़ान ईश्वर का महीना है तो जो मेरे महीने में रोज़ा रखेगा मैं प्रलय के दिन उसकी शिफाअत करूंगा यानी उसे क्षमा करने के लिए ईश्वर से विनती करूंगा और जो रमज़ान महीने में रोज़ा रखेगा वह नरक की आग से सुरक्षित रहेगा।“

जो लोग महान ईश्वर की मेहमानी से लाभांवित होना चाहते हैं और उसकी प्रतीक्षा में रहते हैं वे शाबान महीने में रोज़ा रखकर रमज़ान महीने का स्वागत करते हैं।

इसी मध्य मस्जिद के लाउड स्पीकर से रमज़ान महीने का चांद हो जाने की घोषणा की जाती है। लोग पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर दुरुद व सलाम भेजते हैं। उसके बाद इमामे जमाअत सभी को रमज़ान महीने के आगमन की मुबारकबाद पेश करता है और मस्जिद में मौजूद लोग दुआओं की किताब “सहीफये सज्जादिया” की 44वीं दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसका अनुवाद है” समस्त प्रशंसा उस पालनहार व ईश्वर से विशेष है जिसने अपने महीने, रमज़ान को पथप्रदर्शन का माध्यम करार दिया है, रमज़ान का महीना रोज़ा रखने, नतमस्तक होने, उपासना करने, पापों से पवित्र होने और रातों को जागने का महीना है। रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरआन नाज़िल हुआ है ताकि वह लोगों का पथ-प्रदर्शन करे और सत्य- असत्य के बीच स्पष्ट तर्क व प्रमाण को पेश करे”

रमज़ान के महीने पर सलाम हो, रमज़ान का महीना उस जल की भांति है जो बुराइयों और पापों की आग की लपटों को बुझा देता है। सलाम हो इस्लाम व ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक होने के महीने पर, सलाम हो पवित्रता के महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जो हर प्रकार के दोष व कमी से शुद्ध करता है, सलाम हो रातों को जागने और महान ईश्वर की उपासना करने वाले महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जिसकी अनगिनत आध्यात्मिकता से बहुत से लोग लाभ उठाते हैं और उसके विशुद्ध व अनमोल क्षण, ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हैं। यह चरित्र निर्माण का बेहतरीन महीना है, यह इंसान बनने और मानवता को परिपूर्णता का मार्ग का तय करने का बेहतरीन महीना है। यह वह महीना है जिसमें इंसान हर दूसरे महीने की अपेक्षा बेहतर ढंग से स्वंय को सद्गुणों से सुसज्जित कर सकता है। इसी प्रकार यह वह महीना है जिसमें इंसान बुराइयों से दूर रहने का अभ्यास दूसरे महीनों की अपेक्षा बेहतर ढंग से कर सकता है।

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को सबके लिए आदर्श बनाया है। जब वह रमज़ान महीने के चांद को देखते थे तो अपना पवित्र चेहरा किबले की ओर कर लेते थे और आसमान की ओर दुआ के लिए हाथ उठाते थे और प्रार्थना करते थेः हे पालनहार! इस महीने को हमारे लिए शांति, सुरक्षा, स्वास्थ्य, सलामती, रोज़ी को अधिक करने वाला और समस्याओं को दूर करने वाला करार दे। हे पालनहार! हमें इस महीने में रोज़ा रखने, उपासना करने और कुरआन की तिलावत करने की शक्ति प्रदान कर और इस महीने में हमें सेहत व सलामती प्रदान कर”

जब रमज़ान का पवित्र महीना आता था तो पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक प्रसन्न होते थे और रमज़ान के पवित्र महीने में नाज़िल होने वाली अनवरत बरकतों व अनुकंपाओं का स्वागत करते और उनसे लाभ उठाते और महान ईश्वर के उस आदेश पर अमल करते थे जिसमें वह कहता है” हे पैग़म्बर कह दीजिये कि ईश्वर की कृपा और दया की वजह से मोमिनों को प्रसन्न होना चाहिये और यह हर उस चीज़ से बेहतर है जिसे वे एकत्रित करते हैं।“

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने में हर दूसरे महीने से अधिक उपासना की तैयारी करते थे। इस प्रकार रमज़ान के पवित्र महीने का स्वागत करते थे कि अच्छा कार्य करना उनकी प्रवृत्ति बन जाये और पूरे उत्साह के साथ रमज़ान के महीने में महान ईश्वर की उपासना करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने के आने से पहले कुछ महत्वपूर्ण कार्य अंजाम देते थे और यह कार्य उपासना करने में पैग़म्बरे इस्लाम की अधिक सहायता करते थे।

रमज़ान के पवित्र महीने में अच्छे ढंग से रोज़ा रखने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम शाबान महीने में ही गैर अनिवार्य रोज़े रखते थे और अपने साथियों व अनुयाइयों को रमज़ान महीने में अधिक उपासना करने के लिए कहते थे। इस उद्देश्य को व्यवहारिक बनाने के लिए लोगों को पवित्र रमज़ान महीने की विशेषता बयान करते और इस महीने में किये जाने वाले कर्म के अधिक पुण्य पर ध्यान देते थे। शाबान महीने के अंतिम खुत्बे में पैग़म्बरे इस्लाम बल देकर कहते थे” हे लोगों! बरकत, दया, कृपा और प्रायश्चित का ईश्वरीय महीना आ गया है। यह एसा महीना है जो ईश्वर के निकट समस्त महीनों से श्रेष्ठ है। इसके दिन बेहतरीन दिन और इसकी रातें बेहतरीन रातें और उसके क्षण बेहतरीन क्षण हैं। यह वह महीना है जिसमें तुम्हें ईश्वरीय मेहमानी के लिए आमंत्रित किया गया है, ईश्वरीय सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की गयी है, तुम्हारी सांसें ईश्वरीय गुणगान व तसबीह हैं, इसमें तुम्हारा सोना उपासना और तुम्हारे कर्म स्वीकार और तुम्हारी दुआयें कबूल हैं। इस महीने की भूख- प्यास से प्रलय के दिन की भूख- प्यास को याद करो, गरीबों, निर्धनों और वंचितों को दान दो, अपने से बड़ों का सम्मान करो और छोटों पर दया करो और सगे-संबंधियों के साथ भलाई करो। अपने पापों से प्रायश्चित करो, नमाज़ के समय अपने हाथों को दुआ के लिए उठाओ कि वह बेहतरीन क्षण है और ईश्वर अपने बंदों को दयादृष्टि से देखता है।“

इस आधार पर कहा जा सकता है कि रमज़ान के पवित्र महीने का रोज़ा और दूसरी उपासनायें केवल शारीरिक गतिविधियां नहीं हैं बल्कि उनका स्रोत बुद्धि और हृदय है। इसी कारण अगर कोई अमल अंजाम दिया जाये और उसका आधार बुद्धि और दिल न हो तो वह अमल प्राणहीन व परंपरागत है जिसने हमें स्वयं में व्यस्त कर रखा है और उसका कोई लाभ व प्रभाव नहीं है। अगर हम यह चाहते हैं कि हमारी शारीरिक गतिविधियों का आधार बुद्धि व दिल हो तो हमें चाहिये कि सोच- विचार करके अपनी बुद्धि से काम लें और अपने अमल को अर्थपूर्ण बनायें।

इस समय जीवन का आदर्श बदल गया है। दिलों में प्रेम, मोहब्बत और निष्ठा कम हो गयी है और जीवन में उपेक्षा की भावना का बोल- बाला हो गया है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के शब्दों में हर साल रमज़ान महीने का आध्यात्मिक समय स्वर्ग के टुकड़े की भांति आता है और ईश्वर उसे भौतिक संसार के जलते हुए नरक में दाखिल करता है और हमें इस बात का अवसर देता है कि हम इस महीने में स्वयं को स्वर्ग में दाखिल करें। कुछ लोग इस महीने की बरकत से इसी तीस दिन में स्वर्ग में दाखिल हो जाते हैं, कुछ लोग इस 30 दिन की बरकत से पूरे साल और कुछ इस महीने की बरकत से पूरे जीवन लाभ उठाते और स्वर्ग में दाखिल होते हैं जबकि कुछ इस महीने से लाभ ही नहीं उठा पाते और वे सामान्य ढंग से इस महीने गुज़र जाते हैं जो खेद और घाटे की बात है।"

इस प्रकार अगर इंसान रोज़ा रखता है, भूख- प्यास सहन करता है, ईश्वर की राह में खर्च करता है और दूसरों से प्रेम करता है तो यह महान ईश्वर की प्रसन्नता है जो हर चीज़ से श्रेष्ठ है और इंसान महान ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त करता है यहां तक कि स्वयं इंसान और महान ईश्वर के बीच में किसी प्रकार की कोई रुकावट व दूरी नहीं रह जाती है और यह महान ईश्वर से प्रेम करने वालों का स्थान है।

हदीसे कुद्सी में आया है कि रोज़ा रखने और कम खाने के परिणाम में इंसान को तत्वदर्शिता प्राप्त होती है और तत्वदर्शिता भी ज्ञान व विश्वास का कारण बनती है। जब जिस बंदे को विश्वास हो जाता है तो वह इस बात से नहीं डरता है कि दिन कठिनाई में गुजरेंगे या आराम में और यह प्रसन्नता का स्थान है। महान ईश्वर ने कहा है कि जो मेरी प्रसन्नता के अनुसार व्यवहार करेगा मैं उसे तीन विशेषताएं प्रदान करूंगा। प्रथम आभार प्रकट करने की विशेषता जिसके साथ अज्ञानता नहीं होगी। दूसरे एसी याद जिसे भुलाया नहीं जा सकता और तीसरे उसे एसी दोस्ती प्रदान करूंगा कि वह मेरी दोस्ती पर मेरी किसी रचना की दोस्ती को प्राथमिकता नहीं देगा। जब वह मुझे दोस्त रखेगा तो मैं भी उसे दोस्त रखूंगा। उसके प्रेम को अपने बंदों के दिलों में डाल दूंगा और उसके दिल की आंखों को खोल दूंगा जिससे वह मेरी महानता को देखेगा और अपनी सृष्टि के ज्ञान को उससे नहीं छिपाऊंगा और रात के अंधरे और दिन के प्रकाश में उससे बात करूंगा

पवित्र रमज़ान महीने के आगमन पर हम इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसमें इमाम महान ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं" पालनहार! मोहम्मद और उनके परिजनों पर दुरूद व सलाम भेज और रमज़ान महीने की विशेषता और उसके सम्मान को पहचानने की मुझ पर कृपा कर"

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